हाल-ए-मध्य प्रदेश टेनिस
एस.एस. दीक्षित, अनिल धूपड़ और अनुराग ठाकुर ने बढ़ाया प्रदेश का मान
1980 का दशक है मध्य प्रदेश टेनिस का स्वर्णिम दौर
ग्वालियर। आज मध्य प्रदेश टेनिस एसोसिएशन न केवल खिलाड़ियों को प्रोत्साहित करने में सक्षम है बल्कि उन्हें खेलने को बड़े मंच मिलें इसके भी प्रयास हो रहे हैं। सुविधायें भी कमतर नहीं कही जा सकतीं लेकिन अफसोस खिलाड़ियों में खेल के प्रति समर्पण और इच्छाशक्ति के अभाव के चलते टेनिस में जिस स्थान पर आज मध्य प्रदेश को होना चाहिये उससे वह बहुत पीछे है। टेनिस को लेकर यह चिन्ता सिर्फ एसोसिएशन की ही नहीं बल्कि हर उस शख्स की है जो इस खेल से थोड़ा-बहुत भी लगाव रखता है। टेनिसप्रेमी मध्य प्रदेश टेनिस के गौरवशाली इतिहास से रू-ब-रू हों और अतीत के नायाब खिलाड़ियों के कौशल को जानें इसके लिए खेलपथ ने
उस शख्स से बात की जिसने मध्य प्रदेश की टेनिस को न केवल करीब से देखा है बल्कि 45 साल इसी खेल के लिए जिया है। जी हां, हम सीहोर निवासी सुरेन्द्र नारायण पहलवान की ही बात कर रहे हैं जिन्होंने मध्य प्रदेश की टेनिस को इतना करीब से देखा है कि दूसरा देख ही नहीं सकता।
मध्य प्रदेश टेनिस के जीवंत दस्तावेज पहलवान सर की भावभंगिमा को देखकर लगा कि वह मौजूदा दौर की टेनिस से खासे व्यथित हैं। वह कहते हैं कि एक वह समय था जब सुविधायें शून्य थीं और प्रतियोगितायें बहुत कम होती थीं बावजूद मध्य प्रदेश के खिलाड़ियों का खेल लाजवाब होता था। पहलवान सर के पसंदीदा खिलाड़ियों में खरगोन के एस.एस. दीक्षित, इंदौर के अनिल धूपड़ और ग्वालियर के अनुराग ठाकुर का शुमार है। वह कहते हैं कि 37 साल की उम्र में रैकेट को हाथ लगाने वाले एस.एस. दीक्षित सा दक्ष और फिट खिलाड़ी मैंने दूसरा नहीं देखा। बिना बैक हैण्ड मारे भी कोई खिलाड़ी नम्बर वन हो सकता है, यह सिर्फ दीक्षित की दक्षता से ही सम्भव हुआ। दीक्षित का कोर्ट कवरेज चीते की फुर्ती को भी मात देता था। 1980 के दशक को मध्य प्रदेश टेनिस का स्वर्णिम काल मानने वाले सुरेन्द्र नारायण पहलवान का कहना है कि अनिल धूपड़ का ओवरहेड लाजवाब था। सच कहें तो धूपड़ जैसा ओवरहेड लगाते मैंने दूजा नहीं देखा। पहलवान सर कहते हैं कि मध्य प्रदेश टेनिस एसोसिएशन के मौजूदा सचिव अनिल धूपड़ के प्रयासों का ही नतीजा है कि मध्य प्रदेश टेनिस को बड़े-बड़े आयोजन मिल रहे हैं। देश-विदेश के खिलाड़ी भी इंदौर और ग्वालियर की टेनिस सुविधाओं तथा यहां की शानदार मेजबानी की तारीफ करते नहीं अघाते।
मध्य प्रदेश टेनिस के सबसे बड़े चितेरे पहलवान सर का कहना है कि अनुराग ठाकुर के खेल में जो सम्पूर्णता दिखी वह प्रदेश के किसी खिलाड़ी में नजर नहीं आई। अफसोस की ही बात है कि अनुराग ठाकुर का उस समय टेनिस में अभ्युदय हुआ जब राष्ट्रीय स्तर पर बहुत ही कम प्रतियोगिताएं खेली जा रही थीं, जो प्रतियोगिताएं होती भी थीं उससे मध्य प्रदेश के खिलाड़ी अनजान होते थे। तब सुविधाएं नगण्य थीं तो प्रोत्साहन देने वालों का भी अभाव था। एस.