Friday, 17 July 2015

अवसर गंवाती कांग्रेस

‘खिसियानी बिल्ली खम्भा नोचे,’भारतीय राजनीति में कांग्रेस की मौजूदा स्थिति कुछ ऐसी ही नजर आ रही है। राजस्थान की अपनी दो दिवसीय यात्रा के दूसरे दिन कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने भूमि अधिग्रहण बिल पर प्रधानमंत्री मोदी और राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे पर जिस तरह तंज कसी है, उसे देखते हुए कांग्रेसी तो खुश हो सकते हैं लेकिन इससे देश के अन्नदाता और गरीबों का भला होगा, इसमें संदेह है। राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री मोदी पर सीधा हमला करते हुए कहा कि कांग्रेस 56 इंच की छाती को 5.6 इंच कर देगी। उन्होंने केन्द्र सरकार को चुनौती दी कि वह संसद में बिल पास करवा कर दिखाये। राहुल ने वसुन्धरा राजे सरकार को ललित मोदी की सरकार करार देते हुए कहा कि वह लंदन से चलती है। उन्होंने वसुन्धरा और ललित मोदी के पुराने व्यापारिक रिश्तों पर न केवल तंज कसी बल्कि कहा कि ललित ने राजस्थान में 17 हजार स्कूल बंद करवा दिए। कांग्रेस उपाध्यक्ष ने मध्यप्रदेश के व्यापम घोटाला सहित छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र की सरकारों पर भी निशाना साधा। भूमि अधिग्रहण विधेयक पर कांग्रेस के निहितार्थ कुछ भी हों, फिलवक्त भारतीय राजनीतिक जंग में कांग्रेस की गति-मति का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि सत्ता की क्रीज से बाहर हुए उसे साल भर से ज्यादा हो गया लेकिन विपक्षी पार्टी के रूप में उसने अब तक एक भी ऐसी गेंद नहीं फेंकी जिससे सत्ताधारी पार्टी की गिल्लियां बिखरती दिखी हों। तीन दिन पहले भूमि अधिग्रहण बिल के मुद्दे पर हुई नीति आयोग की बैठक में कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों के शामिल नहीं होने की बात हो या संसद के आगामी सत्र में विरोध को लेकर कांग्रेस के अंदरखाने  की खबरें, दोनों ही मामलों में पार्टी सही दिशा तय करने में नाकामयाब साबित हुई है। बैठक में कांग्रेस शासित मुख्यमंत्रियों का भाग न लेना एक तरह से मौका गंवाने वाली बात है। नीति आयोग की बैठक में अगर कांग्रेस के मुख्यमंत्री एक स्वर से कुछ तर्क रखते तो माना जाता कि वह भूमि अधिग्रहण कानून में बदलावों को लेकर एतराज जताने वाले अन्य दलों के साथ है और एक तरह से उनकी अगुआई कर रही है। मानसून सत्र में कांग्रेस का इरादा भले ही कुछेक मुद्दों पर विरोध जताने और आक्रामक दिखने का हो लेकिन उसे यह नहीं भूलना चाहिए कि बंदर-कूद से बात बनने की बजाय बिगड़ भी सकती है। धीरज खोती कांग्रेस को मानसून सत्र में हंगामा खड़ा करने या सिर्फ खबरों में बने रहने की सोच के बजाय सकारात्मक विपक्ष की भूमिका का निर्वहन करने का मन बनाना चाहिए। अच्छा होगा, सौ साल के अपने इतिहास का दम्भ भरने वाली कांग्रेस अपने महान नेताओं के विरोध के तौर-तरीकों को आत्मसात कर ऐसा नजीर पेश करे ताकि मुल्क की आवाम न केवल उससे पुन: जुड़े बल्कि उसे लगे कि वह वाकई गरीबों की हमदर्द है।

No comments:

Post a Comment