सांप निकलने के बाद लकीर पीटना हमारी आदत सी हो गई है। पंजाब में आतंकवादियों की नापाक हरकत के बाद न केवल राज्य सरकार बल्कि केन्द्र सरकार के जवाबदेह लोग कुछ भी बोल रहे हैं। देश में दर्जनों आतंकी वारदातों में अब तक सैकड़ों लोग मारे जा चुके हैं, बावजूद इसके कोई ठोस कार्ययोजना आज तक अमल में नहीं आई। सोमवार की सुबह पंजाब के गुरदासपुर जिले के दीनानगर में आतंकवादियों ने अपनी नापाक हरकतों से न केवल आधा दर्जन से अधिक लोगों को मौत की नींद सुला दिया बल्कि हमारी सुरक्षा खामियां भी उजागर कर दीं। पाकिस्तान से आए आतंकियों ने सीमा से महज 15 किलोमीटर दूर दीनानगर में सुबह पहले एक यात्री बस और फिर एक थाने को अपना निशाना बनाया। पंजाब के सुरक्षा जवानों ने अपनी जांबाजी से तीन आतंकियों को ढेर करने में सफलता तो जरूर हासिल की लेकिन जिस तरह एक एसपी सहित आठ भारतीय मारे गये उससे सवाल यह उठता है कि आतंकियों से निपटने के लिए हमारे पास पर्याप्त संसाधन नहीं हैं। एक पखवाड़े पहले जब रूस के उफा शहर में शंघाई सहयोग संगठन के शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के बीच आतंकवाद के खात्मे पर बातचीत हुई तो दोनों देशों के रिश्तों में खटास कम होने की उम्मीद जगी थी लेकिन आज की इस वारदात से इस बात के ही संकेत मिले कि पाकिस्तान धोखेबाज है और वह कभी नहीं सुधर सकता। पाकिस्तान विश्वास के काबिल नहीं है, इस बात को उसने कई मर्तबा सच साबित किया है। भारत बेशक शांति प्रक्रिया का हिमायती हो लेकिन हमारा पड़ोसी कश्मीर की सियासत को कभी खारिज नहीं करना चाहता। पाकिस्तानी हुक्मरान जब भी किसी अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारतीय नेताओं से मिलते हैं, तो आतंकवादी गतिविधियों पर लगाम कसने पर गरमजोशी तो जरूर दिखाते हैं, पर अपने देश वापस लौटने के बाद वही पुराना रुख अख्तियार कर लेते हैं। इसके पीछे बड़ी वजह कट््टरपंथी ताकतों का वहां की सरकार से अधिक ताकतवर होना है। भारत कई बार पाकिस्तान में चल रहे आतंकवादी प्रशिक्षण शिविरों को बंद करने की गुजारिश कर चुका है लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात ही रहा है। अमेरिका और यूरोपीय देश भी कई मर्तबा भारत के साथ सम्बन्ध सुधारने के मामले में पाकिस्तान को दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्तिदिखाने की नसीहत दे चुके हैं लेकिन उसके भेजे में शांति बहाली की बात कभी नहीं घुसी। पंजाब में आज जो कुछ हुआ उस पर पाकिस्तान को कसूरवार ठहराने की बजाय राजनीतिक दलों को इस बात पर मंथन करना चाहिए कि आखिर मुल्क से आतंकवाद का खात्मा कैसे हो। भारत में आतंकवाद की वारदातें होना राष्ट्रीय समस्या है। हमें पाकिस्तान से दोस्ती का हाथ बढ़ाने की बजाय आतंकी मंसूबों को ध्वस्त करने का संकल्प लेना चाहिए। पंजाब में जो कुछ हुआ उस पर सियासत तो होनी ही नहीं चाहिए।
Monday, 27 July 2015
पाकिस्तान का फिर धोखा
सांप निकलने के बाद लकीर पीटना हमारी आदत सी हो गई है। पंजाब में आतंकवादियों की नापाक हरकत के बाद न केवल राज्य सरकार बल्कि केन्द्र सरकार के जवाबदेह लोग कुछ भी बोल रहे हैं। देश में दर्जनों आतंकी वारदातों में अब तक सैकड़ों लोग मारे जा चुके हैं, बावजूद इसके कोई ठोस कार्ययोजना आज तक अमल में नहीं आई। सोमवार की सुबह पंजाब के गुरदासपुर जिले के दीनानगर में आतंकवादियों ने अपनी नापाक हरकतों से न केवल आधा दर्जन से अधिक लोगों को मौत की नींद सुला दिया बल्कि हमारी सुरक्षा खामियां भी उजागर कर दीं। पाकिस्तान से आए आतंकियों ने सीमा से महज 15 किलोमीटर दूर दीनानगर में सुबह पहले एक यात्री बस और फिर एक थाने को अपना निशाना बनाया। पंजाब के सुरक्षा जवानों ने अपनी जांबाजी से तीन आतंकियों को ढेर करने में सफलता तो जरूर हासिल की लेकिन जिस तरह एक एसपी सहित आठ भारतीय मारे गये उससे सवाल यह उठता है कि आतंकियों से निपटने के लिए हमारे पास पर्याप्त संसाधन नहीं हैं। एक पखवाड़े पहले जब रूस के उफा शहर में शंघाई सहयोग संगठन के शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के बीच आतंकवाद के खात्मे पर बातचीत हुई तो दोनों देशों के रिश्तों में खटास कम होने की उम्मीद जगी थी लेकिन आज की इस वारदात से इस बात के ही संकेत मिले कि पाकिस्तान धोखेबाज है और वह कभी नहीं सुधर सकता। पाकिस्तान विश्वास के काबिल नहीं है, इस बात को उसने कई मर्तबा सच साबित किया है। भारत बेशक शांति प्रक्रिया का हिमायती हो लेकिन हमारा पड़ोसी कश्मीर की सियासत को कभी खारिज नहीं करना चाहता। पाकिस्तानी हुक्मरान जब भी किसी अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारतीय नेताओं से मिलते हैं, तो आतंकवादी गतिविधियों पर लगाम कसने पर गरमजोशी तो जरूर दिखाते हैं, पर अपने देश वापस लौटने के बाद वही पुराना रुख अख्तियार कर लेते हैं। इसके पीछे बड़ी वजह कट््टरपंथी ताकतों का वहां की सरकार से अधिक ताकतवर होना है। भारत कई बार पाकिस्तान में चल रहे आतंकवादी प्रशिक्षण शिविरों को बंद करने की गुजारिश कर चुका है लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात ही रहा है। अमेरिका और यूरोपीय देश भी कई मर्तबा भारत के साथ सम्बन्ध सुधारने के मामले में पाकिस्तान को दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्तिदिखाने की नसीहत दे चुके हैं लेकिन उसके भेजे में शांति बहाली की बात कभी नहीं घुसी। पंजाब में आज जो कुछ हुआ उस पर पाकिस्तान को कसूरवार ठहराने की बजाय राजनीतिक दलों को इस बात पर मंथन करना चाहिए कि आखिर मुल्क से आतंकवाद का खात्मा कैसे हो। भारत में आतंकवाद की वारदातें होना राष्ट्रीय समस्या है। हमें पाकिस्तान से दोस्ती का हाथ बढ़ाने की बजाय आतंकी मंसूबों को ध्वस्त करने का संकल्प लेना चाहिए। पंजाब में जो कुछ हुआ उस पर सियासत तो होनी ही नहीं चाहिए।
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