Monday 28 July 2014

खेलों की लीला न्यारी, मजे कर रहे खूब अनाड़ी

कृपाशंकर यहां से चले जाओ वरना पकड़ लेगी पुलिस: राजीव मेहता
आगरा। भारतीय महिला कुश्ती के प्रशिक्षक कृपाशंकर बिशनोई की मदद करने की बजाय भारतीय ओलम्पिक संघ के महासचिव राजीव मेहता उन्हें ऐसा डरा रहे हैं मानो वह कोच नहीं आतंकवादी हो। सोमवार को मेहता ने कुश्ती कोच कृपाशंकर से कहा आपका कार्ड नहीं बनेगा, यहां से नौ दो ग्यारह हो जाओ वरना पुलिस पकड़ लेगी।
स्कॉटलैण्ड के ग्लासगो में चल रहे 20वें राष्ट्रमण्डल खेलों में महिला कुश्ती प्रशिक्षक कृपाशंकर बिशनोई की मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। उन्हें हर रोज भारतीय खेलनहार किसी न किसी तरह की मानसिक पीड़ा पहुंचाने से बाज नहीं आ रहे। ये खेलनहार ग्लास्गो में मजे उड़ा रहे हैं जबकि कुश्ती प्रशिक्षक दर-दर की ठोकरें खा रहा है। सोमवार को आईओए के महासचिव राजीव मेहता ने कृपाशंकर से कहा कि आप यहां से अतिशीघ्र रवाना हो जाओ वरना पुलिस पकड़ लेगी। आपके पास न वीजा है ना कार्ड, जो था वह भी कैंसिल करा दिया गया है। मर्माहत कुश्ती प्रशिक्षक कृपाशंकर बिशनोई ने ग्लास्गो से पुष्प सवेरा को दूरभाष पर बताया कि उनका संघर्ष जारी रहेगा। वह टीम के साथ आए हैं और एक अगस्त को टीम को साथ लेकर ही जाएंगे।
कुश्ती गुरु कृपाशंकर ने बताया कि 29 अगस्त से होने जा रहे महिला कुश्ती मुकाबले देखने से उन्हें कोई नहीं रोक सकता। वह टिकट की जुगाड़ में हैं, पर टिकट नहीं मिल पा रही। अब उनके पास सिर्फ एक ही विकल्प है कि भारतीय बेटियां कुश्ती के फाइनल तक पहुंचें। यदि ऐसा होता है तो कृपाशंकर मुकाबले देख पाने की अपनी हसरत पूरी कर सकते हैं। नियम के मुताबिक किसी खिलाड़ी के फाइनल में पहुंचने पर उसके दो सम्बन्धी मुकाबला देखने के पात्र होते हैं, पर इसके लिए उन्हें टिकट के लिए 25 पौण्ड यानि 2500 रुपये अदा करने होंगे। कृपाशंकर का कहना है कि वे भारतीय बेटियों का मुकाबला हर हाल में देखना चाहते हैं, इसके लिए चाहे जो कीमत चुकानी पड़े।
पुष्प सवेरा के माध्यम से मिली लोकसभा अध्यक्ष को जानकारी
सोमवार को लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने पुष्प सवेरा समाचार पत्र को न केवल पढ़ा बल्कि महिला कुश्ती प्रशिक्षक कृपाशंकर बिशनोई के मामले को संज्ञान में लेते हुए खेल मंत्रालय से अपनी नाराजगी भी जताई। पुष्प सवेरा ने अपने 28 जुलाई के अंक में ग्लास्गो में दर-दर की ठोकरें खा रहा कुश्ती प्रशिक्षक समाचार प्रकाशित किया था।

साई के षड्यंत्र से भारत लजाया

एक प्रशिक्षक की करुणगाथा
भारतीय महिला कुश्ती प्रशिक्षक कृपाशंकर बिशनोई ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से लगाई न्याय की गुहार
ग्लास्गो में रोज जी और मर रहा हूं। हर नजर मेरी खिल्ली उड़ा रही है। स्कॉटलैण्ड पुलिस जब चाहे पकड़ लेती है। मेरा दिन-रात का अमन-चैन भारतीय खेल प्राधिकरण और खेल से जुड़े कुछ अन्य विघ्नसंतोषियों ने छीन लिया है। मेरी लाख मान-मनुहार के बाद भी एक्रीडेशन लेटर नहीं मिला। सारे प्रयास अकारथ चले गये, मेरी समझ में नहीं आ रहा कि मैं क्या करूं? मेरी लाख उपेक्षा की जाए पर मैं भारतीय बेटियों के साथ अन्याय नहीं होने दूंगा। यह दर्द उस शख्स का है जिसने कुश्ती के लिए अपना सब कुछ दांव पर लगा रखा है। हम बात कर रहे हैं इंदौर के कृपाशंकर बिशनोई का। साई की हिटलरशाही के खिलाफ भारतीय महिला कुश्ती प्रशिक्षक कृपाशंकर बिशनोई ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से न्याय की गुहार लगाई है।
भारतीय कुश्ती की पहचान, अर्जुन अवॉर्डी और वर्ष 2012 से मुल्क की पहलवान बेटियों को फौलादी बनाने वाले कृपाशंकर बिशनोई के साथ जो स्कॉटलैण्ड (ग्लास्गो) में हुआ वह न केवल शर्मनाक और निन्दनीय है बल्कि खेलों से होते खिलवाड़ का ज्वलंत उदाहरण भी। ग्लास्गो में खेले जा रहे 20वें राष्ट्रमण्डल खेलों में मैं निरंतर खिलाड़ियों और प्रशिक्षकों के सम्पर्क में रहा। उनकी पल-पल की खबर और प्रदर्शन के बीच भारतीय महिला कुश्ती प्रशिक्षक कृपाशंकर बिशनोई को जिस जलालत का सामना करना पड़ा वह भारतीय खेलों के इतिहास में हमेशा काले अध्याय के रूप में दर्ज किया जाएगा।
जिस देश में खेल गुरुओं के साथ ऐसा सलूक हो रहा हो, वहां खेल और खिलाड़ियों का भला कैसे सम्भव है। कृपाशंकर बिशनोई इससे पूर्व भी साई के षड्यंत्र का शिकार हो चुके हैं। साई की बेवजह की दखलंदाजी के चलते पूर्व में कृपाशंकर को अमेरिका और इटली जाने से भी रोका गया था। मध्य प्रदेश ही नहीं समूचा देश इस बात को जानता है कि पहलवान और कोच कृपाशंकर बिशनोई एक भद्र शख्सियत हैं, वे किसी को बंदूक तो क्या उंगली भी नहीं दिखा सकते। यह कितना शर्मनाक है कि भारत में खेलों का ठेकेदार साई कृपाशंकर बिशनोई को आपराधिक शख्स करार दे रहा है। जो भी हो साई की इस कारगुजारी से देश के द्रोणाचार्य अवॉर्डी बल्देव सिंह, राजिन्दर सिंह आदि दर्जनों प्रशिक्षक खासे गुस्से में हैं इनका कहना है कि भारत बेशक आजाद हो गया हो पर खेलों में आज भी गोरों और नाकाबिलों का बोलबाला है। इनका कहना है कि खेलों में राजनीति नहीं होनी चाहिए। भारतीय प्रशिक्षक आज भी श्रेष्ठ हैं लेकिन खेलों में गड़बड़झाला करने की खातिर ही खेलनहार विदेशी प्रशिक्षकों को भारत बुलाते हैं।
अपने बेजार, विदेशियों पर अरबों निसार यह बात भारतीय खेलों पर शत-प्रतिशत सच साबित होती है। एक तरफ भारत सरकार खेलों के विकास का दम्भ भर रही है तो दूसरी तरफ भारतीय खेल प्राधिकरण के कुछ भामाशाह दुनिया के सामने अपनी ओछी हरकतों से देश को लजा रहे हैं। अर्जुन अवॉर्डी और भारतीय महिला कुश्ती प्रशिक्षक कृपाशंकर बिशनोई को ग्लास्गो में चल रहे 20वें राष्ट्रमण्डल खेलों के खेलगांव में प्रवेश न मिलना बड़े हैरत की बात है। भारतीय खेल प्राधिकरण की नादरशाही के चलते भारतीय महिला कुश्ती प्रशिक्षक कृपाशंकर बिशनोई को ग्लास्गो राष्ट्रमण्डल खेलों में मुश्किल हालातों का सामना करना पड़ा। वह जहां-जहां भी गए निराशा ही हाथ लगी। कृपा को जहां खेलगांव में प्रवेश नहीं मिला वहीं पुलिस भी बेवजह परेशान करती रही। कृपाशंकर को खेलगांव में प्रवेश से क्यों रोका गया इसकी कोई ठोस वजह नहीं है बावजूद इसके वे महिला पहलवानों के पास नहीं जा सके। यह सब तब हुआ जब खिलाड़ियों को प्रोत्साहन की दरकार थी। कृपा का दोष सिर्फ इतना है कि उन्होंने खिलाड़ियों के हक यानि डाइट की बात साई से की थी। यह मामला 2012 का है और साई अब खुन्नस निकाल रहा है। सवाल यह उठता है कि यदि महिला कुश्ती प्रशिक्षक से कोई गिला-शिकवा थी तो उसे ग्लास्गो क्यों भेजा गया? दरअसल कृपाशंकर को भारतीय ओलम्पिक संघ और भारतीय कुश्ती महासंघ ने ही ग्लास्गो भेजा था, पर साई ने बेवजह दखल देकर विवाद को जन्म दिया। कोच की नियुक्ति कुश्ती संघ का मामला था, इस मामले में भारतीय खेल प्राधिकरण को दखल देने का कोई अधिकार नहीं था, फिर भी उसने कुश्ती प्रशिक्षक पर आपराधिक होने के आरोप लगाए।
कृपाशंकर यदि वाकई अपराधी है तो उसे खेल मंत्रालय अर्जुन अवॉर्ड चयन समिति में क्यों रखता है? साई की लीला सबको पता है। देश के तकरीबन हर सेण्टर में खिलाड़ियों को वे सुविधाएं मयस्सर नहीं हैं जो उन्हें मिलनी चाहिए। साई के संचालक जिजी थामसन व्यवस्थाएं सुधारने की बजाय प्रशिक्षकों और खिलाड़ियों के साथ हो रहे अन्याय को और बढ़ावा दे रहे हैं। जिजी थामसन स्वयं भी दूध के धुले नहीं हैं, उन पर पामोलिव आॅइल मामले में प्रकरण चल रहा है तो उनके कार्यकाल में खिलाड़ियों में शक्तिवर्धक दवाएं लेने की गलत लत पड़ी। कृपाशंकर को खेलगांव में प्रवेश न मिलना सिर्फ उसी का नहीं बल्कि मुल्क की उन बेटियों का भी नुकसान है जो कुश्ती में अपना भविष्य संवारने का सपना देखती हैं। जो भी हो साई के षड्यंत्र का शिकार कुश्ती प्रशिक्षक कृपाशंकर बिशनोई ने देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पत्र लिखकर न्याय की गुहार लगाई है।
कुश्ती प्रशिक्षक कृपाशंकर पर 2013 में साई की रीजनल डायरेक्टर राधिका सामंत की शह पर एक कर्मचारी ने बंदूक दिखाकर धमकाने का आरोप लगाया था, जबकि कृपा के पास कोई लाइसेंसी हथियार ही नहीं है। खैर, पुलिस जांच के बाद कृपाशंकर निर्दोष साबित हुए और खिलाड़ियों के हक की बात पुन: उठाते हुए मामला अदालत तक ले गये। इस बीच साई ने उन्हें तरह-तरह के प्रलोभन भी दिए लेकिन इस पहलवान ने साफ कह दिया कि बेटियों के हक पर वह कतई डाका नहीं डालने देगा। कुश्ती प्रशिक्षक कृपाशंकर बिशनोई के साथ जो शर्मनाक वाक्या घटा उसके बाद तो घर का जोगी जोगना आन गांव का सिद्ध वाली कहावत ही सटीक बैठती है। आज भारत में कोच पैदा करने के कई स्पोर्ट्स संस्थान कार्य कर रहे हैं बावजूद देशी खेलनहार विदेशी प्रशिक्षकों का मोह नहीं त्याग पाये हैं। साई की कृपा से बीते तीन साल में 88 विदेशी कोचों पर भारत सरकार ने 2569.63 करोड़ रुपये खर्च किए हैं। एक आर्थिक रूप से कमजोर देश में पैसे की इस फिजूलखर्ची के लिए साई ही जिम्मेदार है।
आज हमारे प्रशिक्षक अल्प वेतन और भूखे पेट गुजारा करते हुए खिलाड़ी निखार रहे हैं वहीं विदेशी प्रशिक्षक अरबों रुपये पाकर भारतीय खिलाड़ियों को बिगाड़ रहे हैं। भारत में डोपिंग का डंक विदेशी प्रशिक्षकों की ही कारगुजारी है। बीते तीन साल में भारत सरकार ने विभिन्न खेलों में सुधार के नाम पर विदेशी प्रशिक्षकों पर अरबों रुपये पानी की तरह बहाए हैं। यही पैसा यदि भारतीय प्रशिक्षकों पर खर्च होता तो शायद खेलों की स्थिति कुछ और ही होती। देश में खेलों से होते खिलवाड़ पर तरस तो आता ही है, उन खेलनहारों पर रंज भी जो गरीबों की कमाई विदेशी जमाइयों पर खर्च कर रहे हैं। भारत ने 2011-12 में 31 विदेशी प्रशिक्षकों पर 790.02 करोड़ रुपये, 2012-13 में 34 प्रशिक्षकों पर 717.73 करोड़ और 2013-14 में 23 प्रशिक्षकों पर 1061.88 करोड़ रुपये खर्च किए हैं। 

