Wednesday 21 November 2012

क्या वीरेन्द्र सहवाग अपने 100वें टेस्ट में पूरा करेंगे शतक?


टेस्ट क्रिकेट में 100 मैच खेलना किसी भी खिलाड़ी का सपना होता है और यदि वह अपने 100वें मैच में शतक बना दे तो इसे सोने पर सुहागा ही कहा जाएगा। भारतीय ओपनर वीरेंद्र सहवाग शुक्रवार को
 मुंबई में जब इंग्लैंड के खिलाफ दूसरे टेस्ट में मैदान पर उतरेंगे तो यह उनका 100वां मैच होगा और उनके पास मौका रहेगा कि वह इस उपलब्धि को शतक के साथ यादगार बना दें। भारतीय क्रिकेट के 74वर्षों के इतिहास में अब तक कोई भारतीय बल्लेबाज अपने 100वें टेस्ट में शतक नहीं बना पाया है। दुनिया में केवल सात बल्लेबाज ऐसे हैं जिन्होंने अपने 100वें टेस्ट में शतक बनाने की उपलब्धि हासिल की है। अहमदाबाद टेस्ट में भारत की पहली पारी में शानदार 117 रन बनाकर फार्म में वापसी करने वाले सहवाग के बल्ले में वह दम है जो मुंबई में भी सैकड़ा निकाल सकता है। सहवाग ने अब तक 99 टेस्टों में 50.89 के शानदार औसत से 8448 रन बनाए हैं जिनमें 23 शतक और 32 अर्द्धशतक शामिल हैं। सहवाग भारत के एकमात्र ऐसे बल्लेबाज हैं जिन्होंने टेस्ट क्रिकेट में दो तिहरे शतक बनाये हैं। वह दुनिया के चार विशिष्ट बल्लेबाजों में से एक हैं जिनके खाते में दो-दो तिहरे शतक हैं। आस्ट्रेलिया के डान ब्रेडमैन, वेस्टइंडीज के ब्रायन लारा और क्रिस गेल तीन ऐसे बल्लेबाज हैं जिन्होंने दो-दो तिहरे शतक बनाए हैं। अपने 100वें टेस्ट में शतक लगाने की उपलब्धि सबसे पहले इंग्लैंड के कोलिंग काउड्रे ने हासिल की थी जिन्होंने जुलाई 1968 में बर्मिंघम में आस्ट्रेलिया के खिलाफ 104 रन बनाए थे। पाकिस्तान के जावेद मियांदाद ने भारत के खिलाफ दिसंबर 1989 में लाहौर में 145 रन बनाए थे। वेस्टइंडीज के गोेर्डन ग्रीनिज ने अप्रैल 1990 में सेंट जोन्स में इंग्लैंड के खिलाफ 149 की पारी खेली थी। इंग्लैंड के एलेक स्टीवर्ट ने मैनचेस्टर में भारत के खिलाफ अगस्त 2000 में 105 रन बनाए थे। पाकिस्तान के इंजमाम उल हक ने बेंगलूर में भारत के खिलाफ मार्च 2005 में 184 रन बनाए थे। आस्ट्रेलिया के पूर्व कप्तान रिकी पोंटिंग ने अपने 100वें टेस्ट की दोनों पारियों में शतक बनाने की दुर्लभ उपलब्धि हासिल की थी। पोंटिंग ने दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ सिडनी में 2006 में 120 और नाबाद 143 रन बनाए थे। दक्षिण अफ्रीका के ग्रीम स्मिथ ने ओवल में इंग्लैंड के खिलाफ जुलाई 2012 में 131 रन बनाकर अपने 100वें टेस्ट का जश्न मनाया था। सहवाग के पास मौका है कि वह 100वें टेस्ट में एक भारतीय के शतकधारी होने का इंतजार पूरा करें। अहमदाबाद में उन्होंने बेहतरीन 117 रन बनाए थे। भारत के दो पूर्व कप्तानों दिलीप वेंगसरकर और कपिल देव ने विश्वास व्यक्त किया हैै कि सहवाग यह उपलब्धि हासिल कर सकते हैं। सहवाग मुंबई में दूसरे टेस्ट में उतरने के साथ ही 100 टेस्ट खेलने वाले भारत के नौवें खिलाड़ी बन जाएंगे। उनसे आगे सौरभ गांगुली (113 टेस्ट), वेंगसरकर (116) सुनील गावस्कर (125) कपिल देव (131) अनिल कुंबले (132) वीवीएस लक्ष्मण (134) राहुल द्रविड़ (163) और सचिन तेंदुलकर (191 टेस्ट) हैं।

