खेल अब महज खेल न रहकर उद्योग बन गये हैं और जिस तरह कारोबार में अधिक से अधिक मुनाफा कमाने के लिए कई दफा गलत तरीके अपनाए जाते हैं उसी तरह खेल में भी हो रहा है। इन दिनों आईपीएल में भ्रष्टाचार को लेकर जो हंगामा बरपा है, उसमें पश्चाताप जताने जैसी कोई बात नहीं है। 1983 में कपिल देव की जांबाज टोली ने जब भारत को विश्व कप का मदमाता गर्व और गौरव दिया था, तब भारतीय क्रिकेट कण्ट्रोल बोर्ड के खजाने में अपने खिलाड़ियों को पारितोषिक भेंट करने को फूटी कौड़ी भी नहीं थी। भला हो सुर साम्राज्ञी लता मंगेशकर का जिन्होंने अपनी आवाज के जादू से टीम का मान बढ़ाया था। वह दिन और आज में फर्क बस इतना है कि तब मादरेवतन ही सब कुछ था, अब सिर्फ पैसा। जहां पैसा होगा वहां रैसा होना तय है। जिस देश में क्रिकेटर को भगवान का दर्जा प्राप्त हो वहां चढ़ावा जरूरी हो जाता है। दुनिया के नम्बर एक खेल फुटबाल और भारत में क्रिकेट की दीवानगी का सीमा पार कर जाना आंखों का फेर ही है वरना और भी बहुत से खेल हैं जिनमें खिलाड़ी अपना सब कुछ झोंक कर भी शाबासी को तरसता रहता है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर फुटबाल को चलाने वाली संस्था फीफा में हुई घूसखोरी और आईपीएल घोटाले की साम्यता ने बेशक खेलप्रेमियों को चकित कर दिया हो, मगर इन खेलों की साख पर बट्टा तो खिलाड़ियों से कहीं अधिक उन खेलनहारों ने लगाया है जिन्हें हम खेलों के लिए जरूरी मानने की बार-बार भूल करते हैं। अगर फुटबाल दुनिया में सबसे लोकप्रिय खेल है तो भारत में क्रिकेट की लोकप्रियता का कोई सानी नहीं है। दोनों में ही पैसा बोलता है और दोनों के ही अधिकारियों को समाज का ठेकेदार माना जाता है। जहां भारतीय क्रिकेट कण्ट्रोल बोर्ड भारत का सबसे अमीर खेल संघ है वहीं विश्व में भी उसका अच्छा खासा दबदबा है। फीफा तो विश्व का सबसे अमीर खेल संघ है ही और शायद इसीलिए दोनों घोटालों में पैसे का मुख्य किरदार रहा है। फीफा और उसके अध्यक्ष सेप ब्लैटर पर हेराफेरी और घपले के आरोप काफी समय से लगते रहे लेकिन जब 2001 में फीफा ने अपनी ही संस्था इण्टरनेशनल स्पोर्ट्स एण्ड लेजर को दीवालिया घोषित किया तो सबके कान खड़े हो गए। इन गड़बड़ियों पर कई पुस्तकें छपीं और डॉक्यूमेंट्री भी बनीं। जब उम्मीद के खिलाफ रूस को 2018 और कतर को 2022 के विश्व कप की मेजबानी मिली तो सबके सब्र का बांध टूट गया। मीडिया और यहां तक कि अमेरिकी पुलिस की लगातार छानबीन के बाद एक के बाद एक परत खुलती गर्इं और दोनों मेजबानी के पीछे पैसे का हाथ होने के आरोप लगे। दुर्भाग्य की ही बात है कि इतना सब कुछ हो जाने के बाद भी फीफा के अध्यक्ष ब्लैटर अपनी आसंदी पर डटे रहे। इस साल मई महीने में छानबीन की सरगर्मी के बाद फीफा के नौ उच्चस्तरीय अधिकारियों को तो पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया लेकिन ब्लैटर का बाल भी बांका नहीं हुआ। ब्लैटर की ही तरह भारतीय क्रिकेट कण्ट्रोल बोर्ड के अध्यक्ष श्रीनिवासन के ऊपर भी कोई कार्रवाई नहीं हुई जबकि आईपीएल की दो टीमों के साथ उनके मालिकों का भी क्रिकेट से बहिष्कार कर दिया गया। फीफा की ही तरह भारतीय क्रिकेट बोर्ड पर भी पिछले कुछ समय से धांधली और हेराफेरी के आरोप लगते रहे हैं लेकिन बड़ी मछलियां अब भी जाल से बाहर हैं। क्रिकेट को अमूमन भद्रजनों का खेल कहा जाता है और किसी भी क्षेत्र में अगर कोई गलत बात दिखे तो लोग अक्सर कह देते हैं ‘दिस इज नॉट क्रिकेट’ लेकिन मौजूदा हालात को देखकर लगता है कि यह सोच जल्द बदल जाएगी और ‘ब्यूटीफुल गेम’ कहे जाने वाले फुटबाल के लिए भी शायद कोई नया नाम ढूंढ़ना पड़े। जो भी हो फुटबाल और क्रिकेट में जो हुआ और जो आगे होगा उस पर सिर्फ इतना ही कह सकते हैं..
मांगने लगे हैं छांव चिड़ियों से।
बरगद इस कदर नंगे हो गए हैं।।
मांगने लगे हैं छांव चिड़ियों से।
बरगद इस कदर नंगे हो गए हैं।।
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