भारत की अण्डर 21 हॉकी टीम-रानी रामपाल को कप्तानी
नयी दिल्ली। हॉकी इण्डिया के पास महिला हॉकी की बेहतरी के लिए शायद कोई फार्मूला नहीं है। यह बात भारत की अण्डर 21 हॉकी टीम के चयन से साफ हो गई है। भारत को महिला हॉकी में कुछ बेहतर करना है तो उसे हर आयु वर्ग की अलग-अलग टीमें तैयार करनी होंगी। भारत की अण्डर 21 हॉकी टीम में अधिकांश सीनियर खिलाड़ियों के चयन से साफ है कि हमारे पास सब जूनियर, जूनियर और सीनियर का पूल ही नहीं है।
स्टार स्ट्राइकर रानी रामपाल को नीदरलैण्ड में 19 जुलाई से शुरू हो रहे वोल्वो अंतरराष्ट्रीय अण्डर 21 हॉकी टूर्नामेंट में 18 सदस्यीय भारतीय जूनियर टीम की कप्तानी सौंपी गई है। नीदरलैण्ड में होने वाले टूर्नामेंट में मेजबान नीदरलैण्ड, भारत, इंग्लैण्ड, न्यूजीलैण्ड, जर्मनी और चीन की टीमें भाग लेंगी। रानी रामपाल सीनियर महिला टीम की सदस्य है। यदि हमें जूनियर टीम में सीनियर खिलाड़ियों को ही शामिल किया जाना था तो जूनियर खिलाड़ियों के प्रशिक्षण शिविर के क्या मायने रह जाते हैं? हॉकी इण्डिया का कहना है कि भारतीय टीम को दिल्ली में लगे अभ्यास शिविर के आधार पर चुना गया है, जबकि यह सच नहीं है। महिला हॉकी में बेतुके प्रयोगों से जूनियर में हमें बेशक मैडल मिल जाएं पर सीनियर महिला हॉकी का कतई भला नहीं होने वाला। जूनियर महिला टीम में सीनियर खिलाड़ियों के खेलने से प्रतिभाएं हतोत्साहित होती हैं। देखा जाये तो जब से हॉकी इण्डिया की कमान बत्रा के हाथों में आई है, उन्होंने महिला हॉकी के जानकारों को एक-एक कर विदा कर दिया है। हॉकी इण्डिया के पास अपने पुश्तैनी खेल की बेहतरी के लिए कोई नीति नहीं है। खेलों में भारत के सामने उम्र के फरेब से निपटना वैसे भी कभी आसान नहीं रहा है। महिलाओं के मामले में तो कतई नहीं, वजह उनके मूंछ तो होती नहीं।
हाल ही भारतीय हॉकी बेटियां अपने मिले-जुले प्रयासों से हॉकी वर्ल्ड लीग में पांचवें स्थान पर रहीं। यूं तो राष्ट्रीय खेल की महिला टीम का पांचवें स्थान पर आना कोई बड़ी उपलब्धि नहीं कही जा सकती लेकिन भारतीय खेल तंत्र के नजरिये से यह बहुत बड़ी बात है। वजह, यह गरीब बेटियां भारत के उन छोटे-छोटे गांवों और शहरों से आती हैं, जहां साधन-सुविधा और प्रशिक्षण नाम की कोई व्यवस्था ही नहीं होती। हमारे यहां प्रतिभाओं की कमी नहीं है, बल्कि प्रतिभा का दमन कुछ अधिक है। अगर महिला हॉकी टीम ओलम्पिक में शामिल होती है, तो देश की खिलाड़ी बच्चियों का हौसला इससे मजबूत होगा। वैसे भी आजादी के 68 साल में हमारी हॉकी बेटियां सिर्फ एक बार ही वर्ष 1980 में ओलम्पिक खेली हैं।
जीत से आगाज की चिन्ता
इस टूर्नामेण्ट के बारे में मुख्य कोच मथियास अहरेंस का कहना है कि यह टूर्नामेंट हमारे लिये काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे सितम्बर में होने वाले सातवें महिला एशिया कप के लिये भी बेस तैयार होगा। टीम का चयन मैदानी तालमेल के आधार पर किया गया है। भारत का पहला मैच मेजबान नीदरलैण्ड से है और हमें जीत के साथ आगाज का यकीन है।
भारतीय टीम: इंदरप्रीत कौर, श्वेता (गोलकीपर), दीप ग्रेस इक्का, नमिता टोप्पो, गुरुजीत कौर, जसप्रीत कौर, मनजीत कौर, रश्मिता मिंज (डिफेण्डर), एम, लिली चानू, लिलिमा मिंज, नवजोत कौर, रेणुका यादव, प्रीति दुबे (मिडफील्डर), अनुपा बारला, रानी रामपाल, पूनम बारला, नवनीत कौर, नवप्रीत कौर (फारवर्ड).