आईओए चुनाव में हठधर्मी का ग्रहण

अंतरराष्ट्रीय ओलम्पिक संघ की नाराजगी कहीं भारत को विश्व खेल बिरादर से अलग-थलग न कर दे
आगरा। भारतीय ओलम्पिक एसोसिएशन के चुनावों में हठधर्मी का ग्रहण लग चुका है। अब 25 नवम्बर को होने वाले इन चुनावों पर संदेह के बादल मंडराने लगे हैं। इन चुनावों में जिस तरह छल-प्रपंच चल रहा है उससे भारत अंतरराष्ट्रीय ओलम्पिक संघ की न केवल नाराजगी का शिकार हो सकता है बल्कि वह विश्व बिरादर से भी अलग-थलग पड़ जाए तो किसी को अचरज नहीं होना चाहिए। भारतीय ओलम्पिक एसोसिएशन के चुनाव कुछ लोगों के लिए जहां नाक का सवाल बन गये हैं वहीं इनकी हठधर्मी से देश की अस्मिता तार-तार हो रही है। भारत में आईओए चुनावों को लेकर जो कुछ चल रहा है उससे आईओसी भी खुश नहीं है। कुछ लोग जहां भारतीय खेल मंत्रालय के खेल विधेयक की खिल्ली उड़ाते दिख रहे हैं वहीं कुछ दागी आईओसी की मनाही के बाद भी चुनावी दंगल में कूद गये हैं। अभय चौटाला व रणधीर सिंह के बीच अध्यक्ष की आसंदी को लेकर चल रही नूरा-कुश्ती भी दिलचस्प मोड़ पर पहुंच गई है। दोनों गुटों के बीच चल रहे चीरहरण के बाद एक बार फिर खेल सल्तनत खिलाड़ी की जगह अनाड़ी के हाथ में जाती दिख रही है। इन आरोप-प्रत्यारोपों का परिणाम कुछ भी निकले पर इससे अंतरराष्ट्रीय खेल जगत में भारत की जरूर थू-थू हो रही है।  आईओए चुनाव में रणधीर सिंह खेमा जहां भारतीय मुक्केबाजी संघ के चेयरमैन अभय चौटाला पर निशाना साध रहा है वहीं अभय चौटाला गुट के लोग रणधीर सिंह पर अध्यक्ष पद की अपनी उम्मीदवारी को पुख्ता करने के लिए सरकार से सम्पर्क करके ओलम्पिक चार्टर का उल्लंघन करने का आरोप लगा रहे हैं। भारतीय टेबल टेनिस महासंघ के अध्यक्ष अजय चौटाला, भारतीय तीरंदाजी संघ के उपाध्यक्ष तिरलोचन सिंह,आइस स्केटिंग संघ के अध्यक्ष भावेश भांगा, खो-खो संघ के अध्यक्ष राजीव मेहता और भारतीय कुश्ती महासंघ के सचिव सहदेव यादव ने अंतरराष्ट्रीय ओलम्पिक समिति (आईओसी) के अध्यक्ष जाक रोगे को पत्र लिखकर कहा है कि रणधीर सिंह, जो खुद आईओसी के सदस्य भी हैं, ने ओलम्पिक चार्टर का उल्लंघन किया है। इनका कहना है कि अपनी सम्भावित पराजय को देखते हुए रणधीर सिंह खेल मंत्रालय से इन चुनावों में खेल संहिता को लागू करने का दबाव डाल रहे हैं जबकि आईओसी पहले ही चुनाव में सरकारी खेल संहिता अपनाये जाने के भारतीय खेल मंत्रालय के फैसले को पूरी तरह से खारिज कर चुका है।  