Wednesday 15 July 2015

अर्श से फर्श पर क्रिकेट

भारतीय क्रिकेट में अभी ललित मोदी प्रकरण का पटाक्षेप भी नहीं हुआ था कि 14 जुलाई मंगलवार को उच्चतम न्यायालय के अहम फैसले से साफ हो गया कि क्रिकेट में भ्रष्टाचार की जड़ें कितना गहरे पैठ बना चुकी हैं। लोढ़ा समिति के आज के फैसले से चेन्नई सुपर किंग्स-राजस्थान रायल्स टीम व इनके मालिकान गुरुनाथ मयप्पन और राज कुन्द्रा ही प्रभावित हुए हैं लेकिन उन खिलाड़ियों के नाम उजागर होना अभी बाकी हैं जिनके कारण यह भद्र खेल बदनाम हुआ। आईपीएल चैम्पियन रह चुकी दो टीमों पर दो साल का प्रतिबंध मामूली बात नहीं है। उच्चतम न्यायालय के फैसले से एन. श्रीनिवासन, गुरुनाथ मयप्पन, राज कुन्द्रा जैसे लोग तो प्रभावित हुए ही इसका असर कार्पोरेट स्पांसरों, खिलाड़ियों और आईपीएल के पूरे ढाँचे पर भी पड़ेगा। फिक्सिंग की इस फांस में इन टीमों के खिलाड़ी भी देर-सबेर दण्ड के भागी जरूर होंगे। इसमें अभी कई कानूनी पेंच फंसेंगे, जिसमें सिर्फ खिलाड़ी ही नहीं आईपीएल का भविष्य भी दांव पर लग सकता है। देखा जाये तो आईपीएल में इतने पैसे लगे हैं कि उसे स्थगित तो नहीं किया जा सकता लेकिन अगले दो साल तक उसका स्वरूप पहले जैसा नहीं रहेगा। चेन्नई सुपर किंग्स और राजस्थान रायल्स के नहीं होने से इस ताबड़तोड़ क्रिकेट की न केवल रौनक घटेगी बल्कि भारतीय क्रिकेट कण्ट्रोल बोर्ड की आमदनी भी प्रभावित होगी। टीवी ब्राडकास्टर जिसने करोड़ों रुपए लगाकर आईपीएल के राइट्स खरीदे हैं, वह हर्जाने का दावा कर सकता है या करार तोड़ने की नौबत भी आ सकती है। आज का फैसला सिर्फ भारतीय क्रिकेट कण्ट्रोल बोर्ड के लिए ही नहीं क्रिकेट मुरीदों के लिए भी न बिसरने वाला लम्हा है। अदालत की जांच चूंकि अभी भ्रष्टाचार की किताब के अंतिम पन्ने तक नहीं पहुंची है लिहाजा इसमें अभी काली करतूतों की और भी परतें खुलेंगी। देखा जाए तो भद्रजनों के खेल में जब से बेशुमार दौलत का समावेश हुआ तभी से इसमें कदाचरण ने अपनी पैठ बना ली है। पिछले कुछ समय से भारतीय क्रिकेट की शर्मसार करने वाली करतूतें इसी बात का संकेत हैं। 1983 में कपिल देव के नेतृत्व में क्रिकेट का मदमाता विश्व खिताब जीतने वाली टीम को बतौर प्रोत्साहन देने के लिए जहां भारतीय क्रिकेट कण्ट्रोल बोर्ड के पास पैसे नहीं थे वहीं आज क्रिकेट सिर्फ और सिर्फ पैसे का खेल हो गया है। वर्ष 2001 के बाद भारतीय क्रिकेट कण्ट्रोल बोर्ड के एक कमाऊ कारखाना बनने के बाद जो धनवर्षा हुई उसमें सब के ईमान डोल गये। इण्डियन प्रीमियर क्रिकेट लीग को ऊंचाइयों तक ले जाने वाले पूर्व आयुक्त ललित मोदी और कई राजनीतिज्ञों की करतूतें अब किसी से छिपी नहीं हैं। क्रिकेट की यह सुनामी आने वाले दिनों में कई खिलाड़ियों का भविष्य चौपट कर सकती है।  