आगरा। इंसान का जीवन तो अनुकूल और प्रतिकूल परिस्थितियों का ही खेल तमाशा है। मैं अब पूरी तरह से फिट हूं, तीन मई से अमेरिका में अच्छी प्रैक्टिस भी चल रही है। अब ग्लासगो राष्ट्रमण्डल और एशियाई खेलों की स्वर्णिम सफलता बहुत-कुछ मेरे भाग्य और प्रदर्शन पर निर्भर होगी, यह कहना है देश की स्टार डिस्कस थ्रोवर कृष्णा पूनिया का।
दिल्ली राष्ट्रमण्डल खेलों की पहली भारतीय स्वर्ण पदकधारी महिला एथलीट कृष्णा पूनिया ने अमेरिका से फोन पर पुष्प सवेरा से हुई बातचीत में बताया कि ग्लासगो राष्ट्रमण्डल खेलों का स्वर्ण पदक उनका लक्ष्य है, जहां इस बार आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैण्ड तथा दक्षिण अफ्रीका की लड़कियों से कड़ी चुनौती मिल सकती है। जहां तक एशियाई खेलों का सवाल है मैं इस मर्तबा अपने मेडल का रंग बदलना चाहती हूं। कृष्णा ने 2006 में दोहा और 2010 में ग्वांगझू एशियाई खेलों में कांस्य पदक जीते थे। चक्का फेंक की नेशनल रिकॉर्डधारी एथलीट कृष्णा पूनिया राष्ट्रमण्डल खेलों की अपेक्षा एशियाड में चीनी खिलाड़ियों को कहीं अधिक कड़ी चुनौती मानते हुए कहती हैं कि इस बार पदक के लिए उन्हें फौलादी प्रदर्शन करना होगा। राष्ट्रमण्डल खेलों की एथलेटिक स्पर्धा में पहला स्वर्ण पदक जहां 1958 में मिल्खा सिंह ने जीता था वहीं 2010 में कृष्णा पूनिया स्वर्णिम कामयाबी हासिल करने वाली पहली भारतीय महिला एथलीट बन गई थीं।
32 वर्षीय ओलम्पियन कृष्णा पूनिया को लंदन ओलम्पिक के फाइनल दौर में पहुंचने की जहां खुशी है वहीं पदक न जीत पाने का मलाल भी है। जहां तक ओलम्पिक की बात है अब तक छह भारतीय एथलीट ही ट्रैक एण्ड फील्ड स्पर्धाओं के फाइनल में जगह बनाने में सफल हुए हैं। इनमें फ्लाइंग सिख मिल्खा सिंह, उड़नपरी पीटी ऊषा, श्रीराम सिंह, गुरुबचन सिंह रंधावा, लांग जम्पर अंजू बॉबी जॉर्ज और कृष्णा पूनिया शामिल हैं। कृष्णा लंदन ओलम्पिक में 63.62 मीटर चक्का फेंककर पांचवें स्थान पर रही थीं। जहां तक सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन की बात है पद्मश्री और अर्जुन अवार्डी कृष्णा ने आठ मई, 2012 को अमेरिका में ही 64.76 मीटर चक्का फेंककर नेशनल रिकॉर्ड अपने नाम किया था। कृष्णा पूनिया मानती हैं कि इस बार के राष्ट्रमण्डल और एशियाई खेल उनके खेल जीवन के लिए अहम हैं। कृष्णा पूनिया यदि ग्लासगो में स्वर्णिम सफलता हासिल करने में सफल हुर्इं तो राष्ट्रमण्डल खेलों में यह करिश्मा करने वाली पहली भारतीय महिला खिलाड़ी हो जाएंगी। ग्लासगो की सफलता कृष्णा को राजीव गांधी खेल रत्न दिलाने में भी मददगार साबित होगी।
मेरी सफलता में वीरेन्दर का बड़ा योगदान
कृष्णा पूनिया ने कहा कि उनकी सफलता में पति वीरेन्दर सिंह का बहुत बड़ा योगदान है। वर्ष 2000 में एथलीट वीरेन्दर के साथ परिणय सूत्र में बंधी कृष्णा पूनिया का कहना है कि उन्होंने न केवल बेहतर प्रशिक्षण दिया बल्कि हमेशा हौसला भी बढ़ाया। आज भी अमेरिका में वह मेरे साथ हैं। रेलवे में कार्यरत इस मिश्रित युगल जोड़ी को भरोसा है कि भविष्य में जो भी होगा, ठीक होगा। वीरेन्दर भी कृष्णा के खेल समर्पण के कायल हैं।
लक्ष्य के लिए अभी कोई लक्ष्य नहीं
कृष्णा पूनिया अपने 12 वर्षीय लाड़ले लक्ष्य की खेलों में अभिरुचि को लेकर बेहद खुश हैं, पर वे अभी उस पर किसी खास खेल के लिए दबाव नहीं डालना चाहतीं। बकौल कृष्णा, लक्ष्य न केवल चक्का और हैमर थ्रो करता है बल्कि बास्केटबाल में भी हाथ आजमाता है। कृष्णा और वीरेन्दर चाहते हैं कि लक्ष्य भी उनके ही पदचिह्नों पर चले, पर अभी से उस पर किसी खेल का दबाव डालना ज्यादती होगी।