Sunday 27 July 2014

ग्लास्गो में दर-दर की ठोकरें खा रहा कुश्ती प्रशिक्षक

भारतीय महिलाकुश्ती प्रशिक्षक कृपाशंकर बिशनोई के ग्लास्गो खेलगांव में प्रवेश पर पाबंदी
खिलाड़ियों का हक खा रहा साई, जिजी थामसन की करतूतों से लजा रहा देश
कोेच के अभाव में महिला पहलवान परेशान, अब भारतीय कुश्ती महासंघ  के अध्यक्ष ब्रजभूषण शरण सिंह का ही भरोसा
श्रीप्रकाश शुक्ला
आगरा। अपने बेजार, विदेशियों पर अरबों निसार यह बात भारतीय खेलों पर शत-प्रतिशत सच साबित होती है। एक तरफ भारत सरकार खेलों के विकास का दम्भ भर रही है तो दूसरी तरफ अर्जुन अवॉर्डी और भारतीय महिला कुश्ती प्रशिक्षक कृपाशंकर बिशनोई भारतीय खेल प्राधिकरण के षड्यंत्र का शिकार हो गया है। स्कॉटलैण्ड के ग्लास्गो में चल रहे 20वें राष्ट्रमण्डल खेलों में कुश्ती प्रशिक्षक को खेलगांव में प्रवेश न मिलने से महिला पहलवान बेहद परेशान हैं।  कुश्ती के मुकाबले 29 जुलाई से होने हैं लेकिन कृपा को एक्रीडेशन लेटर अभी तक नहीं मिला है।    
भारतीय खेल प्राधिकरण की नादरशाही के चलते भारतीय महिला कुश्ती प्रशिक्षक कृपाशंकर बिशनोई ग्लास्गो राष्ट्रमण्डल खेलों में मुश्किल हालातों का सामना कर रहे हैं। उन्हें जहां खेलगांव में प्रवेश नहीं मिल रहा वहीं पुलिस भी बेवजह परेशान कर रही है। कृपाशंकर को खेलगांव में प्रवेश से क्यों रोका गया इसकी कोई ठोस वजह नहीं है बावजूद इसके वे महिला पहलवानों के पास नहीं जा सकते। यह सब तब हो रहा है जब खिलाड़ियों को प्रोत्साहन की दरकार है। कृपा का दोष सिर्फ इतना है कि उन्होंने खिलाड़ियों के हक यानि डाइट की बात साई से की थी। यह मामला 2012 का है और साई अब खुन्नस निकाल रहा है। अब सवाल यह उठता है कि यदि महिला कुश्ती प्रशिक्षक से कोई गिला-शिकवा थी तो उसे ग्लास्गो क्यों भेजा गया? दरअसल कृपाशंकर को भारतीय ओलम्पिक संघ और भारतीय कुश्ती महासंघ ने ही ग्लास्गो भेजा है, पर साई बेवजह दखल दे रहा है। इस मामले में भारतीय खेल प्राधिकरण को दखल देने का कोई अधिकार नहीं है, फिर भी वह कुश्ती प्रशिक्षक पर आपराधिक होने का आरोप लगाकर परेशान कर व करवा रहा है। ग्लास्गो से पहले कृपाशंकर के साथ अमेरिका और इटली जाने में भी अड़ंगा डाला गया था।
कृपाशंकर यदि वाकई अपराधी है तो उसे अर्जुन अवॉर्ड चयन समिति में क्यों रखा जाता है? साई की लीला सबको पता है। देश के तकरीबन हर सेण्टर में खिलाड़ियों को वे सुविधाएं मयस्सर नहीं हैं जो उन्हें मिलनी चाहिए। साई के संचालक जी.जी. थामसन व्यवस्थाएं सुधारने की बजाय प्रशिक्षकों और खिलाड़ियों के साथ हो रहे अन्याय को और बढ़ावा दे रहे हैं। थामसन स्वयं भी दूध के धुले नहीं हैं, उन पर पामोलिव आॅइल मामले में प्रकरण चल रहा है तो उनके कार्यकाल में खिलाड़ियों में शक्तिवर्धक दवाएं लेने की गलत लत पड़ी है। कृपाशंकर को खेलगांव में प्रवेश न मिलना सिर्फ उसी का नहीं बल्कि मुल्क की उन सात बेटियों का भी नुकसान है जो पिछले तीन साल से अपने काबिल गुरु से प्रशिक्षण ले रही हैं। इस मामले का शीघ्र निदान न निकला तो कुश्ती में अधिक से अधिक पदक जीतने की भारतीय सम्भावनाओं पर तुषारापात हो जाएगा।
अब ब्रजभूषण शरण ही आखिरी उम्मीद: कृपाशंकर
इस मामले में कुश्ती प्रशिक्षक कृपाशंकर बिशनोई ने ग्लास्गो से दूरभाष पर पुष्प सवेरा को बताया कि मेरी समझ में ही नहीं आ रहा कि मुझे किस बात की सजा मिल रही है। जो कुछ हो रहा है उसमें साई के साथ कहीं न कहीं ओलम्पिक संघ के भी कुछ लोग शामिल हैं। सिर्फ एक दिन का समय बचा है, मुझे अब भारतीय कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष ब्रजभूषण शरण सिंह से ही उम्मीद है। वे आज रात ग्लास्गो पहुंच रहे हैं। आहत-मर्माहत कृपाशंकर ने अपने साथ हो रहे दुर्व्यवहार के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को भी पत्र लिखा है।
राधिका सामंत की शह पर रचा गया था षड्यंत्र
कुश्ती प्रशिक्षक कृपाशंकर पर 2012 में साई की रीजनल डायरेक्टर राधिका सामंत की शह पर एक कर्मचारी ने बंदूक दिखाकर धमकाने का आरोप लगाया था, जबकि कृपा के पास कोई लाइसेंसी हथियार ही नहीं है। खैर, पुलिस जांच के बाद कृपाशंकर निर्दोष साबित हुए और खिलाड़ियों के हक की बात पुन: उठाते हुए मामला अदालत तक ले गये। इस बीच साई ने उन्हें तरह-तरह के प्रलोभन भी दिए लेकिन इस पहलवान ने साफ कह दिया कि बेटियों के हक पर वह कतई डाका नहीं डालने देगा।
तीन साल में 88 विदेशी कोचों पर 2569.63 करोड़ खर्च
घर का जोगी जोगना आन गांव का सिद्ध यह कहावत भारतीय खेलों पर सटीक बैठती है। आज भारत में कोच पैदा करने के कई स्पोर्ट्स संस्थान कार्य कर रहे हैं बावजूद देशी खेलनहार विदेशी प्रशिक्षकों का मोह नहीं त्याग पाये हैं। साई की कृपा से बीते तीन साल में 88 विदेशी कोचों पर भारत सरकार ने 2569.63 करोड़ रुपये निसार किए हैं।

