Thursday, 2 July 2015

खेल को खेल रहने दो

हाल में बांग्लादेश ने पहली बार भारत से वनडे सीरीज जीती। इसके बाद बांग्लादेश में जो कुछ हो रहा है, वह वहां के क्रिकेट के लिए शुभ संकेत नहीं है। बांग्लादेश में मीडिया ने जिस तरीके से भारतीय टीम का मजाक उड़ाया है, वह खेलभावना के खिलाफ है। खिलाड़ियों और टीम का अनादर है। एक प्रमुख अखबार में भारतीय टीम के धोनी, कोहली, रोहित शर्मा, रहाणे, शिखर धवन, अश्विन और जड़ेजा का सिर आधा मुड़ा हुआ दिखाया गया है। साथ में बांग्लादेशी गेंदबाज मुस्तफिजुर को एक कटर के रूप में पेश किया गया है। यह सही है कि बांग्लादेश ने बेहतर खेल दिखाया और पहले दोनों वनडे मैचों में जीत हासिल की (तीसरा मैच भारत ने जीता था), लेकिन इसका यह अर्थ नहीं है कि वह दुनिया की नम्बर एक टीम बन गयी है। ऐसा भी नहीं है कि यह बांग्लादेश की किसी वनडे में पहली जीत थी।
इसी देश ने कभी वर्ल्ड कप में भारत की कहानी खत्म कर दी थी। वैसे भी बांग्लादेश की टीम एक दशक से क्रिकेट खेल रही है। इस दौरान अनेक दिग्गज टीमों को उसने हराया और अनेक टीमों से हारी। यह खेल है और खेल में हार-जीत होती रहती है। इसलिए अगर भारतीय टीम हार गयी, तो इस हद तक जाकर खिलाड़ियों का मजाक उड़ाना उचित नहीं है। यह सही है कि बांग्लादेश के तेज गेंदबाज मुस्तफिजुर ने बेहतरीन खेल दिखाया और दो मैचों में तो भारतीय खिलाड़ियों के पास उसकी काट नहीं दिख रही थी, लेकिन तीसरे में उसकी धुनाई भी हुई। लेकिन बांग्लादेश के अखबार ने मजाक का पात्र बनाया भारतीय टीम को। इतिहास गवाह है कि दर्जनों ऐसे मौके आये हैं, जब भारत ने बांग्लादेश को बुरी तरह से हराया, तो क्या भारतीय अखबार या मीडिया वहां के खिलाड़ियों का मजाक उड़ाते? क्रिकेट में अपमानित करने के कुछ अवसर पहले भी आये हैं। 1980 के दशक में जब भारतीय टीम आॅस्ट्रेलिया में पहला टेस्ट हार गयी थी, तो ग्रेग चैपल ने कमेंट किया था- भारतीय टीम हमारा समय खराब कर रही है। उसे भारत लौट जाना चाहिए। इसका नतीजा यह निकला कि दूसरा टेस्ट किसी तरह ड्रॉ करने में भारत सफल रहा और तीसरे में उसने आॅस्ट्रेलिया को सौ रन के भीतर आउट कर दिया था। इसलिए एक जीत के बाद घमंड करने की प्रवृत्ति कतई उचित नहीं। बांग्लादेश भारत का पड़ोसी है। जब दोनों देशों के बीच खेल होते हैं, तो सिर्फ मनोरंजन के लिए नहीं, दोनों देशों के रिश्ते इससे मजबूत होते हैं, दूरियां कम होती हैं। बीसीसीआई ने बांग्लादेश क्रिकेट को खड़ा करने में बड़ी भूमिका अदा की है। ऐसी हरकतों का सिर्फ क्रिकेट पर नहीं, बल्कि दोनों देशों के संबंधों पर असर पड़ता है। एक-दो मैच या एक सीरीज से टीम इंडिया की ताकत का पता नहीं चल सकता। सम्भव है कि बांग्लादेश ने पहले पाकिस्तान को अपने घर में हराया, फिर भारत को, इसलिए अति उत्साह में वहां के अखबार ऐसा कदम उठा रहे हैं। खराब खेलने पर किसी टीम की आलोचना करना अलग बात है और विज्ञापन बना कर सुनियोजित तरीके से अपमानित करना अलग बात। ठीक है, अखबार पर सरकार का नियंत्रण नहीं है और इसमें बांग्लादेश क्रिकेट बोर्ड का हाथ नहीं है। पर वहां की सरकार को यह देखना होगा कि एक अखबार की गंदी हरकत का वहां के क्रिकेट पर क्या असर पड़ सकता है। आज भारत और पाकिस्तान एक-दूसरे के खिलाफ अपने देश में नहीं खेल सकते। यह दोनों देशों के बिगड़ते रिश्ते का प्रतिफल है। पाकिस्तान के हालात के कारण दुनिया की कोई अच्छी टीम वहां नहीं जा रही। हाल ही में सिर्फ जिम्बाब्वे की टीम ही वहां जा पायी।  मैच नहीं होने से पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड आर्थिक रूप से टूट गया है। इस बात को बांग्लादेश को भी समझना होगा। अगर ऐसा होता रहा, तो सम्भव है कि भारत आगे वहां खेलने से बचे। आवश्यक हुआ तो ‘बी’ या ‘सी’ टीम भेजेगा। ऐसी स्थिति में वहां क्रिकेट का भला नहीं हो सकेगा। खेल को खेल रहने देना चाहिए। इसमें राजनीति घुसी तो क्रिकेट का अहित ही होगा। खेल देशों को जोड़ता है। भारत ने जिस आईपीएल की शुरुआत की है, उसने क्रिकेट को ही बदल दिया है। दुनिया के महान खिलाड़ी आईपीएल खेलने भारत आ रहे हैं। पाकिस्तान के दरवाजे अभी तक बंद हैं, जबकि बांग्लादेश के लिए अवसर खुला है। वहां के कई खिलाड़ी आईपीएल खेलते हैं। अगर दोनों टीमों के बीच खटास बढ़ती है, तो सम्भव है कि आईपीएल की कोई टीम भी बांग्लादेशी खिलाड़ी को लेने से हिचके।अगर ऐसा होता है तो वहां की प्रतिभाओं के साथ अन्याय होगा। इसलिए यह क्रिकेट के हित में है कि बांग्लादेश खेल में नफरत को न लाये। खिलाड़ियों का सम्मान करना सीखे, चाहे वह भारत का खिलाड़ी हो या किसी अन्य देश का। जीत पर जश्न बनता है, पर उसका एक दायरा होता है। ऐसा न हो कि भारतीय खिलाड़ियों को अपमानित करने वाला जश्न बांग्लादेश को महंगा पड़ जाये।
अनुज कुमार सिन्हा

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