सुबोध कांत सहाय हमारी बहुत मदद करते हैं
दो साल पहले आईपीएल मैचों में फिक्सिंग के खिलाफ जनहित याचिका दायर करने वाले बिहार क्रिकेट संघ के सचिव आदित्य वर्मा आज भी बिहार क्रिकेट एसोसिएशन को मान्यता दिलाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। उन्होंने बीसीसीआई और भारतीय क्रिकेट की वर्तमान स्थितियों पर अपनी बेबाक बातचीत में कहा कि जब तक क्रिकेट से पूरी तरह गंदगी नहीं दूर हो जाती उनका संघर्ष जारी रहेगा।
आदित्य वर्मा से बातचीत
-आपकी लड़ाई कहाँ से शुरू हुई?
बीसीसीआई 1928 में बनी संस्था है और बिहार क्रिकेट एसोसिएशन 1935 से ही इससे जुड़ा हुआ है। बीसीसीआई का सबसे प्रतिष्ठित टूर्नामेण्ट रणजी का फाइनल भी बिहार 1975-76 में खेल चुका है। बिहार से खेलकर रमेश सक्सेना, रणधीर सिंह, सुब्रतो बनर्जी, सबा करीम जैसे अनेक खिलाड़ी निकले हैं। जब 2000 में नए राज्य झारखण्ड का गठन हुआ तो 13 जिलों वाले नए राज्य को बिहार क्रिकेट संघ के रूप में मान्यता दे दी गई, जिसका नाम बदल कर बाद में झारखण्ड क्रिकेट एसोसिएशन कर दिया गया और 30 जिलों वाले बिहार को क्रिकेट एसोसिएशन के उसके अधिकार से वंचित कर दिया गया। मैं 2006 से ही बिहार क्रिकेट की पहचान के लिए बीसीसीआई से संघर्ष कर रहा हूं। आईपीएल में बड़ा फैसला आने के बाद 2013 में याचिका दायर करने का मकसद पूरा होता दिख रहा है।
-भारतीय क्रिकेट के सबसे ताकतवर शख्स के खिलाफ संघर्ष में श्रीनिवासन विरोधी गुट ने क्या उनकी मदद की थी?
एक कहावत है कि दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है। इसलिए बीसीसीआई में श्रीनिवासन के विरोधियों ने मेरी मदद की थी। बोर्ड के कई सदस्यों ने कई मौकों पर मुझे ऐसे कागजात उपलब्ध करवाए जो एक गैर-मान्यता प्राप्त संगठन होने के नाते मुझे नहीं मिल सकते थे। इनसे संघर्ष में बहुत मदद मिली। इन लोगों में आईएस बिन्द्रा थे, जिन्होंने बहुत मदद की। इसके अलावा शरद पवार, जगमोहन डालमिया, एसी मुथैया ने भी काफी मदद की। ललित मोदी भी मददगारों में शामिल हैं। श्री वर्मा ने बताया कि जब मैंने संघर्ष शुरू किया था तो न तो मुझे स्थानीय मीडिया जानता था और न ही राष्ट्रीय मीडिया। लेकिन मेरी पीआईएल पर मुंबई हाईकोर्ट में बीसीसीआई के खिलाफ फैसला आने के बाद और सुप्रीम कोर्ट में एक स्तर पर जीत के बाद लोगों का ध्यान मेरी तरफ गया। फिर एक चैनल पर ललित मोदी ने कहा, बिहार के बच्चों के लिए मुझे दर्द है और बिहार के बच्चों के लिए मैं कुछ कर सकूं तो मुझे बहुत खुशी होगी। इसके अलावा मेल से भी उन्होंने सम्पर्क किया था, मुझे बहुत प्रोत्साहित किया और कहा कि आप असली लड़ाके हैं। उन्होंने कहा, मैंने भी यहां करप्शन अगेंस्ट क्रिकेट नाम की एक संस्था बनाई है, कभी इंग्लैंड आना तो मुझसे मिलना।
-ललित मोदी पर खुद इतने आरोप हैं। उसमें उनकी निजी लड़ाई हावी नहीं थी?
