Thursday 16 July 2015

क्रिकेट की कलंक कथा

अति का अंत
नौ खिलाड़ी कपूतों पर फैसला आना बाकी
भारतीय क्रिकेट आज सबसे बुरे दौर से गुजर रही है। उसकी साख पर किस तरह बट्टा लगा, यह उच्चतम न्यायालय के फैसले से बिल्कुल शीशे की तरह साफ हो गया है। कल तक ललित मोदी की कही को निरा झूठ मानने वालों को भी विश्वास हो चला है कि इस खेल को खिलाड़ियों से कहीं अधिक राजनीतिज्ञों और धन्नासेठों ने क्षति पहुंचाई है। एक समय वह था जब खिलाड़ियों की मदद को बोर्ड के पास पैसे के लाले थे और आज वह दुनिया का सबसे धन्नासेठ खेल संगठन है। क्रिकेट को कारोबार की शक्ल देने का ही नतीजा है कि इसमें जो आया, उसने फिर जाने का नाम नहीं लिया। राजनीतिज्ञों ने तो खेलों को अपने बुरे वक्त का जरिया ही बना रखा है। यही वजह है कि क्रिकेट ही नहीं अमूमन सभी खेल संगठनों में वे राजनीतिज्ञ काबिज हैं जिनका खेलों से दूर-दूर तक कभी कोई वास्ता नहीं रहा। भारतीय क्रिकेट कण्ट्रोल बोर्ड की जहां तक बात है, वह स्वयं सरकार है। जो हुआ और जो आगे होगा उसे यदि क्रिकेट में अति का अंत कहें तो उपयुक्त होगा। उच्चतम न्यायालय ने अभी क्रिकेट की कलंक कथा के पहले अध्याय का ही फैसला सुनाया है, अभी दो अध्याय और बाकी हैं जिनमें नौ खिलाड़ी कपूतों सहित कई खेलनहारों की करतूतें उजागर हो सकती हैं।
उच्चतम न्यायालय के फैसले के बाद क्रिकेट मुरीदों के सामने आईपीएल के भविष्य और भारतीय क्रिकेट कण्ट्रोल बोर्ड की पारदर्शिता सबसे बड़ा सवाल है। भारतीय क्रिकेट को स्पॉट फिक्सिंग और सट्टेबाजी का गढ़ बनने से रोका जा सकता था लेकिन स्वहित के चलते श्रीनिवासन ने इसके खलनायकों की करतूतों पर पर्दा डालने की कोशिश कर अंधेरगर्दी की इन्तिहा पार कर दी। कानूनी दांव-पेंचों के तहत कागज पर जो भी स्थिति रही हो पर व्यावहारिक रूप से चेन्नई सुपर किंग्स के कर्ताधर्ता नजर आने वाले गुरुनाथ मयप्पन (श्रीनिवासन के दामाद) और भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान महेन्द्र सिंह धोनी चेन्नई सुपर किंग्स के कप्तान ही नहीं बल्कि श्रीनिवासन के स्वामित्व वाली इण्डिया सीमेण्ट कम्पनी के अधिकारी भी हैं। क्या यह घालमेल नहीं था, जिसमें न कोई पैमाना और न ही पारदर्शिता नजर आई? भारतीय क्रिकेट कण्ट्रोल बोर्ड निजी जागीर की तरह चलता रहा, जिसमें न किसी की जिम्मेदारी तय हुई और न ही किसी के प्रति जवाबदेही।
