भारतीय क्रिकेट में अभी ललित मोदी प्रकरण का पटाक्षेप भी नहीं हुआ था कि 14 जुलाई मंगलवार को उच्चतम न्यायालय के अहम फैसले से साफ हो गया कि क्रिकेट में भ्रष्टाचार की जड़ें कितना गहरे पैठ बना चुकी हैं। लोढ़ा समिति के आज के फैसले से चेन्नई सुपर किंग्स-राजस्थान रायल्स टीम व इनके मालिकान गुरुनाथ मयप्पन और राज कुन्द्रा ही प्रभावित हुए हैं लेकिन उन खिलाड़ियों के नाम उजागर होना अभी बाकी हैं जिनके कारण यह भद्र खेल बदनाम हुआ। आईपीएल चैम्पियन रह चुकी दो टीमों पर दो साल का प्रतिबंध मामूली बात नहीं है। उच्चतम न्यायालय के फैसले से एन. श्रीनिवासन, गुरुनाथ मयप्पन, राज कुन्द्रा जैसे लोग तो प्रभावित हुए ही इसका असर कार्पोरेट स्पांसरों, खिलाड़ियों और आईपीएल के पूरे ढाँचे पर भी पड़ेगा। फिक्सिंग की इस फांस में इन टीमों के खिलाड़ी भी देर-सबेर दण्ड के भागी जरूर होंगे। इसमें अभी कई कानूनी पेंच फंसेंगे, जिसमें सिर्फ खिलाड़ी ही नहीं आईपीएल का भविष्य भी दांव पर लग सकता है। देखा जाये तो आईपीएल में इतने पैसे लगे हैं कि उसे स्थगित तो नहीं किया जा सकता लेकिन अगले दो साल तक उसका स्वरूप पहले जैसा नहीं रहेगा। चेन्नई सुपर किंग्स और राजस्थान रायल्स के नहीं होने से इस ताबड़तोड़ क्रिकेट की न केवल रौनक घटेगी बल्कि भारतीय क्रिकेट कण्ट्रोल बोर्ड की आमदनी भी प्रभावित होगी। टीवी ब्राडकास्टर जिसने करोड़ों रुपए लगाकर आईपीएल के राइट्स खरीदे हैं, वह हर्जाने का दावा कर सकता है या करार तोड़ने की नौबत भी आ सकती है। आज का फैसला सिर्फ भारतीय क्रिकेट कण्ट्रोल बोर्ड के लिए ही नहीं क्रिकेट मुरीदों के लिए भी न बिसरने वाला लम्हा है। अदालत की जांच चूंकि अभी भ्रष्टाचार की किताब के अंतिम पन्ने तक नहीं पहुंची है लिहाजा इसमें अभी काली करतूतों की और भी परतें खुलेंगी। देखा जाए तो भद्रजनों के खेल में जब से बेशुमार दौलत का समावेश हुआ तभी से इसमें कदाचरण ने अपनी पैठ बना ली है। पिछले कुछ समय से भारतीय क्रिकेट की शर्मसार करने वाली करतूतें इसी बात का संकेत हैं। 1983 में कपिल देव के नेतृत्व में क्रिकेट का मदमाता विश्व खिताब जीतने वाली टीम को बतौर प्रोत्साहन देने के लिए जहां भारतीय क्रिकेट कण्ट्रोल बोर्ड के पास पैसे नहीं थे वहीं आज क्रिकेट सिर्फ और सिर्फ पैसे का खेल हो गया है। वर्ष 2001 के बाद भारतीय क्रिकेट कण्ट्रोल बोर्ड के एक कमाऊ कारखाना बनने के बाद जो धनवर्षा हुई उसमें सब के ईमान डोल गये। इण्डियन प्रीमियर क्रिकेट लीग को ऊंचाइयों तक ले जाने वाले पूर्व आयुक्त ललित मोदी और कई राजनीतिज्ञों की करतूतें अब किसी से छिपी नहीं हैं। क्रिकेट की यह सुनामी आने वाले दिनों में कई खिलाड़ियों का भविष्य चौपट कर सकती है।
Tuesday, 14 July 2015
क्रिकेट पर सुनामी