Saturday 26 July 2014

बेटियों के अरमान, चढ़ें परवान

बेटियां हमेशा इतिहास रचती हैं और अपनी प्रतिभा का लोहा भी मनवाती हैं बावजूद इसके वे कामकाज हासिल करने में उस पुरुष प्रधान समाज के सामने हार जाती हैं जोकि शिक्षा की परीक्षा में हमेशा उससे पीछे रहता है। देश भर के सभी राज्यों में परीक्षा परिणाम आ चुके हैं। हमेशा की तरह इस बार भी बेटियां ही अव्वल रही हैं। ये सुखद परिणाम बेटियों को न केवल हौसला बल्कि उन्हें सपने संजोने का अधिकार भी देते हैं। परीक्षाओं में अपनी शानदार कामयाबी का आगाज करने के बाद बेटियां वैज्ञानिक, डॉक्टर, इंजीनियर, प्रशासनिक अधिकारी और बहुत कुछ शिक्षक बनने का सपना संजोती हैं। बेटियों का खुद के पांव खड़े होना और अपने परिवार को सम्बल प्रदान करना बुरी बात नहीं है, पर हमारी सामाजिक रूढ़िवादिता उनके अरमानों को कभी परवान नहीं चढ़ने देती।
कहने को हम इक्कीसवीं सदी में जी रहे हैं। चांद पर रहने की तैयारी कर रहे हैं लेकिन हमारी सामाजिक विचारधारा आज भी नहीं बदली है। घर से लेकर समाज तक बेटियों को ही समझौता करना पड़ रहा है, यही वजह है कि आजादी के 67 साल बाद भी आधी आबादी को उसका वाजिब हक नहीं मिल पाया है। कामकाज की दृष्टि से देखें तो आज देश के ग्रामीण क्षेत्र में 30 और शहरी क्षेत्र में मात्र 15.4 प्रतिशत ही कामकाजी महिलाएं हैं। ग्रामीण और शहरी क्षेत्र दोनों को मिलाकर देश में औसतन 25 प्रतिशत कामकाजी महिलाएं ही हैं। ग्रामीण क्षेत्र में कामकाजी महिलाओं की अधिकता की वजह उनका खेती-बाड़ी में हाथ बंटाना है। कृषि क्षेत्र में लगी महिलाओं में वे बेटियां शामिल नहीं हैं जिन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में कामयाबी का परचम फहराया है। यह हमारे विकासशील देश का दुर्भाग्य ही है कि  यहां मात्र 15 फीसदी बेटियां ही कामकाजी बन पाती हैं। बार-बार सवाल उठता है कि हमारी टॉपर बेटियां कहां और क्यों गुम हो जाती हैं और कहां दफन हो जाते हैं उनके अरमान। आर्थिक तंगहाली के चलते हाईस्कूल और इण्टर में अपनी शानदार सफलता का आगाज करने वाली अधिकांश बेटियों को उच्च शिक्षा पाने का मौका नहीं मिल पाता। सरकारें बेटियों की साक्षरता की अलख तो जगा रही हैं लेकिन निठल्ले सरकारी तंत्र के सामने वे लाचार हैं। बेटियां पराए घर की अमानत हैं, यह परम्परा आज भी हमारे समाज में बदस्तूर जारी है। आर्थिक रूप से कमजोर परिवार आज भी अपनी बेटियों को उच्च शिक्षा दिलाने के बजाय उनका हाथ पीला करना अपनी पहली प्राथमिकता समझते हैं। जो बेटियां मनमुताबिक उच्च शिक्षा हासिल भी कर लेती हैं उनके सपने पूरे होने में सरकारी तंत्र की अड़ंगेबाजी आड़े आती है। मजबूरन ये बेटियां घर-परिवार की जिम्मेदारियों में अपने आपको होम कर देने को विवश हो जाती हैं। बेटियों के स्वावलम्बी न बन पाने के कारण ही आज समाज में तरह-तरह की विद्रूपताएं आ खड़ी हुई हैं। यह सिर्फ बेरोजगारी का नहीं बल्कि प्राथमिकता का मामला है। जीवन में बदलाव की हमेशा गुंजाइश होती है। मुल्क में कई कामकाजी महिलाओं ने अपने कामकाज और प्रशासनिक क्षमता का लोहा मनवाया है। हमारे पितृसत्तात्मक समाज में अतीत से अब तक बेटियों को त्याग, तपस्या, स्नेह और ममता की मूर्ति बताकर उन्हें उनके अधिकारों से वंचित रखा गया है। कामकाजी महिलाएं आज दोहरे काम की शिकार हैं। वे दफ्तरों में काम करने के बाद घर की पूरी जिम्मेदारी का निर्वहन करने को भी मजबूर हैं। बेटियां सक्षम होते हुए भी अपने भविष्य के निर्णय पर हमेशा खामोश रहती हैं यही वजह है कि उनके अभिभावक जहां जिससे भी कहते हैं वे आंख मूंदकर शादी कर लेती हैं। आज उच्च या उच्च-मध्य वर्ग की बेटियां ही उच्च शिक्षा ग्रहण कर पाती हैं। ऐसे में उन्हें अपने जीवन-बसर का अधिकार होना चाहिए, पर ऐसा नहीं होता। इस मसले पर हमारे समाज और अभिभावकों में चेतना की दरकार है।
हमारा समाज पितृसत्तात्मक है यह सही है, लेकिन सबसे पहले बेटियों को खुद पर यकीन करने की भी जरूरत है। समाज का बहशीपन भी बेटियों के कामकाज में बड़ा रोड़ा है। आज बहुतेरी बेटियां नौकरी की प्रकृति और आने-जाने की समस्या आदि को देखते हुए पीछे हट जाती हैं। अभिभावक जब अपनी बच्चियों को उच्च शिक्षा दिलाते हैं तब अधिकतर लड़कियों या खुद अभिभावकों की सोच सिर्फ अधिकारी बनने तक ही सीमित रहती है, पर कई बार ऐसा सम्भव नहीं हो पाता लेकिन जरूरत खुद पर यकीन करते हुए घर से बाहर निकल कर काम करने की है, तभी समाज का माहौल अधिक सकारात्मक होगा। कामकाजी महिलाओं की सूची में अव्वल बेटियों के गुम हो जाने का दूसरा पहलू भी है। जब हम कामकाजी महिलाओं की गिनती करते हैं या यह कहते हैं कि पढ़ी-लिखी बेटियां घर बैठी हैं, तो हम गृहणियों के महत्व को कमतर आंकते हैं। तात्पर्य यह कि घर-परिवार और बच्चों की परवरिश जैसे महत्वपूर्ण काम करने वाली महिलाओं को आज भी हमारे समाज में कामकाजी महिलाओं से कमतर आंका जाता है, जोकि गलत है। बच्चों का पालन-पोषण एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है लिहाजा ऐसी महिलाओं को भी उचित सम्मान मिलना ही चाहिए। आज घर-गृहस्थी के काम में लगी महिलाओं को भी उचित सम्मान दिए जाने की जरूरत है वरना महिलाओं के अस्तित्व और सम्मान को ठेस लगेगी।
जाहिर है कि बेटियां शिक्षा ग्रहण करते समय कई सपने देखती हैं। ऐसे सपने तो कतई नहीं जिसके लिए विशेष व्यावसायिक उच्च शिक्षा की जरूरत हो बल्कि यह सपना खुद को स्वावलम्बी बनाने और अपनी पहचान-अस्मिता को बनाए रखने का होता है। समय का फेर कहें या सामाजिक खोट आज बेटियों में असीम सम्भावनाएं होने के बाद भी वे अपने सपनों  की उड़ान नहीं भर पातीं। मोदी सरकार यदि भारत के समुन्नत विकास का सपना साकार करना चाहती है तो उसे बेटियों को पर्याप्त प्रोत्साहन देना होगा। देश में कामकाजी महिलाओं का ग्राफ जब तक नहीं बढ़ेगा समाज की तरक्की को पर नहीं लगेंगे।

Tuesday 22 July 2014

मणिपुर में राष्ट्रीय खेल विश्वविद्यालय स्थापित होगा

सरकार ने मंगलवार को बताया कि देश में खेलों को प्रोत्साहित करने के तहत मणिपुर में राष्ट्रीय खेल विश्वविद्यालय स्थापित करने के साथ राष्ट्रीय खेल प्रतिभा चयन योजना को पेश किया जा रहा है।
     लोकसभा में खेल मंत्री सर्वानंद सोनवाल ने कहा,  देश में खेलों को प्रोत्साहित करने के लिए सरकार ने 2014-15 के बजट में मणिपुर में राष्ट्रीय खेल विश्वविद्यालय स्थापित करने की घोषणा की है। उन्होंने कहा कि इसके अलावा राष्ट्रीय खेल प्रतिभा चयन योजना पेश की गई है। जम्मू कश्मीर में इंडोर और आउटडोर खेल स्टेडियम का उन्नयन करके इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर का बनाने का भी निर्णय किया गया है। मंत्री ने कहा,  सरकार ने मुख्य धारा के खेलों को प्रोत्साहित करने के लिए देश के विभिन्न इलाकों में राष्ट्रीय स्तर की खेल अकादमी स्थापित करने का निर्णय किया है। इसे पीपीपी माध्यम से आगे बढ़ाया जा सकता है। सोनवाल ने कहा कि शूटिंग, तीरंदाजी, मुक्केबाजी, कुश्ती, भारोत्तोलन और विभिन्न दौड़ प्रतियोगिताओं में सर्वश्रेष्ठ प्रतिभा को प्रोत्साहित करने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर का प्रशिक्षण सुविधा प्रदान की जाएगी।
प्रत्येक ग्रामीण ब्लाक पंचायतों में समन्वित खेल परिसर स्थापित होंगे
सरकार ने बताया कि देश में ग्रामीण स्तर पर खेलों को प्रोत्साहित करने के लिए प्रत्येक ग्रामीण ब्लाक पंचायतों में एक समन्वित खेल परिसर स्थापित किया जाएगा। लोकसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में युवा एवं खेल मंत्री सर्वानंद सोनवाल ने कहा कि 21 फरवरी 2014 को केंद्र प्रायोजित योजना के तहत राजीव गांधी खेल अभियान पेश किया गया था। इस योजना में प्रत्येक ग्रामीण ब्लाक पंचायतों में एक समन्वित खेल परिसर स्थापित करने का प्रावधान है। मंत्री ने बताया कि ऐसे प्रत्येक खेल परिसरों के निर्माण पर 1.75 करोड़ रुपये की लागत आयेगी और इसमें 11 आउटडोर और पांच इंडोर खेलों की व्यवस्था होगी। इनमें तीन स्थानीय खेलों का भी समावेश किया जायेगा। उन्होंने बताया कि आउटडोर खेलों में एथलेटिक्स, तीरंदाजी, बैडमिंटन, बास्केटबाल, फुटबॉल, हैंडबॉल, हाकी, कबड्डी, खो खो, टेनिस और वालीबॉल शामिल हैं जबकि इंडोर खेलों में बाक्सिंग, कुश्ती, टेबल टेनिस, भारोत्तोलन शामिल हैं।
आगामी ओलम्पिक खेलों में खिलाड़ियों की पहचान एवं तैयारी पर नजर होगी: सोनोवाल
सरकार ने बताया कि 2016 और 2020 के ओलंपिक खेलों में भारत के पदक जीतने की संभावना और खिलाड़ियों की पहचान करने के लिए वह विशेषज्ञों की समिति गठित करेगी और ओलंपिक तैयारियों के लिए मदद करेगी।
लोकसभा में खेल मंत्री सर्बानंद सोनवाल ने कहा, सरकार ने 2016 और 2020 के ओलंपिक खेलों भारत के पदक जीतने की संभावना की पहचान करने का निर्णय किया है। इसके लिए विशेषज्ञों की एक समिति का गठन किया जायेगा जो ऐसे संभावित खिलाड़ियों की पहचान करेंगे।  मंत्री ने बताया,  एक अन्य समिति का गठन किया जायेगा जो कार्यक्रमों को अंतिम रूप देगी और एथलीटों के प्रदर्शन का आकलन करेगी। उन्होंने कहा कि चुने गए खिलाड़ियों को 2016 और 2020 ओलंपिक में तैयारी के लिए सतत मदद दी जायेगी।
सोनवाल ने कहा, मंत्रालय और भारतीय खेल प्राधिकरण (एसएआई) के कार्यक्रम एवं योजनाएं आगामी खेल प्रतियोगिताओं में भारत की पदक जीतने की संख्या को बेहतर बनाने को प्रतिबद्ध हैं।  मंत्री ने कहा कि रियो ओलंपिक 2016 समेत अंतरराष्ट्रीय खेल प्रतियोगिताओं के लिए खिलाड़ियों की तैयारी एक सतत प्रक्रिया है। मंत्रालय और एसएआई ने इसके लिए दीर्घकालीन योजना तैयार की है। उन्होंने कहा कि साल 2020 ओलंपिक खेलों तक महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय खेलों से जुड़े कार्यों की निगरानी एवं समन्वय के लिए एक संचालन समिति का गठन किया गया है। इसकी अध्यक्षता खेल सचिव कर रहे हैं और इसमें एसएआई, संबंधित राष्ट्रीय खेल संघों एवं भारतीय ओलंपिक संघ के प्रतिनिधि और मुख्य कोच शामिल हैं।