उच्चतम न्यायालय के फैसले के बाद भारतीय क्रिकेट कण्ट्रोल बोर्ड चाहे तो नजीर पेश कर क्रिकेट की साख को बहाल कर सकता है लेकिन यह तब तक नहीं हो सकता जब तक इसका पूरी तरह से कायाकल्प न हो जाये। क्रिकेट में गुनहगारों की संख्या को देखते हुए नहीं लगता कि इसमें कभी पारदर्शिता भी आयेगी। उच्चतम न्यायालय के फैसले के बाद बीसीसीआई को दो मोर्चों से जूझना होगा। क्रिकेट बोर्ड आर्थिक मोर्चे के नुकसान की भरपाई तो करने में सक्षम हो सकता है लेकिन बोर्ड पर अप्रत्यक्ष नियंत्रण के जो प्रयास होंगे उनसे पार पाना आसान नहीं होगा। देखा जाये तो भारतीय क्रिकेट कण्ट्रोल बोर्ड में आज भी ज्यादातर ऐसे चेहरे काबिज हैं जोकि क्रिकेट के बदनाम कारोबार के लिए जिम्मेदार रहे हैं और खुद भी उनकी छवि संदेहास्पद है। ये चेहरे सत्ता के गलियारों से लेकर भारतीय क्रिकेट कण्ट्रोल बोर्ड तक हर उस जगह पाये जा सकते हैं, जहां से दौलत और शोहरत हासिल की जा सकती हो। सर्वोच्च न्यायालय के लिए शायद यह उपयुक्त न हो कि वह ऐसे तमाम बदनाम या संदेहास्पद चेहरों को बोर्ड से बेदखल कर सके लेकिन क्रिकेट की कलंक कथा के विरुद्ध आवाज उठाने वालों और खेल की छवि के प्रति चिंतित लोगों की यह जिम्मेदारी जरूर बनती है कि देश में क्रिकेट प्रबंधन की सफाई के शानदार अवसर को हाथ से न जाने दिया जाये।
उच्चतम न्यायालय के अहम फैसले के बाद चेन्नई सुपर किंग्स और राजस्थान रायल्स टीम के दो साल के निर्वासन का असर कार्पोरेट स्पांसरों, खिलाड़ियों और आईपीएल के पूरे ढांचे पर पड़ेगा। आईपीएल में इतने पैसे लगे हैं कि उसे स्थगित तो नहीं किया जा सकता लेकिन अगले दो साल तक उसका स्वरूप पहले जैसा नहीं रहेगा। चेन्नई सुपर किंग्स और राजस्थान रायल्स के नहीं होने से इस ताबड़तोड़ क्रिकेट की रौनक और भारतीय क्रिकेट कण्ट्रोल बोर्ड की आमदनी प्रभावित होना तय है। देखा जाए तो वर्ष 2001 के बाद भारतीय क्रिकेट कण्ट्रोल बोर्ड पर जो धनवर्षा हुई उसमें सभी के मन बदल गये। इण्डियन प्रीमियर क्रिकेट लीग को ऊंचाइयों तक ले जाने वाले पूर्व आयुक्त ललित मोदी और कई राजनीतिज्ञों की करतूतें उजागर होने के बाद देश की अस्मिता बचाने की बजाय एक-दूसरे पर कीचड़ उछालने  का ही नतीजा है कि आज भारतीय क्रिकेट की जगहंसाई हो रही है।
डालमिया पर भी लग चुके हैं आरोप
भारतीय क्रिकेट कण्ट्रोल बोर्ड के मौजूदा अध्यक्ष जगमोहन डालमिया भी अपनी पहली पारी में क्रिकेट को ब्रीफकेस से चलाने के गुनहगार हैं। डालमिया पर न केवल फण्ड में घपले के आरोप लगे बल्कि उन्हें बीसीसीआई से सस्पेंड भी किया गया। आज भारतीय क्रिकेट कण्ट्रोल बोर्ड के सामने सबसे बड़ी चुनौती क्रिकेट की विश्वसनीयता को बहाल करना है। भारत तेजी से बदल रहा है। अब बोर्ड को बंद ब्रीफकेस से नहीं चलाया जा सकता, इस बात का ख्याल जग्गू दादा को रखना होगा।
गरीब राज कुन्द्रा कैसे बने अमीर?