क्रिकेट के नवीनतम संस्करण आईपीएल की बदौलत रातोंरात सफल होने और शोहरत के साथ-साथ अकूत दौलत कमाने वालों का जो हश्र इस वक्त दिख रहा है, कम से कम खेल के लिहाज से यह भारत के लिए किसी सदमे से कम नहीं है। आईपीएल को खड़ा करने वाले ललित मोदी का हाल जनता देख ही रही है। आईपीएल को सफलता क्रिकेट की लोकप्रियता के कारण मिली थी, लेकिन ललित मोदी ने इसे अपनी काबिलियत माना और इतने गुमान में आ गए कि न उन्होंने देश का लिहाज रखा और न संविधान का। उनके अहंकार को क्रिकेट के फायदे में साझेदार राजनेताओं और व्यापारियों ने भी खूब बढ़ाया। बहरहाल, ललित मोदी के बाद अब दूसरे लोगों का गुमान टूटने की बारी आ गई है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित न्यायमूर्ति आर.एम. लोढ़ा समिति ने सजा सुनाकर उन लोगों के भी होश उड़ा दिये हैं जिन्होंने गाहे-बगाहे ही सही पाप की गंगोत्री में डुबकी लगाई है। क्रिकेट के इस स्याह सच को उजागर करने वालेपूर्व प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति लोढ़ा, न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) अशोक भान और न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) आर. रवीन्द्रन बधाई के पात्र हैं। ज्ञात हो कि 16 मई 2013 को दिल्ली पुलिस ने राजस्थान रॉयल्स के तीन खिलाड़ियों श्रीसंत, अंकित चौहान और अजीत चंदेला को स्पॉट फिक्सिंग के आरोप में गिरफ्तार किया था। लम्बे समय तक इन खिलाडिय़ों को जेल की हवा खानी पड़ी थी। इस मामले में जैसे-जैसे छानबीन आगे बढ़ी, इसमें कई और नाम सामने आते रहे। बीसीसीआई ने अपनी धनशक्ति के बूते कई बार स्वयं को कानून से बड़ा बताने की कोशिश की, एन. श्रीनिवासन का अध्यक्ष पद पर बने रहने का हठधर्मी रवैया किसी से छिपा नहीं है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से क्रिकेट को मुनाफे की मशीन बनाने वालों को यह संदेश मिल ही गया होगा कि भारत में कानून सबके लिए एक समान है। आईपीएल के कारोबार में जिस तीव्र गति से धन कमाया गया, उसी तरह नुकसान हो सकता है, यह आशंका नजर आ रही है।

क्या नजीर बनेगा फैसला?
भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड सकते में है। न्यायमूर्ति लोढ़ा समिति के फैसले ने क्रिकेट प्रशासक सन्न हैं। फिलहाल इस पर कोई कुछ बोलने को तैयार नहीं। सधी हुई प्रतिक्रिया। लेकिन उनके पास भी जवाब नहीं है कि आईपीएल का क्या होगा? आईपीएल भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड का ब्रांड बन गया है। इस ब्रांड के आगे उसके तमाम दूसरे घरेलू टूर्नामेंट बौने हैं। रणजी ट्राफी से लेकर सैयद मुश्ताक अली टी-20 ट्राफी तक।
आइपीएल को लेकर जितना शोर, जितनी तिकड़म बीसीसीआई करता रहा है, उसका थोड़ा-सा भी हिस्सा अपने दूसरे घरेलू टूर्नामेंट पर वह करता तो क्रिकेट का भला होता। लेकिन आईपीएल की चकाचौंध ने सबको पीछे छोड़ दिया। इस चमक ने पहले क्रिकेट को अपनी गिरफ्त में लिया और फिर खिलाड़ियों को। न्यायमूर्ति लोढ़ा समिति के फैसले ने इसे साबित किया कि आईपीएल में सब कुछ ठीक नहीं था और मैदान के अंदर और बाहर क्रिकेट के अलावा भी बहुत कुछ खेला जा रहा था। लेकिन इस खेल में आईपीएल के मालिक तक शामिल होंगे, ऐसा भला किसने सोचा होगा। पर हुआ कुछ ऐसा ही। क्रिकेट प्रशासकों की छत्रछाया में आईपीएल में अलग खेल होता रहा और भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के तत्कालीन अध्यक्ष एन. श्रीनिवासन इससे आंखें मूंदे रहे। बाद में जब चेन्नई सुपरकिंग्स के मालिक और उनके दामाद मय्यपन की सट्टेबाजी में गिरफ्तारी हुई तो उन्होंने हर मुमकिन कोशिश की कि मयप्पन को बचाया जाए। उन्होंने क्रिकेट को बचाने की बजाय अपने दामाद को बचाना ज्यादा मुनासिब समझा। बाद में जब आंच उन तक पहुंची तो क्रिकेट जगत भी उनके बचाव में लगा रहा, जबकि जरूरत क्रिकेट को बचाने की थी।