भारत की नजरें ग्लास्गो राष्ट्रमंडल खेलों में शीर्ष तीन में रहने पर


महिला चक्काफेंक चैम्पियन कृष्णा पूनिया और पुरुष वर्ग में विकास गौड़ा पदक दावेदार
पिछले राष्ट्रमंडल खेलों में मिली अप्रतिम सफलता को दोहराना तो भारत के लिये सम्भव नहीं होगा लेकिन ओलम्पिक में वापसी के बाद 215 सदस्यीय भारतीय दल 23 जुलाई  से ग्लास्गो में शुरू हो रहे 20वें राष्ट्रमंडल खेलों में शीर्ष तीन में जगह बनाना चाहेगा। एथलेटिक्स में महिला चक्काफेंक चैम्पियन कृष्णा पूनिया और पुरुष वर्ग में विकास गौड़ा पदकों के प्रमुख दावेदारों में शामिल हैं।
भ्रष्टाचार के आरोपों और तैयारियों में विलम्ब के आरोपों से घिरे दिल्ली राष्ट्रमंडल खेल 2010 में भारत रिकार्ड 101 पदक जीतकर आस्ट्रेलिया के बाद दूसरे स्थान पर रहा था। तमाम विवादों के बावजूद दिल्ली राष्ट्रमंडल खेल आयोजन और खिलाड़ियों के प्रदर्शन के मामले में बेहद कामयाब रहे थे। दिल्ली राष्ट्रमंडल खेलों के बाद भारत ने 2010 ग्वांग्झू एशियाई खेलों में भी रिकार्ड प्रदर्शन करते हुए 65 पदक जीते। दो साल बाद लंदन में भारत ने छह पदक जीते। ग्लास्गो में भारत का यथार्थवादी लक्ष्य शीर्ष तीन में रहना होगा क्योकि अव्वल नम्बर पर आस्ट्रेलिया या इंग्लैंड के रहने की संभावना है। इन खेलों में ब्रिटिश उपनिवेशक रहे 71 देशों के 4500 खिलाड़ी पदकों के लिये भिड़ेंगे जिनमें फर्राटा सुपरस्टार उसेन बोल्ट और मध्यम तथा लम्बी दूरी के धावक इंग्लैंड के मोहम्मद फराह आकर्षण का केंद्र होंगे। ओलम्पिक और एशियाई खेलों के बाद तीसरे सबसे बड़े खेल आयोजन में 11 दिन तक 18 खेलों में 261 पदक दांव पर होंगे। इसमें पैरा खेलों में पांच विधाओं में 22 स्वर्ण दांव पर लगे होंगे।
भारत ने 14 खेलों में 215 खिलाड़ी भेजे हैं जो दिल्ली राष्ट्रमंडल खेलों के बाद उसका सबसे बड़ा दल है। ग्लास्गो खेलों में तीरंदाजी और टेनिस के नहीं होने से भारत की पदक उम्मीदों को झटका लगा है जबकि निशानेबाजी और कुश्ती में भी पदक स्पर्धायें कम हुई हैं। भारत ने 2010 में तीरंदाजी में 12 पदक जीते थे जबकि निशानेबाजी की उन 18 स्पर्धाओं में 14 पदक हासिल किये थे जो इस बार खेलों का हिस्सा नहीं हैं। कुश्ती में ग्रीको रोमन वर्ग इस बार नहीं है जिसमें भारत ने 2010 में आठ पदक जीते थे। निशानेबाजी में भारत को 2010 में कुल 30 पदक मिले थे लेकिन इस बार अधिकांश निशानेबाज सर्वश्रेष्ठ फार्म में नहीं हैं। भारत की पदक संख्या 101 (38 स्वर्ण, 27 रजत और 36 कांस्य) से घट सकती है लेकिन 60 से ऊपर रहना भी उपलब्धि मानी जायेगी। भारत के लिये ग्लास्गो में इंग्लैंड से ऊपर दूसरे स्थान पर रहना असंभव होगा। भारत ने 2010 में इंग्लैंड से एक स्वर्ण अधिक लेकर दूसरा स्थान हासिल किया था हालांकि इंग्लैंड के भारत से 31 पदक अधिक थे। इंग्लैंड ने 2010 में अपनी सर्वश्रेष्ठ टीम भी नहीं भेजी थी क्योकि 2012 में लंदन में ओलम्पिक होने थे। तीसरे स्थान के लिये भारत का मुकाबला कनाडा से होगा जिसने 265 सदस्यीय दल भेजा है। कनाडा को ग्रीको रोमन कुश्ती के हटने से नुकसान होगा। वहीं अपनी सरजमीं पर तीसरी बार राष्ट्रमंडल खेलों की मेजबानी कर रहा स्काटलैंड भी घरेलू दर्शकों के सामने अच्छा प्रदर्शन करना चाहेगा।
आस्ट्रेलिया ने दिल्ली खेलों में 177 पदक जीते थे जिनमें 74 पीले तमगे थे। वहीं इंग्लैंड को 142 पदक मिले थे। इंग्लैंड ने हालांकि लंदन ओलंपिक में 29 स्वर्ण जीतकर आस्ट्रेलिया को पछाड़ दिया जिसके हिस्से सात स्वर्ण आये थे। राष्ट्रमंडल देशों की कुल दो अरब आबादी में से आधे से अधिक भारत की है जिसकी टीम में पिछले खेलों के करीब 30 पदक विजेता फिर हैं। इनमें अभिनव बिंद्रा, गगन नारंग, विजेंद्र सिंह, सुशील कुमार, योगेश्वर दत्त, कृष्णा पूनिया, आशीष कुमार, अचंता शरत कमल प्रमुख हैं।  एक बार फिर भारत की उम्मीदों का दारोमदार निशानेबाजों पर ही होगा। दिल्ली में 101 में से 30 पदक निशानेबाजों ने दिलाये थे और इस बार भी भारतीयों की नजरें बिंद्रा, नारंग, विजय कुमार और हीना सिद्धू पर रहेंगी। कुश्ती से भी भारत को अच्छे पदक मिलने की उम्मीद है जिसमें अगुवाई ओलंपिक पदक विजेता सुशील और योगेश्वर करेंगे। दोनों हालांकि नये भारवर्ग (74 किलो और 65 किलो) में उतरेंगे।
हाकी में भारत को महिला या पुरुष वर्ग में कम से कम एक पदक मिलने की उम्मीद है। पुरुष टीम ने 2010 में फाइनल में आस्ट्रेलिया से मिली करारी हार के बाद रजत पदक जीता था। इस बार उसे सेमीफाइनल में न्यूजीलैंड या इंग्लैंड को हराना होगा। महिला हाकी में भारत को अपने ग्रुप में शीर्ष दो में रहना होगा जिसमें न्यूजीलैंड और दक्षिण अफ्रीका जैसी मजबूत टीमें हैं। एथलेटिक्स में भारत को पिछली बार दो स्वर्ण समेत 12 पदक मिले थे। इस बार तैयारियां मुकम्मिल नहीं होने से अधिकांश एथलीट खराब फार्म में हैं लेकिन महिला चक्काफेंक चैम्पियन पूनिया और पुरुष वर्ग में विकास गौड़ा पदक के दावेदारों में होंगे।
बैडमिंटन में साइना नेहवाल के नहीं खेलने के बावजूद भारत से उम्दा प्रदर्शन की उम्मीद है। उदीयमान सितारा पीवी सिंधू महिला वर्ग में और पी कश्यप पुरूष वर्ग में पदक के दावेदार होंगे। महिला युगल में गत चैम्पियन ज्वाला गुट्टा और अश्विनी पोनप्पा भी पदक जीत सकती हैं ।
भारोत्तोलन में भारत ने पिछली बार आठ पदक जीते थे जिसमें इजाफा हो सकता है। भारतीय भारोत्तोलकों ने पिछले साल नवंबर में राष्ट्रमंडल चैम्पियनशिप में अच्छा प्रदर्शन किया था। इस बार भारोत्तोलन धुरंधर नाइजीरिया अच्छी तैयारियों के साथ नहीं आया है और मलेशिया की टीम में दो स्वर्ण पदक विजेता नहीं हैं जिससे भारत को अधिक पदक मिल सकते हैं। मुक्केबाज पिछली बार की तरह सात पदक जीत सकते हैं चूंकि लाइट वेल्टरवेट में गत चैम्पियन मनोज कुमार और 2008 बीजिंग ओलंपिक कांस्य पदक विजेता विजेंदर सिंह ग्लास्गो खेलों में भाग ले रहे हैं। टेबल टेनिस में भारत को कम से कम दो पदक की उम्मीद है जिसमें पुरूष युगल में स्वर्ण पदक जीतने वाले अचंता शरत कमल टीम की अगुवाई कर रहे हैं। दिल्ली में रजत और कांस्य जीतने वाले जिम्नास्ट आशीष कुमार भी उस प्रदर्शन को दोहराना चाहेंगे। बीसवें खेलों की शुरुआत औपचारिक तौर पर महारानी एलिजाबेथ द्वितीय कल सेल्टिक पार्क में करेंगी। उद्घाटन समारोह में ग्रैमी पुरस्कार विजेता रॉकस्टार राड स्टीवर्ट, मेजबान देश की सुजैन बोयल, एमी मैकडोनाल्ड और जूली फोलिस प्रस्तुतियां देंगी।

