Thursday 30 October 2014

पालने में पूत के पांव

होनहार बिरवान के होत चीकने पात यह कहावत सीकर के उदीयमान क्रिकेटर आदित्य गढ़वाल पर शत-प्रतिशत सही साबित होती है। क्रिकेट सितारे आदित्य ने वीनू मांकड क्रिकेट प्रतियोगिता में बेशक ताबड़तोड़ रन बनाए हों पर उसके पैर जमीन पर हैं। उसकी हसरत टीम इण्डिया से खेलने की है। सीधे बल्ले से खेलने वाले इस होनहार क्रिकेटर को हर कोई भविष्य का बड़ा खिलाड़ी मान रहा है तो बड़ी-बड़ी कम्पनियां उसे आॅफर दे रही हैं, पर यह होनहार अपने लक्ष्य से भटकने को कतई तैयार नहीं है।
आॅफरों की बारिश, लेकिन सपना इंडिया टीम का
 वीनू मांकड राष्ट्रीय क्रिकेट प्रतियोगिता में रनों की झड़ी लगाने वाले राजस्थान अंडर 19 टीम के कप्तान आदित्य गढ़वाल के पास रातोंरात आॅफरों की बारिश शुरू हो गई है। गढ़वाल का कहना है कि यह जुनून यहीं समाप्त नहीं होगा, मेरा सपना हिन्दुस्तान की टीम से खेलना है। हालांकि अभी तक गढ़वाल ने किसी भी कम्पनी के आॅफर को नहीं स्वीकारा है। खुशी के इस मौके पर संघर्षों के दिनों को याद करते हुए परिजन कभी भावुक तो कभी खुश नजर आए।
संघर्षों की राह
संघर्ष से ही व्यक्ति को आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती है। आदित्य की मां सविता गढ़वाल व कोच हितेन्द्र सहारण ने बताया कि पिछले वर्ष इसी प्रतियोगिता में वह अच्छा नहीं कर सका। आदित्य खेल छोड़ना चाहते थे, फिर सभी ने धैर्य रखने को कहा।
बढ़ाया मान
एचजी क्रिकेट एकेडमी की ओर से भी गढ़वाल का स्वागत किया गया। पत्रकार वार्ता में आदित्य के पिता नरेन्द्र ने बताया कि निश्चित तौर पर आदित्य ने शेखावाटी का मान बढ़ाया है। उनका खिलाड़ियों को तराशने का अभियान लगातार जारी रहेगा। उन्होंने कहा कि सीकर में एकेडमी का निर्माण हो चुका है। जल्द ही उसका औपचारिक उद्घाटन किया जाएगा। इस मौके पर आरसीए पदाधिकारी विमल शर्मा, शक्ति सिंह, कोच हितेन्द्र सहारण, उन्नयन समिति के चेयरमैन महेन्द्र काजला, भारतीय स्कूल के आरपी ढाका, कॉमर्स कॉलेज जयपुर के छात्रसंघ अध्यक्ष पंकज चाहर सहित कई खिलाड़ी मौजूद रहे।
संघर्षाें से मिटा कलंक
जिला क्रिकेट उन्नयन समिति के अध्यक्ष महेन्द्र काजला ने बताया कि आदित्य के संघर्षों और उसके परिजनों के समर्पण के दम पर सीकर को यह बड़ी उपलब्घि मिली है। उन्होंने डीसीए की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े करते हुए कहा कि शेखावाटी में प्रतिभाओं की कोई कमी नहीं है। यदि जिला क्रिकेट संघ खिलाड़ियों को प्रोत्साहित करे तो कई खिलाड़ी आगे आ सकते हैं।
बचपन से ही दिवाना
आदित्य के पिता नरेन्द्र गढ़वाल बताते हैं कि वे भी अन्तरराष्ट्रीय स्तर का खिलाड़ी बनना चाहते थे, लेकिन सफल नहीं हो सके। मन में जिद घर कर गई कि बेटे को जरूर बनाऊंगा क्रिकेटर। इसके बाद आदित्य के सात-आठ वर्ष की उम्र में वह प्रतिदिन क्रिकेट खेलाते थे। एक दिन घर पर अभ्यास के दौरान आदित्य आउट ही नहीं हुआ तो उन्होंने सोच लिया कि वह एक दिन जरूर सीकर का नाम रोशन करेगा।
18 में बना डाला ‘महा रिकॉर्ड’
क्रिकेट में यह पहला मौका है, जब किसी बैट्समैन ने 50 ओवर के मैच (दो मैच) में लगातार दो दिन में 459 रन ठोक दिए। यह कारनामा राजस्थान के 18 साल के आदित्य गढ़वाल ने किया है।  सबसे ज्यादा रन बनाने का रिकॉर्ड आदित्य ने रेलवे के खिलाफ मैच में नॉटआउट 263 रन (151 गेंद, 18 छक्के, 22 चौके) ठोक कर बनाया। वहीं मध्य प्रदेश के खिलाफ उसके बल्ले से 196 रन (137 गेंद, 7 छक्के, 19 चौके) बरसे। नम्बर तीन पर खेलने वाले आदित्य दो दिन में दो डबल सेंचुरी बनाने के अनोखे रिकॉर्ड से भले ही चूक गए हों, लेकिन उन्होंने जितने रन बटोरे वह अपने आप में एक रिकॉर्ड है।
पैरेंट्स का सपोर्ट आया काम
आदित्य को उनके इंजीनियर पिता और लेक्चरर मां का पूरा सपोर्ट मिल रहा है। आदित्य के लिए पिता हरेन्द्र गढ़वाल ने आदित्य का रुझान देखकर उन्हें न सिर्फ क्रिकेट खेलने की छूट दी, बल्कि कदम-कदम पर उसका साथ भी निभा रहे हैं।
अपने ही रिकॉर्ड पर हैरत
आदित्य के अनुसार, ‘मैंने सोचा नहीं था कि इतने रन बना पाऊंगा। पिछले दो दिन के अपने रिकॉर्ड के बारे में जानकर हैरानी और खुशी होती है कि यह मैंने किया है। मुझे अभी लम्बा सफर तय करना है और यह सफर मैं जमीन पर पांव रख कर ही तय कर पाऊंगा।’
करियर का बेस्ट गिफ्ट
आदित्य की इस शानदार बैटिंग के लिए उन्हें टीम इंडिया के ताबड़तोड़ बल्लेबाज सुरेश रैना ने अपने आॅटोग्राफ वाला बैट गिफ्ट में दिया। अपनी खुशी जाहिर करते हुए आदित्य ने कहा, ‘मुझे यकीन नहीं हो रहा कि सुरेश रैना ने मेरे लिए बैट भेजा है। अभी तक के मेरे करियर में ये मेरा सबसे अच्छा गिफ्ट है।’ पूर्व विकेटकीपर सदानंद विश्वनाथ ने कहा कि उसकी तकनीक अच्छी है और यह सीधे बल्ले से खेलता है। उसका भविष्य उज्ज्वल है।
भावुकता भरी कहानी
आदित्य के कोच हितेन्द्र सहारण का कहना है कि हर व्यक्ति में प्रतिभा छिपी होती है। आदित्य की प्रतिभा निखारने के लिए  घर पर ही एकेडमी शुरू की। पिच बनाने को रोलर नहीं था और आदित्य की जिद थी कि वह टर्फ विकेट पर ही खेलेगा। फिर क्या था उसकी जिद को ध्यान में रखते हुए गैस सिलेण्डर को ही रोलर बनाकर दोनों ने पिच बना दी। आदित्य ने जीतोड़ मेहनत की और उसी वर्ष आरसीए की प्रतियोगिताओं में उसका चयन हो गया। वह राजनीति का शिकार भी हुआ लेकिन प्रतिभा के दम पर सभी स्थितियां अनुकूल हो गर्इं।
घर में जश्न
आदित्य के जाट कॉलोनी स्थित आवास पर बधाई देने वालों का तांता लगा हुआ है। आदित्य के पिता इंजीनियर नरेन्द्र गढ़वाल अजमेर डिस्कॉम की विजिलेंस विंग में अधिशासी अभियंता हैं। जबकि मम्मी सविता गढ़वाल एसके कॉलेज में रसायन शास्त्र की व्याख्याता हैं। आदित्य की प्रतिभा पर शहर विधायक रतन जलधारी, भाजपा नेता बाबूसिंह बाजौर, दशरथ सिंह शेखावत, ऋषिकेश ओला, संयोग भंवरिया, संतोष मूण्ड, कोच मोहम्मद असलम, अंशु जैन, घासीराम बागड़िया, चौधरी हुकुम सिंह गढ़वाल, महेन्द्र काजला व ओमप्रकाश महला सहित कई खिलाडियों ने खुशी जताई है।
शेखावाटी के लिए खास बात
शेखावाटी ने क्रिकेट को छोड़कर सभी खेलों में अन्तरराष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी दिए हैं। आदित्य के घरेलू मैचों में चमकने और कई रिकॉर्ड अपने नाम दर्ज कराने से यह दाग भी शेखावाटी के माथे से धुल गया है। अब इंतजार है शेखावाटी के खेलप्रेमियों को आदित्य के भारतीय टीम शामिल होने का।
यह बोले क्रिकेट के सितारे
आदित्य के पांच मैचों में 38 छक्के व 68 चौके लगाने के रिकॉर्ड पर क्रिकेटर वीरेन्द्र सहवाग ने कहा कि यह खिलाड़ी एक दिन भारतीय टीम का सितारा होगा। वहीं सुरेश रैना ने कहा कि यह सीधा खेलता है जो अच्छी बात है। वहीं पूर्व विकेटकीपर सदानंद विश्वनाथ ने कहा कि गढ़वाल में मैने एक अच्छे क्रिकेट खिलाड़ी को देखा है। उन्होंने कहा कि उसे ताबड़तोड़ क्रिकेट के बजाय 50 ओवर वाले मैचों पर ही फोकस करना चाहिए। 

Tuesday 28 October 2014

ग्वालियर की बेटी करिश्मा यादन ने रचा इतिहास

जूनियर भारतीय हॉकी टीम में चयन
आगरा। समय दिन-तारीख देखकर आगे नहीं बढ़ता। जिसमें कुछ करने का जुनून होगा उसे मंजिल मिलेगी ही। यह साबित किया है ग्वालियर की बेटी करिश्मा यादव ने जूनियर भारतीय हॉकी टीम में प्रवेश पाकर। करिश्मा ग्वालियर चम्बल सम्भाग की पहली बेटी है जिसने भारतीय टीम में दस्तक दी है। इसका श्रेय महिला हॉकी एकेडमी के साथ ही प्रशिक्षक अविनाश भटनागर को जाता है।
आठ साल पहले तक ग्वालियर में महिला हॉकी का कोई नाम लेवैया नहीं था लेकिन तत्कालीन खेल मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया ने महिला हॉकी एकेडमी की बुनियाद रख महिला हॉकी को न केवल जीवंत किया बल्कि आज मध्यप्रदेश महिला हॉकी की ताकत बन चुका है। तीन से 15 नवम्बर तक न्यूजीलैण्ड में खेली जाने वाली छह मैचों की सीरीज के लिए भारतीय जूनियर महिला टीम का ऐलान हो चुका है। इस टीम में ग्वालियर की बेटी को भी जौहर दिखाने का मौका मिला है। भारत और न्यूजीलैण्ड के बीच पांच, छह, आठ, नौ, 12 और 13 नवम्बर को मैच खेले जाएंगे।

