प्रशिक्षकों को भूला मध्यप्रदेश खेल विभाग
गुरबत में जीती खेल विभाग की रीढ़ की हड्डी
ग्वालियर। कहते हैं कि किसी खिलाड़ी का मर्म कोई खिलाड़ी ही जान सकता है। वजह साफ है जिसने मैदान में पसीना ही न बहाया हो उसे क्या पता पराक्रम क्या चीज होती है। प्रतिभा हर किसी में जन्मजात होती है। खेल-कूदना तो हर जीव का शगल है। सिर्फ मनुष्य ही नहीं पशु-पक्षी भी खेलते हैं। मनुष्य इसलिए श्रेष्ठ है क्योंकि उसकी प्रतिभा को मुकम्मल स्थान दिलाने को गुरू होता है। किसी खिलाड़ी में कितनी भी प्रतिभा क्यों न हो यदि उसे सही प्रशिक्षक न मिले तो वह कामयाबी की कहानी लिख ही नहीं सकता। मध्य प्रदेश सरकार पिछले नौ साल से खेलों की दिशा में कुछ कर गुजरने को बेताब है। प्रदेश में प्रतिभाओं की भी कमी नहीं है, पर खिलाड़ियों को निखारने वाले प्रशिक्षकों के साथ लगातार सौतेला व्यवहार जारी है। इनकी तरफ शिवराज सरकार का भी ध्यान नहीं है। पिछले नौ साल से संविदा प्रशिक्षक इस उम्मीद में गुरु ज्ञान बांट रहे हैं कि एक न एक दिन उन पर नजर जरूर जायेगी और सरकार प्रशिक्षकों के महत्व को स्वीकारेगी। सवाल यह आखिर कब दिन बहुरेंगे प्रशिक्षकों के?
मध्य प्रदेश खेल एवं युवा कल्याण विभाग वर्ष 2006 से सुर्खियों में आया। जब स्वयं घुड़सवारी की खिलाड़ी रहीं ऊर्जावान यशोधरा राजे सिंधिया को खेल मंत्री की जिम्मेदारी दी गई। यह मध्य प्रदेश के इतिहास का पहला अवसर था जब एक वास्तविक खिलाड़ी को खेल मंत्री बनाया गया। इस महत्वपूर्ण जिम्मेदारी को उन्होंने भी चुनौती के रूप में लिया और प्रदेश के कायाकल्प की ठान ली। श्रीमती सिंधिया ने न केवल खेल अधोसंरचना पर ध्यान दिया बल्कि खिलाड़ियों की प्रतिभा निखारने के लिए प्रशिक्षक और मैदानों की मुकम्मल देखभाल के लिए दीगर कर्मचारियों की तैनाती को अमलीजामा भी पहनाया। इससे विभाग में नई ऊर्जा का संचार हुआ।
यहां यह बताना मुनासिब होगा कि वर्ष 2006 से पहले मध्य प्रदेश खेल एवं युवा कल्याण विभाग का सालाना बजट मात्र पांच करोड़ रुपये था परन्तु एक कुशल खिलाड़ी की तरह कार्य करते हुये खेल मंत्री ने अपने प्रयासों से खेल विभाग के बजट को 180 करोड़ रुपये तक पहुंचाया। खेल मंत्री के प्रयासों और खेल प्रशिक्षकों की मेहनत की बदौलत राष्टÑीय खेलों में मध्य प्रदेश एक सशक्त ताकत बनकर उभरा। 2006 में नियुक्त हुये एऩआई़एस़ डिप्लोमा प्राप्त खेल प्रशिक्षकों को वेतन के रूप में सिर्फ 9,000 रुपये मासिक प्रदान किये जा रहे थे जबकि वर्ष 2014 में खेल प्रशिक्षकों का वेतन 13,500 रुपये किया गया वहीं 5 जून, 2012 को मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री की अध्यक्षता वाली कैबिनेट ने खेल विभाग में कार्यरत सभी प्रकार के 554 संविदा खेल कर्मचारियों के वेतन में प्रतिवर्ष न्यूनतम 10 फीसदी वार्षिक वेतन बढ़ोत्तरी किये जाने का आदेश पारित किया जोकि अप्रैल 2012 से लागू किया जाना था। विडम्बना कहें या लेतलाली खेल विभाग की स्थापना में बैठे एक अधिकारी ने अपनी जादूगरी दिखाते हुये कैबिनेट के निर्णय को पलटते हुये उक्त आदेश को अप्रैल 2012 से लागू करने