भारतीय क्रिकेट में अभी ललित मोदी प्रकरण का पटाक्षेप भी नहीं हुआ था कि 14 जुलाई मंगलवार को उच्चतम न्यायालय के अहम फैसले से साफ हो गया कि क्रिकेट में भ्रष्टाचार की जड़ें कितना गहरे पैठ बना चुकी हैं। लोढ़ा समिति के आज के फैसले से चेन्नई सुपर किंग्स-राजस्थान रायल्स टीम व इनके मालिकान गुरुनाथ मयप्पन और राज कुन्द्रा ही प्रभावित हुए हैं लेकिन उन खिलाड़ियों के नाम उजागर होना अभी बाकी हैं जिनके कारण यह भद्र खेल बदनाम हुआ। आईपीएल चैम्पियन रह चुकी दो टीमों पर दो साल का प्रतिबंध मामूली बात नहीं है। उच्चतम न्यायालय के फैसले से एन. श्रीनिवासन, गुरुनाथ मयप्पन, राज कुन्द्रा जैसे लोग तो प्रभावित हुए ही इसका असर कार्पोरेट स्पांसरों, खिलाड़ियों और आईपीएल के पूरे ढाँचे पर भी पड़ेगा। फिक्सिंग की इस फांस में इन टीमों के खिलाड़ी भी देर-सबेर दण्ड के भागी जरूर होंगे। इसमें अभी कई कानूनी पेंच फंसेंगे, जिसमें सिर्फ खिलाड़ी ही नहीं आईपीएल का भविष्य भी दांव पर लग सकता है। देखा जाये तो आईपीएल में इतने पैसे लगे हैं कि उसे स्थगित तो नहीं किया जा सकता लेकिन अगले दो साल तक उसका स्वरूप पहले जैसा नहीं रहेगा। चेन्नई सुपर किंग्स और राजस्थान रायल्स के नहीं होने से इस ताबड़तोड़ क्रिकेट की न केवल रौनक घटेगी बल्कि भारतीय क्रिकेट कण्ट्रोल बोर्ड की आमदनी भी प्रभावित होगी। टीवी ब्राडकास्टर जिसने करोड़ों रुपए लगाकर आईपीएल के राइट्स खरीदे हैं, वह हर्जाने का दावा कर सकता है या करार तोड़ने की नौबत भी आ सकती है। आज का फैसला सिर्फ भारतीय क्रिकेट कण्ट्रोल बोर्ड के लिए ही नहीं क्रिकेट मुरीदों के लिए भी न बिसरने वाला लम्हा है। अदालत की जांच चूंकि अभी भ्रष्टाचार की किताब के अंतिम पन्ने तक नहीं पहुंची है लिहाजा इसमें अभी काली करतूतों की और भी परतें खुलेंगी। देखा जाए तो भद्रजनों के खेल में जब से बेशुमार दौलत का समावेश हुआ तभी से इसमें कदाचरण ने अपनी पैठ बना ली है। पिछले कुछ समय से भारतीय क्रिकेट की शर्मसार करने वाली करतूतें इसी बात का संकेत हैं। 1983 में कपिल देव के नेतृत्व में क्रिकेट का मदमाता विश्व खिताब जीतने वाली टीम को बतौर प्रोत्साहन देने के लिए जहां भारतीय क्रिकेट कण्ट्रोल बोर्ड के पास पैसे नहीं थे वहीं आज क्रिकेट सिर्फ और सिर्फ पैसे का खेल हो गया है। वर्ष 2001 के बाद भारतीय क्रिकेट कण्ट्रोल बोर्ड के एक कमाऊ कारखाना बनने के बाद जो धनवर्षा हुई उसमें सब के ईमान डोल गये। इण्डियन प्रीमियर क्रिकेट लीग को ऊंचाइयों तक ले जाने वाले पूर्व आयुक्त ललित मोदी और कई राजनीतिज्ञों की करतूतें अब किसी से छिपी नहीं हैं। क्रिकेट की यह सुनामी आने वाले दिनों में कई खिलाड़ियों का भविष्य चौपट कर सकती है।
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