आईपीएल स्पॉट फिक्सिंग के खुलासे में आजीवन प्रतिबंधित राज कुन्द्रा फिल्म अभिनेत्री शिल्पा शेट्टी के शौहर के साथ ही आईपीएल में राजस्थान रॉयल्स टीम के मालिक भी हैं। राज कुन्द्र एक ब्रिटिश इण्डियन कारोबारी हैं। 18 साल की उम्र में पढ़ाई छोड़ने वाले राज आज कारोबारी दुनिया के सरताज हैं। बहुत ही कम लोग जानते हैं कि अतीत में राज एक मध्यमवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखते थे। उनके पिता बालकृष्ण कभी बस के कंडेक्टर हुआ करते थे। कोई 46 साल पहले राज के पिता बालकृष्ण पंजाब के लुधियाना से लंदन गए थे। पंजाब में घर की आर्थिक स्थित बेहद खस्ता होने के चलते राज के दादा ने बालकृष्ण को लंदन भेजने का निर्णय लिया। लंदन में बालकृष्ण ने पहले कपास फैक्ट्री में काम किया और उसके बाद वे बस कंडेक्टर बने। राज की मां इस दौरान एक चश्मे की दुकान पर काम करती थीं। वे छोटे राज को अपने साथ ले जाती थीं। राज को दुकान के बाहर वे एक कार की पिछली सीट पर सुला देती थीं और समय समय पर काम छोड़कर वे राज की देखभाल भी कर लेती थीं। राज की दो छोटी बहनें भी हैं। कुछ साल बस में कंडेक्टरी करने के बाद बालकृष्ण ने किराने की दुकान खोल ली। दुकान खुलने के साथ ही परिस्थितियां बदल गर्इं। राज जब 18 साल के हुए तो उनके पिता ने उन्हें अपने रेस्त्रां में काम करने के लिए कहा लेकिन राज के सपने कुछ और थे। वे घर से दो हजार पौंड लेकर निकल पड़े। राज ने इसके बाद हीरे के कारोबार में हाथ डाला और देखते ही देखते सफलता उनके कदम चूमने लगी। इसके बाद राज इंफ्रास्ट्रक्चर, माइनिंग और ग्रीन रेन्युबल एनर्जी जैसे प्रोजेक्ट से जुड़ गए। 2009 में राज आईपीएल की फ्रेंचाइजी राजस्थान रॉयल्स की 11.7 फीसदी हिस्सेदारी खरीदकर खेल के मैदान में किस्मत आजमाने आ गये।
राज की दूसरी पत्नी हैं शिल्पा शेट्टी
शिल्पा राज की दूसरी पत्नी हैं। राज 2007 में अपनी पहली पत्नी कविता से अलग हो गए थे। राज ने अपनी पहली पत्नी कविता के लिए सरे के सेंट जार्ज हिल्स में सात बेडरूम का आलीशान मेशन राज महल खरीदा था। 2007 में ही राज की मुलाकात शिल्पा शेट्टी से हुई थी जो उन दिनों बिग ब्रदर टीवी शो में हिस्सा लेने लंदन पहुंची थीं और धीरे-धीरे दोनों करीब आ गए। राज का दोस्त उस दौरान शिल्पा का एजेण्ट था उसने ही राज और शिल्पा की मुलाकात कराई थी। बिग ब्रदर जीतने के बाद राज ने शिल्पा की ब्रिटेन में लोकप्रियता को देख उनके नाम पर परफ्यूम एस-2 लांच किया। देखते ही देखते यह परफ्यूम ब्रिटेन में सारे बड़े ब्राण्ड को पीछे छोड़ते हुए नम्बर एक हो गया। राज और शिल्पा के बीच इस तरह व्यावसायिक सम्बन्ध बन गये। पहली पत्नी से तलाक के बाद राज अकेले थे और राज की मां को शिल्पा बेहद पसंद थीं। इस तरह दोनों के बीच बना प्रोफेशनल व्यावसायिक सम्बन्ध 2009 में शादी में बदल गया।
