Tuesday, 21 March 2017


योगी की टीम से चेतन चौहान और मोहसिन रजा लगाएंगे चौके-छक्के

क्रिकेटर मोहसिन रजा नहीं हैं किसी सदन के सदस्य, राजनीति में तेली का काम तमोली से कराने का चलन                              
                                  श्रीप्रकाश शुक्ला
मथुरा। देश के सबसे बड़े राज्य उत्तरप्रदेश की बागडोर सम्हाल चुके योगी आदित्यनाथ की मौजूदा मंत्रियों की टीम में दो क्रिकेटर भी शामिल हैं। अमरोहा जिले की नौगांवा सादात सीट से विधायक बने चेतन चौहान को कैबिनेट मंत्री तो मोहसिन रजा को राज्य मंत्री के रूप में योगी आदित्यनाथ की टीम में शामिल किया गया है। योगी आदित्यनाथ की टीम में शामिल इन मंत्रियों में क्या किसी एक की खेल मंत्री के रूप में ताजपोशी होगी यह तो मंत्रिमण्डल के विभाग बंटवारे के बाद ही पता चलेगा। फिलहाल उत्तर प्रदेश के खिलाड़ी और खेलप्रेमी चाहते हैं कि इनमें से ही किसी एक को खेल मंत्री पद से नवाजा जाए।
भारतीय टीम के प्रारम्भिक बल्लेबाज रहे चेतन चौहान अमरोहा से दो बार सांसद रह चुके हैं। इस बार उन्होंने अमरोहा जिले की नौगांवा सादात सीट पर भगवा फहराया है। चेतन चौहान को केन्द्र सरकार ने निफ्ट के चेयरमैन का पद प्रदान किया था। वे गजरौला इंडस्ट्रियल एसोसियेशन की अध्यक्ष हैं तथा यहां उनकी एक पेपर मिल भी है। दूसरी तरफ मूलतः उन्नाव निवासी और लखनऊ को अपनी कर्मभूमि बना चुके क्रिकेटर मोहसिन रजा अभी किसी सदन के सदस्य नहीं हैं। जातीय समीकरण को ध्यान में रखते हुए कमल दल ने तुनकमिजाज मोहसिन रजा को राज्य मंत्री बनाया है। मोहसिन रजा बतौर क्रिकेटर रणजी ट्रॉफी में उत्तर प्रदेश का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। मोहसिन रजा ने 2013 में भाजपा का दामन थामा था लेकिन अब तक कोई चुनाव नहीं लड़े जबकि अब उन्हें कैबिनेट में शामिल किया गया है लिहाजा उन्हें छह माह के भीतर किसी विधानसभा सीट से चुनाव लड़कर जीत दर्ज करनी होगी।
मोहसिन रजा का परिवार कांग्रेस से जुड़ा रहा है। वे उन्नाव के जमींदार परिवार से सम्बन्ध रखते हैं। मोहसिन ने अपना राजनीतिक करियर कांग्रेस से ही शुरू किया था। वे 1999 में कांग्रेस स्पोर्ट्स सेल में रह चुके हैं। मोहसिन के भाई अर्शी रजा अब भी कांग्रेस में हैं। दोनों भाई दो विचारधारा की पार्टियों में होने के बावजूद एक-दूसरे से बहुत प्यार करते हैं। सियासत उनके रिश्तों में कभी बाधा नहीं बनी। मोहसिन का निकाह पूर्व भाजपा नेता और वर्तमान में मणिपुर की राज्यपाल नजमा हेपतुल्ला की नातिन से हुआ है। मोहसिन अभिनय के क्षेत्र में भी किस्मत आजमा चुके हैं। वे दूरदर्शन के प्रसिद्ध धारावाहिक नीम का पेड़ में काम कर चुके हैं और उन्हें 1995 में प्रिंस ऑफ लखनऊ चुना गया था।
उत्तर प्रदेश में खेलों की खस्ताहाल स्थिति को देखते हुए प्रदेश के खिलाड़ियों और खेलप्रेमियों को भरोसा है कि योगी आदित्यनाथ चेतन चौहान तथा मोहसिन रजा में से किसी एक को खेल मंत्री पद से नवाज कर एक नजीर स्थापित कर सकते हैं। देखा जाए तो केन्द्र सरकार में भी ओलम्पिक पदकधारी राज्यवर्धन सिंह राठौर बतौर मंत्री नरेन्द्र मोदी की टीम में शामिल हैं लेकिन खेल मंत्री का दायित्व दिल्ली के विजय गोयल सम्हाल रहे हैं। दरअसल यह देश की विडम्बना ही है कि अधिकांश खेल महासंघों में राजनीतिज्ञों की पैठ होने के चलते आज तक किसी राज्य का खेल मंत्री किसी खिलाड़ी को नहीं बनाया गया है।