की बजाय जुलाई 2014 से लागू किया। दो साल विलम्ब से लागू आदेश के चलते संविदा कर्मचारियों को काफी नुकसान हुआ। दुर्भाग्य की बात है कि संविदा कर्मचारियों का नुकसान कराने वाले इस अधिकारी से जवाब-तलब करने की बजाय इसे सेवानिवृत्ति के बाद पुन: खेल विभाग में नियुक्त कर दिया गया। संविदा प्रशिक्षकों की जहां तक बात है देश के दूसरे राज्य उत्तर प्रदेश और हरियाणा में एऩआई़एस़ खेल प्रशिक्षकों को 25000-25000 रुपये मासिक वेतन दिया जा रहा है। राजस्थान, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, पंजाब, उत्तराखण्ड आदि में खेल प्रशिक्षकों को नियमित पद पर नियुक्त कर 40,000 से लेकर 70,000 रुपये तक वेतन दिया जा रहा है। मध्य प्रदेश में पिछले लगभग 10 साल से संविदा पदों पर सेवाएं दे रहे खेल प्रशिक्षकों को न ही नियमित किया जा रहा और न ही उन्हें सम्मानजनक वेतन दिया जा रहा है।
संचालक की बेरुखी
खेल संचालक उपेन्द्र जैन जोकि पिछले एक वर्ष से विभाग में हैं उन्होंने आज तक खेल प्रशिक्षकों से मिलना तक मुनासिब नहीं समझा। जानकर आश्चर्य होगा कि 180 करोड़ के खेल बजट वाले विभाग ने अपने खेल प्रशिक्षकों को चार साल से खेलकिट तक नहीं दी है। खेलकिट में ट्रैकसूट, टी-शर्ट, नेकर, शूज और मोजे होते हैं। विभाग के आला अधिकारियों के सौतेले व्यवहार से जहां खेल प्रशिक्षक खासे निराश हैं वहीं इस बढ़ती महंगाई में उन्हें अपना और अपने परिवार का भरण-पोषण करना भी दुरूह कार्य होता जा रहा है।
संजय चौधरी की आ रही याद
खेल एवं युवा कल्याण विभाग के कायाकल्प में संजय चौधरी के योगदान को भी नकारा नहीं जा सकता। संचालक चौधरी के कार्यकाल में ही मध्यप्रदेश में दर्जन भर से अधिक खेल एकेडमियां स्थापित की गई थीं। उनके प्रयासों से जहां प्रशिक्षक नियुक्त हुए वहीं खिलाड़ियों को सुविधाएं भी समय से मिलीं। खेल विभाग से जुड़े लोगों का कहना है कि श्री चौधरी जैसे लोग ही खेल विभाग में जान फंूक सकते हैं।
गुरबत में जीती खेल विभाग की रीढ़ की हड्डी
ग्वालियर। कहते हैं कि किसी खिलाड़ी का मर्म कोई खिलाड़ी ही जान सकता है। वजह साफ है जिसने मैदान में पसीना ही न बहाया हो उसे क्या पता पराक्रम क्या चीज होती है। प्रतिभा हर किसी में जन्मजात होती है। खेल-कूदना तो हर जीव का शगल है। सिर्फ मनुष्य ही नहीं पशु-पक्षी भी खेलते हैं। मनुष्य इसलिए श्रेष्ठ है क्योंकि उसकी प्रतिभा को मुकम्मल स्थान दिलाने को गुरू होता है। किसी खिलाड़ी में कितनी भी प्रतिभा क्यों न हो यदि उसे सही प्रशिक्षक न मिले तो वह कामयाबी की कहानी लिख ही नहीं सकता। मध्य प्रदेश सरकार पिछले नौ साल से खेलों की दिशा में कुछ कर गुजरने को बेताब है। प्रदेश में प्रतिभाओं की भी कमी नहीं है, पर खिलाड़ियों को निखारने वाले प्रशिक्षकों के साथ लगातार सौतेला व्यवहार जारी है। इनकी तरफ शिवराज सरकार का भी ध्यान नहीं है। पिछले नौ साल से संविदा प्रशिक्षक इस उम्मीद में गुरु ज्ञान बांट रहे हैं कि एक न एक दिन उन पर नजर जरूर जायेगी और सरकार प्रशिक्षकों के महत्व को स्वीकारेगी। सवाल यह आखिर कब दिन बहुरेंगे प्रशिक्षकों के?