Sunday 26 October 2014

कालाधन: बगलें झांकती भाजपा

हमारे देश में आजादी के बाद से ही लोकतंत्र में शुचिता और ईमानदारी को लेकर बहस होती रही है। हर लोकसभा चुनाव से पूर्व राजनीतिक दल भ्रष्टाचार मुक्त मुल्क की मुखालफत तो चुनाव आयोग अपराधियों को लोकतंत्र की चौखट से दूर रखने के प्रयास करते हैं लेकिन इस दिशा में अब तक कोई उल्लेखनीय प्रगति नहीं हुई है। भारतीय लोकतंत्र में अपराधियों की पैठ बढ़ती ही जा रही है तो कालाधन वापस लाने में किसी राजनीतिक दल की कोई दिलचस्पी नहीं है। सोलहवें लोकसभा चुनावों के वक्त कमल दल ने कालेधन को लेकर बहुत कुछ उम्मीद जगाई थी लेकिन केन्द्र में पूर्ण बहुमत की सरकार बनने के बावजूद आज वह बगलें झांक रही है।
भारत में कालेधन का निराला खेल लम्बे समय से चुनौती बना हुआ है। विदेशों में जमा कालाधन यदि वापस आ जाए तो मुल्क की तकदीर और तस्वीर बदल सकती है। देखें तो पिछले दो लोकसभा चुनाव कालेधन को लेकर ही लड़े गए। आम चुनाव में यही कालाधन बड़ा मुद्दा बन चुका है। वर्ष 2009 के आम चुनाव में कांग्रेस ने सत्ता में आने के लिए आम आवाम से 100 दिनों में ही कालेधन की वापसी के लिए ठोस कदम उठाने का वायदा किया था, लेकिन वह पूरे पांच साल सत्ता में काबिज रहने के बावजूद एक पाई भी कालाधन वापस नहीं ला पाई। इसी साल हुए सोलहवें लोकसभा चुनावों में कमल दल ने भी जनता से कुछ वैसा ही वादा किया था, लेकिन अब सर्वोच्च न्यायालय में उसकी सरकार अपनी पूर्ववर्ती सम्प्रग सरकार की ही तरह दूसरे देशों से संधियों और तकनीकी अड़चनों की आड़ लेती नजर आ रही है। भाजपा की इस कारगुजारी से आम जनमानस सकते में है तो कांग्रेस समेत सभी विपक्षी दल सरकार पर वादाखिलाफी का आरोप मढ़ रहे हैं।
विपक्ष की तंज पर केन्द्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली का पलटवार किसी के गले नहीं उतर रहा। जेटली का यह कहना कि विदेशों में कालाधन जमा करने वालों के नामों का खुलासा करने से कांग्रेस को ही शर्मिंदगी हो सकती है। यह समझ पाना मुश्किल है कि जेटली कालेधन के मामले में नरेन्द्र मोदी सरकार की प्रतिबद्धता का इजहार कर रहे हैं या फिर कांग्रेस को कालेधन के मुद्दे पर मुंह बंद रखने की नसीहत दे रहे हैं। दरअसल कालेधन के इस निराले खेल में बेशक कांग्रेस के कई मगरमच्छ पल-बढ़ रहे हों पर भाजपाई भी दूध के धुले नहीं हो सकते। कालेधन के मामले में जेटली का मीडिया को निशाना बनाना भी गैरवाजिब है। काली कमाई पर सर्वोच्च न्यायालय में सरकार के बयान के बाद हुई फजीहत का ठीकरा मीडिया पर फोड़ने से पहले जेटली को अपने गिरेबां पर नजर डालनी चाहिए थी।  बकौल जेटली, सरकार ने यह कभी कहा ही नहीं कि वह काली कमाई वाले लोगों के नामों का खुलासा नहीं करेगी, बल्कि यह कहा कि ये नाम अदालत को बताये जा सकते हैं। अरुण जेटली इस मामले में साफ-साफ कहने से क्यों गुरेज कर रहे हैं यह तो वही जानें पर उन्हें इस बात का इल्म होना चाहिए कि वह जो नाम अदालत  को बताएंगे वे नाम मीडिया की पहुंच से दूर कैसे और कब तक रह सकते हैं? कहना नहीं होगा कि जेटली का यह बयान अपने आप में विरोधाभासी है। खुलासा तो सार्वजनिक रूप से होता है। अदालत को तो नाम सीलबंद लिफाफे में सौंपे जाते हैं, जिनको उजागर करना और न करना उसकी मर्जी पर निर्भर करता है। कालेधन के मामले में मोदी सरकार को सांच को आंच नहीं की लीक पर चलना चाहिए वरना आम जनमानस में लम्बे समय तक ऊहापोह की स्थिति भ्रम और दुष्प्रचार को ही जन्म देगी। यह सच है कि विदेशों में जहां भारतीय काली कमाई का साम्राज्य स्थापित है वहीं देश के अंदर भी इसकी जड़ें काफी गहरी पैठ बना चुकी हैं। बेहतर होगा कि कालेधन के मामले में मोदी सरकार अपनी ईमानदार प्रतिबद्धता का परिचय देते हुए सबसे पहले श्वेत-पत्र जारी करे। भारतीय लोकतंत्र में कालेधन की ही तरह अपराधी भी मुंह चिढ़ा रहे हैं। आज देश का कोई भी राजनीतिक दल ऐसा नहीं है जिसके पाले में आपराधिक लोग अंगड़ाई न ले रहे हों। चुनाव आयोग लगातार अपराधों में दोषी पाये जाने वाले जनप्रतिनिधियों को चुनाव प्रक्रिया से दूर रखने का सुझाव सरकार को दे रहा है। आयोग का सुझाव है कि जघन्य अपराधों में पांच साल की सजा तय हो जाने के बाद ऐसे उम्मीदवारों को चुनाव लड़ने के अयोग्य घोषित किया जाये। इस मामले में यह ध्यान रखना भी जरूरी होगा कि चुनाव से पूर्व किसी उम्मीदवार के खिलाफ राजनीति से प्रेरित होकर मामला दर्ज न कराया गया हो। इस मामले में चुनाव प्रक्रिया से छह माह पूर्व तय किये गए आरोपों को ही कार्रवाई का आधार बनाया जा सकता है। आयोग की सिफारिशों को विधि मंत्रालय द्वारा विधि आयोग को भेजा गया है। सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2013 में अपने फैसले में दागी सांसदों व विधायकों को तुरंत अयोग्य ठहराने की व्यवस्था दी थी। चुनाव आयोग की कोशिशें परवान चढ़ें, इसके लिए जरूरी है कि राजनीतिक दल भी ईमानदार कोशिश करें। मोदी सरकार के पास देश के सामने नजीर पेश करने का मौका है। जो काम पिछली यूपीए सरकार अपने अंतर्विरोधों के चलते नहीं कर पाई उसे करने का भाजपा को दुस्साहस दिखाना चाहिए। बेहतर होगा मोदी सरकार साफ-सुथरे लोकतंत्र की खातिर सभी राजनीतिक दलों में सहमति बनाए।
पूर्ण बहुमत की मोदी सरकार यदि अपने कार्यकाल में कालाधन वापस लाने और अपराधियों को संसद से दूर भगाने का काम नहीं कर पाई तो फिर जनता जनार्दन भाजपा को सबक सिखाने से गुरेज नहीं करेगी। हाल ही हरियाणा में हुए विधानसभा चुनाव में जागरूक मतदाताओं ने पूरे देश को एक संदेश दिया है। हरियाणा में 26 दागी उम्मीदवार ताल ठोकने उतरे थे जिनमें 24 को मतदाताओं ने धूल चटा दी। मतदाताओं का दिन-ब-दिन जागरूक होना भारतीय लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत है। राजनीतिक दल अब भी नहीं सुधरे तो जनता कुछ ऐसा करेगी कि एक दिन दागी लोकतांत्रिक प्रकिया के लिए अप्रासंगिक हो जाएंगे। यह सच है कि जनप्रतिनिधित्व कानून 1951 की कुछ धाराएं अपराधी तत्वों पर नकेल तो कसती हैं लेकिन पूर्ण बदलाव के लिए अभी और संशोधन की दरकार है।

Tuesday 21 October 2014

टैरी वाल्श ने दिया इस्तीफा, आरोप प्रत्यारोप का दौर शुरू



नरिन्दर बत्रा और साइ निदेशक के मनमुटाव से देश की साख को आई आंच
      दिल्ली। भारतीय हॉकी को मंगलवार को करारा झटका लगा जब उसके मुख्य कोच टैरी वाल्श ने भारतीय खेल प्राधिकरण (साइ) के साथ वेतन विवाद के बाद अपने पद से इस्तीफा दे दिया। भारत को इंचियोन में एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक दिलाने के महज तीन हफ्ते में आस्ट्रेलिया के इस कोच ने यह हैरानी भरा कदम उठाया है।
      स्वयं स्टार ओलम्पियन रहे आस्ट्रेलिया के 60 वर्षीय वाल्श ने अपने इस्तीफे में लिखा है कि उन्हें देश में खेल नौकरशाही के फैसले करने की शैली से सामंजस्य बिठाने में दिक्कत आ रही है। उनका अनुबंध 2016 रियो ओलम्पिक तक था। वाल्श के इस्तीफे के तुरंत बाद हालांकि खेल मंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने कहा कि वह इस मुद्दे का हल ढूंढ़ रहे हैं और उन्होंने साइ से अगले 24 घंटे में रिपोर्ट मांगी है। इस बीच वाल्श के इस्तीफे के बाद हॉकी इंडिया और साइ के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर भी शुरू हो गया है।
      हाकी इण्डिया ने कहा है कि वेतन भुगतान और नौकरशाही के कारण वाल्श को पद छोड़ना पड़ा वहीं साइ ने इस दावे को बकवास बताते हुए कहा है कि आस्ट्रेलियाई कोच ने कभी किसी वित्तीय मुद्दे को लेकर शिकायत नहीं की। वाल्श ने 19 अक्टूबर को जीजी थामसन को भेजे पत्र में कहा, मैं भारतीय पुरुष हाकी टीम के मुख्य कोच के पद से इस्तीफा देता हूं जो मेरे अनुबंध की शर्तों या सभी संबंधित पक्षों की सहमति से प्रभावी होगा।  इस पत्र को बाद में मीडिया को जारी किया गया।    
 भारत ने वाल्श के मार्गदर्शन में ग्लास्गो राष्ट्रमंडल खेलों में भी रजत पदक जीता था। वाल्श ने कहा, मुझे भारत में खेल नौकरशाही के फैसले करने की शैली से सामंजस्य बिठाने में काफी मुश्किल हो रही है। मुझे लगता है कि यह लम्बे समय में भारतीय हॉकी या उसके खिलाड़ियों के सर्वश्रेष्ठ हितों में नहीं है।
      वाल्श ने कहा, नौकरशाही की इन सीमाओं में पेशेवर तौर पर काम नहीं कर पाने की मेरी मुश्किल के अलावा मैं आस्ट्रेलिया में अपने परिवार से लगातार इतने अधिक समय तक दूर नहीं रहना चाहता। मेरी मौजूदा प्रतिबद्धता मेरे निजी जीवन पर काफी तनाव डाल रही है।
      वाल्श ने हालांकि कहा कि अगर उन्हें उनकी शर्तों पर नया अनुबंध दिया जाता है तो वह अपने फैसले पर पुनर्विचार करने को तैयार हैं। पता चला है कि वाल्श और कुछ अन्य सहायक स्टाफ को अपने वेतन से टीडीएस काटे जाने को लेकर सरकार से कोई परेशानी थी। वाल्श के अचानक इस्तीफा देने से हैरान खेल मंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने साइ और अपने सचिव से 24 घंटे के भीतर रिपोर्ट मांगी है।
      सोनोवाल ने कहा, यह गंभीर मुद्दा है। इस बारे में पता चलने के बाद मैंने साइ महानिदेशक और खेल सचिव को 24 घंटे के भीतर इस्तीफे का कारण बताने को कहा है। सोनोवाल ने जब पूछा गया कि क्या उन्हें पता है कि वाल्श को टैक्स को लेकर साइ से कोई समस्या थी तो उन्होंने इसका जवाब नहीं में दिया। उन्होंने कहा, यह मेरी जानकारी में नहीं है। उन्हें रिपोर्ट सौंपने दीजिए और उसके बाद ही हम देखेंगे कि क्या किया जा सकता है। साइ महानिदेशक जीजी थामसन ने कहा कि वह वाल्श के फैसले से हैरान हैं क्योंकि इस आस्ट्रेलियाई कोच ने इससे पहले कोई शिकायत नहीं की थी।
थामसन ने कहा, हमें 19 अक्टूबर, 2014 को भारतीय पुरुष हॉकी टीम के मुख्य कोच के पद से टैरी वाल्श का इस्तीफा मिला। हम टैरी वाल्श के अचानक इस्तीफा देने से काफी हैरान और निराश हैं क्योंकि वह विश्व हॉकी के सबसे अच्छे कोचों में से एक हैं।    
       उन्होंने कहा, हम उसके प्रदर्शन से बेहद संतुष्ट थे और उसकी बेजोड़ पेशेवर विश्वसनीयता को देखते हुए उसे मुख्य कोच के रूप में चुना था। उसे 21 अक्टूबर, 2013 को नियुक्त किया गया था। इसके बाद से उसने भारतीय हाकी को लेकर कभी कोई शिकायत नहीं की। अगर वाल्श को साइ की कार्यशैली को लेकर कोई शिकायत थी तो वह आकर हमसे बात कर सकता था।  थामसन ने कहा कि वाल्श आज साइ मुख्यालय आए थे और अधिकारियों से मिले। उन्होंने कहा, वह आज हमारे कार्यालय आए और सुधीर सेतिया, कार्यकारी निदेशक (टीईएएमएस) से मिले जहां उन्होंने महासंघ में घुटन वाले माहौल में काम करने पर नाराजगी जताई। हम पूरी तरह से अनजान हैं कि हॉकी इंडिया में क्या हुआ। थामसन ने साथ ही इस बात से इनकार किया कि टीडीएस को लेकर कोई मुद्दा था। उन्होंने कहा कि समस्या हॉकी इंडिया के अध्यक्ष नरिंदर बत्रा ने पैदा की है। उन्होंने इस मुद्दे को बत्रा की ओर से झूठी अफवाह बताकर खारिज कर दिया। थामसन ने कहा कि वाल्श ने जिस खेल नौकरशाही का जिक्र किया है वह हॉकी इंडिया भी हो सकता है।
थामसन ने कहा, वाल्श हमारे मार्गदर्शन में काम नहीं करता। हम उसे सिर्फ उसके काम के लिए हर महीने 16000 डालर का भुगतान करते हैं। हम रोजमर्रा के कामों के लिए उससे बात नहीं करते। इसलिए खेल नौकरशाही हॉकी इंडिया भी हो सकता है। हाकी इंडिया के अध्यक्ष नरिंदर बत्रा ने कहा कि पिछले कुछ समय में ऐसी त्रासदी का अंदेशा था। बत्रा ने कहा, मुझे पिछले कुछ समय से इसका अंदेशा था। कुछ मुद्दे थे। विदेशी स्टाफ के बीच हताशा थी। काफी हस्तक्षेप था, सरकार की तरफ से काफी विलम्ब हो रहा था जिससे वे परेशान थे। हमने चीजों को सुलझाने की कोशिश की। उन्होंने कहा, यहां काफी नौकरशाही और काफी कागजी कार्रवाई है।  मीडिया में जारी किए गए ईमेल में बत्रा ने कहा कि अनुबंध को लेकर वाल्श के साइ के साथ कुछ मुद्दे थे। बत्रा ने कहा, अन्य मुद्दों के अलावा उन्हें अपने अनुबंध को लेकर भी साइ से कोई समस्या थी जो उनके इस्तीफे के बाद अब 19 नवम्बर 2014 को खत्म होगा। उन्होंने कहा, हम सुझाव देते हैं कि क्या साइ 19 नवम्बर से पहले उनके अनुबंध पर दोबारा गौर कर सकता है जिससे कि वह ओलम्पिक 2016 तक टीम के साथ बने रह सकें। हम साइ और वाल्श के बीच बैठक का सुझाव देते हैं।

