Sunday 19 July 2015

सरजू का सपना, ओलम्पिक पदक हो अपना

शूटर सरजू बिना प्रशिक्षक कर रही अभ्यास
मथुरा। कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती, लहरों से डरकर नौका पार नहीं होती। हरिवंश राय बच्चन की यह पंक्तियां मथुरा निवासी सरजू राजपूत पर एकदम सटीक बैठती हैं। गांव की पगडंडियों से राष्ट्रीय खेलों तक का सफर तय करने वाली सरजू के संघर्ष की दास्तां उन लोगों के लिए सबक है जो मंजिल पाने के लिए साधनों की मांग करते हैं। सरजू राजपूत ओलम्पिक में भारत को पदक दिलाने के लिए बिना प्रशिक्षक अभ्यास कर मिसाल कायम कर रही है।
गांव की इस बेटी ने पढ़ाई के लिए गांव से शहर और फिर नौकरी से राष्ट्रीय खेलों में चयन तक आई हर बाधा को अपने हौसले से पार कर दिखाया है। उसके संघर्ष का यह सफर बदस्तूर जारी है। आज भी सरजू बगैर प्रशिक्षक रोजाना निशानेबाजी का अभ्यास कर रही है ताकि भारतीय टीम में शामिल हो देश के लिए पदक जीत सके। मथुरा जिले के गांव सेही निवासी स्वर्गीय हरी सिंह की पुत्री सरजू राजपूत ने बछवन बिहारी उच्चतर माध्यमिक विद्यालय से वर्ष 2003 में हाईस्कूल पास किया। आगे की पढ़ाई के लिए गांव में व्यवस्था न होने पर सरजू ने शहर की ओर कदम बढ़ाया। यहीं से उनके जीवन में संघर्ष का आगाज हुआ। इधर मां राजवती देवी और भाई सीताराम ने समाज का वास्ता देकर शहर जाने से रोका। तो उधर पिता की बीमारी ने पढ़ाई की राह में बाधा डालने की कोशिश की। मगर सरजू ने हार नहीं मानी।
सरजू राजपूत ने शहर के किशोरी रमण गर्ल्स इण्टर कॉलेज में प्रवेश लिया और पढ़ाई करने लगी। ज्यादा रुपये खर्च न हो इसके लिए उसने कमरे के बजाय एक छोटी सी कोठरी किराए पर ली। इस दौरान नाना-नानी ने उसका हौसला बढ़ाया। साल 2005 में सरजू ने इण्टर की परीक्षा पास कर आरसीए गर्ल्स डिग्री कॉलेज में दाखिला लिया। इस दौरान पढ़ाई को जारी रखने के लिए उसने भरतपुर रोड स्थित एक आईटीआई कॉलेज में चार हजार रुपये की नौकरी की। कई किलोमीटर का पैदल सफर तय कर वह कॉलेज पहुंचती। सरजू के मजबूत इरादों को देख एक शिक्षक ने अपने बेटे की साइकिल उसे दे दी तो फिर कॉलेज तक का सफर वह साइकिल से ही तय करने लगी। कॉलेज में ही उसने एनसीसी का ए और बी प्रमाण पत्र प्राप्त किया। सरजू ने गणतंत्र दिवस की परेड में बेहतरीन घुड़सवारी का प्रदर्शन कर सबका दिल जीत लिया।
एनसीसी के दौरान की गई निशानेबाजी ने उनको इसी क्षेत्र में आगे बढ़ने की प्रेरणा दी। मगर संसाधनों के अभाव में वह ज्यादा कुछ नहीं कर पाई। 13 मार्च, 2011 को वह आबकारी विभाग में सिपाही के पद पर भर्ती हो  अपने सपनों को साकार रूप देने दिन-रात एक कर रही है। बिना किसी की मदद के उसने तीन लाख रुपये जुटाकर विदेश से शूटिंग किट मंगाई और बिना प्रशिक्षक के ही एकलव्य की भांति लक्ष्य पर निशाना साध रही है। 23 दिसम्बर 2014 को नेशनल गेम्स की टीम में चयन होने के लिए उसका निशाना भी सटीक लगा। उसे 15 जनवरी को केरल पहुंचना था तभी उसका तबादला मैनपुरी से मथुरा हो गया और वह प्रतियोगिता में शिरकत नहीं कर सकी। सरजू अभी भी हार नहीं मानी है। भारतीय टीम में प्रवेश के लिए फिलवक्त वह अकेले ही कदम बढ़ा रही है। प्रशिक्षक न मिलने के बावजूद राइफल क्लब में वह रोजाना अकेले घंटों अभ्यास करती है। सरजू कहती है कि ईश्वर ने साथ दिया तो मेरी मेहनत रंग लाएगी और मैं निशानेबाजी में देश के लिए पदक जीतकर जरूर दिखाऊंगी।
राइफल क्लब में निशानेबाजी का अभ्यास करती सरजू राजपूत। 

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