आजादी के बाद से ही कई खिलाड़ियों ने संन्यास के बाद राजनीति को तरजीह दी है। चुनाव लड़े और जीते भी लेकिन किसी को आज तक खेल मंत्री पद से नहीं नवाजा गया। हाल ही पंजाब के चुनावों में भी कांग्रेस से नवजोत सिंह सिद्धू जीतकर आए हैं, उन्हें उप-मुख्यमंत्री पद से नवाजा गया है। देखा जाए तो राजनीति में तेली का काम तमोली से कराने के चलते ही आज तक किसी भी खिलाड़ी को खेलों की सेहत सुधारने की जवाबदेही नहीं सौंपी गई है। दरअसल राजनीतिज्ञ खेलों को अपनी आरामतलबी का जरिया मानते हैं, ऐसे में वे नहीं चाहते कि किसी खिलाड़ी को खेल मंत्री की बागडोर सौंपी जाए और खेलों में पारदर्शिता आए। खिलाड़ी को खेलों की बागडोर सौंपने से खिलाड़ियों का ही भला होगा लेकिन राजनीतिज्ञ कभी नहीं चाहेंगे कि खेलों की त्रिवेणी में खिलाड़ी डुबकी लगाएं। तो क्या योगी राज में भी खेलों की शुचिता का ही चीरहरण होगा और चेतन चौहान तथा मोहसिन रजा हाथ मलेंगे?     

योगी को चुनौतियों का ताज

श्रीप्रकाश शुक्ला
देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में अप्रत्याशित और अकल्पनीय विजय पताका फहराने के बाद भारतीय जनता पार्टी ने देश की आवाम को यह संदेश दिया है कि वह सही मायने में कांग्रेस का विकल्प बन चुकी है। आज भारतीय जनता पार्टी शिखर पर आरूढ़ है, सो उस पर सवा अरब की जनाकांक्षा का भारी बोझ भी है। सबका साथ, सबका विकास कहने में बेशक सरल बात लगती हो लेकिन उस पर अमल और उसे सही चरितार्थ कर दिखाना बेहद मुश्किल काम है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उत्तर प्रदेश की सल्तनत के सरताज योगी आदित्यनाथ को भी पता है कि सत्ता हासिल करने से कहीं अधिक चुनौतीपूर्ण प्रजा का पालन है। योगी आदित्यनाथ की मुख्यमंत्री पद पर ताजपोशी के बाद भारतीय जनता पार्टी की रीति-नीति को लेकर तरह-तरह की बातें हो रही हैं। यह सच है कि योगी आदित्यनाथ हिन्दुत्व के अलम्बरदार हैं लेकिन उनके कामकाज को देखे बिना जो अनर्गल प्रलाप हो रहा है उसे मिथ्या ही कहा जाएगा। योगी आदित्यनाथ को चुनौतियों का जो ताज मिला है, उसके साथ वह न्याय कर पाएंगे इसमें संदेह करना जल्दबाजी होगी।  
भारतीय जनता पार्टी ने योगी आदित्यनाथ को देश के सबसे बड़े सूबे की कमान सौंपकर यदि वर्ष 2019 के लोकसभा चुनावों का आधार तैयार करने की पहल की है तो आखिर उसमें गलत क्या है। जनादेश पा लेने के बाद किसी भी दल और उसके विधायकों को यह अधिकार है कि वे जिसे चाहें अपना मुख्यमंत्री चुनें, बशर्ते कि वह संवैधानिक अर्हताएं पूरी करता हो। 45 साल की आयु में ही संसद का अच्छा खासा अनुभव रखने वाले योगी आदित्यनाथ सभी अर्हताएं पूरी भी करते हैं। योगी के नाम पर हाय-तौबा मचाने वालों को कम से कम इस बात का इल्म तो होना ही चाहिए कि इससे पहले अन्य प्रदेशों में जिन काठ के उल्लुओं ने राज किया उनसे वह लाख गुना अच्छे हैं। हिन्दुत्व का पहरुआ होना बुरी बात नहीं है। चौतरफा चुनौतियों से घिरे उत्तर प्रदेश को बीमारू राज्यों की श्रेणी से बाहर निकाल कर विकास के मार्ग पर लाने की जो चुनौती योगी आदित्यनाथ के सामने है, इसमें वह अवश्य ही सफल साबित होंगे। जरूरी प्रशासनिक अनुभव की जहां तक बात है, इसे कोई पेट से सीखकर नहीं आता। 2012 में जब अखिलेश यादव सूबे के सरदार बने थे तब उनके पास भी अनुभव की खासी कमी थी।
योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाए जाने के साथ ही भाजपा की नेक-नीयत पर अनगिनत सवाल उठाए जा रहे हैं, जबकि आलाकमान ने बिना सोचे-समझे ही देश के सबसे बड़े राज्य के नेतृत्व का फैसला नहीं किया है। राम मंदिर, समान नागरिक आचार संहिता और धारा 370 सरीखे परम्परागत मुद्दों का सुफल कमल दल को पता है। सही मायने में भाजपा इन्हीं मुद्दों से उत्तर प्रदेश के चुनावी रंगमंच में वोटों का साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण करने में सफल हुई और उसके परिणाम उम्मीदों से भी कहीं बेहतर निकले। पहला संकेत तो किसी भी मुस्लिम को टिकट न दिये जाने से ही चला गया था, बाकी कसर कब्रिस्तान-श्मशान, ईद-दीपावली जैसे जुमलों ने पूरी कर दी। इस बात से कौन इनकार कर सकता है कि योगी आदित्यनाथ की पहचान एक भाजपा सांसद से ज्यादा हिन्दुत्व के मुखर प्रवक्ता की रही है। हिन्दू राष्ट्र, गौरक्षा और लव जेहाद उनके ब्रह्मास्त्र हैं। ऐसे में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद पर उनकी ताजपोशी का राजनीतिक संदेश दूर तक जायेगा। योगी राजपूत समुदाय से हैं। इसलिए जातीय पहचान की जंग में जकड़ी उत्तर प्रदेश की राजनीति में सामाजिक समरसता को बढ़ावा देने के खातिर ही भाजपा ने पिछड़े वर्ग से केशव प्रसाद मौर्य और ब्राह्मण समुदाय से दिनेश शर्मा को उपमुख्यमंत्री बनाया है। भारतीय जनता पार्टी मुस्लिमों की दुश्मन नहीं है, इसका संकेत पार्टी ने मुस्लिम समुदाय से मोहसिन रजा को राज्यमंत्री बनाकर दिया है। कहना नहीं होगा कि मंत्रिमंडल के अन्य सदस्यों के चयन में भी पार्टी ने सामाजिक और क्षेत्रीय समीकरण को ध्यान में रखा है। हां दल-बदलुओं को मंत्री बनाये जाने से जो संदेश गया है, वह दरअसल भारतीय जनता पार्टी की अलग तरह की राजनीतिक संस्कृति के वाहक होने के दावों पर अनुत्तरित सवाल जरूर है।
उत्तरप्रदेश के 21वें मुख्यमंत्री के रूप में योगी आदित्यनाथ को चुनकर भाजपा ने अपनी मंशा और रणनीति दोनों स्पष्ट कर दी है। अब ध्रुवीकरण, तुष्टिकरण, बहुसंख्यकों का हित, अल्पसंख्यकों की सुध जैसे राजनीतिक लाग-लपेट की कोई आवश्यकता नहीं। जो है, सबके सामने है। योगी आदित्यनाथ गोरखपुर से पांच बार लगातार सांसद रह चुके हैं, इससे जनता के बीच उनकी पकड़ का अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है। योगी आदित्यनाथ की सिर्फ गोरखपुर ही नहीं बल्कि समूचे पूर्वांचल में धाक है। सच कहें तो जिसे हिन्दुत्व का जरा भी भान है, वह योगी का मुरीद है। योगी की छवि आक्रामक तेवर वाले हिन्दुत्व के पुरोधा की रही है, जो धर्म और राजनीति को अलग नहीं समझता। योगी आदित्यनाथ राम मंदिर बनाने के प्रबल समर्थक रहे हैं। उम्मीद है कि सत्ता की सर्वोच्च कुर्सी पर आसीन होकर वह धर्म की राजनीति पर जोर देने की बजाय ऐसा माहौल बनाएंगे कि जनता के हर तबके को सुरक्षा का अहसास हो, धर्म अथवा जाति के कारण किसी मन में असुरक्षा का बोध नहीं हो। भारतीय जनता पार्टी की जहां तक बात है उसने जब से सत्ता में वापसी की है, तभी से उसने सिर्फ और सिर्फ विकास के दावे पर ही जोर दिया है। उत्तर प्रदेश चुनाव से पहले ही उसने साफ कर दिया था कि सत्ता में आने के बाद वह प्रदेश के विकास के साथ-साथ कानून-व्यवस्था, महिलाओं के लिए सुरक्षित माहौल, किसानों की स्थिति सुधारने की पुरजोर कोशिश करेगी।