Thursday 16 October 2014

आदर्श गांवों का सपना

प्रयोगधर्मी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश भर में स्वच्छता अभियान की अलख जगाने के बाद जहां सांसद आदर्श ग्राम योजना का शुभारम्भ कर अच्छे दिनों के संकेत दिए हैं वहीं हमारी अदूरदर्शी नीतियां संशय को जन्म दे रही हैं। मोदी के तीन हजार से पांच हजार की आबादी वाले 596 आदर्श गांव पक्की सड़कों, नालियों, बाजार, संचार  सुविधा, पुस्तकालय, एटीएम, इण्टरनेट सुविधा, नल-जल योजना, सस्ते पक्के मकान, स्वच्छ  शौचालय, स्ट्रीट लाइट तथा खेल मैदान जैसी सुविधाओं से मुकम्मल होंगे। सुविधाओं से लैश मोदी के आदर्श गांवों का सपना कितना फलीभूत होगा, यह भविष्य के गर्भ में है। आजाद भारत में गांवों के योजनाबद्ध विकास की बात पहली बार नहीं हो रही, इससे पहले भी गांवों की तकदीर और तस्वीर बदलने के समय-समय पर प्रयास हो चुके हैं लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात ही निकला है। प्रधानमंत्री मोदी की इस योजना में भेदभावरहित गांवों का चयन और इन आदर्श गांवों की कसौटी सबसे बड़ा सवाल है।
भारत गांवों का देश है। हमारी 75 फीसदी से अधिक आबादी गांवों में ही निवास करती है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोेदी आज गांवों के विकास का जो सपना देख रहे हैं वह महात्मा गांधी के ग्राम स्वराज्य की परिकल्पना की ही तरह है। आजादी के 67 साल बाद गांव कितने विकसित हुए, यह सर्वविदित है। किसी आदर्श ग्राम के लिए अधोसंरचनाएं तैयार कर देना ही काफी नहीं है, उनका रखरखाव और विस्तार भी बेहद जरूरी होता है। जब तक पंचायतों को सक्षम नहीं बनाया जाएगा, आदर्श गांव का सपना कभी साकार नहीं होगा। इस योजना को वाकई फलीभूत करना है तो इसके लिए जरूरी है कि हम ऐसे गांवों का चयन करें जहां की पंचायतों में योजना के उद्देश्यों को आगे बढ़ाने की सक्षमता दिखाई देती हो।
नरेन्द्र मोदी की ही तरह राजीव गांधी और मनमोहन सिंह भी गांवों की तस्वीर बदलना चाहते थे। प्रधानमंत्री रहते हुए श्री गांधी ने छत्तीसगढ़ के कोरिया जिले का दौरा करने के बाद आनंदपुर-कटगोड़ी गांव गये थे। बाद में इन गांवों को आदर्श ग्राम के रूप में विकसित किया गया। इन गांवों की मौजूदा स्थिति देखकर मोदी सरकार को आदर्श ग्रामों के विकास की रूपरेखा तैयार करने में काफी मदद मिल सकती है। दरअसल, इन गांवों में विकसित अधोसंरचनाएं रखरखाव और उचित प्रबन्धन के अभाव में तहस-नहस हो चुकी हैं। देश में ग्राम विकास के स्याह पहलुओं की कई मिसालें आज भी मौजूद हैं। सरकार गांवों में लोगों को घरों तक पानी पहुंचाने के लिए नल-जल जैसी महत्वाकांक्षी योजना शुरू कर चुकी है। यह योजना आज कितनी लाभप्रद है, उसकी समीक्षा आदर्श ग्राम योजना को मूर्तरूप रूप देने में सहायक हो सकती है। देखा जाए तो बहुत सी ग्रामीण योजनाएं उचित रखरखाव और बेहतर प्रबंधन के अभाव में जमींदोज हो चुकी हैं। इन योजनाओं की असफलता की मुख्य वजह पंचायतों की विफलता और सरकारी एजेन्सियों का गैरजिम्मेदाराना रवैया है।
गांवों के विकास में भवनों का निर्माण प्रमुख मुद्दा है। एक समय था जब बिजली, पानी, सड़क जैसी सुविधाओं से महरूम गांवों में मिट्टी के घर हुआ करते थे। बदलते समय में अब ईंट की दीवारें खड़ी की जा रही हैं। जगह-जगह स्थापित र्इंट के भट्ठे पर्यावरण को प्रदूषित कर रहे हैं तो ईंट बनाने के लिये किसानों की जमीन कौड़ियों के भाव खरीदी जा रही है। गांवों में आवश्यकता जैव आधारित वस्तुओं की है, जोकि विभिन्न कृषि उत्पादों द्वारा तैयार की गयी हो। घरों को सुविधा सम्पन्न ही नहीं प्राकृतिक वातावरणयुक्त बनाना भी जरूरी है। गांवों में घर कृत्रिम बिजली पर निर्भर होने की बजाय इस तरह बनाए जाएं जिसमें शुद्ध खुली हवा, सूरज की रोशनी आ सके। भवनों की आंतरिक संरचना इस प्रकार हो जोकि स्वस्थ वातावरण प्रदान करे। घरों की संरचना के साथ-साथ घरों के बीच पेड़-पौधे भी लगाये जाएं ताकि प्राकृतिक संतुलन बना रहे।
मोदी ने कुछ दिन पहले समग्र स्वच्छ भारत अभियान का बिगुल फूंका लेकिन देश में नदियों से लगायत बस्तियां तक गंदी हैं। क्या शहर, क्या गांव हर जगह गंदगी के ढेर पहाड़ की मानिंद नजर आते हैं। सार्वजनिक शौचालय कहीं के भी हों वे नर्क से कम नहीं हैं। स्वच्छता अभियान का दम ठोक रहे लोगों की नजर सार्वजनिक शौचालयों की तरफ जाएगी इसमें संदेह है। आज मुल्क की सबसे बड़ी आर्थिक समस्या बेरोजगारी है। बेरोजगारी के चलते ही ग्रामीणों का शहर की तरफ पलायन हो रहा है। देश में रोजगार के अवसर शून्य हैं। सरकारी क्षेत्र में जितनी नौकरियां पैदा हो सकती थीं, वे हो चुकी हैं। हमारे अर्थशास्त्री खाद्य सुरक्षा अधिनियम पर खूब हाय-तौबा मचा चुके हैं। इनका तर्क है कि सार्वजनिक खर्च वित्तीय घाटे में और बढ़ोत्तरी करेगा। लेकिन वे इस तथ्य से आंखें मूंद लेते हैं कि 2005-06 से अब तक उद्योगपतियों को कर छूट के रूप में 30 लाख करोड़ रुपये से भी अधिक दिए जा चुके हैं। भारतीय उद्योगपतियों को मिली व्यापक कर छूट का यदि देश के भीतर ही निवेश किया गया होता तो उससे लाखों-लाख रोजगार निर्मित हो सकते थे।  हमें यह बात नहीं भूलनी चाहिए कि गांवों के विकास पर ही देश का विकास निर्भर है। यहां तक कि बड़े उद्योगों का माल भी तभी बिकेगा जब किसान के पास पैसा होगा। थोड़ी सी सफाई या कुछ सुविधाएं प्रदान कर देने मात्र से गांवों का उद्धार नहीं हो सकता।
भारत को घुटने पर बैठकर प्रत्यक्ष निवेश को आकर्षित करने की बजाय अपने ही उद्योगपतियों की अंटी खाली कराने की जरूरत है। देश में आर्थिक विकास दर और धन कुबेरों की बढ़ती संख्या के बावजूद आज गरीबी मुंह चिढ़ा रही है। भारत में तीन सौ करोड़ से अधिक सम्पत्ति वाले अमीरों की संख्या 18 सौ से भी अधिक है। इस सम्पन्नता के बावजूद गरीबी का ग्राफ बेहद चिन्ताजनक है। भारत में आय और सम्पत्ति के मामले में भारी असमानता है। यह खाई लगातार बढ़ रही है। देश में साढ़े छह सौ लोगों के पास छह सौ करोड़ से अधिक सम्पत्ति है वहीं 10 लाख डालर से ज्यादा दौलतमंदों की संख्या लगभग साढ़े तीन लाख है। मोदी को चाहिए कि वह सांसदों ही नहीं देश के धनकुबेरों को भी आदर्श गांव योजना से जुड़ने का आह्वान करें ताकि एक साथ लाखों गांवों को आदर्श गांव के रूप में देखा जा सके। मोदी सरकार को यदि अपनी योजनाओं को वाकई मूर्तरूप देना है तो उसे खैरात बांटने से परहेज करना होगा।