Friday 18 July 2014

कालेधन का निराला खेल

देश संकट के दौर से गुजर रहा है। आसमान छूती महंगाई को लेकर प्रतिदिन प्रदर्शन हो रहे हैं लेकिन वह कम होने का नाम नहीं ले रही। दुनिया के बेहद गरीब लोगों में एक तिहाई भारत में रह रहे हैं ऐसे हालात नरेन्द्र मोदी सरकार के लिए किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं हैं। लोग मोदी सरकार से अच्छे दिनों की अपेक्षा कर रहे हैं पर कैसे आएंगे अच्छे दिन? महंगाई कम न होने की वजह, सफेदपोशों का काला खेल है, जिससे मोदी सरकार भी अछूती नहीं है। गरीबी उन्मूलन के प्रति मोदी की प्रतिबद्धता और सबका साथ, सबका विकास की सोच तभी सार्थक हो सकती है जब उनका हर खैरख्वाह ईमानदारी की कसम खा ले, पर ऐसा सम्भव नहीं दिखता। यह बात मोदी भी भलीभांति जानते हैं।
मोदी सरकार दो महीने से लाइलाज गरीबी की दवा ढूंढ़ रही है पर मर्ज बढ़ता ही जा रहा है। लोग मोदी से विदेशी बैंकों में जमा भारतीय कालेधन को लाने की अपेक्षा कर रहे हैं पर सरकार में ही शामिल अधिकांश लोग इस मसले  के खिलाफ हैं। विदेशी बैंकों में जमा कालाधन देश की राजनीति में लम्बे समय से बहस का बड़ा मुद्दा रहा है। कालेधन की वापसी को लेकर मुल्क में आंदोलन भी चले, पर कोई सार्थक नतीजा नहीं निकला। हाल ही मोदी सरकार ने विदेशों में जमा कालेधन की असलियत का पता लगाने के लिए एसआईटी के गठन की घोषणा की। इस घोषणा के बाद उद्योग संगठन एसोचैम ने सरकार को काली कमाई को देश में वापस लाने के लिए छह महीने तक माफी स्कीम लागू करने का सुझाव देने के साथ ही मिले कुल जमा धन पर चालीस फीसदी कर लगाने की सीख दी। एसोचैम का यह सुझाव सही भी है। यदि इस राशि के दस फीसदी हिस्से को ही देश के बुनियादी विकास में खर्च कर दिया जाए तो स्थिति बदल सकती है। देश में काली कमाई न सिर्फ वापस आए बल्कि एक ठोस पॉलिसी बनाने की भी दरकार है। काला धन दो तरह का होता है। एक ऐसा जो देश के बाहर तो जमा है पर वह सरकार की नीति निर्माण पॉलिसी को प्रभावित नहीं करता। दूसरा वह जो हमारे नीति निर्माण को न केवल बुरी तरह प्रभावित करता है बल्कि आम चुनाव सहित सरकार के पॉलिसीगत निर्णयों को बदलने में भी इस्तेमाल होता है।
देखा जाए तो हमारे राजनीतिज्ञ कालेधन की वापसी का शोर तो मचाते हैं लेकिन दूसरे किस्म के कालेधन, जिसका उपयोग चुनाव के समय लगभग सभी दल करते हैं, उस पर साजिशन पर्दा डालने की सम्मिलित कोशिश की जाती है। चुनावों में खर्च होती बेहिसाब पूंजी ही भ्रष्टाचार की जनक है। यह पूंजी ही नीति निर्माण तंत्र को पूरी तरह से प्रभावित करती है। इस पूंजी पर खुली बहस कभी नहीं होती। दरअसल दुनिया के अमीर पूंजीपति देश लम्बे समय से बड़े पैमाने पर कालेधन का इस्तेमाल गरीब देशों की पॉलिसी अपनी मुनाफाखोर कम्पनियों के हित में बनवाने का खेल खेल रहे हैं। इस खेल से   विकासशील देशों का भला तो नहीं हो रहा अलबत्ता वहां भ्रष्टाचार की जड़ें जरूर गहराती जा रही हैं। चुनाव के बाद मोदी सरकार पर भी यह तोहमत लगी है। चुनाव से पूर्व नरेन्द्र मोदी को अपनी आंखों की किरकिरी मानता अमेरिका आज उनकी तरीफों के कसीदे गढ़ रहा है, उसकी भी वजह है। दरअसल अमेरिका कई राजनीतिक दलों और देशों को बाकायदा बड़ी मात्रा में चुनाव लड़ने को हवाला के जरिए पैसा देता रहा है ताकि सरकार बनने पर वह अपने मन मुताबिक नीतियों का निर्माण करवा सके।
चुनावी मदद ही नहीं अमेरिका किसी देश के खिलाफ अपने पक्ष में लॉबिंग कराने के लिए भी गरीब देशों को बेहिसाब धन देने का गुनहगार है। पूंजीपति देश विकसित देशों को कालाधन देकर वहां के आधारभूत ढांचे जैसे शिक्षा, कृषि, स्वास्थ्य, सड़क, आवास, सेना, उद्योग आदि पर लिए जाने वाले निर्णयों को पूरी तरह प्रभावित करते रहे हैं। 1980 के दशक में अमेरिकी सहायता और विश्व बैंक का कर्ज बेहद गरीब देशों को भारी मात्रा में यह जानते हुए भी दिया जाता रहा कि यह कर्ज सम्बन्धित देश कभी नहीं चुका पाएंगे। इसके पीछे विश्व बिरादर में भले ही गरीब देशों की मदद की बात कही जाती रही हो पर इसके पीछे का असल खेल कर्जदार देश पर अपनी चौधराहट दिखाना होता था। दुनिया के पंूजीपति देश कई मुल्कों की सरकारों को कम्युनिस्ट विचारधारा त्यागने और उसके विस्तार पर अंकुश लगाने पर भी अकूत पैसा खर्च कर चुके हैं। इसके पीछे उनकी मंशा वहां की आर्थिक और सामाजिक पॉलिसी को पूरी तरह प्रभावित कर अपना साम्राज्य स्थापित करने की रही है।
इस खेल से भारतीय राजनीति भी अछूती नहीं है। दो माह पूर्व हुए लोकसभा चुनावों में फौरी तौर पर लगभग अठारह हजार करोड़ रुपए से अधिक खर्च हुआ जिसमें बड़ी मात्रा में विदेशों से मिला कालाधन भी शामिल है। इस सच का भान होने पर ही सर्वोच्च न्यायालय ने केन्द्र की मोदी सरकार को आदेश दिया था कि वह भाजपा और कांग्रेस पर विदेश से चुनावी चंदा लेने के लिए कठोर कारवाई करे। विदेशी चंदा लेना गैरकानूनी और दण्डनीय अपराध है। अफसोस, इस मामले पर जहां केन्द्र सरकार ने कोई ठोस कार्रवाई नहीं की वहीं पॉलिसीगत निर्णयों को प्रभावित करने वाले इस धन पर कोई बहस भी नहीं हुई। सवाल उठता है कि इस पर सभी राजनीतिक दल चुप क्यों हैं? यदि देश के सभी सफेदपोश वाकई दूध के धुले हैं तो देशहित के इस मसले पर समग्रता से बहस होनी ही चाहिए। ऐसा नहीं होना यह साबित करता है कि भारतीय लोकतंत्र के हमाम में सभी नंगे हैं। महंगाई को लेकर सड़कों पर प्रतिदिन होता नंगनाच और संसद का शोर-शराबा महज गरीबी का उपहास उड़ाना भर है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि भ्रष्टाचार की गंगोत्री हमेशा ऊपर से नीचे बहती है। जब देश की राजनीति ही भ्रष्ट होगी तो भला किसी भी दल का सफेदपोश क्यों न हो वह कालेधन पर किसी कठोर कार्रवाई का हिमायती कैसे हो सकता है। भारतीय लोकतंत्र आज नाजुक मोड़ पर है। चुनावों में बेहिसाब कालेधन का प्रयोग कर गलत लोग न केवल संसद की दहलीज पर कदम रख रहे हैं बल्कि जो सुख-सुविधाएं आम जनता को मिलनी चाहिए  उन पर उनका अधिकार है। लोकतंत्र की गंगोत्री बिना बुनियादी परिवर्तन के शुद्ध नहीं की जा सकती। कालेधन की वापसी में सिर्फ माफी योजना से कुछ नहीं होगा। सरकार कालेधन के उपयोग पर श्वेत-पत्र लाए और इसे हतोत्साहित करने के लिए ऐसी पॉलिसी बनाए जो बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के मुनाफे के लिए नहीं बल्कि इस मुल्क की आवाम के लिए हो।

Tuesday 15 July 2014

उम्मीद हम अच्छा करेंगे, मेहनत रंग लाएगी: गीतिका

ग्लासगो राष्ट्रमण्डल खेल: भारतीय महिला पहलवानों के सामने कनाडा, नाइजीरिया और कैमरून की चुनौती
भारतीय पहलवान 22 जुलाई को ग्लासगो रवाना होंगे, 29 से दिखाएंगे दांव-पेंच
हर प्रतिद्वन्द्वी के खिलाफ होगी अलग रणनीति: ज्योति
आगरा। राष्ट्रमण्डल खेल बड़ी स्पर्धा है, इसमें एक से बढ़कर एक बेजोड़ महिला पहलवान शिरकत करेंगी पर भारतीय पहलवानों को कनाडा, नाइजीरिया और कैमरून से कड़ी चुनौती मिल सकती है, यह कहना है भारतीय महिला पहलवान गीतिका जाखड़ और ज्योति लोहिया का।
देश की पहली अर्जुन अवॉर्डी महिला पहलवान और दोहा एशियन खेल 2006 की रजत पदक विजेता गीतिका जाखड़ ने पुष्प सवेरा से हुई विशेष बातचीत में बताया कि भारतीय महिला पहलवान फिलहाल सुबह-शाम कड़ा अभ्यास कर रही हैं। भारतीय पहलवानों को शारीरिक दमखम के साथ तकनीकी पहलुओं पर भी दक्ष किया जा रहा है। राष्ट्रमण्डल खेल बड़ी स्पर्धा है। दुनिया के 71 देश इसमें शिरकत कर रहे हैं पर भारतीय पहलवानों के सामने कनाडा, नाइजीरिया और कैमरून की महिला पहलवान विशेष चुनौती साबित हो सकती हैं। हरियाणा की पुलिस आॅफिसर गीतिका ने बताया कि हम लोग प्रतिद्वन्द्वी पहलवानों की वीडियो रिकॉर्डिंग भी देख रहे हैं ताकि उनकी खूबियों और कमजोरियों का तोड़ निकालने के साथ उन्हें आसानी से शिकस्त दी जा सके। खिलाड़ी पिता की खिलाड़ी बेटी गीतिका को भरोसा है कि ग्लासगो में भारतीय महिला पहलवान बेहतर प्रदर्शन करेंगी। फिलहाल सभी पहलवानों का मनोबल काफी ऊंचा है।
23 जुलाई से स्काटलैण्ड के ग्लासगो शहर में होने जा रहे 20वें राष्ट्रमण्डल खेलों में सात महिला पहलवान विनेश फोगाट, ललिता, बबिता कुमारी, साक्षी मलिक, गीतिका जाखड़, नवजोत कौर और ज्योति लोहिया विभिन्न वजन वर्गों में दांव-पेंच दिखाएंगी। भारतीय पहलवान 22 जुलाई को ग्लासगो की उड़ान भरेंगी जबकि 29 जुलाई से पदक के लिए मशक्कत करेंगी। विरासत में मिली पहलवानी को नया आयाम देने का संकल्प ले चुकी दिल्ली पुलिस की जांबाज ज्योति लोहिया का कहना है कि हमारी तैयारियां मुकम्मल हैं। सभी भारतीय पहलवानों को पता है कि स्वर्णिम सफलता के लिए ग्लासगो में फौलादी प्रदर्शन करना होगा। हम लोग प्रत्येक देश के खिलाफ अलग-अलग रणनीति के साथ उतरेंगे। सफलता के लिए सिर्फ दमखम से ही काम नहीं चलना सो हम लोग प्रतिद्वन्द्वियों को पछाड़ने के लिए रणनीतिक तैयारी भी कर रहे हैं। ज्योति का कहना है कि भारतीय महिला पहलवान ग्लासगो में दिल्ली से बेहतर प्रदर्शन करेंगी। सभी पहलवानों को पता है कि राष्ट्रमण्डल खेल एशियाई खेलों के लिए बेहतर मंच साबित होंगे लिहाजा कोई भी पहलवान किसी भी मुकाबले को हल्के से नहीं लेना चाहेगी।
सभी महिला पहलवान फिट
प्रशिक्षक कृपाशंकर विश्नोई  का कहना है कि सभी महिला पहलवान फिट हैं। सुबह-शाम कड़ा प्रशिक्षण चल रहा है। उम्मीद है कि भारतीय पहलवान ग्लासगो में हर वजन वर्ग में कोई न कोई पदक जरूर जीतेंगी। इनमें चार स्वर्ण पदक भारत की झोली में आ सकते हैं। प्रशिक्षक कृपाशंकर का कहना है कि ज्योति के सामने कुछ विभागीय अड़चनें थीं जिनका निराकरण हो गया है। वह कड़ा अभ्यास कर रही है। श्री विश्नोई को उम्मीद है कि ग्लासगो में विनेश फोगाट, बबिता कुमारी, साक्षी मलिक और गीतिका जाखड़ स्वर्णिम सफलता दिला सकती हैं।
पापा की उम्मीदों को अवश्य पूरा करूंगी: गीतिका
अपने जमाने के नेशनल एथलीट और हिसार में शारीरिक प्राध्यापक की पुलिस आॅफिसर बेटी गीतिका जाखड़ का कहना है कि वह ग्लासगो में स्वर्ण पदक जीतकर अपने पापा की उम्मीदों पर खरा उतरना चाहती है। वह दिन-रात अथक परिश्रम कर रही है क्योंकि मम्मी-पापा चाहते हैं कि मैं राष्ट्रमण्डल और एशियाई खेलों में स्वर्णिम सफलता हासिल करूं। गीतिका के एकमात्र भाई का रुझान खेलों में कम है, वह एम-टेक कर रहा है।
पापा को देखकर बनी पहलवान: ज्योति
दिल्ली पुलिस में कार्यरत ज्योति लोहिया का कहना है कि पहलवानी का शौक उसे अपने पहलवान पिता को देखकर हुआ। ज्योति के चार बहन और एक भाई है। भाई वेटलिफ्टर है। ज्योति को भरोसा है कि ग्लासगो में वह अच्छा प्रदर्शन कर अपने मुल्क को अवश्य गौरवान्वित करेगी। ज्योति का कहना है कि हमारे प्रशिक्षक हर प्रतिद्वन्द्वी के खिलाफ अलग-अलग रणनीति बना और बता रहे हैं। ज्योति का कहना है कि सभी महिला पहलवानों का मनोबल ऊंचा है।