भरोसेमंद सूत्रों का कहना है कि आईओए को आईओसी से एक पत्र मिला है जिसमें विश्व संस्था ने कहा है कि आईओए चुनाव हर हाल में उसके मौजूदा संविधान और ओलम्पिक चार्टर के नियमों के तहत हों। इन चुनावों को लेकर आईओसी ने तो यहां तक कहा है कि आईओए चुनाव में उसे किसी तरह का कोई सरकारी हस्तक्षेप स्वीकार नहीं होगा। इन चुनावों को लेकर आईओए के कार्यवाहक अध्यक्ष विजय कुमार मल्होत्रा भी खासे परेशान हैं। उन्होंने आईओसी से कहा है कि आईओए इस समय अजीब स्थिति में फंसा है। एक तरफ ओलम्पिक चार्टर है तो दूसरी तरफ सरकारी दिशा-निर्देश। इतना ही नहीं दिल्ली उच्च न्यायालय भी आदेश दे चुका है कि आईओए चुनाव सरकारी दिशा-निर्देशों के तहत ही हों।  बकौल मल्होत्रा हम उच्च न्यायालय के निर्देश की अवहेलना भी नहीं कर सकते तो दूसरी तरफ ओलम्पिक चार्टर का पालन करना भी हमारे लिए जरूरी है। दुविधा की स्थिति में अब राजस्थान उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश अनिल देव सिंह का पैनल ही कोई रास्ता निकाल सकता है। इन चुनावों की जटिलता को देखते हुए ही कुछ दिन पहले चुनाव पैनल के अध्यक्ष रहे एस.वाई. कुरैशी ने इस्तीफा दे दिया। उनके इस्तीफे के बाद आईओए चुनाव समय से हों इसके लिए सोमवार 19 नवम्बर को आईओए के कार्यवाहक अध्यक्ष प्रोफेसर विजय कुमार मल्होत्रा ने अनिल देव को चुनाव पैनल का नया अध्यक्ष नियुक्त करने की घोषणा की। आईओए चुनाव आयोग के दो अन्य सदस्य जस्टिस वीके बाली (सेवानिवृत्त) और जस्टिस जे.डी. कपूर (सेवानिवृत्त) हैं। जस्टिस बाली की जहां तक बात है वह निर्वाचन अधिकारी भी हैं। ललित भनोट दे रहे आईओसी को चुनौती आईओए चुनाव में आईओए व आईओसी के बीच सहमति बनने में सबसे बड़ी रुकावट राष्ट्रमण्डल खेलों में दागी करार दिए गए ललित भनोट प्रमुख हैं। श्री भनोट आईओसी की परवाह किये बिना जहां स्वयं महासचिव का चुनाव लड़ रहे हैं वहीं उनकी तरफ से अभय चौटाला को जिताने की भी पुरजोर कोशिश की जा रही है। दरअसल इन चुनावों में भनोट की दिलचस्पी से ही रणधीर सिंह कमजोर पड़ते दिख रहे हैं। हालांकि खेल बिरादर के अधिकांश खिलाड़ी उनके पक्ष में लामबंद हैं पर पलड़ा चौटाला का ही भारी दिख रहा है। इसे देश का दुर्भाग्य ही कहेंगे कि मैदान में पसीना बहाने वाले खिलाड़ियों पर हमेशा अनाड़ियों ने ही शासन किया है।

Sunday 18 November 2012

टेस्ट क्रिकेट की आत्मा से खिलवाड़


अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद ने टेस्ट क्रिकेट में दर्शकों की दिलचस्पी बढ़ाने के लिए दिन-रात के टेस्ट मैचों को हरी झण्डी दिखा दी है। 30 अक्टूबर से प्रभावशाली नये नियमों के मुताबिक दो मुल्कों के क्रिकेट बोर्डों की सहमति से अब दूधिया रोशनी में टेस्ट क्रिकेट खेली जा सकती है। क्रिकेट के इस प्रारूप पर आस्ट्रेलिया और इंग्लैण्ड के अधिकांश क्रिकेटर पहले से ही रजामंद हैं तो भारत सहित अन्य टेस्ट बिरादर देशों में आम सहमति और इसके नफा-नुकसान को लेकर बहस चल रही है। आईसीसी का मानना है कि इस प्रयोग से बेशक युवा दर्शक मैदान तक न पहुंचें पर वे अपने घरों में टेलीविजन के माध्यम से टेस्ट क्रिकेट का दीदार अवश्य करेंगे। क्रिकेट आस्ट्रेलिया ने आईसीसी के इस फैसले का न केवल समर्थन किया है बल्कि उसके बोर्ड के चीफ एक्जीक्यूटिव जेम्स सदरलैण्ड ने एशेज 2013 में दूधिया रोशनी में टेस्ट क्रिकेट को आजमाने की सम्भावना भी जता दी है।
दूधिया रोशनी में टेस्ट क्रिकेट को लेकर सभी एकराय नहीं हैं। न्यूजीलैण्ड के पूर्व कप्तान तथा टीम इण्डिया के प्रशिक्षक रहे जॉन राइट, हरफनमौला कपिलदेव आस्ट्रेलियाई क्रिकेटर एडम गिलक्रिस्ट जैसे कई क्रिकेट जानकारों ने इस फार्मेट को बेजा करार दिया है। इनका तर्क है कि आईसीसी के इस प्रयोग के पीछे टेस्ट क्रिकेट की बेहतरी से ज्यादा टेलीविजन प्रसारण से होने वाली कमाई मुख्य वजह है। इस फार्मेट का भारतीय क्रिकेट कण्ट्रोल बोर्ड ने विरोध तो नहीं किया लेकिन वह इसके प्रति ज्यादा उत्साहित नहीं है। आईसीसी के फैसले का विरोध करने वालों का तर्क है कि इससे मूल क्रिकेट (टेस्ट क्रिकेट) की महत्ता खत्म हो जाएगी और वनडे एवं टी-20 की तरह यह भी व्यावसायिकता का लबादा ओढ़ लेगी। दूधिया रोशनी में टेस्ट क्रिकेट के हिमायतियों का कहना है कि दर्शकों की कमी के चलते टेस्ट क्रिकेट अस्तित्व के संकट से जूझ रही है। युवा पीढ़ी टेस्ट मुकाबले नहीं देख पाती क्योंकि इसकी टाइमिंग उनके लिए अनुकूल नहीं है। दिन-रात के टेस्ट मुकाबलों को देखने जहां दर्शक बढ़ेंगे वहीं मूल क्रिकेट की लोकप्रियता को भी चार चांद लगेंगे। देखा जाये तो जिस दिन-रात टेस्ट क्रिकेट की वकालत आईसीसी आज कर रही है उसका प्रयोग बीसीसीआई 15 साल पहले कर चुकी है। पांच से नौ अप्रैल, 1997 को ग्वालियर के कैप्टन रूप सिंह मैदान में मुम्बई और दिल्ली के बीच रणजी ट्रॉफी का फाइनल मुकाबला दूधिया रोशनी में खेला गया था। पांच दिवसीय इस मुकाबले में मुम्बई ने दिल्ली पर पहली पारी की बढ़त के आधार पर जीत दर्ज की थी। भारत के अलावा आस्ट्रेलिया और इंग्लैंड भी अपने घरेलू टूर्नामेंटों में दिन-रात के प्रथम श्रेणी मैचों को प्रायोगिक तौर पर आजमा चुके हैं। देखा जाए तो टेस्ट क्रिकेट में दर्शकों के घटते रुझान के पीछे इसके परिणाम से कहीं अधिक वनडे व टी-20 मुकाबलों का होना है। टेस्ट क्रिकेट में दर्शकों की घटती संख्या के पीछे आईसीसी भी कम जवाबदेह नहीं है। सच तो यह है कि क्रिकेट के बढ़ते व्यवसायीकरण के बाद आयोजकों के लिए टेलीविजन के दर्शक स्टेडियम में आने वाले दर्शकों से ज्यादा महत्वपूर्ण हो गये हैं। दिन में खेले