मंगलवार से शुरू हो रहे संसद के मानसून सत्र की शुरुआत से पहले जिस तरह से विपक्ष लामबंद हुआ है उसे देखते हुए न केवल मोदी सरकार की दुश्वारियां बढ़ने की आशंका प्रबल हो गई है बल्कि जनहित के मुद्दों पर भी विवाद के बादल मंडराते दिख रहे हैं। मोदी सरकार भूमि अधिग्रहण बिल से हाथ खींच भी ले तब भी विपक्ष के पास उसे असहज करने के पर्याप्त मुद्दे हैं। भूमि अधिग्रहण ही नहीं व्यापम और ललित मोदी की क्रिकेट कलंक कथा के रूप में विपक्ष के पास ऐसे हथियार हैं जिनके सामने केन्द्र सरकार हमलावर होने की बात सोच ही नहीं सकती। ममता बनर्जी, नवीन पटनायक और जयललिता जैसे कई क्षेत्रीय नेताओं की कांग्रेस से चल रही गलबहियां इसी बात का संकेत हैं कि मोदी सरकार के लिए मानसून सत्र मुश्किलों भरा होगा। विपक्ष भूमि अधिग्रहण बिल से ज्यादा भाजपा के वरिष्ठ नेताओं और मुख्यमंत्रियों पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों पर हमलावर रुख अख्तियार कर सकता है। कांग्रेस के उत्साह को देखकर लगता है कि उसने उन नेताओं को भी मना लिया है जो ‘ललितगेट’ और व्यापम घोटाले पर कांग्रेस का साथ देने के लिए ज्यादा उत्सुक नहीं थे। व्यापम घोटाले की व्यापकता से मोदी सरकार भी इनकार नहीं कर सकती। टेलीविजन पत्रकार अक्षय सिंह की संदिग्ध मौत के बाद तो इस घोटाले में नया मोड़ आ गया है। कांग्रेस इसे पूरे जोर-शोर से उठाने की तैयारी में है, इस मामले में उसे दीगर दलों का साथ मिलना भी तय है। व्यापम से इतर पुणे स्थित फिल्म एण्ड टेलीविजन इंस्टीट्यूट आॅफ इण्डिया में भाजपा सदस्य गजेन्द्र चौहान को अध्यक्ष बनाये जाने का मामला और इण्डियन इंस्टीट्यूट आॅफ मैनेजमेंट की स्वायत्तता पर लगाम कसने के लिए लाया गया बिल भी सरकार के लिए मुसीबत का सबब बन सकता है। लालू प्रसाद यादव-नीतीश कुमार की जोड़ी सामाजिक,आर्थिक और जाति आधारित जनगणना 2011 के आंकड़ों को सार्वजनिक करने को लेकर सरकार को आंख दिखा सकती है। सरकारी नौकरियों में ओबीसी के कम लोगों का होना तथा उनकी कमजोर सामाजिक-आर्थिक स्थिति भी सरकार की मुश्किलें बढ़ा सकती है। मुश्किल हालातों में अब तक मोदी की चुप्पी बेशक कारगर रही हो पर संसद सत्र में उन्हें मुंह खोलना ही होगा। कमल दल की स्थिति अब छह महीने पहले जैसी नहीं रही तो मीडिया के साथ उसका हनीमून पीरियड भी लगभग खत्म हो चुका है। इस नाजुक दौर में सरकार बेशक विपक्ष को उसी के लहजे में जवाब देने का मन बना रही हो पर इससे नुकसान उस आवाम का होगा ुजिसने उससे बेहतरी की उम्मीद लगा रखी है। सरकार ही नहीं सभी राजनीतिज्ञों को राजनीतिक रोटियां सेंकने की बजाय मानसून सत्र जनहितकारी हो इस बात का ध्यान रखना चाहिए।
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