न्याययमूर्ति लोढ़ा ने साफ कर दिया है कि न तो व्यक्ति क्रिकेट से बड़ा है और न ही खिलाड़ियों और टीमों के व्यावसायिक हित। समिति ने मयप्पन के अलावा राजस्थान रायल्स के मालिक राज कुन्द्रा के खिलाफ भी तीखी टिप्पणी की। राजस्थान रायल्स और चेन्नई सुपरकिंग्स को समिति ने दो साल के लिए निलम्बित कर दूसरी टीमों को भी संकेत दिए हैं कि क्रिकेट खेलना है तो उसके नियमों के तहत ही खेला जाना चाहिए। लेकिन आज सबसे बड़ा सवाल यह है कि आईपीएल का क्या होगा? आठ की जगह अब छह टीमें बची हैं और बीसीसीआई इन छह टीमों को लेकर ही अगला आईपीएल का आयोजन करेगा या फिर दो नई टीमें आईपीएल का हिस्सा होंगी?
एक आशंका इस बात की भी है कि चेन्नई सुपरकिंग्स और राजस्थान रायल्स की टीमें पिछले दरवाजे से आईपीएल में बने रहने की कोशिश करेंगी यानी उनके अधिकार किसी और को बेच दिए जाएंगे और टीम नए मालिकों की देखरेख में मैदान पर उतरेंगी। अगर ऐसा होता है या बीसीसीआई ऐसा होने देती है तो फिर क्रिकेट पर लगा दाग और भी गहरा जायेगा। हालांकि इसकी उम्मीद कम है। इन दो टीमों से जुड़े खिलाड़ियों के भविष्य को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं। लेकिन यह सवाल मौजूं इसलिए नहीं लगता कि अगर आईपीएल बचेगा तो फिर महेन्द्र सिंह धोनी, सुरेश रैना, आर अश्विन, रवीन्द्र जडेजा, अजिंक्य रहाणे या संजू सैमसन सरीखे खिलाड़ी किसी भी टीम का हिस्सा बन सकते हैं। सवाल आईपीएल का है और इससे भी ज्यादा विश्वसनीयता का। लोढ़ा समिति के फैसले ने उसकी विश्वसनीयता को कठघरे में ला खड़ा किया है। इसका जवाब बीसीसीआई को ही तलाशना होगा।
टीमें तो उसे मिल जाएंगी। आईपीएल में जितना पैसा, ग्लैमर, तड़क-भड़क जुड़ गया है वह बहुतों को लुभा रहा है। दो टीमें मिलने में उसे बहुत दिक्कत नहीं होगी। कोच्चि और पुणे की टीमें फिर से आईपीएल से जुड़ने को लालायित हैं। कुछ दूसरे शहरों की टीमें भी रातोंरात खड़ी हो सकती हैं। कई कारपोरेट घराने बेताबी दिखा रहे हैं। उन्हें तो बस मौके की तलाश है। बीसीसीआई उन्हें मौका दे सकता है। खिलाड़ी इन टीमों का हिस्सा हो सकते हैं। लेकिन इन सबसे परे जो महत्त्वपूर्ण बात है, वह यह कि क्रिकेट की साख कैसे बहाल हो। आईपीएल कलंकित हुआ है और बीसीसीआई की विश्वसनीयता घटी है। तमाम तरह की आशंकाओं के बीच आईपीएल भविष्य में भी जारी रह सकता है लेकिन क्रिकेट पर जो दाग लगा है, बीसीसीआई उसे आसानी से मिटा पाएगा, इसमें संदेह है। जो हुआ इससे सीख लेकर बीसीसीआई बहुत कुछ ऐसा कर सकता है जिससे भविष्य में क्रिकेट पर दाग नहीं लगे। अगर ऐसा होता है तो यह फैसला भारतीय क्रिकेट के लिए नई नजीर साबित हो सकता है। फिलहाल तो निगाहें बोर्ड पर टिकी हैं। देखें, वह क्या कदम उठाता है।

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