Tuesday 14 October 2014

रियो ओलम्पिक में स्वर्ण से कम मंजूर नहीं: विनेश

इंचियोन में आयोजित सत्रहवें एशियाई खेलों में कुश्ती में कांस्य पदक जीतने वाली भारत की महिला पहलवान विनेश फोगट ने मंगलवार को कहा कि उन्हें भरोसा है कि वह देश के लिए रियो ओलम्पिक-2016 में स्वर्ण जीत सकेंगी। विनेश ने कहा कि उन्हें स्वर्ण से कम कुछ मंजूर नहीं।
भारतीय गैस प्राधिकरण (गेल) द्वारा एथलेटिक्स टैलेंट हंट प्रोग्राम में बतौर मुख्य अतिथि पहुंचीं विनेश ने कहा कि नौ साल की उम्र से ही उनके मन-मस्तिष्क में ओलम्पिक स्वर्ण जीतने की बात भरी जाती रही है। वह अपने परिवार और देश के लिए यह पदक हासिल करना चाहती हैं।
विनेश ने कहा, मेरे ताऊ और कोच महाबीर सिंह ने मुझसे हमेशा बेहतर परिणाम की आशा की है। इंचियोन में कांस्य पदक जीतने पर वह खुश नहीं थे। वह चाहते हैं कि मैं अपना ध्यान सिर्फ रियो ओलम्पिक में स्वर्ण जीतने पर लगाऊं और इसी दिशा में तैयारी करूं। यही सोच मेरे परिवार की भी है और मैंने इस सोच को अपने मन में ढाल लिया है। मैं देश के लिए यह महान सम्मान हासिल करने के लिए अपना सब कुछ झोंक दूंगी।
ग्लासगो में इस साल आयोजित राष्ट्रमंडल खेलों में 48 किलोग्राम फ्रीस्टाइल कुश्ती का स्वर्ण जीतकर चर्चा में आई विनेश को इस बात का गर्व है कि उनकी चचेरी बहन गीता फोगट राष्ट्रमंडल खेलों में महिला कुश्ती का स्वर्ण जीतने वाली पहली भारतीय हैं। विनेश के मुताबिक वह देश के लिए ओलम्पिक में महिला कुश्ती का स्वर्ण जीतने वाली पहली महिला बनना चाहती हैं। गीता ने नई दिल्ली राष्ट्रमंडल खेलों-2010 में 55 किलोग्राम फ्रीस्टाइल स्पर्धा का स्वर्ण जीता था। विनेश बोलीं, मेरे लिए मेरे ताऊ और गीता प्रेरणा हैं। गीता की सफलता के बाद मेरे परिवार ने मुझसे कहा था कि तुझे भी इसी तरह का कुछ खास करना है। उस समय मेरी उम्र 15 साल थी। मैंने अपने परिवार की इस इच्छा को स्वीकार किया। मैं इसी दिशा में प्रयास कर रही हूं। मैं जानती हूं कि यह काफी मुश्किल काम है लेकिन जिन दुश्वारियों से निकलकर मैं आज यहां तक पहुंची हंू, उसके बाद अब मेरे लिए कुछ नामुमकिन नहीं। विनेश के सेमीफाइनल में जापानी पहलवान एरी तोशाका से हारने का गम है। विनेश मानती हैं कि वह अपनी गलती से हारीं क्योंकि मुकाबले के बाद उन्होंने महसूस किया कि वह आसानी से जीत सकती थीं।
विनेश ने कहा, मुकाबले के बाद मुझे अहसास हुआ कि मैंने क्या गलती की है। मैं उन सभी गलतियों को दूर करके हर बाधा पार करना चाहती हूं। मेरे कोच हार से निराश थे लेकिन मेरी बहन ने बधाई देते हुए कहा था कि मैं इससे भी बेहतर कर सकती हूं। विनेश ने कहा कि वह अगले साल होने वाले राष्ट्रीय खेलों में हिस्सा लेंगी क्योंकि यह आयोजन उन्हें अगले साल होने वाले ओलम्पिक क्वालीफायर और फिर सितम्बर 2015 में होने वाली विश्व चैम्पियनशिप के लिए तैयारी का अच्छा मौका देगा। विनेश के मुताबिक कुछ आराम के बाद वह पूरी तैयारी के साथ अभ्यास शुरू कर देंगी और उनका लक्ष्य रियो ओलम्पिक में स्वर्ण पदक लाना ही होगा। विनेश ने कहा, मैं विश्व चैम्पियनशिप में अच्छा प्रदर्शन करना चाहती हूं क्योंकि यह ओलम्पिक क्वालीफायर होगा। मैं जानती हूं कि एशियाई खेलों में कुश्ती का स्तर ओलम्पिक जैसा ही होता है और मैंने कांस्य जीतकर एक लिहाज से खुद को साबित किया है, लेकिन अब मुझे स्वर्ण जीतकर अपना और परिवार का सपना पूरा करना है। मैं इसके लिए अपनी कमियों पर काम करूंगी और अपनी तकनीक को और बेहतर करने की कोशिश करूंगी।

क्रिकेटर बीसीसीआई की रखेल

क्रिकेट खेल नहीं व्यवसाय है। देशवासी जिसे भारतीय टीम कहते हैं वह बीसीसीआई की रखेल है। यही वजह है कि कोई खिलाड़ी इस बात की जुर्रत नहीं कर पाता कि वह एशियाड में भारत के लिए खेलेगा। कितना शर्मनाक है कि जिस देश की अवाम क्रिकेटरों को अपना भगवान मानती हैं वे निहायत स्वार्थी होते हैं। उन्हें देश की अस्मिता से कहीं अधिक पैसे से वास्ता होता है।
दक्षिण कोरिया के इंचियोन शहर में 16 दिन खेले गये 17वें एशियाड खेलों का चार अक्टूबर को समापन हो गया। इसमें एशिया के 45 देशों के लगभग 14 हजार खिलाड़िय़ों ने 36 खेलों में हिस्सा लिया।  पिछले आठ एशियाड खेलों में अपने प्रदर्शन की परम्परा  को कायम रखता हुआ 151 स्वर्ण  पदक प्राप्त करके चीन पहले स्थान पर रहा, उसे विभिन्न स्पर्धाओं में कुल 342 पदक प्राप्त हुए। मेजबान दक्षिण कोरिया को 79 स्वर्ण पदक सहित 234 पदकों के साथ दूसरे स्थान पर रहा। जापान 47 स्वर्ण पदक सहित कुल 200 पदक जीतकर तीसरे स्थान पर रहा  तो भारत 11 स्वर्ण  पदक के साथआठवें स्थान पर रहा ।    
एशियाड में क्रिकेट का जहां तक सवाल है, क्रिकेट की पहचान  टेस्ट मैच खेल के रूप में रही है। जब तक टेस्ट मैच के रूप में यह खेला जाता रहा ओलम्पिक खेलों के समान किसी भी बहुखेलीय स्पर्धा में क्रिकेट की गुंजाइश नहीं थी।  2003 में 20 ओवर वाले टी- 20 क्रिकेट के उदय के साथ ही एशियाड खेलों में इसकी सम्भावनाएं खोजी जाने लगीं। यद्यपि कामनवेल्थ गेम्स में इसको 1998 में शामिल कर लिया गया था। एशिया में  क्रिकेट खेल को प्रोत्साहन देने के लिए स्थापित एशियन क्रिकेट कौंसिल के प्रयासों के फलस्वरूप एशियाई ओलम्पिक कौंसिल ओसीए के क्रिकेट प्रेमी अध्यक्ष शेख अहमद अल-अहमद अल-फहद अल-साबाह द्वारा ही 16वें एशियाड से क्रिकेट को भी शामिल करने की सार्वजनिक घोषणा की गई। तभी से चीन, जापान तथा दक्षिण कोरिया ने अन्य खेलों की तरह क्रिकेट में पदक हासिल करने के तैयारी प्रारम्भ कर दी थी।
भारत ने 2010 एशियाड की भांति 2014 में भी क्रिकेट में हिस्सा नहीं लिया। भारतीय महिला और पुरुष टीमें यदि क्रिकेट में हिस्सा लेतीं तो भारत के स्वर्ण पदकों की संख्या ने केवल 13 होती बल्कि वह शीर्ष छह मुल्कों में शुमार हो जाता। एशियाड में हिस्सा लेने वाली 10 क्रिकेट टीमों में से श्रीलंका की टीम ने पुरुषों का स्वर्ण पदक हासिल किया। आतंकवाद के साए में रहने वाले अफगानिस्तान की 10 साल पुरानी क्रिकेट टीम  2010 की भांति  17वें एशियाड में भी रजत पदक प्राप्त करने में सफल रही। बांग्लादेश को कांस्य पदक  प्राप्त हुआ। महिला क्रिकेट स्पर्धा में पाकिस्तान को स्वर्ण, बांग्लादेश को रजत तथा श्रीलंका को कांस्य पदक प्राप्त हुआ। कहा जाता है कि भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड को एशियाड के बारे में जानकारी नहीं थी इस कारण उसने राज्य सरकारों से सलाह मशविरा करके 13 सितम्बर से चार अक्टूबर तक चैम्पियंस लीग मैच तय कर दिया। चूंकि इसमें आईपीएल फ्रेंचाइजी की चार टीमें भी हिस्सा ले रही थीं इसलिए उनके फ्रेंचाइजी द्वारा खरीदे गए चोटी के भारतीय खिलाड़ी उपलब्ध नहीं हो सकते थे।  इसके अलावा चूंकि खिलाड़िय़ों को अक्टूबर माह में वेस्टइण्डीज के साथ मैच खेलना था इसलिए वे भारत में रहकर अभ्यास करना चाहते थे इसलिए वे स्वयं भी नहीं जाना चाहते थे। जहां तक भारतीय महिला क्रिकेट टीम के एशियाड में न भेजे जाने का सवाल है, बीसीसीआई की नजर में भारत की कमजोर महिला टीम के जीतने के आसार नहीं थे, इसलिए उसको भेजना उचित नहीं समझा गया।
एशियाड में भारत द्वारा क्रिकेट टीम नहीं भेजे जाने की एशियाई ओलम्पिक कौंसिल ओसीए के अध्यक्ष कुवैत के शेख अहमद अल-अहमद अल-फहद अल-साबाह की बड़ी उग्र प्रतिक्रिया रही है। समाचार पत्रों में छपे उनके वक्तव्य अनुसार उनका कहना था कि उनको यह देखकर दु:ख होता है कि भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड में बैठे जिम्मेदार लोगों ने क्रिकेट को पूरी तरह से व्यवसाय बना दिया है। वे खेल को प्रोत्साहन देने की बजाय इसको धंंधा बनाकर पैसा कमाने में लगे हुए हैं। वे युवा खिलाड़िय़ों को देश के लिए खेलने की बजाय खुद के व्यवसाय को बढ़ाने के लिए प्रलोभन देकर जैसा चाहते हैं वैसा खेला रहे हैं। उनके अनुसार भारतीय क्रिकेट बोर्ड के लोग बाजार पर अपना नियंत्रण स्थापित करने के लिए क्रिकेट पर नियंत्रण रखे हुए हैं, वे खिलाड़िय़ों पर एकाधिकार चाहते हैं। भारत में क्रिकेट अब खेल नहीं बल्कि उद्योग बन गया है। बीसीसीआई के लोग क्रिकेट खेल की हत्या कर रहे हैं।
मैं एशियाड में क्रिकेट टीम की अनुपस्थिति के लिए भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड से अधिक भारत सरकार को दोषी मानता हूं जिसने भारतीय क्रिकेट बोर्ड के रवैये की  2010 से जानकारी होने के बावजूद इंचियोन एशियाड में भारतीय टीम के हिस्सा लेने की सुनिश्चितता के लिए कोई भी कदम नहीं उठाया। ओलम्पिक खेलों की मूल भावना का सम्मान करना है तो ओलम्पिक व एशियन खेलों में ऐसे खिलाड़िय़ों को भेजा जाना चाहिए जो खेल को शौक से खेलते हैं न कि व्यवसाय  समझकर खेलते हैं। इसलिए जो खिलाड़ी फ्रेंचाइजी द्वारा नीलामी में खरीदा गया है या भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड द्वारा लाखों रुपये की फीस पर अनुबंधित हंै ऐसे पराधीन खिलाड़ी को ओलम्पिक, एशियन या कामनवेल्थ सरीखी स्पर्धाओं के लिए भेजी जाने वाला टीम में शामिल ही नहीं किया जाना चाहिए। अब यदि सरकार अगले एशियाड हेतु टीम की भागीदारी एवं जीत सुनिश्चित करना चाहती है तो उसे अलग से एशियाड क्रिकेट संघ गठित करके अभी से ही नवयुवा खिलाड़िय़ों का चयन करके उनके प्रशिक्षण एवं अभ्यास की व्यवस्था प्रारम्भ कर देना चाहिए।  इतना ही नहीं क्रिकेटरों को किसी सम्मान से नहीं नवाजा जाना चाहिए।

