प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पांच मध्य एशियाई देशों और रूस की अपनी यात्रा के पहले चरण में सोमवार को उज्बेकिस्तान की राजधानी ताशकंद पहुंचे। मोदी की प्रधानमंत्री के रूप में किसी मध्य एशियाई देश की यह पहली यात्रा है। मोदी जहां जाते हैं, अपनी छाप छोड़ आते हैं। वह अपने प्रधानमंत्रित्व कार्यकाल में लगभग दो दर्जन देशों की यात्रा कर चुके हैं। प्रधानमंत्री मोदी की रूस और पांच देशों की आठ दिवसीय यात्रा कई अर्थों में महत्वपूर्ण है। इस यात्रा से इन देशों के बीच द्विपक्षीय सम्बन्धों की बेहतरी के साथ-साथ भारत के राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक जुड़ाव और भी प्रगाढ़ होने की उम्मीद है। रूस की जहां तक बात है, वह हमेशा से भारत का भरोसेमंद सहयोगी रहा है। मौजूदा समय में दोनों मुल्कों के बीच व्यापार अपेक्षाओं और सम्भावनाओं की दृष्टि से बहुत ही कम है। मोदी इस बाबत कुछ न कुछ सकारात्मक उम्मीद जगा सकते हैं। व्यापार और निवेश की दृष्टि से देखें तो भारत के लिए रूस की अपेक्षा अमेरिका, चीन और जापान अधिक फायदेमंद हैं। भारत के उज्बेकिस्तान, कजाकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, किर्गिजस्तान व ताजिकिस्तान के साथ सदियों से पुराने और सांस्कृतिक सम्बन्ध तो हैं लेकिन आर्थिक मोर्चे पर स्थिति काफी निराशाजनक है। इन देशों और भारत के बीच व्यापारिक सम्बन्ध का आंकड़ा महज 1.5 बिलियन डॉलर है। प्रधानमंत्री की रूस यात्रा के दौरान भारतीय रक्षा क्षेत्र में बड़े निवेश की उम्मीद है जिसका आधार रक्षा क्षेत्र में 49 फीसदी के विदेशी निवेश का है। मोदी मध्य एशिया के पांच देशों की अपनी यात्रा में प्राकृतिक गैस, खनिज, धातु, कृषि उत्पाद, दवाइयां, वस्त्र और रसायन जैसे क्षेत्र में नये व्यापारिक अवसरों को तलाश सकते हैं तो दूसरी तरफ कई साल से उत्तर-दक्षिण यातायात गलियारा बनाने के जो प्रयास हो रहे हैं, उनको भी गति मिल सकती है। लगभग 5,600 किलोमीटर लम्बे इस रास्ते को यदि पर लगते हैं तो भारत जल मार्ग, रेल और सड़क मार्ग से ईरान, अजरबेजान और रूस के बीच माल ढुलाई का काम सहजता से कर सकेगा। मोदी की इस यात्रा में इन देशों के बड़े व्यापारिक शहरों व बंदरगाहों को जोड़ने की कवायद पर भी मुहर लग सकती। यदि ऐसा हुआ तो वह सोने पर सुहागा साबित होगा। व्यापारिक दृष्टि से मध्य एशिया भारतीय नजरिये से इसलिए और अधिक जरूरी हो जाता है क्योंकि पिछले एक दशक में चीन ने इस क्षेत्र में करीब 33 बिलियन डॉलर का निवेश किया है। अंतरराष्ट्रीय राजनीति व अर्थव्यवस्था में भारत की मजबूत स्थिति के लिए यह क्षेत्र काफी महत्वपूर्ण है। वर्ष 1991 में स्वतंत्र हुए इन देशों की एक साथ होने वाली भारतीय प्रधानमंत्री की यह पहली यात्रा इस बात का संकेत है कि भारत इन देशों के प्रति गम्भीर है। मोदी की इस यात्रा की छोटी उपलब्धियां भी खास होंगी क्योंकि यह मोदी का श्रीगणेश है। देश प्रधानमंत्री मोदी की इस यात्रा से सकारात्मक परिणामों की उम्मीद कर सकता है।
No comments:
Post a Comment