Thursday 10 July 2014

बेहतर भविष्य की आहट

अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक अस्थिरता और कमजोर मानसून से आजिज नरेन्द्र मोदी सरकार ने अपने पहले आम बजट में देश की आवाम को रामराज्य का सब्जबाग दिखाने की बजाय हर तबके को राहत देने की पुरजोर कोशिश की है। बजट में लिए गये कई अहम फैसले भविष्य के अच्छे दिनों की तरफ संकेत देते दिख रहे हैं। सच यह है कि वित्त मंत्री अरुण जेटली ने अपने पहले बजट में महंगाई से त्रस्त गरीब और मध्मवर्गीय समाज को कुछ रियायतें देकर उन्हें सुखानुभूति का अहसास जरूर कराया है। मोदी सरकार के सामने आम बजट को लेकर अधिक विकल्प नहीं थे बावजूद इसके हर वर्ग को राहत पहुंचाने का जोखिम जरूर उठाया गया है। मोदी सरकार ने शिक्षा, महिला प्रोत्साहन, ग्रामीण विकास की दिशा और दशा सुधारने के साथ-साथ खेल अधोसंरचना की मजबूती पर विशेष दिलचस्पी दिखाई है। महंगाई को देखते हुए जहां आयकर सीमा बढ़ाई गई वहीं ग्रामीणों और युवाओं को आधुनिक तकनीक से लैश करने का भी बजट में प्रावधान किया गया है।
मोदी सरकार अपने अल्प कार्यकाल में हैरान-परेशान आवाम को बेशक महंगाई से निजात नहीं दिला सकी लेकिन उसने अपने पहले ही बजट में बेहतर भविष्य की अलख जरूर जगाई है। बजट में सब्जबाग दिखाने की बजाय एक मजबूत नींव के साथ लम्बे समय तक बेहतर भविष्य के लिए काम करने के संकेत दिए गए हैं। आम बजट में गरीब से लेकर अमीर तक का ख्याल रखने के साथ-साथ मोदी सरकार ने उन वस्तुओं की कीमतों में बढ़ोत्तरी की है, जिनके सेवन से मुल्क की सेहत खराब हो रही है। बजट में बड़े-बड़े प्रोजेक्टों के साथ छोटी-छोटी सुविधाओं पर भी ध्यान दिया गया है। आर्थिक विकास के क्षेत्र में बिजली की महत्ता को स्वीकारते हुए मोदी सरकार ने ग्र्रामीण क्षेत्र में बिजली की आपूर्ति बढ़ाने को दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना के लिए 500 करोड़ रुपये का प्रावधान किया तो ग्रामीण क्षेत्र में समेकित परियोजना आधारित आधारभूत ढांचा विकसित करने को श्यामा प्रसाद मुखर्जी ग्रामीण शहरी मिशन शुरू करने का प्रस्ताव भी पेश किया है। इतना ही नहीं अरुण जेटली ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की महत्वाकांक्षी प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना और प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना पर भी ठोस पहल की है। यह योजनाएं यदि मूर्तरूप लेती हैं तो इससे हर किसी को लाभ होगा। प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना किसानों के लिए मील का पत्थर साबित हो सकती है। खेती-किसानी से किसानों के जोखिम को खत्म करने के लिए आज देश को ऐसी ही योजनाओं की दरकार है।
मोदी सरकार ने शिक्षा के महत्व को न केवल स्वीकारा है बल्कि वित्त मंत्री ने देश भर में शिक्षा की अलख जगाने के साथ-साथ शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने के लिए नए प्रशिक्षण सम्बन्धी उपकरण प्रदान करने तथा अध्यापकों को अभिप्रेरित करने के लिए पण्डित मदन मोहन मालवीय नव अध्यापक प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू करने के लिए बजट में 500 करोड़ रुपए का प्रावधान किया है। मोदी सरकार ने खेलों को प्रोत्साहन देने की दिशा में भी ठोस पहल के संकेत दिए हैं। देश के अलग-अलग हिस्सों में राष्ट्रीय खेल अकादमियां बनाने के साथ जम्मू कश्मीर में अंतरराष्ट्रीय स्तर की खेल सुविधाओं के लिए बजट में 200 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। सरकार ने इसी महीने होने जा रहे राष्ट्रमण्डल खेलों और दो माह बाद होने वाले एशियाई खेलों में  खिलाड़ियों के प्रशिक्षण पर एक अरब रुपये खर्च करने का ऐलान कर खिलाड़ियों की मुंहमांगी मुराद पूरी कर दी है। मोदी सरकार ने मणिपुर में स्पोर्ट्स खेल विश्वविद्यालय खोले जाने को भी हरी झण्डी दिखा दी है। बजट में बालिकाओं की शिक्षा के लिए जहां एक अरब रुपये का प्रावधान किया गया है वहीं विकास दर में सुधार के लिए भी सकारात्मक कदम उठाये गये हैं। मुल्क आकंठ महंगाई के दौर से गुजर रहा है। पर सच यह है कि महंगाई का भी मौसम की तरह एक नियमित चक्र होता है। मार्च-अप्रैल की गर्मी शुरू होते ही पानी की किल्लत तो बारिश होते ही बाढ़ या शहर में जलभराव और सब्जियों की किल्लत आम बात है। यह बात अलग है कि आजादी के बाद से हमारी सरकारें इन समस्याओं की तरफ कभी गम्भीर नहीं रहीं। सरकारें सजग हों तो टमाटर, आलू और प्याज आदि कोल्ड स्टोरेज में रखकर उनकी कीमतों पर अंकुश लगाया जा सकता है। हरी सब्जियों पर किसी की बस नहीं चलती यही वजह है कि इनकी कभी जमाखोरी भी नहीं होती।
मोदी सरकार आज परीक्षा की घड़ी से गुजर रही है। चुनाव पूर्व जनता से जिन अच्छे दिनों का वादा किया गया था उसमें उसे 45 दिनों में कोई खास सफलता नहीं मिली। यही वजह है कि महंगाई को लेकर चहुंओर हो-हल्ला मच रहा है। सरकार के खिलाफ विपक्षी दलों का धरना-प्रदर्शन, पुतला दहन भारतीय राजनीति का शगल है, जोकि शायद ही कभी खत्म हो। मोदी सरकार के पहले आम बजट को लोक-लुभावन कहने की बजाय  संतुलित बजट कहना ठीक होगा। प्रथम दृष्टया यह बजट मध्यम तबके समेत सभी की चिन्ताओं को ध्यान में रखने वाला प्रतीत होता है। मोदी सरकार के इस बजट पर पारदर्शितापूर्ण अमल होता है तो इससे न केवल मुल्क की अर्थव्यवस्था सुधरेगी बल्कि एक भारत, श्रेष्ठ भारत के सपने को साकार करने में भी मदद मिलेगी। विपक्षी दल इस बजट पर कैसी भी प्रतिक्रियां दें पर आम आवाम का मानना है कि हालात और मौजूदा अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियों को देखते हुए मोदी सरकार इससे बेहतर कुछ कर भी नहीं सकती थी। 

भारतीय शूटरों पर सीजीएफ की कुदृष्टि

मुश्किल होगा दिल्ली के प्रदर्शन की बराबरी
दिल्ली में निशानेबाजों ने जीते थे 30 पदक
गगन नारंग ने साधा था चार स्वर्ण पदकों पर निशाना
आगरा। कॉमनवेल्थ गेम्स फेडरेशन (सीजीएफ) की भारतीय निशानेबाजों पर कुदृष्टि के चलते 23 जुलाई से स्कॉटलैण्ड की राजधानी ग्लासगो में होने जा रहे 20वें राष्ट्रमण्डल खेलों में इस बार शूटिंग में 30 पदक मिलना दूर की कौड़ी नजर आ रही है। भारतीयों शूटरों के सटीक निशाने राष्ट्रमण्डल देशों के लिए बेशक परेशानी का सबब न रहे हों पर कुछ देशों के इशारे पर सीजीएफ ने जिस तरह शूटिंग के सभी पेयर्स इवेंट (टीम चैम्पियनशिप) और पुरुषों की फायर पिस्टल व स्टैण्डर्ड स्पर्धा से किनारा किया है उससे भारत के सामने दिल्ली के प्रदर्शन की बराबरी करना टेढ़ी खीर साबित होगा।
राष्ट्रमण्डल खेलों से इन स्पर्धाओं को खारिज करने के पीछे सीजीएफ का तर्क ओलम्पिक में इन स्पर्धाओं का शामिल नहीं होना बताया जा रहा है, जोकि  प्रथम दृष्टया सही प्रतीत नहीं होता। सीजीएफ यदि ओलम्पिक फार्मेट की ही पक्षधर है तो उसने बिग बोर स्पर्धा को क्यों नहीं हटाया। बिग बोर स्पर्धा दुनिया की हर प्रतियोगिताओं में तो चलन में है पर ओलम्पिक में यह शामिल नहीं है। यही नहीं इसकी पेयर इवेंट क्वींस पेयर को भी राष्ट्रमण्डल खेलों में शामिल रखा गया है तो महिलाओं की 50 मीटर प्रोन व डबल ट्रैप भी ओलम्पिक में न होने के बावजूद राष्ट्रमण्डल खेलों में शामिल हैं। दरअसल भारतीय निशानेबाजों ने जिस तरह दिल्ली में स्वर्णिम निशाने साधे थे उससे परेशान होकर और दूसरे देशों को फायदा पहुंचाने की खातिर ही सीजीएफ ने ऐसे बेतुके फैसले लिए हैं।
दिल्ली में भारत ने निशानेबाजी में 14 स्वर्ण, 11 रजत और पांच कांस्य सहित कुल 30 पदक जीते थे जिनमें सात स्वर्ण, पांच रजत तथा दो कांस्य पदक पेयर्स यानि टीम चैम्पियनशिप में हाथ लगे थे। स्टैण्डर्ड पिस्टल व सेण्टर फायर पिस्टल में दो स्वर्ण, दो रजत व एक कांस्य पदक आया था। सीजीएफ की इस हिटलरशाही से किसी का नुकसान हो रहा हो या नहीं भारतीय शूटर जरूर मुश्किल में होंगे। सीजीएफ के इन अनिर्णयों पर नेशनल राइफल एसोसिएशन आॅफ इण्डिया और कॉमनवेल्थ शूटिंग फेडरेशन ने आपत्ति भी जताई पर नतीजा कुछ भी नहीं निकला। इस मसले पर सीजीएफ ने नेशनल राइफल एसोसिएशन आॅफ इण्डिया को भी भरोसे में नहीं लिया। भारतीय शूटरों के दिल्ली में व्यक्तिगत प्रदर्शन की बात करें तो गगन नारंग (4), ओमकार सिंह (3), विजय कुमार (3), गुरप्रीत सिंह, अनिसा सैयद और हरप्रीत सिंह ने स्वर्ण पदकों पर सटीक निशाने लगाये थे।
निशानेबाजी भी कुश्ती और हॉकी की राह
खेलों में जब-जब भारतीय खिलाड़ियों ने दमदार प्रदर्शन किया अंतरराष्ट्रीय खेल पदाधिकारियों ने दूसरे देशों के दबाव में नियम-कायदों में न केवल फेरबदल किए बल्कि उन स्पर्धाओं को ही हटा दिया गया। हॉकी, कुश्ती और शूटिंग में किए गये फेरबदल अंतरराष्ट्रीय खेल बिरादर के भेदभाव का ही परिणाम हैं। राष्ट्रमण्डल खेलों में इस बार ग्रीको रोमन कुश्ती को हटा देने से भारत को पदकों के लिहाज से काफी नुकसान होगा।
इन भारतीय शूटरों पर होंगी सबकी निगाहें
पुरुष- गगन नारंग, संजीव राजपूत, जॉयदीप करमाकर, अभिनव बिन्द्रा, रवि कुमार, विजय कुमार, हरप्रीत सिंह, जीतू राय, गुरुपाल सिंह, पीएम प्रकाश, ओम प्रकाश, मानवजीत सिंह संधू, मनशेर सिंह, मोहम्मद असाब, अंकुर मित्तल, मैराज अहमद खान, बाबा पीएस बेदी। 
महिला- लज्जा गोस्वामी, इलिजाबेथ सुसान कोशी, मीना कुमारी, अयोनिका पॉल, अपूर्वी चंदेला, राही सरनाबत, अनिसा सैयद, हीना सिद्धू, मलिका गोयल, श्रेयसी सिंह, सीमा तोमर, वर्षा वर्मन, आरती सिंह राव। 