नयी दिल्ली। हॉकी इण्डिया के पास महिला हॉकी की बेहतरी के लिए शायद कोई फार्मूला नहीं है। यह बात भारत की अण्डर 21 हॉकी टीम के चयन से साफ हो गई है। भारत को महिला हॉकी में कुछ बेहतर करना है तो उसे हर आयु वर्ग की अलग-अलग टीमें तैयार करनी होंगी। भारत की अण्डर 21 हॉकी टीम में अधिकांश सीनियर खिलाड़ियों के चयन से साफ है कि हमारे पास सब जूनियर, जूनियर और सीनियर का पूल ही नहीं है।
स्टार स्ट्राइकर रानी रामपाल को नीदरलैण्ड में 19 जुलाई से शुरू हो रहे वोल्वो अंतरराष्ट्रीय अण्डर 21 हॉकी टूर्नामेंट में 18 सदस्यीय भारतीय जूनियर टीम की कप्तानी सौंपी गई है। नीदरलैण्ड में होने वाले टूर्नामेंट में मेजबान नीदरलैण्ड, भारत, इंग्लैण्ड, न्यूजीलैण्ड, जर्मनी और चीन की टीमें भाग लेंगी। रानी रामपाल सीनियर महिला टीम की सदस्य है। यदि हमें जूनियर टीम में सीनियर खिलाड़ियों को ही शामिल किया जाना था तो जूनियर खिलाड़ियों के प्रशिक्षण शिविर के क्या मायने रह जाते हैं? हॉकी इण्डिया का कहना है कि भारतीय टीम को दिल्ली में लगे अभ्यास शिविर के आधार पर चुना गया है, जबकि यह सच नहीं है। महिला हॉकी में बेतुके प्रयोगों से जूनियर में हमें बेशक मैडल मिल जाएं पर सीनियर महिला हॉकी का कतई भला नहीं होने वाला। जूनियर महिला टीम में सीनियर खिलाड़ियों के खेलने से प्रतिभाएं हतोत्साहित होती हैं। देखा जाये तो जब से हॉकी इण्डिया की कमान बत्रा के हाथों में आई है, उन्होंने महिला हॉकी के जानकारों को एक-एक कर विदा कर दिया है। हॉकी इण्डिया के पास अपने पुश्तैनी खेल की बेहतरी के लिए कोई नीति नहीं है। खेलों में भारत के सामने उम्र के फरेब से निपटना वैसे भी कभी आसान नहीं रहा है। महिलाओं के मामले में तो कतई नहीं, वजह उनके मूंछ तो होती नहीं।
हाल ही भारतीय हॉकी बेटियां अपने मिले-जुले प्रयासों से हॉकी वर्ल्ड लीग में पांचवें स्थान पर रहीं। यूं तो राष्ट्रीय खेल की महिला टीम का पांचवें स्थान पर आना कोई बड़ी उपलब्धि नहीं कही जा सकती लेकिन भारतीय खेल तंत्र के नजरिये से यह बहुत बड़ी बात है। वजह, यह गरीब बेटियां भारत के उन छोटे-छोटे गांवों और शहरों से आती हैं, जहां साधन-सुविधा और प्रशिक्षण नाम की कोई व्यवस्था ही नहीं होती। हमारे यहां प्रतिभाओं की कमी नहीं है, बल्कि प्रतिभा का दमन कुछ अधिक है। अगर महिला हॉकी टीम ओलम्पिक में शामिल होती है, तो देश की खिलाड़ी बच्चियों का हौसला इससे मजबूत होगा। वैसे भी आजादी के 68 साल में हमारी हॉकी बेटियां सिर्फ एक बार ही वर्ष 1980 में ओलम्पिक खेली हैं।
जीत से आगाज की चिन्ता
इस टूर्नामेण्ट के बारे में मुख्य कोच मथियास अहरेंस का कहना है कि यह टूर्नामेंट हमारे लिये काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे सितम्बर में होने वाले सातवें महिला एशिया कप के लिये भी बेस तैयार होगा। टीम का चयन मैदानी तालमेल के आधार पर किया गया है। भारत का पहला मैच मेजबान नीदरलैण्ड से है और हमें जीत के साथ आगाज का यकीन है।
भारतीय टीम: इंदरप्रीत कौर, श्वेता (गोलकीपर), दीप ग्रेस इक्का, नमिता टोप्पो, गुरुजीत कौर, जसप्रीत कौर, मनजीत कौर, रश्मिता मिंज (डिफेण्डर), एम, लिली चानू, लिलिमा मिंज, नवजोत कौर, रेणुका यादव, प्रीति दुबे (मिडफील्डर), अनुपा बारला, रानी रामपाल, पूनम बारला, नवनीत कौर, नवप्रीत कौर (फारवर्ड).
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