इन खिलाड़ियों ने लजाई क्रिकेट
सलीम मलिक, अता-उर-रहमान, मोहम्मद आमिर, मोहम्मद आसिफ, सलमान बट्ट, दानिश कनेरिया (सभी पाकिस्तान), मोहम्मद अजहरुद्दीन, अजय शर्मा, मनोज प्रभाकर, अजय जड़ेजा, श्रीसंथ (सभी भारत), हैंसी क्रोन्ये, हर्षल गिब्स, हेनरी विलियम्स (दक्षिण अफ्रीका), मॉरिस ओडुम्बे (केन्या), मर्लोन सैमुअल्स (वेस्टइण्डीज), मोहम्मद असरफुल (बांग्लादेश), लॉ विन्सेंट (न्यूजीलैण्ड), कौशल लोकुराच्ची (श्रीलंका)
ये भी क्रिकेट के कपूत
मार्विन वेस्टफील्ड (इसेक्स), टीपी सुधीन्द्र (डेक्कन चार्जर्स), मोहनीश मिश्रा (डेक्कन चार्जर्स), अमित यादव (किंग्स इलेवन पंजाब), अभिनव बॉली (किंग्स इलेवन पंजाब), शलभ श्रीवास्तव (किंग्स इलेवन पंजाब), शरीफुल हक (ढाका ग्लाडिटर्स), अंकित चव्हाण (राजस्थान रॉयल्स), सिद्धिनाथ त्रिवेदी (राजस्थान रॉयल्स), अमित सिंह (राजस्थान रॉयल्स), नावेद आरिफ (ससेक्स)।

क्या होती है स्पॉट फिक्सिंग
सबसे पहली बात तो यह है कि स्पॉट फिक्सिंग, मैच फिक्सिंग से कुछ अलग होती है। जहां मैच फिक्सिंग के लिए पूरी टीम को राजी करना पड़ता है वहीं स्पॉट फिक्सिंग किसी एक खिलाड़ी के जरिए भी हो सकती है। मैच फिक्सिंग पूरे मैच की हार या जीत के लिए होती है,जबकि स्पॉट फिक्सिंग आमतौर पर एक गेंद या एक ओवर के लिए भी हो सकती है। वैसे सिर्फ गेंदबाज ही नहीं, स्पॉट फिक्सिंग बल्लेबाजों और फील्डरों के साथ भी की जाती है लेकिन बुकीज का सबसे आसान निशाना गेंदबाज होते हैं। आमतौर पर बुकीज ओवर के हिसाब से गेंदबाज के साथ सौदा करते हैं और यह तय किया जाता है कि किस ओवर में कितने रन दिए जाने हैं या किस गेंद पर छक्का या चौका लगेगा या कौन-सी गेंद नो बॉल या वाइड बॉल होगी।
बुकी को कैसे होता है फायदा
बुकी पहले से खिलाड़ियों से फिक्सिंग कर लेता है। उस आधार पर ही सट्टा बाजार में हर गेंद पर सट्टा लगता है। सट्टा यह लगता है कि यह गेंद नो बॉल होगी या वाइड, फिर इस गेंद पर या इस ओवर में इतने रन बनेंगे। बुकी को तो पहले से पता रहता है, इस आधार पर वह सट्टा लगवा कर पैसे कमाता है।
फटाफट क्रिकेट में फिक्सिंग आसान
फटाफट क्रिकेट यानि टी-20 मैचों में स्पॉट फिक्सिंग बहुत आसान है। क्रिकेट के इस फार्मेट में सब कुछ बहुत जल्दी-जल्दी होता है, इसलिए क्रिकेट मुरीदों को कुछ खास पता नहीं चल पाता। वैसे भी आईपीएल अंतरराष्ट्रीय खेल नहीं है, इसलिए इसमें सम्भावना ज्यादा होती है।
आईपीएल में पहली बार स्पॉट फिक्सिंग