Friday 10 October 2014

साहित्य में संवेदना की वेदना

हर सदी कुछ संदेश देती है। इक्कीसवीं सदी ने मनुष्य को कुछ विलक्षण सौगातें दी हैं तो उससे बहुत कुछ छीना भी है। बदलता समय और उसके सरोकार सर्वथा अलग हैं। इंसान की निष्ठा, प्रतिबद्धता तथा प्राथमिकता अपने समाज और परिवार के प्रति जो परिलक्षित होनी चाहिए वर्तमान उपभोक्तावादी दौर में उसका नितांत अभाव है। वर्तमान समय लेखन के लिये चुनौतियों भरा है। मनुष्य की प्रतिबद्धता खण्डित हो चुकी है। हर किसी का रास्ता अलग है। आजकल कुछ भी लिखा जा रहा है, पर बाल साहित्य पर कलम ठहर सी गई है। अब चंदा मामा नीचे नहीं आते, अपने मन की बात नहीं बताते। आज बालमन मायूस है, उसका मन तरंगित और उमंगित नहीं होता।
साहित्य का मानवीय रिश्ता, उसकी जीवन यात्रा के साथ ही प्रारम्भ होता है। साहित्य का मूल सम्बन्ध मानव की संवेदना से है। संवेदना के बिना साहित्य की कल्पना नहीं की जा सकती। मनुष्य के चिन्तन और उसकी विचारधाराओं को ही साहित्य आत्मसात करता है। प्रत्येक रचनाकार, वह चाहे जिस विधा का हो अपने युग को जीता है। कवि या लेखक अपने परिवेश में व्याप्त समस्याओं को निरख-परख कर सभी के अनुभवों के साथ अभिव्यक्त करता है। यह काम हर कोई नहीं कर सकता। आज का समय वैश्वीकरण, उदारीकरण, बाजारीकरण और उपभोक्तावादी दौर से गुजर रहा है तो इंसान की पहचान बाजार के उत्पादों से होने लगी है। बाजारीकरण  के इस दौर में अच्छा साहित्य कहीं गुम हो गया है।
साहित्य की अपनी सीमाएं हैं, उसका अपना स्वरूप है। साहित्य का प्रवाह इतिहास से कहीं अधिक प्रखर होता है। उसकी सम्भावनाओं पर कविता के स्वर फूटने लगते हैं। आज साहित्य पर धनलोलुपता हावी है, यही कारण है कि इसमें मनुष्य की उपस्थिति, उसकी अस्मिता और समूचा अस्तित्व दांव पर लगा नजर आ रहा है। मानवीय मूल्य और परम्पराएं ठहरे जल की मानिंद दिखने लगी हैं। बच्चे मन के सच्चे होते हैं पर हमारे समाज में इनको लेकर एक खास किस्म की उपेक्षा दिख रही है। बात बाल मजदूरी की हो, हमारी कानूनी खामियों की हो या फिर इनके यौन शोषण की, सब दूर उसे निराशा मिल रही है। बालमन की उपेक्षा से हमारा हिन्दी साहित्य भी अछूता नहीं है। लिखने वाले बहुत कुछ लिख रहे हैं पर बाल साहित्य के परिदृश्य पर नजर डालें तो बड़ा खालीपन दिख रहा है।
बाल-गोपालों की कई स्तरीय पत्र-पत्रिकाएं बंद हो गई हैं, जो निकल भी रही हैं उनकी रचनाओं में विविधता का अभाव है। एक जमाने में अमर चित्रकथा समेत कई कॉमिक्स बच्चों के बीच काफी लोकप्रिय थे लेकिन अब सब गायब हैं। प्राण ने चाचा चौधरी और साबू जैसे मशहूर चरित्रों को न केवल गढ़ा था बल्कि नौनिहालों के बीच उसे दीवानगी की हद तक लोकप्रिय भी बनाया था। तब बच्चे नई कॉमिक्स का शिद्दत से इंतजार करते थे। आज उसका प्रकाशन बंद है। वजह घाटा बताया जा रहा है। दरअसल बाल साहित्य के प्रकाशन को नफा-नुकसान के नजरिए से नहीं देखा जाना चाहिए। यह प्रक्रिया एक पूरी पीढ़ी को पढ़ने की आदत डालने के लिए नितांत आवश्यक है। बाल साहित्य के प्रकाशन पर किया जाने वाला निवेश तात्कालिक रूप से बेशक फायदे का सौदा न हो पर भविष्य में यह कारोबारी और समाज दोनों के लिए लाभप्रद जरूर साबित हो सकता है।
आज बाल साहित्य पर चिन्तन करें तो एक अजीब किस्म की उदासीनता देखने को मिलती है। मुल्क में मराठी, बांग्ला और मलयालम में बाल साहित्य लिखा और छापा जा रहा है। इन भाषाओं में साहित्य के गम्भीर पाठक भी हैं। हिन्दी साहित्य की बात करें तो पिछले चार-पांच दशक में बाल साहित्य पर गम्भीरता से कोई काम नहीं हुआ है। यह अकारण नहीं हो सकता। बाल साहित्य के प्रति लेखकों की उदासीनता को समझा जा सकता है। अगर हम साहित्य और साहित्यकारों से इतर समाचार-पत्रों को देखें तो इक्का-दुक्का अखबारों को छोड़कर, बच्चों के लिए पढ़ने की सामग्री नहीं के बराबर होती है। टेलीविजन चैनलों की स्थिति तो और भी खराब है। आज कार्टूनों की बहुलता ने बच्चों को पढ़ाई से दूर कर दिया है। बाल साहित्य के प्रति उदासीनता से तो एक बात साफ है कि हमारा समाज चाहे किसी भी तबके का क्यों न हो, वह अपने बच्चों और उनके भविष्य को लेकर कतई गम्भीर नहीं है।
आज अभिभावक चाहते हैं कि उनका बच्चा अच्छी शिक्षा हासिल करे लेकिन उनकी बच्चों को नैतिक शिक्षा देने में कोई रुचि नहीं दिखती। पिछले दो-तीन दशक में समूचे मुल्क में अंग्रेजी स्कूलों की दुकानें गली-मुहल्लों तक में खुल गई हैं। इन अंग्रेजी स्कूलों से हिन्दी के बाल साहित्य पर काफी बुरा असर पड़ा है। यदि देश को सचमुच विकसित राष्ट्र बनाना है तो समाज में बच्चों की उपेक्षा का जो अंधकारपूर्ण माहौल है उसे अविलम्ब खत्म किया जाना चाहिए। इस नैतिक कार्य को मुकम्मल मुकाम तक पहुंचाने की अभी से पहल नहीं हुई तो हमारे नौनिहाल जोकि देश का भविष्य हैं, गलत दिशा की तरफ चल निकलेंगे। अपने भविष्य की उपेक्षा करने वाला राष्ट्र एक हद से अधिक तरक्की कभी नहीं कर सकता। इस गम्भीरता को हमारी सरकार, देश के नागरिकों और रचना कर्म से जुड़े लोगों समझना चाहिए ताकि बाल साहित्य में जो खालीपन आया है उसे समय रहते समृद्ध किया जा सके। 

Wednesday 8 October 2014

एशियाई खेल: बढ़े पदक, गिरा प्रदर्शन

एथलीटों, पहलवानों, मुक्केबाजों और निशानेबाजों ने बचाई लाज
आगरा। खिलाड़ियों की सुविधाएं बढ़ीं, खेल अधोसंरचना सुधरी तथा विदेशी प्रशिक्षकों पर अरबों निसार करने के बाद भी पदकों के लिहाज से खेलों में भारत का भाग्य नहीं बदला। यह मैं नहीं बल्कि 63 साल का एशियाई खेलों का रिकॉर्ड बयां कर रहा है। एशियाई खेलों में जैसे-जैसे खेल और पदकों की संख्या बढ़ी भारतीय खिलाड़ियों का प्रदर्शन गिरता ही चला गया। चीन की सहभागिता के बाद तो हमारी स्थिति और भी खराब हो गई। खेलों में आज हम अर्श पर नहीं बल्कि फर्श पर हैं।
एशियाई खेलों का आगाज हुए 63 साल हो गये हैं। पहले एशियाई खेल 1951 में दिल्ली में हुए और तब 169 पदक दांव पर थे जिनमें भारतीय खिलाड़ियों ने नायाब प्रदर्शन करते हुए 30.18 प्रतिशत यानि 15 स्वर्ण, 16 रजत, 20 कांस्य सहित कुल 51 पदक जीतकर इस बात के संकेत दिए थे कि खेलों में भारत का भविष्य उज्ज्वल है। समय बीता और खेल उनके हाथ आ गये जिनके बाप-दादा भी कभी नहीं खेले। हाल ही इंचियोन (दक्षिण कोरिया) में हुए सत्रहवें एशियाई खेलों में दांव पर लगे 1454 पदकों में भारतीय सूरमा खिलाड़ी 3.92 प्रतिशत के मान से 11 स्वर्ण, नौ रजत और 37 कांस्य सहित कुल 57 पदक ही जीत सके। 2010 में ग्वांगझू में हुए सोलहवें एशियाई खेलों में सर्वाधिक 1577 पदक दांव पर थे जिनमें भारत ने 4.12 प्रतिशत के लिहाज से 14 स्वर्ण, 17 रजत, 34 कांस्य सहित सर्वाधिक 65 पदक जीते थे। एशियाई खेलों में आज यही सर्वाधिक पदकों का भारतीय रिकॉर्ड है।
एशियाई खेलों में पदकों के इजाफे की जहां तक बात है 1994 के एशियाई खेलों में पहली बार पदकों की संख्या एक हजार से अधिक रही। इन खेलों में 1079 पदकों के लिए एशियाई देशों के बीच जमकर जद्दोजहद हुई लेकिन भारत के हाथ 2.13 प्रतिशत यानि 23 पदक ही लगे। इनमें चार स्वर्ण, तीन रजत और 16 कांस्य पदक शामिल रहे। भारत ने 1998 में 1225 पदकों में 35, 2002 में 1350 पदकों में 36 तथा 2006 में 1393 पदकों में सिर्फ 53 जीते। आंकड़ों और बांकुरों पर नजर डालें तो चीन जब से इन खेलों में उतरा है उसे कोई एशियाई देश चुनौती नहीं दे सका है। चीन पिछले नौ एशियाई खेलों से शिखर पर काबिज है। उसे चुनौती देने की कौन कहे उसके करीब भी कोई देश नहीं फटक रहा। भारत ने अब तक के एशियाई खेलों में जहां 139 स्वर्ण, 178 रजत, 285 कांस्य सहित 602 पदक जीते वहीं फौलादी चीनी खिलाड़ियों ने हर मर्तबा स्वर्णिम शतक लगाया है। इंचियोन में भारतीय खिलाड़ी जहां सिर्फ 11 स्वर्ण पदक जीत सके वहीं चीनी खिलाड़ियों ने 151 स्वर्ण पदकों से अपने गले सजाए। एशियाई खेलों में चीन अब तक 11 बार शिरकत करने के साथ 1342 स्वर्ण, 900 रजत, 653 कांस्य सहित 2895 पदक जीत चुका है।
20 खेलों में ही मिली स्वर्णिम सफलता
एशियाई खेलों में भारत ने एथलेटिक्स में 72 स्वर्ण, 77 रजत, 84 कांस्य सहित कुल 233 पदक जीते हैं जबकि पहलवानों ने नौ स्वर्ण, 14 रजत, 33 कांस्य सहित 56 पदक, मुक्केबाजों ने आठ स्वर्ण, 16 रजत, 31 कांस्य सहित 55 पदक तथा निशानेबाजों ने सात स्वर्ण, 17 रजत, 25 कांस्य सहित 49 पदकों पर कब्जा जमाया है।  इन खेलों की कबड्डी स्पर्धा में भारत ने नौ स्वर्ण तो टेनिस में छह स्वर्ण, पांच रजत, 13 कांस्य सहित 24 पदक जीते हैं। भारत ने 20 खेलों एथलेटिक्स, कुश्ती, मुक्केबाजी, कबड्डी, टेनिस, निशानेबाजी, क्यू स्पोर्ट्स, हॉकी, गोल्फ, तलवारबाजी, डाइविंग, शतरंज, फुटबाल, रोविंग, तैराकी, वाटर पोलो, सेलिंग, स्क्वैश, तीरंदाजी तथा बैडमिंटन में ही स्वर्णिम सफलता हासिल की है।
भारत सिर्फ कबड्डी में अजेय
एशियाई खेलों में एकमात्र कबड्डी ही ऐसा खेल है जिसमें भारत अब तक अजेय है। भारतीय पुरुष टीम ने इंचियोन में सातवीं बार तो महिला टीम ने दूसरी बार स्वर्णिम सफलता हासिल की।
पीटी ऊषा, जसपाल राणा, सानिया मिर्जा का जलवा
एशियाई खेलों में व्यक्तिगत प्रदर्शन की बात करें तो उड़नपरी पीटी ऊषा, निशानेबाज जसपाल राणा और टेनिस स्टार सानिया मिर्जा का ही जलवा रहा है। पीटी ऊषा ने जहां चार स्वर्ण, छह रजत सहित सर्वाधिक 10 पदक जीते वहीं शूटर जसपाल राणा ने चार स्वर्ण, दो रजत तथा दो कांस्य और सानिया मिर्जा ने दो स्वर्ण, तीन रजत तथा तीन कांस्य पदक सहित आठ-आठ पदक जीते हैं।