दिल्ली राष्ट्रमण्डल खेलों की पहली भारतीय स्वर्ण पदकधारी महिला एथलीट कृष्णा पूनिया ने अमेरिका से फोन पर पुष्प सवेरा से हुई बातचीत में बताया कि ग्लासगो राष्ट्रमण्डल खेलों का स्वर्ण पदक उनका लक्ष्य है, जहां इस बार आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैण्ड तथा दक्षिण अफ्रीका की लड़कियों से कड़ी चुनौती मिल सकती है। जहां तक एशियाई खेलों का सवाल है मैं इस मर्तबा अपने मेडल का रंग बदलना चाहती हूं। कृष्णा ने 2006 में दोहा और 2010 में ग्वांगझू एशियाई खेलों में कांस्य पदक जीते थे। चक्का फेंक की नेशनल रिकॉर्डधारी एथलीट कृष्णा पूनिया राष्ट्रमण्डल खेलों की अपेक्षा एशियाड में चीनी खिलाड़ियों को कहीं अधिक कड़ी चुनौती मानते हुए कहती हैं कि इस बार पदक के लिए उन्हें फौलादी प्रदर्शन करना होगा। राष्ट्रमण्डल खेलों की एथलेटिक स्पर्धा में पहला स्वर्ण पदक जहां 1958 में मिल्खा सिंह ने जीता था वहीं 2010 में कृष्णा पूनिया स्वर्णिम कामयाबी हासिल करने वाली पहली भारतीय महिला एथलीट बन गई थीं।
32 वर्षीय ओलम्पियन कृष्णा पूनिया को लंदन ओलम्पिक के फाइनल दौर में पहुंचने की जहां खुशी है वहीं पदक न जीत पाने का मलाल भी है। जहां तक ओलम्पिक की बात है अब तक छह भारतीय एथलीट ही ट्रैक एण्ड फील्ड स्पर्धाओं के फाइनल में जगह बनाने में सफल हुए हैं। इनमें फ्लाइंग सिख मिल्खा सिंह, उड़नपरी पीटी ऊषा, श्रीराम सिंह, गुरुबचन सिंह रंधावा, लांग जम्पर अंजू बॉबी जॉर्ज और कृष्णा पूनिया शामिल हैं। कृष्णा लंदन ओलम्पिक में 63.62 मीटर चक्का फेंककर पांचवें स्थान पर रही थीं। जहां तक सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन की बात है पद्मश्री और अर्जुन अवार्डी कृष्णा ने आठ मई, 2012 को अमेरिका में ही 64.76 मीटर चक्का फेंककर नेशनल रिकॉर्ड अपने नाम किया था। कृष्णा पूनिया मानती हैं कि इस बार के राष्ट्रमण्डल और एशियाई खेल उनके खेल जीवन के लिए अहम हैं। कृष्णा पूनिया यदि ग्लासगो में स्वर्णिम सफलता हासिल करने में सफल हुर्इं तो राष्ट्रमण्डल खेलों में यह करिश्मा करने वाली पहली भारतीय महिला खिलाड़ी हो जाएंगी। ग्लासगो की सफलता कृष्णा को राजीव गांधी खेल रत्न दिलाने में भी मददगार साबित होगी।
मेरी सफलता में वीरेन्दर का बड़ा योगदान
कृष्णा पूनिया ने कहा कि उनकी सफलता में पति वीरेन्दर सिंह का बहुत बड़ा योगदान है। वर्ष 2000 में एथलीट वीरेन्दर के साथ परिणय सूत्र में बंधी कृष्णा पूनिया का कहना है कि उन्होंने न केवल बेहतर प्रशिक्षण दिया बल्कि हमेशा हौसला भी बढ़ाया। आज भी अमेरिका में वह मेरे साथ हैं। रेलवे में कार्यरत इस मिश्रित युगल जोड़ी को भरोसा है कि भविष्य में जो भी होगा, ठीक होगा। वीरेन्दर भी कृष्णा के खेल समर्पण के कायल हैं।
लक्ष्य के लिए अभी कोई लक्ष्य नहीं
कृष्णा पूनिया अपने 12 वर्षीय लाड़ले लक्ष्य की खेलों में अभिरुचि को लेकर बेहद खुश हैं, पर वे अभी उस पर किसी खास खेल के लिए दबाव नहीं डालना चाहतीं। बकौल कृष्णा, लक्ष्य न केवल चक्का और हैमर थ्रो करता है बल्कि बास्केटबाल में भी हाथ आजमाता है। कृष्णा और वीरेन्दर चाहते हैं कि लक्ष्य भी उनके ही पदचिह्नों पर चले, पर अभी से उस पर किसी खेल का दबाव डालना ज्यादती होगी।