ललित मोदी पर जो भी आरोप हैं वह क्रिकेट से जुड़े हुए हैं। यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि किसी संस्था में जब कोई आदमी काम करता है तो वो फैसले अकेले नहीं करता, फैसले सामूहिक होते हैं। फिर ललित मोदी बोर्ड के अध्यक्ष तो थे नहीं।
-आईपीएल के समर्थन में हैं या विरोध में?
आईपीएल चले, लेकिन ऐसे न चले। उसके लिए एक अलग संस्था बने। आईपीएल क्रिकेट तो है ही लेकिन यह बहुत बड़ा मार्केटिंग का भी जरिया बन गया है। ललित मोदी आईपीएल के गॉड फादर हैं। उन्हें हिन्दुस्तान में रहना चाहिए था। उनका अपराध बस यही है कि उन्हें भारत के कानून से बचकर लंदन जाना पड़ा।
-आर्थिक सहायता कहां से मिलती है और किस आधार पर?
सुबोध कांत सहाय हमारी बहुत मदद करते हैं, मैं उन्हें बड़े भाई की तरह मानता हूं। वह क्रिकेट के नाते हमारी मदद करते हैं और कहते हैं कि 'मैंने जिÞंदगी में तुम्हारे जैसा जिगर वाला लड़ाका नहीं देखा।'
-लोढ़ा समिति के फैसले के बाद अब यह लड़ाई किस स्तर पर है?
बीसीसीआई को अभी तक होश नहीं आया है। लोढ़ा समिति का फैसला 14 जुलाई को आया था। लेकिन इतने बड़े फैसले के बाद भी जो होना चाहिए था वह नहीं हुआ। समिति ने अपने फैसले में कई बार इस बात को दोहराया है कि इन लोगों ने अपने गलत आचरण से बीसीसीआई जैसी संस्था का नाम खराब किया। देश में धर्म की तरह माने जाने वाले क्रिकेट को कलंकित किया। आईपीएल के साथ धोखा किया।
दो साल पहले आईपीएल मैचों में फिक्सिंग के खिलाफ जनहित याचिका दायर करने वाले बिहार क्रिकेट संघ के सचिव आदित्य वर्मा आज भी बिहार क्रिकेट एसोसिएशन को मान्यता दिलाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। उन्होंने बीसीसीआई और भारतीय क्रिकेट की वर्तमान स्थितियों पर अपनी बेबाक बातचीत में कहा कि जब तक क्रिकेट से पूरी तरह गंदगी नहीं दूर हो जाती उनका संघर्ष जारी रहेगा।
आदित्य वर्मा से बातचीत
-आपकी लड़ाई कहाँ से शुरू हुई?
बीसीसीआई 1928 में बनी संस्था है और बिहार क्रिकेट एसोसिएशन 1935 से ही इससे जुड़ा हुआ है। बीसीसीआई का सबसे प्रतिष्ठित टूर्नामेण्ट रणजी का फाइनल भी बिहार 1975-76 में खेल चुका है। बिहार से खेलकर रमेश सक्सेना, रणधीर सिंह, सुब्रतो बनर्जी, सबा करीम जैसे अनेक खिलाड़ी निकले हैं। जब 2000 में नए राज्य झारखण्ड का गठन हुआ तो 13 जिलों वाले नए राज्य को बिहार क्रिकेट संघ के रूप में मान्यता दे दी गई, जिसका नाम बदल कर बाद में झारखण्ड क्रिकेट एसोसिएशन कर दिया गया और 30 जिलों वाले बिहार को क्रिकेट एसोसिएशन के उसके अधिकार से वंचित कर दिया गया। मैं 2006 से ही बिहार क्रिकेट की पहचान के लिए बीसीसीआई से संघर्ष कर रहा हूं। आईपीएल में बड़ा फैसला आने के बाद 2013 में याचिका दायर करने का मकसद पूरा होता दिख रहा है।
-भारतीय क्रिकेट के सबसे ताकतवर शख्स के खिलाफ संघर्ष में श्रीनिवासन विरोधी गुट ने क्या उनकी मदद की थी?
