Wednesday, 29 July 2015

सुरक्षा को चुनौती

पंजाब के गुरदासपुर जिले में सोमवार की अलसुबह आतंकवादी करतूत ने हर भारतीय के मन में एक अनचाहा डर पैदा कर दिया है। भारत अपनी सीमाओं में जहां महफूज नहीं है वहीं देश की आंतरिक स्थिति में भी इतने सुराख हैं कि कभी कुछ भी हो सकता है। आज आतंकवाद का बदलता स्वरूप सिर्फ भारत ही नहीं दुनिया भर के लिए खतरे का सबब बनता जा रहा है। गुरदासपुर जिले के एक थाने पर जिस तरह आत्मघाती दस्ते ने हमला किया, उससे कई सवाल पैदा हो रहे हैं। हमारे सुरक्षा बलों ने बेशक तीनों हमलावरों को मौत की नींद सुलाकर शाबासी का काम किया हो, पर  सवाल यह पैदा होता है कि आखिर ये आतंकवादी इतने हथियारों को लेकर यहां तक पहुंचे कैसे?
आतंकवादियों की ऐसी करतूत मुल्क की आंतरिक स्थिति के लिए खतरनाक संकेत है। अभी तक तो पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद सिर्फ घाटी तक ही सीमित था लेकिन अब उसके पैर पंजाब में भी पसरने लगे हैं। इस हमले से भारत को यह साफ संदेश दिया जा रहा है कि वे न सिर्फ इन्हीं दो राज्यों तक सिमट कर रहेंगे बल्कि इससे आगे जाकर भी खून-खराबा कर सकते हैं। आत्मघाती दस्तों को तो वैसे भी जान की परवाह नहीं होती। वे जान देने के लिए ही आतंक की राह चुनते हैं। एक ओर जहां कश्मीर घाटी आतंकवादियों की शरणस्थली बन चुकी है वहीं पंजाब तो आईएसआई के आॅपरेशन का पुराना केन्द्र रहा है। इस राज्य में आज भी अनेक खालिस्तान समर्थक मौजूद हैं। इस लिहाज से देखें तो आईएसआई को इस राज्य में अपने पैर पसारने में कोई खास मशक्कत नहीं करनी पड़ेगी। पंजाब के गुरदासपुर जिले में आतंकवादियों की नापाक हरकत कुछ अलग संदेश दे रही है। इस संदेश को खुफिया विभाग के अधिकारियों समेत देश के हुक्मरानों को समझना होगा। यह हमला आतंकवादियों के दुस्साहस की तरफ ही नहीं हमारी सुरक्षा और खुफिया एजेंसियों की शिथिलता की ओर भी इशारा कर रहा है।
अब पानी सिर से ऊपर उठ चुका है। मोदी सरकार को पड़ोसी पाकिस्तान से मान-मनौवल की कूटनीति से काम लेने की बजाय उसे मुंहतोड़ जवाब देने की रणनीति बनानी चाहिए। हम जब भी पाकिस्तान के साथ नरम रुख अख्तियार करते हैं और ऐसा लगता है कि भारत-पाक मैत्री सही दिशा में बढ़ने वाली है, तभी हम धोखा खा जाते हैं। ऐसा कई बार हुआ है। पाकिस्तान मैत्री नहीं चाहता, यह बात हमारे राजनीतिक तंत्र के भेजे में जितनी जल्दी प्रवेश करे, उतना ही बेहतर होगा। जिस पंजाब से हमारे जवानों ने आतंकवाद को खदेड़ दिया था, उसी पंजाब में हालिया आतंकी हमला हमारे राजनीतिज्ञों की लचर नीतियों का ही परिणाम है। दरअसल आॅपरेशन ब्लू स्टार की 31वीं बरसी के दौरान जब पंजाब में शहीदी समागम के बडेÞ-बड़े विज्ञापन छपे थे, तभी सरकार को सतर्क हो जाना चाहिए था। पंजाब में एक बार फिर आतंकवाद का फन फैलाना खतरे का ही संकेत है। इस फन को तत्काल नहीं कुचला गया तो आतंक का यह विषधर दूसरे सूबों को भी अपनी जद में ले लेगा। आतंकवादियों से मिले हथियारों का चीन निर्मित होना भी गम्भीर साजिश है। पाकिस्तान ही नहीं चीन भी नहीं चाहता कि भारत में अमन कायम रहे।