जाने की वजह से टेस्ट मैच को क्रिकेट प्रेमी अपनी व्यस्तताओं के चलते टेलीविजन पर नहीं देख पाते हैं जिसके चलते टेस्ट क्रिकेट को प्रायोजक नहीं मिलते। टेस्ट क्रिकेट भी मालामाल हो इसीलिए क्रिकेट बिरादर के अधिकांश देश चाहते हैं कि टेस्ट क्रिकेट भी दूधिया रोशनी में परवान चढ़े। दूधिया रोशनी से टेस्ट क्रिकेट में दर्शक बढ़ेंगे तो पैसा बढ़ेगा पर गेंदबाजों का क्या होगा जो प्राकृतिक प्रकाश में सुबह के समय पिच से मिलने वाली मदद से पासा पलटने की फिराक में रहते हैं तो बल्लेबाज धूप चटकने के साथ पिच के बदलते मिजाज का फायदा लम्बी पारियां खेलने के लिए करते हैं। दिन-रात के मुकाबले स्पिनरों के लिए भी किसी मुसीबत से कम नहीं होंगे। रात को ओस के चलते स्पिन गेंदबाज न तो ठीक तरह से गेंद को ग्रिप कर पाएंगे और न ही पिच से उन्हें विशेष मदद मिल पाएगी। आईसीसी का यह फैसला स्पिन गेंदबाजी की कला के ताबूत में आखिरी कील साबित हो सकता है। दिन-रात के टेस्ट मैचों में दोनों टीमों के लिए परिस्थितियां भिन्न-भिन्न होंगी। दिन के समय बल्लेबाजी आसान होगी क्योंकि गेंदबाजों को पिच से अधिक मदद नहीं मिलेगी वहीं रात में पिच में नमी के कारण वह तेज गेंदबाजों के लिए मददगार होगी और बल्लेबाजी करना काफी मुश्किल होगा। ऐसे में यह गैर बराबरी का मुकाबला होगा। पांच दिनी टेस्ट मैचों में हर पल खेल का स्वरूप बदलता रहता है। आखिरी क्षणों में कम होती रोशनी में पराजय टालने की कोशिश करते बल्लेबाज तो दूसरी तरफ आखिरी विकेट लेने की कोशिश करते गेंदबाज, चौथे-पांचवें दिन पिच के बदले मिजाज के चलते पैदा होने वाली अनिश्चितता कई ऐतिहासिक मुकाबलों की गवाह रही है, दिन-रात मुकाबलों के बाद खत्म हो जाएगी। दिन-रात के टेस्ट मुकाबलों में गेंद भी विलेन का रोल अदा करे तो हैरानी नहीं होनी चाहिए। दरअसल गेंद का रंग ऐसा होना चाहिए जो दिन व रात के समय आसानी से नजर आए और पांच दिनों तक चल सके। वैसे आईसीसी ऐसी गेंद तकनीक की तलाश कर रही है। अभी तक पिंक और आॅरेंज कलर की गेंदों का प्रयोग संतोषजनक नहीं रहा है।
क्रिकेट की जहां तक बात है, 24-25 सितम्बर 1844 को अमेरिका और कनाडा के बीच पहला अन- आॅफिशियल अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट मैच खेला गया  तो 15 से 19 मार्च 1877 को मेलबोर्न क्रिकेट मैदान पर आस्ट्रेलिया और इंग्लैण्ड के बीच पहला आॅफिशियल टेस्ट मुकाबला खेला गया जिसमें आस्ट्रेलिया 45 रन से विजयी रहा। क्रिकेट का यह अजब संयोग है कि 12 से 17 मार्च 1977 को टेस्ट क्रिकेट के 100 साल पूरे होने पर एमसीजी में ही आस्ट्रेलिया और इंग्लैण्ड के बीच खेले गए टेस्ट मुकाबले में एक बार फिर आस्ट्रेलिया ने 45 रन से जीत दर्ज की।

Saturday 10 November 2012

राजा रणधीर को चौटाला की चुनौती