Tuesday 8 July 2014

प्रतिभाओं की खान, सरकार नहीं मेहरबान

राहुल गाद्री जैसे पहलवान चमकाना चाहते हैं राजस्थान का नाम
आगरा। कहते हैं कि खिलाड़ी का पसीना सूखने से पहले उसका ईनाम मिल जाना चाहिए, पर खेलों में प्रतिभा सम्पन्न राजस्थान में इस दिशा पर सरकारों द्वारा समुचित ध्यान न दिये जाने से खिलाड़ी निराश हैं। खेलों को कैरियर बनाने का सपना देख रहे राहुल गाद्री जैसे नायाब पहलवान न केवल गुरबत में जी रहे हैं बल्कि सरकारी मदद के अभाव में असमय खेलों को छोड़ने का मन भी बनाने लगे हैं।
आज खेल सिर्फ खेल ही नहीं बल्कि किसी जिले, राज्य और मुल्क की अस्मिता का भी सवाल हैं। प्रकृति राजस्थान से कितना ही खिलवाड़ क्यों न करती रही हो पर यहां खेल प्रतिभाओं का कभी अकाल नहीं रहा। ओलम्पियन राज्यवर्धन सिंह राठौर और वीरेन्दर-कृष्णा पूनिया के राज्य में खेल प्रतिभाओं की कमी नहीं है, कमी है तो सिर्फ सरकारी प्रोत्साहन की।  कांग्रेस की सरकार रही हो या भाजपा की, क्रिकेट को छोड़कर किसी भी सरकार ने दीगर खेलों की तरफ वैसा ध्यान नहीं दिया जैसा देना चाहिए। राजस्थान सरकार को मध्यप्रदेश और हरियाणा से नसीहत लेनी चाहिए जिन्होंने कम समय में ही खेल प्रोत्साहन की दिशा में अतुलनीय कार्य कर प्रतिभाओं को न केवल सहारा दिया बल्कि वहां के खिलाड़ियों ने नया आयाम भी स्थापित किया है।
राजस्थान की मुख्यमंत्री बसुन्धरा राजे सिंधिया को मध्यप्रदेश की खेल मंत्री और अपनी छोटी बहन यशोधरा राजे सिंधिया से कम से कम खेल के क्षेत्र में मदद लेनी चाहिए। यशोधरा राजे ने मध्यप्रदेश में खेल और खिलाड़ियों के प्रोत्साहन की दिशा में मील का पत्थर स्थापित किया है। उन्होंने खिलाड़ियों को हर वह हर सुविधा मुहैया कराई है जोकि आधुनिक खेलों के लिए जरूरी है। मध्यप्रदेश में विभिन्न खेलों की लगभग डेढ़ दर्जन एकेडमियों में न केवल खिलाड़ी निखर रहे हैं बल्कि वे शानदार परिणाम भी दे रहे हैं। राजस्थान के होनहार पहलवान राहुल गाद्री ने दूरभाष पर खेलपथ को बताया कि वह भी खेलों में अपने राज्य राजस्थान का नाम रोशन करना चाहते हैं पर पर्याप्त प्रोत्साहन न मिलने से उनका हौसला टूट रहा है।
भीलवाड़ा का यह जांबाज पहलवान राज्य स्तर पर कई कुश्तियां फतह कर चुका है पर सरकारी प्रोत्साहन के अभाव में अपनी तैयारियों को मुकम्मल नहीं कर पा रहा। राहुल को बसुन्धरा सरकार से बहुत उम्मीदें हैं कि वह खेल-खिलाड़ियों के प्रोत्साहन की दिशा में कुछ करेगी। राहुल का कहना है कि राजस्थान खेलों की दिशा में आगे जा सकता है बशर्ते सरकार ध्यान दे। राहुल कहते हैं कि मैंने भी बहुत से सपने देखे हैं पर क्या करूं मेरी कोई मदद करने को तैयार नहीं। सरकार ने मदद न की तो मेरे जैसे न जाने कितने प्रतिभाशाली खिलाड़ियों के सपनों के दीपक असमय गुल हो जाएंगे। राहुल अमित दहिया और सुशील कुमार को अपना आदर्श मानते हैं तो वीरेन्दर पूनिया, कृष्णा पूनिया और कृपाशंकर पटेल की तारीफ करते हुए कहते हैं कि ये खेल शख्सियत तो हैं ही नेकदिल इंसान भी हैं।

Sunday 6 July 2014

हमारे पहलवान, कितने बलवान

आगरा। स्काटलैण्ड के शहर ग्लासगो में 23 जुलाई से तीन अगस्त तक होने जा रहे 20वें राष्ट्रमण्डल खेलों में भारतीय प्रदर्शन को लेकर चर्चाएं सरगर्म हैं। 2010 में हुए दिल्ली राष्ट्रमण्डल खेलों में भारत ने पदकों का शतक (101) लगाया था जिसमें सर्वाधिक 30 पदक निशानेबाजों तथा 19 पदक पहलवानों ने दिलाए थे। इस बार भी भारतीय पहलवानों से काफी उम्मीदें हैं। पहलवानों और प्रशिक्षकों की कही सच मानें तो इस मर्तबा भारतीय महिला और पुरुष पहलवान 9-10 स्वर्ण पदक जीत सकते हैं।
दिल्ली राष्ट्रमण्डल खेलों में भारतीय पुरुष और महिला पहलवानों ने 10 स्वर्ण पदक जीते थे जिसमें सात स्वर्ण पुरुष और तीन स्वर्ण पदक महिला पहलवानों ने दिलाए थे। भारत को इन पदकों में चार स्वर्ण ग्रीको रोमन स्पर्धा में भी मिले थे जोकि इस बार प्रतियोगिता में शामिल नहीं है। ग्लासगो में सात पुरुष और सात ही महिला पहलवान फ्रीस्टाइल वर्ग में दांव-पेंच दिखाएंगे। इन पहलवानों में खेल रत्न और ओलम्पिक पदकधारी सुशील कुमार, योगेश्वर दत्त और अर्जुन अवॉर्डी नवजोत कौर भी शामिल हैं। महिला पहलवानों की जहां तक बात है ग्लासगो जाने वाली टीम में दिल्ली राष्ट्रमण्डल खेलों की रजत पदक विजेता बबिता कुमारी ही स्थान बना सकी हैं। दिल्ली में महिला पहलवानों ने तीन स्वर्ण, दो रजत तथा एक कांस्य पदक जीता था।
महिला पहलवानों से चार स्वर्ण की उम्मीद: कृपाशंकर पटेल
अर्जुन अवॉर्डी व महिला टीम के प्रशिक्षक कृपाशंकर पटेल ने पुष्प सवेरा से बातचीत में बताया कि ग्लासगो में विनेश फोगाट, बबिता कुमारी, साक्षी मलिक और दीपिका जाखड़ से उन्हें स्वर्ण पदक का भरोसा है लेकिन यह सब खिलाड़ियों की मानसिकता तथा उनके प्रदर्शन पर निर्भर करेगा।   पटेल ने कहा कि इस बार हर महिला पहलवान कोई न कोई पदक जरूर जीतेगी। श्री पटेल ने कहा कि ओवरआॅल पहलवानों की बात करें तो इस बार भारतीय पहलवान नौ से 10 स्वर्ण पदक सहित 12-13 पदक जीत सकते हैं। उन्होंने कहा कि इस बार ग्रीको रोमन स्पर्धा नहीं होने से पदकों में कमी जरूर आएगी।
सातों स्वर्ण भारत की झोली में आएंगे: अमित दहिया
सुबह-शाम जमकर अभ्यास चल रहा है। तैयारियां मुकम्मल हैं और हम स्काटलैण्ड के शहर ग्लासगो में होने जा रहे राष्ट्रमण्डल खेलों में दिल्ली के प्रदर्शन को भी पीछे छोड़ देंगे। उम्मीद है कि हमारे सभी साथी पहलवान स्वर्णिम सफलता हासिल कर देश का नाम जरूर रोशन करेंगे। 2013 के विश्व चैम्पियन पहलवान अमित दहिया का कहना है कि इस बार सातों पुरुष पहलवान स्वर्ण पदक जीतने का माद्दा रखते हैं।
राजस्थान में पहलवानों की कद्र नहीं: राहुल
प्रदेश स्तर पर पहलवानी में जौहर दिखा चुके राहुल गद्री का कहना है कि राजस्थान में पहलवानों की कोई कद्र नहीं है। कभी अमित कुमार के साथ छत्रसाल अखाड़े में दांव-पेंच दिखा चुके इस होनहार पहलवान का कहना है कि वह भी देश के लिए ओलम्पिक में पदक जीतना चाहता है लेकिन राजस्थान में अभी तक खेल संस्कृति के विकास की तरफ किसी सरकार ने ध्यान नहीं दिया है। किसान परिवार से ताल्लुक रखने वाले इस होनहार को भरोसा है कि ग्लासगो में भारतीय पहलवान नायाब प्रदर्शन करेंगे।
ग्लासगो जाने वाले पुरुष पहलवान
अमित दहिया (57 किलोग्राम), बजरंग पूनिया (61 किलोग्राम), योगेश्वर दत्त (65 किलोग्राम), सुशील कुमार (74 किलोग्राम), पवन कुमार (86 किलोग्राम), सत्यव्रत (97 किलोग्राम), राजेश तोमर (120 किलोग्राम).
ग्लासगो जाने वाली महिला पहलवान
विनेश फोगाट (48 किलोग्राम), ललिता (53 किलोग्राम), बबिता कुमारी (55 किलोग्राम), साक्षी मलिक (58 किलोग्राम), दीपिका जाखड़ (63 किलोग्राम), नवजोत कौर (69 किलोग्राम), ज्योति (75 किलोग्राम).


