Tuesday, 7 July 2015

क्रिकेट में अर्थनीति का बोलबाला

 राजनीति और क्रिकेट का मजबूत गठजोड़ कभी नहीं टूटेगा
राजनीति जब से लोकोन्मुख न होकर बाजारोन्मुख हुई, लगभग उसी समय से क्रिकेट भी खेल न रहकर मनोरंजन हो गया। देखा जाये तो संविधानेतर शक्तियां भारतीय राजनीति में 1970 के दशक के पहले प्रभावी नहीं थीं। संजय गांधी के बाद संविधानेतर शक्ति बढ़ती गयी है। नव उदारवादी अर्थव्यवस्था ने उपभोक्ता समाज और उपभोक्ता संस्कृति विकसित की।  वैचारिक और दलीय भिन्नता के बाद भी विभिन्न दलों के नेता क्रिकेट से जुड़े। राजनीति के मैदान और खेल के बाद उन्हें क्रिकेट का मैदान और खेल अकारण रास नहीं आया। राजनीति में शुचिता, नैतिकता की बात करने वाले भूल जाते हैं कि अनैतिक पूंजी के दौर में ये दोनों शब्द अब पुराने पड़ चुके हैं। जब अर्थनीति उपभोक्ता और बाजार केन्द्रित होगी, राजनीति भी उसी मार्ग पर चलेगी।
21वीं सदी के पहले दशक में भारतीय राजनीति में नरेन्द्र मोदी और भारतीय क्रिकेट में ललित मोदी का आगमन हुआ। गुजरात के मुख्यमंत्री बनने के पहले नरेन्द्र मोदी किसी बड़े पद पर नहीं थे। 2005 में राजस्थान, क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष बनने के पहले ललित मोदी को कोई नहीं जानता था।  एक अध्यादेश के द्वारा वसुंधरा राजे ने 2004 में इस क्रिकेट एसोसिएशन को भंग किया, जिस पर कांग्रेस से जुड़े रूंगटा परिवार का कब्जा था। विजया राजे सिंधिया और ललित मोदी की दादी भले कभी दोस्त रही हों, पर वसुंधरा और ललित मोदी की प्रगाढ़ता अस्सी के दशक के अंत के पहले की नहीं है। बाद में वे राजस्थान में संविधानेतर शक्ति बने। नये विकसित पूंजीवादी अर्थतंत्र में राजनीति और क्रिकेट की जुगलबंदी हुई।  राजस्थान में वसुंधरा कार्यकाल में ललित मोदी ने सुपर सीएम की तरह काम किया। द्रुतगामी पूंजी के दौर में द्रुतगामी क्रिकेट की शुरुआत हुई। आईपीएल ललित मोदी का ब्रेन चाइल्ड था। वे उसके जनक थे। द्रुतगामी पूंजी ने राजनीति, खेल सबका स्वरूप बदल डाला। द्रुतगामी पूंजी के कारण आईपीएल के जरिये क्रिकेट मनोरंजन में बदला, पहले वह खेल था। राजनीति लूटनीति में बदली, जबकि वह सेवा थी। झूठ का इसी समय बोलबाला हुआ। कोलगेट के बाद ललितगेट आश्चर्य नहीं है। पिछले महीने सुर्खियों में नमो नहीं लमो रहे। लंदन के समाचार पत्र द संडे टाइम्स में सात जून को प्रकाशित रिपोर्ट के बाद भारतीय मीडिया में ललित मोदी छाये हुए हैं।
 विदेश मंत्री सुषमा स्वराज पर ललित मोदी के पक्ष में ब्रिटिश उच्चायोग को लिखा गया अनुशंसा पत्र और वसुंधरा राजे द्वारा ललित मोदी के आव्रजन-आवेदन का अनुमोदन सुर्खियों में रहा है। वसुंधरा राजे ने अपने अनुमोदन के साथ यह कठोर शर्त लगायी थी कि इसकी जानकारी भारतीय अधिकारियों को न दी जाये। वे जानती थीं कि उनका अनुमोदन गलत है। ललित मोदी को किन कारणों से सुषमा स्वराज और वसुंधरा राजे ने मदद की? वसुंधरा राजे के बेटे दुष्यंत सिंह (भाजपा सांसद) के साथ ललित मोदी के व्यावसायिक-व्यापारिक सौदे रहे हैं।  