Monday 6 October 2014

उम्मीदों पर खरे नहीं उतरे भारतीय पहलवान

ग्लासगो की स्वर्णिम सफलता पर ग्रीको रोमन पहलवानों ने फेरा पानी
योगेश्वर दत्त का सोना, बजरंग की चांदी, नरसिंह का कांसा भी नहीं भर सका जोश
गीतिका जाखड़ और विनेश फोगाट के कांस्य पदकों से महिला पहलवानी में जगी उम्मीद
आगरा। इंचियोन में सम्पन्न सत्रहवें एशियाई खेलों ने भारत के लिए कई सवाल छोड़े हैं लेकिन इनका उत्तर किसी भी खेलनहार के पास नहीं है। दक्षिण कोरिया जाने से पहले हर भारतीय ग्लासगो के चमकदार प्रदर्शन से इन खेलों में पदकों का मूल्यांकन कर रहा था जोकि बेमानी साबित हुआ। एशियाई खेलों में एथलेटिक्स के बाद सर्वाधिक पदक दिलाने वाले भारतीय पहलवान इंचियोन में उम्मीदों पर खरे नहीं उतरे। फ्रीस्टाइल में योगेश्वर दत्त की स्वर्णिम सफलता भी हमारे पहलवानों में जोश नहीं भर सकी।
2010 में ग्वांगझू में हुए एशियाई खेलों में ग्रीको रोमन पहलवानों ने दो पदक जीते थे लेकिन इंचियोन में खाली हाथ मलते रह गए। भला हो फ्रीस्टाइल पहलवानों का जिन्होंने एक स्वर्ण, एक रजत तथा तीन कांस्य पदक जीतकर मुल्क की नाक कटने से बचा ली। एक माह पहले ग्लासगो में पांच स्वर्ण, छह रजत और दो कांस्य पदक जीतने वाले हमारे फ्रीस्टाइल पहलवानों से इंचियोन में भी बड़ी उम्मीदें थीं लेकिन ग्रीको रोमन पहलवानों ने अपने लचर प्रदर्शन से उसमें तुषारापात कर दिया। संयोग ही सही, आबादी के लिहाज से दुनिया के दो बड़े देश चीन और भारत एशिया में ही हैं, लेकिन खेल के मैदान में इन दोनों के बीच कितना बड़ा फासला है, यह इंचियोन में फिर से साबित हो गया। चीन ही नहीं, दक्षिण कोरिया, जापान के अलावा थाईलैंड, ईरान और कजाकिस्तान सरीखे देशों के मुकाबले भी हम पदक तालिका में जहां खड़े नजर आते हैं, उस पर गर्व तो हरगिज नहीं किया जा सकता। सवा अरब की आबादी वाले भारत के हिस्से में 11 स्वर्ण पदकों समेत महज 57 पदक ही आये, जो ग्वांगझू में हुए पिछले एशियाई खेलों की तुलना में आठ पदक कम हैं।
भारत में खेलों की बागडोर सही हाथों में नहीं है। खिलाड़ियों को तराश कर विजेता बनाना एक दीर्घकालीन और सुनियोजित प्रक्रिया है, जिसके लिए पहली अनिवार्यता खेल प्रबंधन और नीति निर्धारकों में वैसी प्रतिबद्ध सोच है, जो हमारे यहां दूर-दूर तक नजर नहीं आती। खिलाड़ियों को पर्याप्त फूड सप्लीमेंट जहां नहीं मिलता वहीं अनाड़ी मौज-मस्ती का कोई मौका जाया नहीं करते। यश-अपयश का ठीकरा हमेशा खिलाड़ियों पर ही फोड़ा जाता है जबकि खेलनहारों की करतूतें सिरे से खारिज कर दी जाती हैं। खैर, इंचियोन से पहले भारतीय पहलवानों ने आठ स्वर्ण, 13 रजत और 30 कांस्य सहित कुल 51 पदक जीते थे, इस बार इनमें पांच पदकों का और इजाफा हुआ है। पहलवान योगेश्वर दत्त ने 28 साल बाद पीला तमगा तो बजरंग ने चांदी के फलक से अपना गला सजाया। नरसिंह यादव, विनेश फोगाट और गीतिका जाखड़ कांसे के तमगे हासिल कर मादरेवतन की शान बढ़ाने में जहां कामयाब रहे वहीं विश्व चैम्पियनशिप में रजत तथा ग्लासगो में स्वर्णिम सफलता हासिल करने वाले अमित कुमार दहिया अपनी प्रतिभा से न्याय नहीं कर पाये। सुशील कुमार की जगह इंचियोन गये प्रवीण राणा भी खाली हाथ लौटे।
गीतिका जाखड़ गई तो थीं अपने पदक का रंग चोखा करने पर वह कांस्य पदक ही जीत सकीं। इस कांस्य के साथ एशियाई खेलों में दो पदक जीतने वाली गीतिका पहली भारतीय महिला पहलवान बन गई हैं। महिला कुश्ती की जहां तक बात है एशियाई खेलों का पहला पदक उत्तर प्रदेश की अलका तोमर के नाम है। अब तक तीन महिला पहलवान गीतिका जाखड़, अलका तोमर और विनेश फोगाट ने ही एशियन खेलों की महिला कुश्ती में पदक जीते हैं। इंचियोन में बबिता फोगाट और ज्योति से भी पदक की उम्मीद थी पर वे पोडियम तक नहीं पहुंच सकीं। भारतीय ग्रीको रोमन पहलवानों ने इंचियोन में बेशक नाक कटाई हो पर फ्रीस्टाइल पहलवानों ने अपने शानदार प्रदर्शन से पांच पदक जरूर जीत दिखाए। ग्वांगझू में भारत ने ग्रीको रोमन कुश्ती में जहां दो कांस्य पदक जीते थे वहीं फ्रीस्टाइल में एक पदक मिला था। फ्रीस्टाइल कुश्ती में पवन कुमार, अमित दहिया, प्रवीण राणा, सत्यव्रत कादियान, कृष्ण कुमार पुरुष वर्ग में तो बबिता फोगाट और ज्योति महिला वर्ग में खाली हाथ लौटे।
रियो ओलम्पिक में हमारे पहलवान अच्छा प्रदर्शन करेंगे: सतपाल
भारतीय कुश्ती के पितामह गुरु हनुमान के शिष्य सतपाल का कहना है कि इंचियोन के प्रदर्शन से निराश होने की बात नहीं है। मेरे शिष्य सुशील कुमार, योगेश्वर दत्त और अमित कुमार दहिया बेजोड़ हैं। भारतीय पहलवान रियो ओलम्पिक में इतिहास लिखेंगे इसमें संदेह नहीं है।
पहलवानों को निराश नहीं होना चाहिए: राहुल
कभी अमित दहिया के रूम पार्टनर रहे भीलवाड़ा राजस्थान निवाली राहुल गादरी का कहना है कि जीत-हार खेल का हिस्सा है। भारतीय पहलवान प्रतिभाशाली हैं, उनमें जीत का जुनून है। इंचियोन में जो हुआ उससे निराश होने की जरूरत नहीं है। पहलवानों को अपना रियाज जारी रखते हुए अभी से रियो ओलम्पिक की तैयारी शुरू कर देनी चाहिए। राहुल का कहना है कि यदि हमारी सरकारें खेल और खिलाड़ियों को प्रोत्साहन देने के साथ ही उन्हें नौकरी दें तो भारत भी चीन का मुकाबला कर सकता है।

