Wednesday 29 July 2015

दुती तुम लड़की हो या लड़का?



इस सवाल का जवाब देते-देते देश की उदीयमान एथलीट दुती चंद टूट चुकी थी
विशेष बातचीत
ग्वालियर। मुझे पता चला कि मेरा फैसला आने वाला है, लेकिन यह नहीं पता था कि कितने बजे। जब मैंने आॅनलाइन देखा तो मालूम हुआ कि मैं जीत गई। अब मैं ट्रैक पर पुन: जलवा दिखा सकती हूं और अपने देश-प्रदेश का नाम ऊंचा कर सकूंगी। आज मैं बहुत खुश हूं। दुती कहती है कि मैंने कभी नहीं सोचा कि मैं हार जाऊँगी। मैंने कभी कुछ गलत नहीं किया, तो मुझे लगता था कि मेरे साथ जो होगा, सही ही होगा। जज साहब ने अच्छा किया कि मेरी सारी बात अच्छी तरह पढ़ कर मुझे न्याय दिया।
पुरुषत्व की परीक्षा देने वाली दुती अकेली लड़की नहीं है इससे पूर्व 1930 में सबसे तेज धाविका रही स्टेला वॉल्श को भी ऐसा ही विवाद झेलना पड़ा। बकौल दुती मुझे खासकर इसलिए अच्छा लगा कि अब मेरे जैसे एथलीट्स को ट्रैक पर दुख नहीं झेलना पड़ेगा। जो बुरी बातें मुझे सुननी पड़ीं (ये लड़की है या लड़का) ये किसी एथलीट को नहीं सुनना पड़ेगा।
मेरी मम्मी ने भी कहा कि भगवान हमारे साथ थे इसलिए सब कुछ ठीक हुआ। अब तुम सब कुछ भूल जाओ और नए साल से एक बार फिर नए तरीके से ट्रेनिंग शुरू करो। फिर एक दिन जरूर ऐसा आएगा कि तुम ओलम्पिक में जाकर मेडल जीतोगी। दुती ने कहा कि मुझमें इस लड़ाई के लिए साहस इसलिए आया क्योंकि लोग मुझे सपोर्ट कर रहे हैं। मुझमें साहस आया कि मैं इसमें अकेली नहीं हूं। फिर क्यों डरूं? मैंने केस लड़ा और जीत कर दिखाया।
ट्रेनिंग का हुआ नुकसान
इस पूरे मानसिक तनाव के कारण मैं ट्रेनिंग अच्छे से नहीं कर पाई लेकिन अभी ओलम्पिक शुरू होने से पहले सात महीने हैं मेरे हाथ में। और भारत सरकार ने जो स्कीम निकाली है उसके तहत यूएस भेजा जाएगा ट्रेनिंग के लिए। अगर मैं ट्रेनिंग कर लेती हूं, तो मैं बहुत अच्छा परफारमेंस करके दिखाऊंगी।
बहुत बुरी बातें सुननी पड़ीं
धाविका शांती सुन्दराजन को भी 2006 में लिंग परीक्षण में फेल कर दिया गया था। इतनी लम्बी कानूनी लड़ाई में सबसे बड़ा नुकसान मेरी ट्रेनिंग का ही हुआ है। बहुत बुरी बातें सुननी पड़ीं मुझे। मैं कहीं जा नहीं पाई। जितना नाम कमाया था भारत में, वो नाम सब चला गया। अब फिर से सब शुरू करना होगा। ट्रेनिंग भी फिर से शुरू करनी पड़ेगी। बहुत नुकसान हो गया मेरा। जो लोग मुझे बहुत प्यार करते थे वो ये सोचने लगे कि ये लड़की है या लड़का।
दोस्त भी नजरें चुराते थे
मुझे बहुत सुनना पड़ा। लोग फोन करके पूछते थे कि दुती तुम रियल में क्या हो लड़की या लड़का? फिर जो मेरी दोस्त थीं, उनका परिवार भी पूछता था कि ये लड़की है या लड़का? हम अगर अपनी लड़की को इसके पास भेजते हैं तो गलत तो नहीं होगा। दोस्त भी मुझसे बचने लगे थे। ट्रेनिंग के दौरान जिस हॉस्टल में हम रहते हैं, उसमें दो लड़कियां एक कमरे में रहती हैं, लेकिन मुझे अलग से एक कमरा दिया गया। मुझसे भेदभाव किया गया। लेकिन अब मैं फिर से यहां हैदराबाद में ट्रेनिंग शुरू कर रही हूं।
दुती की जीत से दुनिया भर की खिलाड़ियों को फायदा
दुती चंद केस की जीत बहुत बड़ी जीत है क्योंकि इसका असर सिर्फ़ भारतीय नहीं बल्कि विश्व खेल जगत पर पड़ेगा। दुनिया की हर महिला एथलीट इससे प्रभावित होगी क्योंकि सिर्फ दुती ही नहीं है जिसे यह झेलना पड़ा है। हॉर्मोन टेस्ट फेल होने के बाद पिछले साल दुती चंद पर बैन लगा दिया गया था। दुती चंद  ने इसे चुनौती के रूप में लिया और हिम्मत दिखाई तथा अंतरराष्ट्रीय एसोसिएशन आॅफ एथलेटिक्स फेडरेश्नस (आईएएफ) के फैसले को चुनौती दी गई। अभी दुती चंद को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मुकाबलों में भाग लेने के लिए बिना शर्त अनुमति दी गई है।
