Wednesday, 15 July 2015

सहयोगात्मक संघवाद को ठेंगा

अपने आपको जनता जनार्दन का नुमाइंदा साबित करने वाले राजनीतिक दलों के दिल पत्थर के हो गये हैं। उन्हें सिर्फ सियासत करनी आती है, यह बात प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा बुधवार को विवादास्पद भूमि अधिग्रहण विधेयक समेत विभिन्न मुद्दों पर राज्यों के साथ विचार-विमर्श करने को बुलाई गई बैठक से सच साबित हो गया। नीति आयोग की संचालन परिषद में सभी राज्यों के मुखिया और केन्द्र शासित प्रदेशों के उप राज्यपाल सदस्य हैं। इस बैठक से कांग्रेस शासित नौ राज्यों के मुख्यमंत्रियों सहित पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश तथा ओडिशा के मुख्यमंत्री गैरहाजिर रहे। प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में हुई नीति आयोग की संचालन परिषद की बैठक में भूमि विधेयक समेत गरीबी, स्वास्थ्य और केन्द्र प्रायोजित योजनाओं पर  विचार-विमर्श किया गया। नीति आयोग की संचालन परिषद की दूसरी बैठक में नरेन्द्र मोदी के धुर विरोधी माने जाने वाले बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल और त्रिपुरा के मुख्यमंत्री माणिक सरकार ने न केवल भाग लिया बल्कि भूमि अधिग्रहण विधेयक के मौजूदा स्वरूप पर आपत्ति भी जताई। बैठक में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, जे. जयललिता, नवीन पटनायक और अखिलेश यादव की अनुपस्थिति हैरानी वाली बात है। कांग्रेस और गैर भाजपा शासित राज्यों के बहिष्कार के बीच हुई नीति आयोग की महत्वपूर्ण बैठक में 16 राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने केन्द्र से भूमि अधिग्रहण विधेयक पर शीघ्र आम सहमति बनाने की अपील करते हुए कहा कि यदि ऐसा नहीं होता तो इसके लिए उन्हें अपनी जरूरत के अनुसार निर्णय लेने की अनुमति दी जाए। मुख्यमंत्रियों ने विकास के लिए भूमि अधिग्रहण को जरूरी तो माना लेकिन इस मामले में आम सहमति के लिए अनिश्चित समय तक इंतजार नहीं करने का उलाहना भी दिया। मुख्यमंत्रियों ने कहा कि इससे कई परियोजनाएं अधर में लटकी हुई हैं।  प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मुख्यमंत्रियों की चिन्ता पर सहानुभूति जताते हुए कहा कि भूमि अधिग्रहण विधेयक में अड़ंगेबाजी के चलते ही राज्यों के विकास में अवरोध पैदा हो रहा है। बहुत से राज्यों की साझा राय थी कि भूमि अधिग्रहण कानून में आमूलचूल बदलाव लाकर इसे लागू किया जाये। बैठक में कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों की अनुपस्थिति से इस बात के ही संकेत मिले कि वह किसानों का भला नहीं बल्कि भूमि अधिग्रहण पर सिर्फ सियासत करना चाहती है। बेहतर होता सभी राज्यों के मुख्यमंत्री बैठक में हिस्सा लेकर आम सहमति का रास्ता निकालते। बैठक का बहिष्कार सहयोगात्मक संघवाद की भावना के बिल्कुल खिलाफ है। विपक्षी दलों के मुख्यमंत्रियों की अनुपस्थिति इसी बात का द्योतक है कि वे भय, भूख और भ्रष्टाचार पर सही समय पर सही निर्णय नहीं लेना चाहते। राजनीतिक दलों को यह बात सोचनी होगी कि सिर्फ सड़कों पर नंगनाच से अन्नदाता और गरीबों का भला नहीं होने वाला।

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