एक कहावत है कि दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है। इसलिए बीसीसीआई में श्रीनिवासन के विरोधियों ने मेरी मदद की थी। बोर्ड के कई सदस्यों ने कई मौकों पर मुझे ऐसे कागजात उपलब्ध करवाए जो एक गैर-मान्यता प्राप्त संगठन होने के नाते मुझे नहीं मिल सकते थे। इनसे संघर्ष में बहुत मदद मिली। इन लोगों में आईएस बिन्द्रा थे, जिन्होंने बहुत मदद की। इसके अलावा शरद पवार, जगमोहन डालमिया, एसी मुथैया ने भी काफी मदद की। ललित मोदी भी मददगारों में शामिल हैं। श्री वर्मा ने बताया कि जब मैंने संघर्ष शुरू किया था तो न तो मुझे स्थानीय मीडिया जानता था और न ही राष्ट्रीय मीडिया। लेकिन मेरी पीआईएल पर मुंबई हाईकोर्ट में बीसीसीआई के खिलाफ फैसला आने के बाद और सुप्रीम कोर्ट में एक स्तर पर जीत के बाद लोगों का ध्यान मेरी तरफ गया। फिर एक चैनल पर ललित मोदी ने कहा, बिहार के बच्चों के लिए मुझे दर्द है और बिहार के बच्चों के लिए मैं कुछ कर सकूं तो मुझे बहुत खुशी होगी। इसके अलावा मेल से भी उन्होंने सम्पर्क किया था, मुझे बहुत प्रोत्साहित किया और कहा कि आप असली लड़ाके हैं। उन्होंने कहा, मैंने भी यहां करप्शन अगेंस्ट क्रिकेट नाम की एक संस्था बनाई है, कभी इंग्लैंड आना तो मुझसे मिलना।
-ललित मोदी पर खुद इतने आरोप हैं। उसमें उनकी निजी लड़ाई हावी नहीं थी?
ललित मोदी पर जो भी आरोप हैं वह क्रिकेट से जुड़े हुए हैं। यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि किसी संस्था में जब कोई आदमी काम करता है तो वो फैसले अकेले नहीं करता, फैसले सामूहिक होते हैं। फिर ललित मोदी बोर्ड के अध्यक्ष तो थे नहीं।
-आईपीएल के समर्थन में हैं या विरोध में?
आईपीएल चले, लेकिन ऐसे न चले। उसके लिए एक अलग संस्था बने। आईपीएल क्रिकेट तो है ही लेकिन यह बहुत बड़ा मार्केटिंग का भी जरिया बन गया है। ललित मोदी आईपीएल के गॉड फादर हैं। उन्हें हिन्दुस्तान में रहना चाहिए था। उनका अपराध बस यही है कि उन्हें भारत के कानून से बचकर लंदन जाना पड़ा।
-आर्थिक सहायता कहां से मिलती है और किस आधार पर?
सुबोध कांत सहाय हमारी बहुत मदद करते हैं, मैं उन्हें बड़े भाई की तरह मानता हूं। वह क्रिकेट के नाते हमारी मदद करते हैं और कहते हैं कि 'मैंने जिÞंदगी में तुम्हारे जैसा जिगर वाला लड़ाका नहीं देखा।'
-लोढ़ा समिति के फैसले के बाद अब यह लड़ाई किस स्तर पर है?
बीसीसीआई को अभी तक होश नहीं आया है। लोढ़ा समिति का फैसला 14 जुलाई को आया था। लेकिन इतने बड़े फैसले के बाद भी जो होना चाहिए था वह नहीं हुआ। समिति ने अपने फैसले में कई बार इस बात को दोहराया है कि इन लोगों ने अपने गलत आचरण से बीसीसीआई जैसी संस्था का नाम खराब किया। देश में धर्म की तरह माने जाने वाले क्रिकेट को कलंकित किया। आईपीएल के साथ धोखा किया।
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