Friday 4 July 2014

ग्लासगो में चमकदार प्रदर्शन की चुनौती

बात खेल की हो या रण की जो मैदान में पौरुष दिखाता है, वही सिकंदर कहलाता है। स्काटलैण्ड की राजधानी ग्लासगो में 71 देशों के लगभग साढ़े छह हजार खिलाड़ियों के पौरुष की परीक्षा लेने को खेल मंच सज चुके हैं। तैयारियां मुकम्मल हो चुकी हैं। इंतजार है तो सिर्फ खिलाड़ियों का। राष्ट्रमण्डल खेलों की तीसरी बार मेजबानी करने जा रहे स्काटलैण्ड में 23 जुलाई से तीन अगस्त तक होने वाले राष्ट्रमण्डल खेलों पर किसी की नजर हो या नहीं भारतीय खेलप्रेमियों की जरूर है। यही वह खेल मंच है जहां भारतीय खिलाड़ियों ने यदा-कदा ही सही पर नायाब प्रदर्शन किया है। कमतर तैयारियों के बीच ग्लासगो जा रहे भारतीय खिलाड़ियों पर दिल्ली के प्रदर्शन को दोहराने का दबाव तो चमकदार प्रदर्शन की चुनौती है।
भारत ने आजादी के बाद बेशक हर क्षेत्र में खूब तरक्की की हो पर खेलों पर उतना ध्यान नहीं दिया गया जितना दिया जाना चाहिए। इन दिनों पूरे विश्व में फुटबाल की खुमारी छाई हुई है, पर हम सिर्फ तमाशबीन बने देर रात तक दूसरे के लिए तालियां पीट रहे हैं। भारत में दुनिया के नम्बर एक खेल फुटबाल को क्रिकेट जैसी लोकप्रियता कभी हासिल नहीं हो सकी। विश्व रैंकिंग में हमारी राष्ट्रीय टीम 147वें नम्बर पर है। दुर्भाग्य की बात है कि लगभग सवा अरब की जनसंख्या वाले हमारे देश में 11 विश्वस्तरीय खिलाड़ी अब तक तैयार नहीं हो सके हैं। फुटबाल ही नहीं उचित प्रशिक्षण, प्रोत्साहन, प्रबंधन आदि के अभाव में कमोबेश बहुत से खेलों का यही हाल है। क्रिकेट अपनी व्यावसायिकता के कारण बेशक खूब फल-फूल रहा हो, पर अन्य खेलों की स्थिति काफी दयनीय है। फिर भी यह देखना सुखद है कि कुछ खिलाड़ी अपने बिंदास प्रदर्शन से विश्व स्तर पर भारत का नाम ऊंचा कर रहे हैं। टेनिस में सानिया मिर्जा, लिएंडर पेस, महेश भूपति, बैडमिंटन में साइना नेहवाल, पीवी सिंधू, मुक्केबाजी में एमसी मैरीकाम, विजेन्दर सिंह, कुश्ती में सुशील कुमार, निशानेबाजी में गगन नारंग, अभिनव बिन्द्रा, राज्यवर्द्धन सिंह राठौर, विजय कुमार, ओमकार सिंह, एथलेटिक्स में मिल्खा सिंह, पीटी ऊषा, अंजू बॉबी जॉर्ज, कृष्णा पूनिया जैसे खिलाड़ियों ने भारतीयों को सफलता का स्वाद जरूर चखाया है।
दिल्ली राष्ट्रमंडल खेलों में कई बेनाम प्रतिभाओं ने भी अपने शानदार प्रदर्शन से दुनिया का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया तो 2012 के लंदन ओलम्पिक में पहली बार छह पदक जीतकर भारतीय खिलाड़ियों ने इतिहास रचा था, पर ग्लासगो में हमारे खिलाड़ियों के प्रदर्शन पर संदेह के बादल मंडरा रहे हैं। खेल में लय व जीत की प्रतिबद्धता बनाए रखना हमेशा चुनौती होती है। इन्हीं चुनौतियों का बोझ लिए सैकड़ों भारतीय खिलाड़ी ग्लासगो में होने जा रहे 20वें राष्ट्रमण्डल खेलों में दमखम दिखाने को बेताब हैं। 1930 से प्रारम्भ हुए इन खेलों में भारतीय खिलाड़ी 15 बार शिरकत कर चुके हैं। भारत ने 1930, 1950, 1962 और 1986 में इन खेलों में हिस्सा नहीं लिया था। 1938 और 1954 में हुए खेल भारतीय खिलाड़ियों के लिए बुरे फलसफे की तरह रहे तब हमें बिना पदक लौटना पड़ा था। इन खेलों में अब तक भारतीय खिलाड़ियों ने 141 स्वर्ण, 123 रजत तथा 104 कांसे के तमगों सहित कुल 372 पदक जीते हैं।
राष्ट्रमण्डल खेलों की जहां तक बात है, इसमें अब तक आस्ट्रेलियाई खिलाड़ियों का ही डंका पिटा है। कंगारुओं को इंग्लैण्ड और कनाडा के खिलाड़ियों से यदा-कदा चुनौती भी मिली पर उनके सिरमौर प्रदर्शन को कभी आंच नहीं आई। आस्ट्रेलिया इन खेलों में अब तक 803 स्वर्ण, 673 रजत तथा 604 कांस्य सहित कुल 2080 पदकों के साथ शीर्ष पर है जबकि अंग्रेज खिलाड़ी 612 स्वर्ण, 614 रजत और 612 कांस्य तमगों के साथ कुल 1838 पदक जीतकर दूसरे तो कनाडाई खिलाड़ी 436 स्वर्ण, 459 रजत और 493 कांस्य सहित कुल 1388 पदक जीतकर तीसरे स्थान पर हैं। कुल पदकों के मामले में भारत चौथे, न्यूजीलैण्ड पांचवें, दक्षिण अफ्रीका छठे तथा स्कॉटलैण्ड सातवें स्थान पर है। इस बार अपने दर्शकों के बीच स्कॉटलैण्ड चमकदार प्रदर्शन कर एक सीढ़ी ऊपर तो भारत एक पायदान नीचे आ सकता है। इन खेलों में अब तक 55 देश ही पदकों का खाता खोल सके हैं। दिल्ली राष्ट्रमण्डल खेलों में भारत अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए    38 स्वर्ण, 27 रजत तथा 36 कांस्य पदक जीतकर आस्ट्रेलिया के बाद दूसरे स्थान पर रहा था। यह पहला अवसर रहा जब भारत ने इन खेलों में पदकों का शतक (101) लगाया था। दिल्ली में आस्ट्रेलियाई खिलाड़ियों ने 74 स्वर्ण, 55 रजत तथा 48 कांस्य सहित कुल 177 पदक जीते थे तो इंग्लैण्ड 37 स्वर्ण, 59 रजत तथा 46 कांस्य पदक के साथ तीसरे तथा कनाडा 26 स्वर्ण, 17 रजत और 32 कांस्य पदकों के साथ चौथे स्थान पर रहा था। भारत ने दिल्ली में 12 खेलों में पदकों का खाता खोला था जिसमें सर्वाधिक 30 पदक निशानेबाजों ने दिलाए थे। हमारे पहलवानों ने 19, एथलीटोें ने 12 तथा वेटलिफ्टरों और तीरंदाजों ने आठ-आठ पदकों से अपने गले सजाए थे। भारत को मुक्केबाजी में सात, टेबल टेनिस में पांच, बैडमिंटन तथा लॉन टेनिस में चार-चार पदक मिले थे।
अपने दर्शकों और क्रीड़ांगनों में उन खेलों में भी भारतीय खिलाड़ियों ने शानदार प्रदर्शन किया था जिनमें सम्भावनाएं क्षीण थीं। व्यक्तिगत स्वर्ण पदकों की बात करें तो शूटर गगन नारंग (4), ओमकार सिंह (3), विजय कुमार (3), गुरप्रीत सिंह (2), अनिसा सैयद और हरप्रीत सिंह ने दो-दो स्वर्ण पदकों पर सटीक निशाने लगाये थे। तीरंदाजी में दीपिका कुमारी (2) और राहुल बनर्जी ने भी स्वर्णिम लक्ष्य पर निशाना साधा था तो शटलर साइना नेहवाल, ज्वाला गुट्टा और अश्वनी पोनप्पा के गले भी स्वर्ण फलक से सुशोभित हुए थे। एथलेटिक्स में डिस्कस थ्रोवर कृष्णा पूनिया ने स्वर्णिम इतिहास लिखा तो मनजीत कौर, साइनी जोसे, अश्वनी अंकुजी और मनदीप कौर की चौकड़ी ने चार गुणा 400 मीटर रिले दौड़ का स्वर्ण पदक जीतकर राष्ट्रमण्डल देशों को हतप्रभ किया था। इस बार इन खिलाड़ियों की डगर समय से प्रशिक्षक और पर्याप्त संसाधन न मिल पाने से थोड़ा कठिन जरूर है पर हमारे शूटर, पहलवान, शटलर और वेटलिफ्टर और मुक्केबाज अपना चमकदार प्रदर्शन दोहराने की क्षमता जरूर रखते हैं।  

Tuesday 1 July 2014

देश के खेल सिस्टम में सुधार की जरूरत: वीरेन्दर पूनिया

अमेरिकी और यूरोपीय देशों में स्कूल-कॉलेज स्तर से दिया जाता है ध्यान
आगरा। देश में यदि खेलों का स्तर सुधारना है तो सबसे पहले सिस्टम को सुधारना होगा। हमारे देश में खेलों की स्थिति संतोषजनक नहीं कही जा सकती।  अमेरिकी और यूरोपीय देशों में स्कूल-कॉलेज स्तर से न केवल ध्यान दिया जाता है बल्कि वहां खिलाड़ियों को सभी मूलभूत सुविधाएं भी प्रदान की जाती हैं यह कहना है द्रोणाचार्य अवॉर्डी वीरेन्दर सिंह पूनिया का।
अमेरिका में इन दिनों भारतीय डिस्कस थ्रोवर कृष्णा पूनिया को कॉमनवेल्थ गेम्स की तैयारियां करा रहे वीरेन्दर पूनिया ने खास बातचीत में बताया कि यदि हमें दुनिया के नामचीन देशों से खेलों में बराबरी करनी है तो सबसे पहले हमें स्कूल और कॉलेज स्तर से ही खिलाड़ियों को प्रोत्साहित करना होगा। उन्हें वे सुविधाएं देनी होंगी जोकि उनकी जरूरत हैं। श्री पूनिया ने बताया कि देश में हर प्रतियोगिता से पहले खिलाड़ियों पर खेलनहारों की नजर जाती है जबकि खेल अनवरत प्रक्रिया है इस पर 365 दिन नजर रखने की जरूरत होती है। देश के इस द्रोणाचार्य को मलाल है कि आजादी के बाद से खेलों के समुन्नत विकास पर उतना ध्यान नहीं दिया गया जितना देना चाहिए।
श्री पूनिया का कहना है कि अमेरिकी और यूरोपीय देशों के खिलाड़ी एक दिन में चैम्पियन नहीं बनते बल्कि वे सुविधाओं के बीच साल भर अपना खेल-कौशल निखारते हैं। वहां प्रतिभाओं की परख कर उन्हें बचपन से ही निखारा  जाता है। ग्लासगो कॉमनवेल्थ खेलों में भारतीय एथलीटों के प्रदर्शन पर पूनिया का कहना है कि जो ध्यान अब दिया जा रहा है उस पर पहले से ही प्रयास होने चाहिए थे। श्री पूनिया ने कहा कि कृष्णा की अमेरिका में अच्छी तैयारी चल रही है। वह ग्लासगो में स्वर्ण पदक जीतकर एथलेटिक्स में नया इतिहास दर्ज करना चाहती है। भारतीय एथलीटों ने 2010 के दिल्ली राष्ट्रमण्डल खेलों में 12 पदक जीते थे। उन खेलों में कृष्णा पूनिया स्वर्ण पदक जीतने वाली देश की पहली महिला और दूसरी भारतीय खिलाड़ी बनी थी। इससे पूर्व 1958 में फ्लाइंग सिख मिल्खा सिंह ने स्वर्ण पदक जीता था।
भारत में हैं 85 द्रोणाचार्य
देश में प्रशिक्षकों को प्रोत्साहित करने के लिए भारत सरकार ने 1985 से द्रोणाचार्य अवॉर्ड देना प्रारम्भ किया। अब तक देश में 85 प्रशिक्षकों को इस अवॉर्ड से नवाजा जा चुका है। सनद रहे भारत में अब तक एथलेटिक्स में 17  प्रशिक्षकों को द्रोणाचार्य अवॉर्ड मिल चुका है। वीरेन्दर पूनिया को वर्ष 2012 में द्रोणाचार्य अवॉर्ड दिया गया।
ओलम्पिक में अब तक किसी एथलीट को पदक नहीं
जहां तक भारतीय खिलाड़ियों के ओलम्पिक में पदक का सवाल है अब तक किसी एथलीट को यह सौभाग्य नहीं मिला है। अब तक सिर्फ  छह भारतीय एथलीट ही ट्रैक एण्ड फील्ड स्पर्धाओं के फाइनल में जगह बनाने में सफल हुए हैं। इनमें फ्लाइंग सिख मिल्खा सिंह, उड़नपरी पीटी ऊषा, श्रीराम सिंह, गुरुबचन सिंह रंधावा, लांग जम्पर अंजू बॉबी जॉर्ज और कृष्णा पूनिया शामिल हैं।