मध्य प्रदेश खेल एवं युवा कल्याण विभाग वर्ष 2006 से सुर्खियों में आया। जब स्वयं घुड़सवारी की खिलाड़ी रहीं ऊर्जावान यशोधरा राजे सिंधिया को खेल मंत्री की जिम्मेदारी दी गई। यह मध्य प्रदेश के इतिहास का पहला अवसर था जब एक वास्तविक खिलाड़ी को खेल मंत्री बनाया गया। इस महत्वपूर्ण जिम्मेदारी को उन्होंने भी चुनौती के रूप में लिया और प्रदेश के कायाकल्प की ठान ली। श्रीमती सिंधिया ने न केवल खेल अधोसंरचना पर ध्यान दिया बल्कि खिलाड़ियों की प्रतिभा निखारने के लिए प्रशिक्षक और मैदानों की मुकम्मल देखभाल के लिए दीगर कर्मचारियों की तैनाती को अमलीजामा भी पहनाया। इससे विभाग में नई ऊर्जा का संचार हुआ।
यहां यह बताना मुनासिब होगा कि वर्ष 2006 से पहले मध्य प्रदेश खेल एवं युवा कल्याण विभाग का सालाना बजट मात्र पांच करोड़ रुपये था परन्तु एक कुशल खिलाड़ी की तरह कार्य करते हुये खेल मंत्री ने अपने प्रयासों से खेल विभाग के बजट को 180 करोड़ रुपये तक पहुंचाया। खेल मंत्री के प्रयासों और खेल प्रशिक्षकों की मेहनत की बदौलत राष्टÑीय खेलों में मध्य प्रदेश एक सशक्त ताकत बनकर उभरा। 2006 में नियुक्त हुये एऩआई़एस़ डिप्लोमा प्राप्त खेल प्रशिक्षकों को वेतन के रूप में सिर्फ 9,000 रुपये मासिक प्रदान किये जा रहे थे जबकि वर्ष 2014 में खेल प्रशिक्षकों का वेतन 13,500 रुपये किया गया वहीं 5 जून, 2012 को मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री की अध्यक्षता वाली कैबिनेट ने खेल विभाग में कार्यरत सभी प्रकार के 554 संविदा खेल कर्मचारियों के वेतन में प्रतिवर्ष न्यूनतम 10 फीसदी वार्षिक वेतन बढ़ोत्तरी किये जाने का आदेश पारित किया जोकि अप्रैल 2012 से लागू किया जाना था। विडम्बना कहें या लेतलाली खेल विभाग की स्थापना में बैठे एक अधिकारी ने अपनी जादूगरी दिखाते हुये कैबिनेट के निर्णय को पलटते हुये उक्त आदेश को अप्रैल 2012 से लागू करने की बजाय जुलाई 2014 से लागू किया। दो साल विलम्ब से लागू आदेश के चलते संविदा कर्मचारियों को काफी नुकसान हुआ। दुर्भाग्य की बात है कि संविदा कर्मचारियों का नुकसान कराने वाले इस अधिकारी से जवाब-तलब करने की बजाय इसे सेवानिवृत्ति के बाद पुन: खेल विभाग में नियुक्त कर दिया गया। संविदा प्रशिक्षकों की जहां तक बात है देश के दूसरे राज्य उत्तर प्रदेश और हरियाणा में एऩआई़एस़ खेल प्रशिक्षकों को 25000-25000 रुपये मासिक वेतन दिया जा रहा है। राजस्थान, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, पंजाब, उत्तराखण्ड आदि में खेल प्रशिक्षकों को नियमित पद पर नियुक्त कर 40,000 से लेकर 70,000 रुपये तक वेतन दिया जा रहा है। मध्य प्रदेश में पिछले लगभग 10 साल से संविदा पदों पर सेवाएं दे रहे खेल प्रशिक्षकों को न ही नियमित किया जा रहा और न ही उन्हें सम्मानजनक वेतन दिया जा रहा है।
संचालक की बेरुखी
खेल संचालक उपेन्द्र जैन जोकि पिछले एक वर्ष से विभाग में हैं उन्होंने आज तक खेल प्रशिक्षकों से मिलना तक मुनासिब नहीं समझा। जानकर आश्चर्य होगा कि 180 करोड़ के खेल बजट वाले विभाग ने अपने खेल प्रशिक्षकों को चार साल से खेलकिट तक नहीं दी है। खेलकिट में ट्रैकसूट, टी-शर्ट, नेकर, शूज और मोजे होते हैं। विभाग के आला अधिकारियों के सौतेले व्यवहार से जहां खेल प्रशिक्षक खासे निराश हैं वहीं इस बढ़ती महंगाई में उन्हें अपना और अपने परिवार का भरण-पोषण करना भी दुरूह कार्य होता जा रहा है।
संजय चौधरी की आ रही याद
खेल एवं युवा कल्याण विभाग के कायाकल्प में संजय चौधरी के योगदान को भी नकारा नहीं जा सकता। संचालक चौधरी के कार्यकाल में ही मध्यप्रदेश में दर्जन भर से अधिक खेल एकेडमियां स्थापित की गई थीं। उनके प्रयासों से जहां प्रशिक्षक नियुक्त हुए वहीं खिलाड़ियों को सुविधाएं भी समय से मिलीं। खेल विभाग से जुड़े लोगों का कहना है कि श्री चौधरी जैसे लोग ही खेल विभाग में जान फंूक सकते हैं।
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