पंद्रह सौ रुपये की मासिक पगार पर साढ़े चार सौ बच्चों के लिए दो टाइम खाना बनाने वाली महिला यदि इतना ज्ञान रखती है कि बेहद जटिल प्रक्रिया के बाद केबीसी की हॉट सीट तक पहुंच जाती है, तो उसको नमन करना बनता है। यदि वह एक करोड़ रुपये तक के सवाल सही-सही बता देती है तो उसकी अध्ययनशीलता व सामान्य ज्ञान की जानकारी रखने की ललक को भी सराहा जाना चाहिए। सराहना इसलिए भी कि जिस देश में जहां एक नामचीन फिल्मी सितारे व पूर्व सांसद की सिनेस्टार बेटी केबीसी में यह पूछे जाने पर कि हनुमान जी किसके लिए संजीवनी बूटी लाये थे, जवाब नहीं दे पायी। अमरावती की बबिता ताड़े का केबीसी में एक करोड़ रुपये जीतना महज इस दृष्टि से महत्वपूर्ण नहीं है कि एक चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी की पत्नी ने यह राशि जीती, बल्कि महत्वपूर्ण उसकी जीवन में कुछ कर गुजरने की ललक है। अपने आसपास के घटनाक्रम के प्रति सजग रहने की उत्कंठा है। नहीं तो देश के महानगरों में विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले कई छात्र-छात्राएं देश के प्रधानमंत्री-राष्ट्रपति का नाम नहीं बता पाते, गणतंत्र दिवस व स्वतंत्रता दिवस तक का भी फर्क नहीं बता पाते।
ऐसे समाज में, जहां भरे पेट के सम्पन्न लोगों की पैसे की हवस खत्म नहीं होती, वहां बबिता कहती हैं कि इस पैसे से वह कुछ गांव के मंदिर के पुनर्निर्माण में खर्च करेंगी। वह कुछ पैसे से उस स्कूल में वाटर कूलर लगाएंगी, जहां वह रोज बच्चों के लिये खाना बनाती हैं। उनकी सोच कितनी बड़ी है। वह कहती हैं कि अपने पति की दिक्कतें दूर करने के लिए इस पैसे से उनके लिये मोटरसाइकिल खरीदेंगी। उनका संघर्ष मेरे से ज्यादा बड़ा है। यह बबिता की बड़ी सोच है।
आज के दौर में जब जेब में चार पैसे आते ही लोग उड़ने लगते हैं, इंसान को इंसान नहीं समझते, उस दौर में बबिता कहती हैं कि मैं पंद्रह सौ रुपये की पगार के लिये साढ़े चार सौ बच्चों का खाना बनाना जारी रखूंगी। उसे इससे सुकून मिलता है। पहले स्कूल में गिने-चुने बच्चे आते थे। अब साढ़े चार सौ हैं। उनमें बहुत से बच्चे ऐसे हैं जो सिर्फ अच्छे खाने के लिये ही स्कूल आते हैं। जाहिर है वे गरीबी से जूझ रहे हैं। उन्हें खाना खिलाकर मुझे सुकून मिलता है। मैं करोड़ रुपये कमाने के बाद भी यह काम जारी रखूंगी। इस सोच को सलाम करने का मन करता है। नि:संदेह देर से ही सही, भगवान भी सकारात्मक बड़ी सोच रखने वालों के जीवन में बदलाव लाता है।
इस महिला का संघर्ष देखिये कि वह आठ घंटे स्कूल के बच्चों के लिये दो टाइम खाना बनाने में लगाती हैं। बबिता ने शादी से पहले अधूरी छूटी पढ़ाई को भी पूरा किया। पति को वह इस बात के लिये श्रेय देती हैं कि चपरासी की नौकरी करने वाले पति की सोच बड़ी थी, उन्होंने मुझे आगे पढ़ने से कभी रोका नहीं, बल्कि प्रोत्साहित किया। आज उसके बेटा-बेटी भी अच्छी पढ़ाई कर रहे हैं। मुझे बचपन में पढ़ने का मौका नहीं मिला मगर मैं चाहती हूं कि मेरे बच्चे अच्छा पढ़ें। मैं कुछ पैसे उनकी पढ़ाई पर खर्च करूंगी।
बबिता ने पिछले साल भी केबीसी में भाग लेने की कोशिश की, मगर उसके पास मोबाइल फोन नहीं था। उन्होंने पिछले साल एक फोन खरीदा था जो पति व बच्चों के पास रहता था। केबीसी के सेट पर जब अमिताभ बच्चन ने दस हजार रुपये जीतने पर पूछा, वह इन पैसों से क्या करेंगी तो उसका जवाब था कि सबसे पहले एक मोबाइल खरीदूंगी। अमिताभ बच्चन के लिये यह जवाब चौंकाने वाला था। यह भी कि किसी का जीवन संघर्ष इतना कठिन हो सकता है कि हाड़-तोड़ मेहनत के बावजूद वह अपने लिये एक मोबाइल नहीं खरीद सकता। अमिताभ बच्चन ने तुरंत एक मोबाइल की व्यवस्था करने को कहा और छत्तीस हजार का स्मार्ट फोन बबिता ताड़े को दिया।
बबिता से पूछा गया कि केबीसी में पहुंचने का विचार कैसे आया। वह कहती हैं कि मेरे पिता एक सरकारी गेस्ट हाउस में खानसामा थे, मैं उनका हाथ बंटाने को जाती थी। वहां बड़े-बड़े अधिकारी व नेता ठहरते थे। उनका रहन-सहन व व्यवहार मुझे प्रभावित करता था और उनके जैसे जीवन को प्रेरित करता था। मगर बचपन में ही शादी हो गई, अपनी हैसियत में हुई। पढ़ाई भी अधूरी छूट गई। फिर बच्चों व गृहस्थी में हाथ बंटाने और बाद में स्कूल में खाना बनाने में जुटी रही। मगर मन के किसी कोने में वह ललक थी कि एक दिन कुछ ऐसा किया जाए जो जीवन की काया पलट दे। ईश्वर ने मेरी सुन ली है। मेरे घर में त्योहार जैसा माहौल है। पति व दोनों बच्चे बहुत खुश हैं। यह हमारे जीवन बदलने वाला मोड़ है।
सही मायने में हॉट सीट में बैठकर बबिता ताड़े ने केवल एक करोड़ रुपये ही नहीं जीते, लाखों लोगों के दिल भी जीते। एक आम गृहणी-सी, सदा मुस्कराती हुई। जब उनसे पूछा गया कि सदी के महानायक अमिताभ बच्चन के सामने बैठने पर नर्वसनेस तो नहीं थी। वह बोलीं—नहीं, अमिताभ जी की सबसे बड़ी बात यह है कि वे किसी भी वर्ग के व्यक्ति के साथ उसके स्तर तक जाकर बात करते हैं। उसे कभी हीनता का एहसास नहीं होने देते। इसीलिये तो लोग उन्हें महानायक कहते हैं। मैं आज खुश हूं कि मेरा एक सपना पूरा हुआ। सच कहें तो बबिता अब अमरावती की अमर कहानी बन गई हैं। बबिता को देश का सलाम।