हाइपरएंड्रोजेनिज्म
कोर्ट आॅफ आरबिट्रेशन आॅफ स्पोर्ट्स में हमारे केस में एक और मुद्दा था कि हाइपरएंड्रोजेनिज्म के आधार पर प्रतिबंध को रहना चाहिए या उसे खत्म कर देना चाहिए। इस पर कास ने आईएएफ को कहा है कि अगर आप इस मुद्दे पर और कोई वैज्ञानिक तथ्य लेकर बात करना चाहते हो तो फिर बात की जा सकती है। कास ने आईएएफ से पूछा है कि अतिरिक्त हाइपरएंड्रोजेनिज्म वाले एथलीट को बाकी खिलाड़ियों पर जो बढ़त मिलती है उसे मापा कैसे जाता है और वह कितनी है? अगर वह एक या दो या तीन फीसदी है तो वह अन्य शारीरिक विशेषताओं की वजह से भी मिल सकती है। अगर 10-12 फीसदी फायदा मिलता है तो हमें चिंता करनी चाहिए।
दुती चंद के मामले में भारत सरकार, स्पोर्ट्स अथॉरिटी आॅफ इंडिया, खेल मंत्रालय के अलावा अमरीकी विशेषज्ञों जैसे कि डॉक्टर कटरीना ने बहुत साथ दिया। कटरीना ने पहले दिन से ही दुती चंद को राह दिखाई है। बकौल दुती चंद मैं, कटरीना और ब्रूट्स्की आपस में सलाह किया करते थे कि कैसे इस मामले को रखना है, कैसे सरकार को मनाया जा सकता है। हम तीनों के अलावा कनाडा में कानून के विशेषज्ञ थे- जिनमें कनाडा के सुप्रीम कोर्ट के जज भी शामिल थे। उन्होंने प्रो-बोनो यानि कि नि:शुल्क दुती चंद का केस लड़ा। दुती कहती है कि मुझे लगता है कि इसे सिर्फ़ भारतीयों की जीत कहना ठीक नहीं होगा। यह जीत है उन लोगों की जिन्हें लगता है कि खेल को सभी लोगों को लेकर चलना चाहिए। खेल में सिर्फ़ प्रतिस्पर्धा, सिर्फ जोश नहीं होना चाहिए। इसे सबको शामिल करके चलने वाला होना चाहिए। इसका नैतिक पक्ष मजबूत होना चाहिए।
जैसी हैं, वैसी ही रहेंगी
मैंने ऐसी कई महिला एथलीट के साथ काम किया है जिनकी साथ भेदभाव हुआ है। पिंकी प्रमाणिक के साथ भी मैं काम कर चुकी हूं। मैं शोध करती हूं और एथलीट के साथ बहुत नजदीकी से जुड़ती हूं। इसलिए इस मामले में मेरी समझ बहुत अलग है। मैं इसे सिर्फ एक स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दे के रूप में नहीं देखती। यह सिर्फ़ एक वैज्ञानिक मुद्दा नहीं है, यहां हम लोगों के बारे में बात कर रहे हैं। महिला एथलीटों पर दबाव होता है कि वह खास तरह की दिखें, खास तरह के कपड़े पहनें। मीडिया भी कहता है कि विज्ञापन में तभी आओगी जब लम्बे बाल रखोगी, अच्छी बात करोगी, ठीक से बर्ताव करोगी। जब भी कोई लड़की खिलाड़ी बनती है तो उसकी छोटी-छोटी बात पर ध्यान दिया जाता है। इस नियम पर भी यह बात लागू होती है। आज यह कहा जा सकता है कि जो भी लड़कियां खेल की दुनिया में आती हैं वह कह सकती हैं कि मैं जो भी हूं ऐसी ही रहूंगी। मुझे लोगों को खुश करने के लिए या कुछ बनने के लिए कुछ बनने की कोशिश नहीं करनी पड़ेगी।
डॉक्टर पायोषनी मित्रा
डॉक्टर पायोषनी मित्रा जादवपुर विश्वविद्यालय के स्कूल आॅफ मीडिया, कम्युनिकेशन एण्ड कल्चर के खेल, यौन-रुझान के आधार पर यौन शोषण और भेदभाव, यौन समरूपता और इंटरसेक्सुअलिटी पर शोध प्रोजेक्ट की निदेशक हैं। भारत सरकार का खेल और युवा मंत्रालय इस प्रोजेक्ट को सहायता प्रदान करता है। इसके अलावा वह स्पोर्ट्स अथॉरिटी आॅफ इंडिया में लिंगभेद और खेल मुद्दों की सलाहकार भी हैं।

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