आतंकी वारदातों पर हमारे राजनीतिज्ञों को सियासत करने की बजाय देशहित की बात सोचनी चाहिए। हर आतंकी वारदात के बाद खामियों पर समीक्षा होती है, बडेÞ-बड़े दावे-प्रतिदावे परवान चढ़ते हैं लेकिन इन्हें जमीनी हकीकत बनते कभी नहीं देखा गया। पंजाब में जो हुआ वह मुल्क की सुरक्षा व्यवस्था और आंतरिक शांति के लिए चिन्ता और चिंतन का विषय है। हम बार-बार अपनी खामियों की तोहमत पाकिस्तान पर लगाकर अपने कर्तव्य से ही जी चुराते हैं। चंूकि पंजाब हमले की जवाबदेही अभी तक किसी आतंकी संगठन ने नहीं ली है लिहाजा हम पाकिस्तान को इसका कसूरवार मान बैठे हैं। पाकिस्तान दोगला और धोखेबाज है, यह बात तो सही है लेकिन हमारी हुकूमत यह क्यों नहीं मानती कि आतंकवाद के मामले में वह भी शिथिल है। गुरुदासपुर पाकिस्तान सीमा से महज 15 किलोमीटर दूर है। हमलावर सेना की वर्दी में आए और पहले एक कार छीनी, फिर हमले के लिए आगे बढ़े। उनकी इस शैली से अनुमान लगाया जा रहा है कि ये आतंकी लश्करे तैयबा के हो सकते हैं। आतंकियों ने जिस तरह रेल पटरियों पर धमाके के इंतजाम किये थे, उन्हें समय रहते यदि निस्तेज नहीं किया गया होता तो बड़ी जनहानि हो सकती थी। यह आतंकी हमला उस वक्त हुआ, जब देश का सियासी तापमान चरम पर है। संसद का मानसून सत्र चल रहा है, जो रोज किसी न किसी कारण से बाधित हो रहा है। यूं तो सरकार समेत सभी राजनीतिक दलों ने आतंकी हमले की निन्दा की है, लेकिन इस नाजुक स्थिति का फायदा उठाने में कोई पीछे नहीं रहना चाहता। कांग्रेस ने केन्द्र को सख्त कदम उठाए जाने की बात कही तो सदन में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खडगे को आतंकी हमले पर बोलने ही नहीं दिया गया।
पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने आतंकवाद को राष्ट्रीय समस्या बताते हुए इसका समाधान राष्ट्रीय नीति के तहत होने की बात कही है। बादल ने खुफिया एजेंसियों द्वारा हमले के अलर्ट पर नाराजगी जताते हुए कहा कि अगर खतरे का अंदेशा था, तो सीमा को सील क्यों नहीं किया गया? मोदी सरकार हमले के बाद हालात काबू में होने का दावा तो कर रही है लेकिन पूरे घटनाक्रम और उस पर राजनीतिक दलों के सतही रवैये को देखकर लगता ही नहीं कि आतंकवाद जैसी गम्भीर समस्या के निराकरण के मामले में हम वाकई सजग हैं। मुल्क में जब-जब ऐसे आतंकी हमले हुए, सुरक्षा बल के जवानों ने जान हथेली पर रखकर मोर्चा सम्हाला है।  राजनेता और सरकार बाद में सुरक्षा बलों की तारीफ में कुछ शब्द बोलकर, कुछ ईनाम या सम्मान देकर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेते हैं। यह सही है कि सुरक्षा बलों के कारण देश की अधिसंख्य जनता सुरक्षित है, लेकिन देश के आंतरिक और बाह्य मोर्चे पर शांति केवल जवानों की मुस्तैदी से ही कायम नहीं हो सकती। किसी भी तरह के आतंकवाद को यदि समूल नष्ट करना है तो इसके लिए राजनीतिक प्रयास और उपाय ही कारगर होंगे। पंजाब में आतंकवाद कितना खतरनाक रूप दिखा चुका है, यह देश अभी भूला नहीं है। 20 साल बाद वहां फिर से आतंकवाद का अभ्युदय गम्भीर संकट की तरफ ही संकेत है। हमला हुआ है तो भविष्य को लेकर कई आशंकाओं का उठना स्वाभाविक है। बातों और बयानों से आतंक के सफाये की खुशफहमी पालने की बजाय हमें ठोस कदम उठाने का मन बनाना चाहिए।

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