एस. दीक्षित, अनिल धूपड़ और अनुराग ठाकुर के खेल-कौशल को बताते-बताते पहलवान सर मायूसी भरे लहजे में प्रतिप्रश्न करते हैं कि आज मध्य प्रदेश में क्या नहीं है? सब कुछ होने के बाद भी आज खिलाड़ियों का खेल नीरसता की ही झलक दिखाता है। खिलाड़ी न केवल मेहनत से जी चुराते हैं बल्कि सफलता के लिए शॉर्टकट रास्ते का सहारा लेना उनकी फितरत सी बनती जा रही है। यही वजह है कि हमारे पास प्रतिस्पर्धी खिलाड़ियों का अभाव है। मौजूदा दौर के खिलाड़ियों में पहलवान सर को भोपाल के भावेश गौड़ में टेनिस के प्रति जुनून दिखता है। लड़कियों की टेनिस की जहां तक बात है पहलवान सर को अतीत में ग्वालियर की अपर्णा यादव तो वर्तमान में भोपाल की अंजली ठाकुर ने खासा प्रभावित किया है। ऐश्वर्या अग्रवाल के खेल पर टेनिस के सूक्ष्मदर्शी पहलवान सर कहते हैं कि वह बैक हैण्ड और फोर हैण्ड दोनों हाथ से मारती थी। मुझे उसके खेल में काफी खामियां दिखीं।
इन पर टिका है मध्य प्रदेश का भविष्य
1969-70 से मध्य प्रदेश टेनिस से जुड़े पहलवान सर को भोपाल की सारा यादव (जूनियर) और होशंगाबाद की आध्या तिवारी (सब जूनियर) से काफी उम्मीदें हैं। श्री पहलवान कहते हैं कि ग्वालियर के प्रांजल तिवारी, कुश अरजरिया और आयुष्मान अरजरिया में भी अच्छी सम्भावनायें हैं। वह आकाश नंदवाल के खेल स्तर में भी सुधार की झलक देखते हैं। वह कहते हैं कि इन खिलाड़ियों पर अभी से ध्यान देने की जरूरत है। पहलवान सर का मंत्र है कि अपनी पहली जीत के बाद आराम से मत बैठो क्योंकि यदि आप दूसरी बार विफल हुए तो लोग कहेंगे कि आपको पहली जीत किस्मत से मिली थी।
प्रशिक्षकों की कोई समस्या नहीं
मध्य प्रदेश में क्या अच्छे प्रशिक्षकों का अभाव है? इस सवाल पर पहलवान सर का कहना है कि मैं यह नहीं मानता। हमारे पास साजिद लोधी जैसे प्रशिक्षक हैं। साजिद आज भारत की अण्डर-19 आयु वर्ग का प्रशिक्षक है। दरअसल हमेशा प्यासे को पानी के पास जाना होता है लेकिन हमारे खिलाड़ी इस बात से अनजान हैं। खिलाड़ी में जब तक खेल के प्रति जुनून और समर्पण नहीं होगा दुनिया का अच्छे से अच्छा प्रशिक्षक भी कुछ नहीं कर सकता। यदि मध्य प्रदेश के खिलाड़ियों को इस खेल में कुछ करना है तो उन्हें खेल के प्रति समर्पित होना होगा। यदि खिलाड़ी ऐसा नहीं कर सकता तो उसे खेल में हाथ नहीं आजमाना चाहिये।
पैसे के अभाव में शिवप्रसाद दीक्षित नहीं खेल पाये विम्बलडन
बैडमिंटन में जीते थे तीन गोल्ड मैडल, डेनमार्क में बढ़ाया था भारत का मान
ग्वालियर। समय दिन-तारीख देख कर आगे नहीं बढ़ता। मध्य प्रदेश के आला बैडमिंटन और टेनिस खिलाड़ी शिवप्रसाद शिवरतनप्रसाद दीक्षित (एसएस दीक्षित) अब हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनका शानदार खेल कौशल लोगों के जेहन में आज भी जिन्दा है। गरीबी के चलते एसएस दीक्षित टेनिस में भारत का प्रतिनिधित्व तो नहीं कर सके लेकिन बैडमिंटन में उन्होंने तीन स्वर्ण पदक जीतकर मादरेवतन का मान जरूर बढ़ाया। आज जब एक अदने से खिलाड़ी के पास 15 हजार कीमत का रैकेट होना आम बात है वहीं इतने ही रुपये न होने के चलते एसएस दीक्षित वेटरंस में विम्बलडन प्रतियोगिता खेलने से वंचित रह गये।