दुष्यंत और उनकी पत्नी निहारिका की कम्पनी नियंता हेरिटेज होटल्स प्राइवेट लिमिटेड 2005 में बनी, जिसके दस रुपये के शेयर मात्र तीन वर्ष बाद ललित मोदी ने 96,180 रुपये के प्रीमियम मूल्य पर खरीदे। तीन वर्ष बाद 2008 में ही आईपीएल का आगाज हुआ। ललित मोदी ने इस समय मुख्यमंत्री राहत कोष में छह करोड़ का एक चेक दिया। सुषमा स्वराज पर कम और वसुंधरा राजे पर कहीं अधिक पद और सत्ता के दुरुपयोग के प्रमाण हैं। सुषमा स्वराज के परिवार से भी ललित मोदी का सम्बन्ध है। प्रश्न निजी और मानवीय सम्बन्ध का नहीं, सत्ता से नजदीकी का कारण निजी और व्यावसायिक हित का है। ललित मोदी क्रिकेट में शक्तिशाली बिना राजनेताओं के सहयोग के नहीं बन सकते थे। क्रिकेट का उन्हें मसीहा बनाने में उनके राजनीतिक सम्पर्कों, अंतरंग सम्बम्धों की बड़ी भूमिका है। फटाफट का पैसा और खेल-तमाशा अधिक दिनों तक नहीं टिकता। ललित मोदी ने आईपीएल को अपनी शर्तों पर चलाया। मोदी अपनी शर्तों पर सरकार चलाते हैं। नरेन्द्र मोदी के सामने पार्टी कोने में खड़ी रही। व्यक्ति प्रमुख बना। ललित मोदी और नरेन्द्र मोदी में कई खूबियां हैं। दोनों में सांगठनिक योग्यताएं हैं। दोनों ने प्रदर्शन (शो) को महत्व दिया, जिसका बाजार और विज्ञापन से सम्बन्ध है। बीसीसीआई ने ललित मोदी को एक थेट्र के रूप में देखा। नरेन्द्र मोदी ने अपनी पार्टी में थेट्र देने वालों को एक-एक कर किनारे किया। ललित मोदी ने एक तरह से बीसीसीआई पर शासन करना आरम्भ कर दिया था। उन्हें क्रिकेट-जगत में तानाशाह के रूप में देखा गया। नरेन्द्र मोदी में भी कई लोग तानाशाह के गुण देखते हैं।
 दूसरे आईपीएल (2009) में जब सरकार ने लोकसभा चुनाव के कारण सुरक्षा देने से इनकार किया, ललित मोदी ने इसे दक्षिण अफ्रीका में आयोजित कराया। दक्षिण अफ्रीका में आईपीएल को अनुमति देने वालों में शरद पवार, अरुण जेटली, राजीव शुक्ला सब साथ थे। क्रिकेट ने कांग्रेस और भाजपा को एक कर दिया।  क्रिकेट में ललित मोदी शो अधिक दिनों तक नहीं टिका। जितनी तेजी से ललित मोदी का सितारा चमका था, उतनी ही तेजी से वह डूब गया। चमकना और डूबना पांच वर्ष में हुआ यानि 2005 से 2010 तक। क्रिकेट और राजनीति का खेल खुलासे के खेल तक पहुंच चुका है। ललित मोदी ने लगातार ट्वीट जारी किये। ट्वीट प्रेमी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस प्रकरण पर एक भी ट्वीट अब तक नहीं किया। उनके मन की बात में यह नहीं है। ललित मोदी भारत की दागदार राजनीति को लगातार सामने ला रहे हैं और प्रधानमंत्री मौन हैं। सरकारी सम्पत्ति का निजी इस्तेमाल, कालाधन, मॉरीशस से हुए करोड़ों के काले निवेश उनकी चिन्ता में नहीं हैं। मई 2010 से इंग्लैंड में रह रहे ललित मोदी पर प्रवर्तन निदेशालय के करीब 18 मामले दर्ज हैं। नरेन्द्र मोदी लाचार और बेबस हैं। पार्टी के भीतर सब इस प्रकरण पर एक मत नहीं हैं। कीर्ति आजाद ने आस्तीन का सांप की बात कही है। राजनीति और क्रिकेट का गठजोड़ सुदृढ़  है। इस पर लाख होहल्ला मच रहा हो पर नतीजा वही निकलेगा जो राजनीतिज्ञ चाहेंगे क्योंकि हमाम में सभी नंगे हैं।

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