Thursday 30 July 2015

मेरी बेटी का पुनर्जन्म हुआ


दुती चंद के घर में इस समय उत्सव का माहौल है। जब से दुती चंद  पर अंतरराष्ट्रीय खेलों में भाग लेने पर लगा प्रतिबंध हटने का समाचार मिला है घर के सभी सदस्य खुशी से फूले नहीं समा रहे। दुती चंद की बड़ी बहन और मेंटॉर सरस्वती, जो खुद चोटी की धाविका रह चुकी हैं, कहती हैं, मुझे शुरू से ही विश्वास था कि प्रतिबंध जरूर हटेगा क्योंकि मैं जानती थी कि वह सही है। उस सुखद पल को याद करते हुए सरस्वती कहती हैं, जब से उस पर प्रतिबंध लगा, तब जब भी उसका फोन आता था मन में एक डर पैदा हो जाता था, इस बार भी वही हुआ। वो आगे कहती है, मैंने सोचा रात के 10 बजे फोन कर रही है, कहीं फिर कोई गड़बड़ी तो नहीं हो गई। लेकिन जिस अंदाज से उसने मुझे दीदी पुकारा मैं समझ गई कि अबकी बार कोई अच्छी खबर है।
दुती चंद की माँ कहती हैं उनकी बेटी का पुनर्जन्म हुआ है। जिस तरह इस साल प्रभु जगन्नाथ का नवकलेवर हो रहा है, उसी तरह मेरी बेटी का भी मानो नवकलेवर हो रहा है। वे कहती हैं, दुती चंद ने पिछले एक वर्ष में काफी जिल्लत उठाई है, वो फूट-फूट कर रोई है। लेकिन अब उसके हंसने-खेलने के दिन आए हैं। उसने मुझे वादा किया है कि वह ओलम्पिक खेलों में पदक जीतेगी।
दुती चंद के पिता पेशे से बुनकर हैं और बहुत ही मुश्किल से अपने सात बच्चों, जिनमें छह बेटियां हैं, उनका गुजारा कर पाते हैं। लेकिन अपनी बेटियों को उन्होंने हमेशा खेलकूद के लिए प्रोत्साहित किया है। वे कहते हैं दुती चंद स्कूल में थी तभी से उसकी प्रतिभा की झलक साफ नजर आती थी। मैंने दुती से कहा कि अगर तुमने खेल को चुना है, तो जी-जान से खेलो। उन्हें भी पूरा विश्वास है कि दुती अगले वर्ष रियोडिजेनेरियो में होने वाले ओलम्पिक खेलों में पदक जीतेगी।
दुती के पड़ोसी अशोक दत्त वे जगहें दिखाते हैं जहाँ दुती बचपन में दौड़ का अभ्यास किया करती थी। वे कहते हैं, उसने काफी मेहनत की है। उन्होंने आगे बताया, रेत पर दौड़ती थी, घुटने तक ऊंचाई के पानी में दौड़ते हुए मैंने उसे कई बार देखा है। वो ऐसे ही चोटी की एथलीट नहीं बन गई। केवल अशोक को ही नहीं, बल्कि पूरे गांव को विश्वास है की दुती रियो से पदक लेकर आएगी और गोपालपुर गांव का नाम पूरी दुनिया में रोशन करेगी।

हॉकी गांव संसारपुर
जालंधर के पास एक ऐसा गांव जिसे हॉकी का पर्याय ही नहीं बल्कि हॉकी गांव कहा जाता है। यह गांव कोई और नहीं संसारपुर है। इस गांव ने मुल्क को 14 ओलम्पियन दिये हैं। इनमें नौ ने भारत, चार ने केन्या जबकि एक ने कनाडा का प्रतिनिधित्व किया है। 1968 के ओलम्पिक में इस गांव के सात खिलाड़ियों ने हिस्सा लिया था। इनमें पांच ने भारत और दो ने केन्या के लिये दमखम दिखाया था।

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