1975-76 के दो साल सिर्फ एसएस दीक्षित के लिये ही नहीं मध्य प्रदेश टेनिस के लिए भी खास थे। किसी खिलाड़ी का लगातार दो साल दो प्रतियोगिताओं में भारतीय टीम से चयन होना और उसका उन प्रतियोगिताओं में पैसे के अभाव में न खेल पाना नि:संदेह दुखद बात है। अतीत में मध्य प्रदेश के खिलाड़ियों को ऐसे अनगिनत जख्म मिले जहां उनका खेल कौशल पैसे के अभाव में भारतीयों को देखने को ही नसीब नहीं हुआ। खेलपथ को मिले दस्तावेज इस बात का गवाह हैं कि एसएस दीक्षित के पास यदि पैसा होता तो वह 1975-76 में अमेरिका में खेले गये स्टीवेंस कप और लंदन में खेली गई विम्बलडन प्रतियोगिता में शिरकत करने वाले मध्य प्रदेश के पहले खिलाड़ी होते। पाठकों को हम बता दें कि कालांतर में मध्य प्रदेश के एस.एस. दीक्षित का विम्बलडन डबल्स में भारतीय टीम में चयन हुआ लेकिन गुरबत में जी रहा यह खिलाड़ी अथक प्रयासों के बाद भी लंदन जाने के वास्ते 15 हजार रुपये नहीं जुटा सका। दीक्षित हर उस जगह मदद को गये जहां से उम्मीद थी लेकिन वह पैसे के अभाव में विम्बलडन में भारत का प्रतिनिधित्व करने से वंचित रह गये।
मूलत: उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले से ताल्लुक रखने वाला दीक्षित परिवार बहुत पहले राजस्थान के कोटा आकर बस गया। यहीं 1928 में शिवरतन प्रसाद दीक्षित के घर शिवप्रसाद का जन्म हुआ। घर की आर्थिक स्थिति ठीक न होने के चलते शिवप्रसाद अपने मामा के घर महेश्वर (मध्य प्रदेश) आ गये। उन्होंने यहां आकर न केवल तालीम ली बल्कि कुश्ती, बैडमिंटन सहित कई खेलों में दक्षता हासिल कर अपने उज्ज्वल भविष्य का संकेत भी दिया। श्री दीक्षित की काबिलियत को देखते हुए उन्हें गवर्नमेंट कॉलेज खरगोन में पीटीआई की नौकरी मिल गई। इसी पद पर रहते हुए 35 साल की उम्र में उन्होंने टेनिस खेलने का न केवल मन बनाया बल्कि अल्प समय में ही वह मध्य प्रदेश के नम्बर एक खिलाड़ी बन गये। श्री दीक्षित आठ साल प्रदेश के नम्बर एक खिलाड़ी रहे। वह सिर्फ मध्य प्रदेश ही नहीं देश के नम्बर वन खिलाड़ी भी रहे। श्री दीक्षित की मुल्क भर में एक आला खिलाड़ी की ख्याति के चलते उन्हें 1975 और 1976 में टेनिस की सबसे महत्वपूर्ण टेनिस प्रतियोगिता विम्बलडन में खेलने का अवसर भी मिला लेकिन गरीबी ने उनसे यह अवसर छीन लिया। प्रदेश की नई तरुणाई बेशक दीक्षित की काबिलियत से परिचित न हो लेकिन इस शख्स को अतीत के सभी खिलाड़ी जानते हैं। वर्ष 2000 में उनका निधन हो गया। उनके बेटे प्रमोद दीक्षित अपने पिता की यादों को जीवंत रखने की खातिर प्रदेश की राजधानी भोपाल में पिछले 15 साल से टेनिस प्रतियोगिता का आयोजन कर रहे हैं। श्री शिवप्रसाद दीक्षित बेशक हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनका लाजवाब खेल खेलप्रेमियों के जेहन में आज भी जिन्दा है। गरीबी ने जो खेल एस.एस. दीक्षित के साथ खेला, ऐसा किसी और खिलाड़ी के साथ न हो आओ इसकी दुआ करें।
एस.एस. दीक्षित, अनिल धूपड़ और अनुराग ठाकुर ने बढ़ाया प्रदेश का मान
1980 का दशक है मध्य प्रदेश टेनिस का स्वर्णिम दौर