एक तरफ देश दीपोत्सव की तैयारी में तल्लीन है तो दूसरी तरफ 25 नवम्बर को होने जा रहे भारतीय ओलम्पिक संघ के चुनाव के लिए खेलों के तहखाने में सियासत की सरगर्मी तेज हो गई है। नाक का सवाल बने इन चुनावों में राष्ट्रमण्डल खेलों का दागी सुरेश कलमाडी गुट जहां इण्डियन एमेच्योर बॉक्सिंग फेडरेशन के चेयरमैन अजय चौटाला की पीठ थपथपा रहा है वहीं देश के नामचीन हॉकी ओलम्पियन भारतीय ओलम्पिक संघ के प्रधान सचिव व कोषाध्यक्ष राजा रणधीर सिंह का हौसला बढ़ा रहे हैं। खेलों में सियासत का ऊंट किस करवट बैठेगा इस बात का पता तो चुनाव के बाद चलेगा पर मौजूदा दौर में भारतीय खेल मंत्रालय ने अभय चौटाला के वोट पर सवालिया निशान लगाकर शांत प्याले में तूफान ला दिया है।
भारतीय ओलम्पिक संघ भारत की राष्ट्रीय ओलम्पिक समिति है। इसका कार्य ओलम्पिक, राष्ट्रमंडल, एशियाई व अन्य अंतरराष्ट्रीय खेल प्रतियोगिताओं में भारत का प्रतिनिधित्व करने वाले खिलाड़ियों का चयन और भारतीय दल का प्रबंधन करना है। वर्ष 1927 से अस्तित्व में आए भारतीय ओलम्पिक संघ ने देश को अब तक नौ अध्यक्ष दिये हैं। दोराबजी टाटा (1927-1928) भारतीय ओलम्पिक संघ के पहले अध्यक्ष रहे हैं, इनके प्रयासों से ही 1928 के ओलम्पिक खेलों में भारतीय दल शिरकत कर सका था। भारतीय ओलम्पिक संघ में इसके बाद लगातार 47 साल तक राजा रणधीर सिंह के परिवार का ही राज रहा है। टाटा के बाद 1928 से 1938 तक रणधीर के बाबा महाराजा भूपिन्दर सिंह अध्यक्ष की आसंदी पर बिराजे तो उसके बाद 1938 से 1960 तक यानि पूरे 22 साल उनके चाचा महाराजा यादविन्द्र सिंह आईओए के अध्यक्ष रहे। यादविन्द्र के हटने के बाद रणधीर सिंह के पिता भालिन्द्र सिंह (1960-1975) ने अध्यक्ष की कुर्सी सम्हाली।
देखा जाए तो जिस तरह भारतीय लोकतंत्र की सियासत पर वंशवाद हावी है कमोबेश उसी तरह यहां खेल भी परिवारवाद की परिधि में ही परवान चढ़ रहे हैं। भारतीय ओलम्पिक संघ तो सिर्फ एक उदाहरण है। देश के अधिकांश खेल संघों पर उन खेलनहारों का कब्जा है जिनके बाप-दादा भी कभी नहीं खेले। जो भी हो 1996 के बाद भारतीय ओलम्पिक संघ के होने जा रहे इन चुनावों में कुछ नए समीकरण बन सकते हैं। भारतीय खेल मंत्रालय व अंतरराष्ट्रीय ओलम्पिक समिति ने यदि कानूनी डंडा चला दिया तो कई खेल संघ पदाधिकारी न केवल स्वयं के वोट से वंचित होंगे बल्कि उन्हें हमेशा के लिए खेल संघों से किनारा करना पड़ सकता है।