Saturday 4 October 2014

स्टॉर खिलाड़ियों का नाकाबिल प्रदर्शन

भारत को एशियाई खेलों में पिछली बार से कम मिले पदक
इंचियोन। भारत के पदकों की संख्या में यहां एशियाई खेलों के दौरान भले ही गिरावट आई हो लेकिन इसके बावजूद उसे जश्न मनाने के काफी मौके मिले जब पुरुष हाकी टीम ने लम्बे समय के बाद स्वर्ण पदक जीता जबकि महान मुक्केबाज एमसी मैरीकोम ने स्वर्ण पदक जीतकर अपने कद को और बड़ा कर दिया। देश के खिलाड़ियों का एशियाई खेलों में अभियान हालांकि मिश्रित सफलता वाला रहा।
पिस्टल निशानेबाज जीतू राय और फ्रीस्टाइल पहलवान योगेश्वर दत्त इन खेलों के नायकों में शामिल रहे जहां भारत 2010 ग्वांगझू खेलों के अपने 65 पदकों की संख्या में सुधार करने या इसकी बराबरी करने के इरादे से उतरा था। भारतीय दल हालांकि पिछली बार की तुलना में कम ही पदक जीत पाया। भारत ने 11 स्वर्ण जीते जो पिछली बार की तुलना में तीन कम हैं। इसके अलावा उसने 10 रजत और 36 कांस्य पदक सहित कुल 57 पदक जीते।
भारत ने एथलेटिक्स और कबड्डी में दो-दो स्वर्ण पदक जीते जबकि तीरंदाजी, मुक्केबाजी, हॉकी, निशानेबाजी, स्क्वाश, टेनिस और कुश्ती में एक-एक स्वर्ण पदक मिला। भारत पदक तालिका में आठवें स्थान पर रहा जो पिछली बार के चीन खेलों की तुलना में दो स्थान नीचे है। ग्वांगझू में भारत ने 14 स्वर्ण, 17 रजत और 34 कांस्य पदक जीतकर छठा स्थान हासिल किया था। वर्ष 2010 में भारत ने 609 प्रतिभागियों में मैदान में उतारा था जबकि इस दौरान 541 खिलाड़ियों ने चुनौती पेश की। भारत की ओर से पहला स्वर्ण पदक सेना के प्रतिभावान निशानेबाज जीतू राय ने पुरुष 50 मीटर पिस्टल स्पर्धा में प्रतियोगिताओं के पहले ही दिन जीता। भारत के लिए अंतिम स्वर्ण पदक महिला और पुरुष कबड्डी टीमों ने जीते। देश को कुछ स्वर्ण कबड्डी जैसे गैर ओलंपिक खेलों में मिले जो एशियाई के अधिकांश हिस्सों में भी काफी लोकप्रिय नहीं है। भारतीय मिशन प्रमुख आदिले सुमरीवाला ने भारतीय टीम के प्रदर्शन पर कहा कि पदकों की कुल संख्या उम्मीद के मुताबिक रही। उन्होंने कहा, हमने 50 से 55 पदक की उम्मीद की थी और हमें 57 पदक मिले। वर्ष 2010 के बाद हम राह से भटक गए थे, नहीं तो और अधिक पदक जीतने में सफल रहते। इस बार भी भारत ग्लास्गो में राष्ट्रमंडल खेलों में अच्छा प्रदर्शन करने के बाद यहां था और एक बार फिर राष्ट्रमंडल खेलों और एशियाई खेलों के स्तर में अंतर देखने को मिला। एशियाई खेलों में एक बार फिर चीन ने दबदबा बनाया। स्वर्ण पदकों की गिरती संख्या के बीच सरदार सिंह की अगुआई वाली भारतीय पुरूष हाकी टीम ने फाइनल में चिर प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान को पेनल्टी शूट आउट में हराकर देश को जश्न बनाने का मौका दिया। फाइनल मुकाबला चार क्वार्टर के बाद 1-1 से बराबर रहने के बाद भारत ने पेनल्टी शूटआउट में 4-2 से जीत दर्ज की थी।
भारत ने पिछला स्वर्ण पदक 1998 बैंकाक एशियाई खेलों के दौरान जीता था और टीम के लिए निश्चित तौर पर यह स्वर्ण काफी महत्वपूर्ण साबित होगा। इसके साथ ही भारत 1966 के बाद पाकिस्तान को पहली बार फाइनल में हराकर 2016 रियो ओलंपिक की पुरुष हाकी स्पर्धा के लिए भी क्वालीफाई कर गया। इसके अलावा भारत के लिए पुरुष कम्पाउण्ड तीरंदाजी टीम, मैरीकोम, योगेश्वर दत्त, पुरुष स्क्वाश टीम, सानिया मिर्जा और साकेत माइनेनी की टेनिस मिश्रित युगल जोड़ी, महिला चक्का फेंक खिलाड़ी सीमा पूनिया और चार गुणा 400 मीटर रिले टीम ने भी स्वर्ण पदक जीते।
योगेश्वर यहां स्वर्ण पदक जीतने के इरादे से आए थे और उन्होंने कुश्ती में भारत के 28 साल के स्वर्ण पदक के सूखे का अंत किया। लंदन ओलंपिक के कांस्य पदक विजेता योगेश्वर ने प्रतिबद्धता और जज्बे के साथ चुनौती देते हुए पुरुष फ्रीस्टाइल 65 किग्रा में सोने का तमगा जीता। स्क्वाश पुरूष एकल में सौरव घोषाल फाइनल में 2-0 की बढ़त बनाने और तीसरे गेम में मैच प्वाइंट हासिल करने के बावजूद स्वर्ण जीतने से चूक गए। निशानेबाजी में दुनिया के पांचवें नंबर के खिलाड़ी जीतू ने चीन के वैंग झिवेई और दक्षिण कोरिया के दो बार के ओलम्पिक चैम्पियन और गत विश्व चैम्पियन जोनगोह जैसे शीर्ष निशानेबाजों को पछाड़ा। वह इस तरह जसपाल राणा के बाद एशियाई खेलों का स्वर्ण जीतने वाले दूसरे पिस्टल निशानेबाज बने।
बीजिंग ओलंपिक 2008 चैम्पियन अभिनव बिंद्रा सिर्फ कांस्य पदक जीत पाए जबकि गगन नारंग को कोई पदक नहीं मिला जिससे भारतीय निशानेबाजी टीम उम्मीद के मुताबिक प्रदर्शन नहीं कर पाई। स्टार बैडमिंटन खिलाड़ी साइना नेहवाल और पीवी संधू ने भी निराश किया। ये दोनों व्यक्तिगत स्पर्धाओं में पदक जीतने में नाकाम रहीं। सोमदेव देववर्मन के अलावा लिएंडर पेस और रोहन बोपन्ना की शीर्ष युगल जोड़ी के अनुपलब्ध होने के कारण टेनिस की उम्मीदों को झटका लगा था लेकिन इस खेल में भारत का प्रदर्शन अच्छा रहा। साइना ने अपने साथियों के साथ मिश्रित युगल में स्वर्ण और महिला युगल में कांस्य जीता। मिश्रित युगल में साइना के साथी साकेत माइनेनी थे जबकि महिला युगल में उन्हें प्रार्थना थोम्बारे का साथ मिला। इसके अलावा साकेत ने सनम सिंह के साथ मिलकर पुरूष युगल का रजत पदक जीता। युकी भाम्बरी ने पुरूष एकल में कांस्य जबकि युकी और दिविज शरण की जोड़ी ने पुरूष युगल में कांस्य पदक जीता। भारत के पुरूष और महिला रिकर्व तीरंदाज एक भी पदक नहीं जीत पाए जबकि कम्पाउंड टीम ने प्रभावी प्रदर्शन किया। कम्पाउंड तीरंदाजों ने दक्षिण कोरिया को हराकर पुरुष टीम खिताब के साथ एशियाई खेलों में पहला स्वर्ण पदक जीता। कम्पाउंड तीरंदाजों ने इसके अलावा एक रजत और दो कांस्य पदक भी हासिल किए। स्टार महिला मुक्केबाज मैरीकॉम ने महिला फ्लाइवेट वर्ग में एशियाई खेलों का अपना पहला स्वर्ण पदक जीता।
मैरीकॉम की टीम की साथी मुक्केबाज एल. सरिता देवी को लेकर विवाद हुआ जब जजों के खराब फैसले के कारण महिला लाइटवेट सेमीफाइनल में हारा हुआ घोषित किया गया। सरिता ने बाद में पदक वितरण समारोह के दौरान कांस्य पदक स्वीकार नहीं करके विवाद को और बढ़ा दिया। सुमरीवाला के एशियाई ओलम्पिक परिषद की सुनवाई में हिस्सा लेने के बाद सरिता का पदक बहाल किया गया और इसके बाद वह निलम्बन के खतरे के कारण अंतरराष्ट्रीय मुक्क्ेबाजी संघ से माफी भी मांग चुकी है। महिला मुक्केबाजों ने एक स्वर्ण और दो कांस्य पदक जीते लेकिन पुरुष मुक्केबाजों ने निराश किया जो सिर्फ दो कांस्य पदक ही हासिल कर पाए।  सरिता की घटना से पहले महिला 3000 मीटर स्टीपलचेज में भी विवादास्पद फैसला आया जब ज्यूरी ने बहरीन की विजेता रूथ जेबेट को डिस्क्वालीफाई करने के जजों के फैसले को बदल दिया। इसके कारण ललिता बाबर का कांस्य रजत में नहीं बदल पाया और गत चैम्पियन सुधा सिंह भी तीसरे स्थान पर नहीं आ पाई। भारत ने चार साल पहले ग्वांगझू में एथलेटिक्स में पांच स्वर्ण, दो रजत और पांच कांस्य पदक जीते थे जबकि यहां उसने 13 पदक हासिल किए जिसमें दो स्वर्ण, चार रजत और सात कांस्य पदक शामिल रहे। विभिन्न कारणों ने पिछले दो एशियाई खेलोें से बाहर रहने वाली सीमा पूनिया ने महिला चक्का फेंक में स्वर्ण पदक जीता। इसके अलावा महिला चार गुणा 400 मीटर रिले टीम भी भारत के लिए स्वर्ण जीतने में सफल रही। मंजू बाला को हैमर थ्रो में मिला कांस्य अपग्रेड करके रजत पदक कर दिया गया जब उनसे बेहतर नतीजा हासिल करने वाली चीन की खिलाड़ी डोप टेस्ट में पॉजीटिव पाई गई।
चक्का फेंक के खिलाड़ी और पदक के दावेदार विकास गौड़ा स्वर्ण जीतने में नाकाम रहे और उन्हें कांस्य पदक से संतोष करना पड़ा जबकि त्रिकूद में अरपिंदर सिंह और रंजीत माहेश्वरी कोई पदक हासिल नहीं कर पाए। भारत ने एशियाई खेलों का कल सुखद अंत किया जब पुरूष और महिला कबड्डी टीमें ईरान को हराकर स्वर्ण पदक जीतने में सफल रहीं। भारत अन्य खेलों में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाया लेकिन वुशू में उसने दो कांस्य पदक जीते जबकि पुरूष तैराकी में संदीप सेजवाल ने 50 मीटर ब्रेस्टस्ट्रोक में कांस्य पदक हासिल किया। भारत ने महिला सेलिंग की 29ईआर क्लास में पहली बार कांस्य पदक जीता।
एशियाई खेलों में भारत ने हासिल किया आठवां स्थान
 भारत का आज यहां समाप्त हुए 17वें एशियाई खेलों की पदक तालिका में आठवां स्थान रहा जो पिछले खेलों से दो स्थान पीछे है। भारत ने इन खेलों में कुल 57 पदक जीते जिसमें 11 स्वर्ण, 10 रजत और 36 कांस्य पदक शामिल हैं।  चीन के ग्वांगझू में 2010 में हुए पिछले खेलों में भारत ने 65 पदक जीते थे जिसमें 14 स्वर्ण, 17 रजत और 34 कांस्य पदक शामिल थे। चीन पदक तालिका में 342 पदक जीत कर सबसे ऊपर रहा। चीनी खिलाडियों ने 151 स्वर्ण, 108 रजत और 83 कांस्य पदक जीते। मेजबान दक्षिण कोरिया दूसरे स्थान पर रहा उसने 234 पदक जीते जिसमें 79 स्वर्ण, 71 रजत और 77 कांस्य पदक जीते। इसके बाद जापान ने 200 पदक जीते जिसमें 47 स्वर्ण, 76 रजत और 77 कांस्य पदक शामिल हैं।
 पदक तालिका :
 1. चीन : 151 स्वर्ण, 108 रजत, 83 कांस्य (342 पदक)
 2. दक्षिण कोरिया : 79 स्वर्ण, 71 रजत, 84 कांस्य (234 पदक)
 3. जापान : 47 स्वर्ण, 76 रजत, 77 कांस्य (200 पदक)
 4. कजाकिस्तान : 28 स्वर्ण, 23 रजत, 33 कांस्य (84 पदक)
 5. ईरान : 21 स्वर्ण, 18 रजत, 18 कांस्य (57 पदक)
 6. थाईलैंड : 12 स्वर्ण, 7 रजत, 28 कांस्य ( 47 पदक)
 7. उत्तर कोरिया : 11 स्वर्ण, 11 रजत, 14 कांस्य (36 पदक)
 8. भारत :  11 स्वर्ण, 10 रजत, 36 कांस्य (57 पदक)
 9. चीनी ताइपे : 10 स्वर्ण, 18 रजत, 23 कांस्य (51 पदक)
10. कतर : 10 स्वर्ण, 0 रजत, 4 कांस्य (14 पदक)
11. उज्बेकिस्तान : 9 स्वर्ण, 14 रजत, 21 कांस्य (44 पदक)
12. बहरीन : 9 स्वर्ण, 6 रजत, 4 कांस्य (19 पदक)
13. हांगकांग : 6 स्वर्ण, 12 रजत, 24 कांस्य (42 पदक)
14. मलेशिया : 5 स्वर्ण, 14 रजत, 14 कांस्य (33 पदक)
15. सिंगापुर : 5 स्वर्ण, 6 रजत, 13 कांस्य (24 पदक)
 16. मंगोलिया : 5 स्वर्ण, 4 रजत, 12 कांस्य (21 पदक)
17. इंडोनेशिया : 4 स्वर्ण, 5 रजत, 11 कांस्य (20 पदक)
18. कुवैत : 3 स्वर्ण, 5 रजत, 4 कांस्य (12 पदक)
19. सऊदी अरब : 3 स्वर्ण, 3 रजत, 1 कांस्य (7 पदक)
20. म्यांमार : 2 स्वर्ण, 1 रजत, 1 कांस्य (4 पदक)

हारी उम्मीदें, गुरूर चूर-चूर

जैसी आशंका थी वही भारत के साथ इंचियोन में हुआ। खिलाड़ियों के लचर प्रदर्शन ने जहां उनके पौरुष की पोल खोली वहीं खेलनहारों की अकर्मण्यता ने मुल्क को लजा दिया। भारत का 516 सदस्यीय खिलाड़ियों का दल सत्रहवें एशियाई खेलों में गया तो था चीन, जापान और दक्षिण कोरिया को चुनौती देने पर अफसोस वह अपने पूर्व प्रदर्शन में भी सुधार नहीं कर सका। एशियाई खेलों के पथ प्रदर्शक भारत से इस बार बड़ी उम्मीद थी कि वह अपने सुधरे पराक्रम से शीर्ष पांच देशों में शुमार होगा, पर ऐसा नहीं हुआ। हम चीन, जापान, दक्षिण कोरिया ही नहीं कजाकिस्तान, ईरान जैसे मुल्कों को भी मात नहीं दे सके। इन खेलों में भारत के लिए यदि सबसे बड़ी खुशी की बात कहें तो वह है पुरुष हॉकी टीम का स्वर्ण पदक। इस स्वर्ण पदक की भारत को लम्बे समय से दरकार थी। सरदार की पलटन ने पाकिस्तान के गुरूर को चूर-चूर कर न सिर्फ स्वर्ण पदक जीता बल्कि रियो ओलम्पिक में शिरकत करने का हक भी हासिल कर लिया।
हार और जीत तो खेल का हिस्सा है, लेकिन जिस तरह इंचियोन में भारत की बेटी लैशराम सरिता देवी के साथ नाइंसाफी हुई, वह खेलों का निहायत शर्मनाक वाक्या है। एशियाई खेलों के इतिहास में यह पहला अवसर है जब एक महिला खिलाड़ी अनिर्णय के चलते दो दिन लगातार रोई लेकिन खेलनहारों ने ऐसा कोई कदम नहीं उठाया जिससे लगता कि भारत अपनी सम्प्रभुता पर आंच बर्दाश्त नहीं कर सकता। सरिता के आंसू न केवल अंगारे बने बल्कि उसने कांस्य पदक ठुकरा कर एशियाई खेलों के कर्ताधर्ताओं के सामने जो नजीर पेश की है, उसकी जितनी तारीफ की जाए वह कम है। एशियाई ओलम्पिक परिषद ने लम्बी जद्दोजहद के बाद सरिता देवी का कांस्य पदक बरकरार रखने का फैसला तो कर दिया पर भविष्य में बेईमानी नहीं होगी इस बात की कोई गारंटी नहीं दी।
भारत, इण्डोनेशिया, फिलीपीन्स, सिंगापुर और थाईलैण्ड ही अभी तक सभी एशियाई खेलों में खेले हैं। इंचियोन एशियाई खेलों से पहले भारत ने इन खेलों में 128 स्वर्ण, 168 रजत, 249 कांस्य सहित कुल 545 पदक जीते थे, पर वह दक्षिण कोरिया में ग्वांगझू का प्रदर्शन नहीं दोहरा सका। भारत ने 2010 में हुए सोलहवें एशियाई खेलों में 14 स्वर्ण, 17 रजत, 34 कांस्य के साथ 65 पदक जीते थे पर इंचियोन में पदकों का पचासा लगाने के बाद भी वह सफलता की नई पटकथा नहीं लिख सका। स्वर्ण पदकों के लिहाज से भारत के प्रदर्शन का मूल्यांकन करें तो उसने 1951 में दिल्ली में हुए पहले एशियाई खेलों में 15 स्वर्ण, 16 रजत, 20 कांस्य सहित 51 पदक जीते थे। एशियाई खेलों के 63 साल के लम्बे इतिहास पर नजर डालें तो छोटे-छोटे देशों ने अपने नायाब प्रदर्शन से सफलता की नई दास्तां लिखी है, लेकिन भारत कभी एशियाई खेलों की महाशक्ति नहीं बन सका। इंचियोन में 45 देशों के 9501 खिलाड़ियों (5823 पुरुष और 3678 महिला) ने 32 खेलों में दांव पर लगे 439 स्वर्ण पदकों के लिए एक पखवाड़े तक जहां पसीना बहाया वहीं चीन को हर बार की तरह इस बार भी कोई मुल्क चुनौती नहीं दे सका।
भारत में खेलों का स्याह सच किसी से छिपा नहीं है। हर खेल आयोजन से पूर्व खिलाड़ियों को मिलती कमतर सुविधाएं, खराब खेल अधोसंरचना और खिलाड़ियों के चयन में पक्षपात तथा भाई-भतीजावाद का दुखड़ा तो रोया जाता है, पर खेलों से गंदगी कैसे दूर हो, इसके लिए कभी पहल नहीं होती। वजह सभी खेल संगठनों में राजनीतिज्ञों का काबिज होना है। हमारे देश में किसी आयोजन के बाद थोड़े दिन विधवा विलाप होता है, लेकिन समय बीतने के साथ पुन: बेशर्मी ओढ़ ली जाती है। इंचियोन में कुछ भारतीय खिलाड़ी मेजबान दक्षिण कोरिया के पक्षपातपूर्ण रवैये का जहां शिकार हुए वहीं निशानेबाज जीतू राय, पहलवान योगेश्वर, चक्काफेंक खिलाड़ी सीमा पूनिया, मुक्केबाज मैरीकॉम, टेनिस खिलाड़ी सानिया मिर्जा-साकेत माइनेनी आदि ने अपनी स्वर्णिम चमक से मादरेवतन को हर्षित होने के कुछ क्षण अवश्य मुहैया कराये। योगेश्वर ने जहां 28 साल के सूखे को खत्म कर अपनी विजेता पहलवान की छवि बनाई वहीं सीमा, जीतू राय और सुपर मॉम मैरीकॉम ने विजय नाद कर इस बात का संकेत दिया कि हार से ही जीत है। व्यक्तिगत प्रदर्शन के अलावा पुरुष और महिला कबड्डी टीम ने जहां अपनी अजेय छवि को आंच नहीं आने दी वहीं हॉकी में सरदार ब्रिगेड ने अपने परम्परागत प्रतिद्वन्द्वी पाकिस्तान को पस्त कर न केवल स्वर्ण जीता बल्कि 2016 में होने वाले रियो ओलम्पिक में खेलने की पात्रता भी हासिल कर ली।
भारत ने इस बार एशियाई खेलों की टेनिस स्पर्धा में एक स्वर्ण समेत पांच पदक जीते। 2010 में भी भारत ने पांच पदक जीते थे लेकिन उनमें दो स्वर्ण शामिल थे। लिएंडर पेस, सोमदेव देवबर्मन और रोहन बोपन्ना जैसे शीर्ष खिलाड़ियों के पीछे हटने के बाद भारतीय युवा खिलाड़ियों का यह प्रदर्शन अच्छा ही कहा जायेगा। कुश्ती में भारतीय पहलवानों का प्रदर्शन उसकी ख्याति के अनुरूप नहीं रहा। योगेश्वर ने जहां स्वर्ण पदक से अपना गला सजाया वहीं महिला कुश्ती में विनेश फोगाट और गीतिका जाखड़ ने कांसे के तमगे हासिल कर महिला कुश्ती के उज्ज्वल भविष्य का संकेत जरूर दिया है। गीतिका एशियाई खेलों की कुश्ती स्पर्धा में दो पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला खिलाड़ी बन गई है। महिला मुक्केबाजी में मैरीकॉम के स्वर्ण पदक के साथ एल. सरिता देवी और पूजा रानी ने कांस्य पदक जीतकर आधी आबादी की गरिमा को चार चांद लगाए। मैरीकॉम ने अपने लाजवाब प्रदर्शन से यह सिद्ध कर दिखाया कि सही मायने में वही रिंग की महारानी है। इंचियोन में भारतीय एथलीटों ने उम्मीद से कहीं बेहतर प्रदर्शन किया है। पिछले एशियाई खेलों में एथलीटों ने एक दर्जन पदक जीते थे तो इस बार सीमा पूनिया और प्रियंका पंवार, मनदीप कौर, टिंटू लुका तथा एमआर पूवम्मा की चौकड़ी ने एशियन रिकॉर्ड के साथ चार गुणा 400 मीटर रिले दौड़ में स्वर्णिम चमक बिखेर कर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया। इंचियोन जाने से पूर्व खेल मंत्रालय ने जब भारतीय दल में कटौती की थी तब भारतीय ओलम्पिक संघ और राष्ट्रीय खेल संगठनों ने खूब टेसू बहाए थे लेकिन अब खराब प्रदर्शन की जवाबदेही कौन लेगा? 