ग्वालियर। आज मध्य प्रदेश टेनिस एसोसिएशन न केवल खिलाड़ियों को प्रोत्साहित करने में सक्षम है बल्कि उन्हें खेलने को बड़े मंच मिलें इसके भी प्रयास हो रहे हैं। सुविधायें भी कमतर नहीं कही जा सकतीं लेकिन अफसोस खिलाड़ियों में खेल के प्रति समर्पण और इच्छाशक्ति के अभाव के चलते टेनिस में जिस स्थान पर आज मध्य प्रदेश को होना चाहिये उससे वह बहुत पीछे है। टेनिस को लेकर यह चिन्ता सिर्फ एसोसिएशन की ही नहीं बल्कि हर उस शख्स की है जो इस खेल से थोड़ा-बहुत भी लगाव रखता है। टेनिसप्रेमी मध्य प्रदेश टेनिस के गौरवशाली इतिहास से रू-ब-रू हों और अतीत के नायाब खिलाड़ियों के कौशल को जानें इसके लिए खेलपथ ने
उस शख्स से बात की जिसने मध्य प्रदेश की टेनिस को न केवल करीब से देखा है बल्कि 45 साल इसी खेल के लिए जिया है। जी हां, हम सीहोर निवासी सुरेन्द्र नारायण पहलवान की ही बात कर रहे हैं जिन्होंने मध्य प्रदेश की टेनिस को इतना करीब से देखा है कि दूसरा देख ही नहीं सकता।
मध्य प्रदेश टेनिस के जीवंत दस्तावेज पहलवान सर की भावभंगिमा को देखकर लगा कि वह मौजूदा दौर की टेनिस से खासे व्यथित हैं। वह कहते हैं कि एक वह समय था जब सुविधायें शून्य थीं और प्रतियोगितायें बहुत कम होती थीं बावजूद मध्य प्रदेश के खिलाड़ियों का खेल लाजवाब होता था। पहलवान सर के पसंदीदा खिलाड़ियों में खरगोन के एस.एस. दीक्षित, इंदौर के अनिल धूपड़ और ग्वालियर के अनुराग ठाकुर का शुमार है। वह कहते हैं कि 37 साल की उम्र में रैकेट को हाथ लगाने वाले एस.एस. दीक्षित सा दक्ष और फिट खिलाड़ी मैंने दूसरा नहीं देखा। बिना बैक हैण्ड मारे भी कोई खिलाड़ी नम्बर वन हो सकता है, यह सिर्फ दीक्षित की दक्षता से ही सम्भव हुआ। दीक्षित का कोर्ट कवरेज चीते की फुर्ती को भी मात देता था। 1980 के दशक को मध्य प्रदेश टेनिस का स्वर्णिम काल मानने वाले सुरेन्द्र नारायण पहलवान का कहना है कि अनिल धूपड़ का ओवरहेड लाजवाब था। सच कहें तो धूपड़ जैसा ओवरहेड लगाते मैंने दूजा नहीं देखा। पहलवान सर कहते हैं कि मध्य प्रदेश टेनिस एसोसिएशन के मौजूदा सचिव अनिल धूपड़ के प्रयासों का ही नतीजा है कि मध्य प्रदेश टेनिस को बड़े-बड़े आयोजन मिल रहे हैं। देश-विदेश के खिलाड़ी भी इंदौर और ग्वालियर की टेनिस सुविधाओं तथा यहां की शानदार मेजबानी की तारीफ करते नहीं अघाते।
मध्य प्रदेश टेनिस के सबसे बड़े चितेरे पहलवान सर का कहना है कि अनुराग ठाकुर के खेल में जो सम्पूर्णता दिखी वह प्रदेश के किसी खिलाड़ी में नजर नहीं आई। अफसोस की ही बात है कि अनुराग ठाकुर का उस समय टेनिस में अभ्युदय हुआ जब राष्ट्रीय स्तर पर बहुत ही कम प्रतियोगिताएं खेली जा रही थीं, जो प्रतियोगिताएं होती भी थीं उससे मध्य प्रदेश के खिलाड़ी अनजान होते थे। तब सुविधाएं नगण्य थीं तो प्रोत्साहन देने वालों का भी अभाव था। एस.एस. दीक्षित, अनिल धूपड़ और अनुराग ठाकुर के खेल-कौशल को बताते-बताते पहलवान सर मायूसी भरे लहजे में प्रतिप्रश्न करते हैं कि आज मध्य प्रदेश में क्या नहीं है? सब कुछ होने के बाद भी आज खिलाड़ियों का खेल नीरसता की ही झलक दिखाता है। खिलाड़ी न केवल मेहनत से जी चुराते हैं बल्कि सफलता के लिए शॉर्टकट रास्ते का सहारा लेना उनकी फितरत सी बनती जा रही है। यही वजह है कि हमारे पास प्रतिस्पर्धी खिलाड़ियों का अभाव है। मौजूदा दौर के खिलाड़ियों में पहलवान सर को भोपाल के भावेश गौड़ में टेनिस के प्रति जुनून दिखता है। लड़कियों की टेनिस की जहां तक बात है पहलवान सर को अतीत में ग्वालियर की अपर्णा यादव तो वर्तमान में भोपाल की अंजली ठाकुर ने खासा प्रभावित किया है। ऐश्वर्या अग्रवाल के खेल पर टेनिस के सूक्ष्मदर्शी पहलवान सर कहते हैं कि वह बैक हैण्ड और फोर हैण्ड दोनों हाथ से मारती थी। मुझे उसके खेल में काफी खामियां दिखीं।