बीते पांच साल खेल जगत में भारतीय खेल-खिलाड़ियों की हनक के रहे हैं। इस बीच भारत ने राष्ट्रमण्डल खेलों की शानदार मेजबानी का श्रेय लूटा तो हमारे सूरमा खिलाड़ियों ने अपने पौरुष से नए आयाम स्थापित किए। हाल ही केन्द्रीय मंत्रिमंडल में हुए फेरबदल के चलते अजय माकन को खेल मंत्री का पद छोड़ना पड़ा। यह वही अजय माकन हैं जिन्होंने अपने पारदर्शी नजरिये व खेल विधेयक के माध्यम से लम्बे समय से खेल संघों में बिराजे पदाधिकारियों की नींद उड़ा दी थी केन्द्र सरकार को यही नागवार गुजरा। भारतीय ओलम्पिक संघ के होने जा रहे चुनाव पर न केवल अंतरराष्टीय ओलम्पिक समिति पैनी नजर रखे हुए है बल्कि उसने साफ-साफ कह दिया है कि कॉमनवेल्थ गेम्स घोटाले के किसी आरोपी को चुनावी दंगल में न उतारा जाए। आईओसी ने तो यहां तक धमकाया है कि यदि सुरेश कलमाड़ी, ललित भनोट या वीके वर्मा में से कोई चुनाव लड़ा और जीता तो वह आईओए के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करेगी। राष्ट्रमंडल खेलों में हुए अरबों के घोटाले के बाद जहां भारत की खेल जगत में जमकर किरकिरी हुई वहीं आईओसी ने भारतीय ओलम्पिक संघ के चुनाव में अपना पर्यवेक्षक भेजने का फैसला लेकर  चिन्ता की लकीरें खींच दी हैं। याद नहीं आता कि दुनिया के किसी देश में इससे पूर्व अंतरराष्ट्रीय ओलम्पिक समिति की देखरेख में चुनाव हुए हों। इन चुनावों को लेकर जहां आईओसी के तेवर तल्ख हैं वहीं आईओए के कार्यवाहक अध्यक्ष प्रोफेसर विजय कुमार मल्होत्रा भारतीय खेल मंत्रालय के किसी भी दिशा-निर्देश को न मानने की कसम खा रहे हैं। प्रो. मल्होत्रा का कहना है कि उम्र और कार्यकाल को लेकर कोर्ट ने हमें और खेल फेडरेशनों को चुनाव कराने का जो आदेश दिया है, वह न तो सही है और न ही तथ्यों पर आधारित। मल्होत्रा का कहना है कि सरकारी खेल विधेयक चूंकि कैबिनेट में ही औंधे मुंह गिर चुका है ऐसे में उसके दिशा-निर्देशों के कोई मायने नहीं रह जाते। भारतीय ओलम्पिक संघ के चुनाव से पूर्व चल रही खेलनहारों की नूराकुश्ती इस बात का सूचक है कि भारतीय खेलों में चोर-चोर मौसेरे भाइयों की पैठ होने के चलते भारतीय खेल मंत्रालय को ही बैकफुट पर जाना होगा। खेलों की इस खेमेबंदी ने चूंकि कई बार खेल मंत्रालय को चौंकाया है ऐसे में इस बात की जरा भी गुंजाइश नहीं है कि नए खेल मंत्री जितेन्द्र सिंह कोई बड़ा जोखिम लेंगे। उन्हें पता है कि अजय माकन की पारदर्शिता का हश्र क्या हुआ है। सच्चाई तो यह है कि अजय माकन को खेल मंत्री पद से इसीलिए हटाया गया ताकि अनाड़ियों का खेलों पर कब्जा बरकरार रहे और कांगे्रस के खेलनहारों के दामन पर लगे भ्रष्टाचार के दाग भी आसानी से धुल जाएं। खैर, अध्यक्षी के लिए राजा रणधीर सिंह जहां दक्षिणी राज्यों से समर्थन जुटा रहे हैं वहीं अभय चौटाला दागियों को अभयदान का वास्ता देकर रिझा रहे हैं।
भारतीय ओलंपिक संघ के अध्यक्ष
अध्यक्ष अवधि
दोराबजी टाटा 1927-1928
भूपिन्दर सिंह 1928-1938
यादविन्द्र सिंह 1938-1960
भालिन्द्र सिंह 1960-1975
ओमप्रकाश मेहरा 1976-1980
भालिन्द्र सिंह 1980-1984
विद्या चरण शुक्ला 1984-1987
शिवान्थि अदिथन 1987-1996
सुरेश कलमाड़ी 1996- बर्खास्त