Thursday 2 October 2014

चूर-चूर किया गुरूर

जैसी आशंका थी वही भारत के साथ इंचियोन में हुआ। खिलाड़ियों के लचर प्रदर्शन ने जहां उनके पौरुष की पोल खोली वहीं खेलनहारों की अकर्मण्यता ने मुल्क को लजा दिया। भारत का 516 सदस्यीय खिलाड़ियों का दल सत्रहवें एशियाई खेलों में गया तो था चीन, जापान और दक्षिण कोरिया को चुनौती देने पर अफसोस वह अपने पूर्व प्रदर्शन में भी सुधार नहीं कर सका। एशियाई खेलों के पथ प्रदर्शक भारत से इस बार बड़ी उम्मीद थी कि वह अपने सुधरे पराक्रम से शीर्ष पांच देशों में शुमार होगा, पर ऐसा नहीं हुआ। हम चीन, जापान, दक्षिण कोरिया ही नहीं कजाकिस्तान, ईरान जैसे मुल्कों को भी मात नहीं दे सके। इन खेलों में भारत के लिए यदि सबसे बड़ी खुशी की बात कहें तो वह है पुरुष हॉकी टीम का स्वर्ण पदक। इस स्वर्ण पदक की भारत को लम्बे समय से दरकार थी। सरदार की पलटन ने पाकिस्तान के गुरूर को चूर-चूर कर न सिर्फ स्वर्ण पदक जीता बल्कि रियो ओलम्पिक में शिरकत करने का हक भी हासिल कर लिया।
हार और जीत तो खेल का हिस्सा है, लेकिन जिस तरह इंचियोन में भारत की बेटी लैशराम सरिता देवी के साथ नाइंसाफी हुई, वह खेलों का निहायत शर्मनाक वाक्या है। एशियाई खेलों के इतिहास में यह पहला अवसर है जब एक महिला खिलाड़ी अनिर्णय के चलते दो दिन लगातार रोई लेकिन खेलनहारों ने ऐसा कोई कदम नहीं उठाया जिससे लगता कि भारत अपनी सम्प्रभुता पर आंच बर्दाश्त नहीं कर सकता। सरिता के आंसू न केवल अंगारे बने बल्कि उसने कांस्य पदक ठुकरा कर एशियाई खेलों के कर्ताधर्ताओं के सामने जो नजीर पेश की है, उसकी जितनी तारीफ की जाए वह कम है। एशियाई ओलम्पिक परिषद ने लम्बी जद्दोजहद के बाद सरिता देवी का कांस्य पदक बरकरार रखने का फैसला तो कर दिया पर भविष्य में बेईमानी नहीं होगी इस बात की कोई गारंटी नहीं दी।
भारत, इण्डोनेशिया, फिलीपीन्स, सिंगापुर और थाईलैण्ड ही अभी तक सभी एशियाई खेलों में खेले हैं। इंचियोन एशियाई खेलों से पहले भारत ने इन खेलों में 128 स्वर्ण, 168 रजत, 249 कांस्य सहित कुल 545 पदक जीते थे, पर वह दक्षिण कोरिया में ग्वांगझू का प्रदर्शन नहीं दोहरा सका। भारत ने 2010 में हुए सोलहवें एशियाई खेलों में 14 स्वर्ण, 17 रजत, 34 कांस्य के साथ 65 पदक जीते थे पर इंचियोन में पदकों का पचासा लगाने के बाद भी वह सफलता की नई पटकथा नहीं लिख सका। स्वर्ण पदकों के लिहाज से भारत के प्रदर्शन का मूल्यांकन करें तो उसने 1951 में दिल्ली में हुए पहले एशियाई खेलों में 15 स्वर्ण, 16 रजत, 20 कांस्य सहित 51 पदक जीते थे। एशियाई खेलों के 63 साल के लम्बे इतिहास पर नजर डालें तो छोटे-छोटे देशों ने अपने नायाब प्रदर्शन से सफलता की नई दास्तां लिखी है, लेकिन भारत कभी एशियाई खेलों की महाशक्ति नहीं बन सका। इंचियोन में 45 देशों के 9501 खिलाड़ियों (5823 पुरुष और 3678 महिला) ने 32 खेलों में दांव पर लगे 439 स्वर्ण पदकों के लिए एक पखवाड़े तक जहां पसीना बहाया वहीं चीन को हर बार की तरह इस बार भी कोई मुल्क चुनौती नहीं दे सका।
भारत में खेलों का स्याह सच किसी से छिपा नहीं है। हर खेल आयोजन से पूर्व खिलाड़ियों को मिलती कमतर सुविधाएं, खराब खेल अधोसंरचना और खिलाड़ियों के चयन में पक्षपात तथा भाई-भतीजावाद का दुखड़ा तो रोया जाता है, पर खेलों से गंदगी कैसे दूर हो, इसके लिए कभी पहल नहीं होती। वजह सभी खेल संगठनों में राजनीतिज्ञों का काबिज होना है। हमारे देश में किसी आयोजन के बाद थोड़े दिन विधवा विलाप होता है, लेकिन समय बीतने के साथ पुन: बेशर्मी ओढ़ ली जाती है। इंचियोन में कुछ भारतीय खिलाड़ी मेजबान दक्षिण कोरिया के पक्षपातपूर्ण रवैये का जहां शिकार हुए वहीं निशानेबाज जीतू राय, पहलवान योगेश्वर, चक्काफेंक खिलाड़ी सीमा पूनिया, मुक्केबाज मैरीकॉम, टेनिस खिलाड़ी सानिया मिर्जा-साकेत माइनेनी आदि ने अपनी स्वर्णिम चमक से मादरेवतन को हर्षित होने के कुछ क्षण अवश्य मुहैया कराये। योगेश्वर ने जहां 28 साल के सूखे को खत्म कर अपनी विजेता पहलवान की छवि बनाई वहीं सीमा, जीतू राय और सुपर मॉम मैरीकॉम ने विजय नाद कर इस बात का संकेत दिया कि हार से ही जीत है। व्यक्तिगत प्रदर्शन के अलावा पुरुष और महिला कबड्डी टीम ने जहां अपनी अजेय छवि को आंच नहीं आने दी वहीं हॉकी में सरदार ब्रिगेड ने अपने परम्परागत प्रतिद्वन्द्वी पाकिस्तान को पस्त कर न केवल स्वर्ण जीता बल्कि 2016 में होने वाले रियो ओलम्पिक में खेलने की पात्रता भी हासिल कर ली।
भारत ने इस बार एशियाई खेलों की टेनिस स्पर्धा में एक स्वर्ण समेत पांच पदक जीते। 2010 में भी भारत ने पांच पदक जीते थे लेकिन उनमें दो स्वर्ण शामिल थे। लिएंडर पेस, सोमदेव देवबर्मन और रोहन बोपन्ना जैसे शीर्ष खिलाड़ियों के पीछे हटने के बाद भारतीय युवा खिलाड़ियों का यह प्रदर्शन अच्छा ही कहा जायेगा। कुश्ती में भारतीय पहलवानों का प्रदर्शन उसकी ख्याति के अनुरूप नहीं रहा। योगेश्वर ने जहां स्वर्ण पदक से अपना गला सजाया वहीं महिला कुश्ती में विनेश फोगाट और गीतिका जाखड़ ने कांसे के तमगे हासिल कर महिला कुश्ती के उज्ज्वल भविष्य का संकेत जरूर दिया है। गीतिका एशियाई खेलों की कुश्ती स्पर्धा में दो पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला खिलाड़ी बन गई है। महिला मुक्केबाजी में मैरीकॉम के स्वर्ण पदक के साथ एल. सरिता देवी और पूजा रानी ने कांस्य पदक जीतकर आधी आबादी की गरिमा को चार चांद लगाए। मैरीकॉम ने अपने लाजवाब प्रदर्शन से यह सिद्ध कर दिखाया कि सही मायने में वही रिंग की महारानी है। इंचियोन में भारतीय एथलीटों ने उम्मीद से कहीं बेहतर प्रदर्शन किया है। पिछले एशियाई खेलों में एथलीटों ने एक दर्जन पदक जीते थे तो इस बार सीमा पूनिया और प्रियंका पंवार, मनदीप कौर, टिंटू लुका तथा एमआर पूवम्मा की चौकड़ी ने एशियन रिकॉर्ड के साथ चार गुणा 400 मीटर रिले दौड़ में स्वर्णिम चमक बिखेर कर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया। इंचियोन जाने से पूर्व खेल मंत्रालय ने जब भारतीय दल में कटौती की थी तब भारतीय ओलम्पिक संघ और राष्ट्रीय खेल संगठनों ने खूब टेसू बहाए थे लेकिन अब खराब प्रदर्शन की जवाबदेही कौन लेगा?