यह सौ फीसदी सच है कि उत्तर प्रदेश में संवैधानिक तौर पर अब योगी आदित्यनाथ ही सर्वोपरि हैं। योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री पद से नवाज कर भारतीय जनता पार्टी ने उन्हें पूर्वी उत्तर प्रदेश के साथ-साथ पश्चिमी उत्तर प्रदेश को भी साधने का काम दिया है। योगी आदित्यनाथ गेरुवा वस्त्रधारी हैं। उत्तर प्रदेश ही नहीं देश भर में इनकी छवि हिन्दुत्ववादी है। हमेशा अपने बयानों से पार्टी को असहज करने वाले योगी के सामने अब सबसे बड़ी चुनौती सबको साथ लेकर चलने की है। योगी पर हमेशा से यह आरोप लगते रहे हैं कि वह राजनीति और धर्म को मिलाकर चलते हैं। वह अकसर अपने भाषणों में कहते भी रहे हैं कि बिना धर्म के राजनीति नहीं हो सकती। राजनीति धर्म का एक छोटा सा हिस्सा मात्र है। अब वह देश के सबसे बड़े राज्य के मुखिया हैं ऐसे में उनकी सबसे बड़ी चुनौती राज्य के अल्पसंख्यक वर्ग में समाये डर को दूर भगाकर उनके विश्वास को जीतना है। योगी को अल्पसंख्यकों का दिल जीतने के साथ ही विरासत में मिली लचर कानून व्यवस्था की स्थिति को भी हर हाल में सुधारना होगा।
देखा जाए तो मानवाधिकार जैसा शब्द उत्तर प्रदेश पुलिस की शब्दावली में नहीं होने से वह हमेशा निरंकुश काम करती रही है। पुलिस प्रशासन में पारदर्शिता एक बड़ी समस्या है। यहां की पुलिस व्यवस्था का राजनेताओं से करीबी और सत्ताधारी दल के प्रति ज्यादा झुकाव हमेशा से ही जनता के लिए मुसीबत रहा है। बतौर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को उत्तर प्रदेश पुलिस की साख को समय रहते सुधारना होगा। योगी के सामने महिलाओं की सुरक्षा भी बड़ी चुनौती होगी। उन पर यह दबाव होगा कि वह कैसे गुजरात, महाराष्ट्र की तरह ऐसा माहौल बनाएं कि राज्य की महिलाएं दिन-रात बेखौफ अपने घर से निकल सकें। उत्तर प्रदेश हमेशा से ही जातिगत राजनीति का गढ़ रहा है। यहां जाति आधारित राजनीति के वर्चस्व की वजह से विकास की राजनीति हमेशा निचले पायदान पर रही है। राजनीतिक तौर पर विकसित राज्य होने के बावजूद उत्तर प्रदेश विकास के मामले में अभी तक बीमारू राज्यों की श्रेणी में ही है। योगी आदित्यनाथ साइंस के छात्र रहे हैं, उनसे राज्य की जनता को अपेक्षा होगी कि वह प्रदेश को बीमारू राज्य की श्रेणी से बाहर निकाल कर यहां के युवाओं को रोजगार मुहैया कराएं ताकि उनका पलायन रोका जा सके। योगी आदित्यनाथ पर प्रदेश के चहुंमुखी विकास की भी चुनौती होगी। सपा सरकार में क्षेत्र विशेष का विकास ही चर्चा में रहा है। उम्मीद है कि योगी सम्पूर्ण प्रदेश के विकास को अमलीजामा पहनाएंगे और हर हाथ को काम मिलेगा।

उत्तर प्रदेश की समाजवादी पार्टी की सरकार में यह आरोप लगते रहे हैं कि पुलिस से लेकर हर विभाग की नौकरी में लिस्ट पहले से ही तैयार हो जाती थी। यहां तक कि उत्तर प्रदेश लोकसेवा आयोग की नौकरियों में भी पारदर्शिता पर सवाल उठे। आयोग के चयन को कोर्ट में चुनौती दी गई तथा लोकसेवा आयोग के अध्यक्ष को कोर्ट के आदेश के बाद हटाया गया। अखिलेश यादव सरकार की पराजय का यह सबसे अहम कारण रहा है। अब योगी आदित्यनाथ के सामने युवाओं को लेकर कुछ ऐसे कदम उठाने की चुनौती है जिससे जाति के आधार पर नौकरियों में दी जा रही अवैध और असंवैधानिक प्राथमिकताओं पर रोक लगे तथा युवा सरकारी नौकरियों में चयन को लेकर किसी प्रकार से आशंकित न हों। योगी के सामने प्रदेश के धरती पुत्रों की माली हालत सुधारने के साथ ही 2019 में होने वाले लोकसभा चुनावों में पार्टी को प्रचंड जीत दिलाने का जिम्मा भी होगा। समय कम है लिहाजा अल्पसमय में ही योगी आदित्यनाथ को ऐसे काम करने होंगे जिनसे राज्य के अल्पसंख्यक से लेकर बहुसंख्यक समुदाय तक को लगे कि भाजपा सिर्फ राम मंदिर निर्माण की ही पक्षधर नहीं बल्कि राम राज्य भी ला सकती है।