आईपीएल और स्पॉट फिक्सिंग का रिश्ता पहली बार 2012 में सामने आया था जब एक टीवी चैनल के स्टिंग आॅपरेशन में पांच खिलाड़ियों टी.पी. सुधीन्द्र, अमित यादव, शलभ श्रीवास्तव, मोहनीश मिश्रा और अभिनव बाली ने स्पॉट फिक्सिंग के बदले पैसे लेने की बात कबूली थी।
वनडे में पहली स्पॉट फिक्सिंग
स्पॉट फिक्सिंग का सबसे बड़ा मामला 2010 में सामने आया था, जब इंग्लैण्ड दौरे पर गई पाकिस्तानी टीम के तीन खिलाड़ियों कप्तान सलमान बट्ट, तेज गेंदबाज मोहम्मद आमिर और मोहम्मद आसिफ पर स्पॉट फिक्सिंग में शामिल होने के आरोप लगे थे। एक अखबार द्वारा किए गए स्टिंग आॅपरेशन में इन तीनों को स्पॉट फिक्सिंग में लिप्त पाया गया और फिर इन्हें जेल की हवा भी खानी पड़ी थी।
आईपीएल में कब क्या हुआ?
क्रिकेट भद्रजनों का खेल है। इसे उसी भावना से खेला जाना चाहिए लेकिन ऐसा हुआ नहीं। यही वजह है कि गुरुनाथ मयप्पन और राज कुन्द्रा आजीवन प्रतिबंधित किये गये।
16 मई 2013: राजस्थान रॉयल्स के तीन खिलाड़ी एस. श्रीसंत, अंकित चव्हाण और अजीत चंदेला स्पॉट फिक्सिंग के आरोप में गिरफ्तार किए गए।
21 मई 2013 : बॉलीवुड कलाकार विंदू दारा सिंह सट्टेबाजों के साथ रिश्ते के आरोप में मुंबई में गिरफ्तार किए गए।
24 मई 2013: मयप्पन मुम्बई पुलिस के सामने हाजिर हुए। पुलिस ने पूछताछ के लिए उन्हें हिरासत में लिया।
2 जून 2013: बीसीसीआई की बैठक में फ्रेंचाइजी की जांच के लिए दो रिटायर्ड जजों की कमेटी बनाई गई।
30 जुलाई 2013 : बिहार क्रिकेट संघ के अध्यक्ष आदित्य वर्मा ने बीसीसीआई के खिलाफ बॉम्बे हाईकोर्ट में जनहित याचिका दाखिल की।
05 अगस्त 2013 : बीसीसीआई ने दो जजों की कमेटी की जांच रिपोर्ट को खारिज करने के बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की।
13 सितंबर 2013 : बीसीसीआई ने श्रीसंत और चव्हाण पर आजीवन प्रतिबंध लगाया।
07 अक्टूबर 2013 : सुप्रीम कोर्ट ने फिक्सिंग मामले की जांच के लिए जस्टिस मुद्गल कमेटी बनाई।
10 फरवरी 2014 : मुद्गल कमेटी ने रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को सौंपी।
01 सितम्बर 2014 : सुप्रीम कोर्ट ने मुद्गल समिति को अपनी रिपोर्ट सौंपने के लिए दो महीने का और समय दिया।
03 नवम्बर 2014: मुद्गल कमेटी ने रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को सौंपी।
24 नवम्बर 2014: सुप्रीम कोर्ट में मामले की सुनवाई हुई। बीसीसीआई को लगी फटकार।
14 जुलाई 2015: चेन्नई सुपर किंग्स और राजस्थान रॉयल्स पर दो साल का प्रतिबंध, गुरुनाथ मयप्पन और राज कुन्द्रा आजीवन प्रतिबंधित।

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