इन पर टिका है मध्य प्रदेश का भविष्य
1969-70 से मध्य प्रदेश टेनिस से जुड़े पहलवान सर को भोपाल की सारा यादव (जूनियर) और होशंगाबाद की आध्या तिवारी (सब जूनियर) से काफी उम्मीदें हैं। श्री पहलवान कहते हैं कि ग्वालियर के प्रांजल तिवारी, कुश अरजरिया और आयुष्मान अरजरिया में भी अच्छी सम्भावनायें हैं। वह आकाश नंदवाल के खेल स्तर में भी सुधार की झलक देखते हैं। वह कहते हैं कि इन खिलाड़ियों पर अभी से ध्यान देने की जरूरत है। पहलवान सर का मंत्र है कि अपनी पहली जीत के बाद आराम से मत बैठो क्योंकि यदि आप दूसरी बार विफल हुए तो लोग कहेंगे कि आपको पहली जीत किस्मत से मिली थी।
प्रशिक्षकों की कोई समस्या नहीं
मध्य प्रदेश में क्या अच्छे प्रशिक्षकों का अभाव है? इस सवाल पर पहलवान सर का कहना है कि मैं यह नहीं मानता। हमारे पास साजिद लोधी जैसे प्रशिक्षक हैं। साजिद आज भारत की अण्डर-19 आयु वर्ग का प्रशिक्षक है। दरअसल हमेशा प्यासे को पानी के पास जाना होता है लेकिन हमारे खिलाड़ी इस बात से अनजान हैं। खिलाड़ी में जब तक खेल के प्रति जुनून और समर्पण नहीं होगा दुनिया का अच्छे से अच्छा प्रशिक्षक भी कुछ नहीं कर सकता। यदि मध्य प्रदेश के खिलाड़ियों को इस खेल में कुछ करना है तो उन्हें खेल के प्रति समर्पित होना होगा। यदि खिलाड़ी ऐसा नहीं कर सकता तो उसे खेल में हाथ नहीं आजमाना चाहिये।
पैसे के अभाव में शिवप्रसाद दीक्षित नहीं खेल पाये विम्बलडन
बैडमिंटन में जीते थे तीन गोल्ड मैडल, डेनमार्क में बढ़ाया था भारत का मान
ग्वालियर। समय दिन-तारीख देख कर आगे नहीं बढ़ता। मध्य प्रदेश के आला बैडमिंटन और टेनिस खिलाड़ी शिवप्रसाद शिवरतनप्रसाद दीक्षित (एसएस दीक्षित) अब हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनका शानदार खेल कौशल लोगों के जेहन में आज भी जिन्दा है। गरीबी के चलते एसएस दीक्षित टेनिस में भारत का प्रतिनिधित्व तो नहीं कर सके लेकिन बैडमिंटन में उन्होंने तीन स्वर्ण पदक जीतकर मादरेवतन का मान जरूर बढ़ाया। आज जब एक अदने से खिलाड़ी के पास 15 हजार कीमत का रैकेट होना आम बात है वहीं इतने ही रुपये न होने के चलते एसएस दीक्षित वेटरंस में विम्बलडन प्रतियोगिता खेलने से वंचित रह गये।
1975-76 के दो साल सिर्फ एसएस दीक्षित के लिये ही नहीं मध्य प्रदेश टेनिस के लिए भी खास थे। किसी खिलाड़ी का लगातार दो साल दो प्रतियोगिताओं में भारतीय टीम से चयन होना और उसका उन प्रतियोगिताओं में पैसे के अभाव में न खेल पाना नि:संदेह दुखद बात है। अतीत में मध्य प्रदेश के खिलाड़ियों को ऐसे अनगिनत जख्म मिले जहां उनका खेल कौशल पैसे के अभाव में भारतीयों को देखने को ही नसीब नहीं हुआ। खेलपथ को मिले दस्तावेज इस बात का गवाह हैं कि एसएस दीक्षित के पास यदि पैसा होता तो वह 1975-76 में अमेरिका में खेले गये स्टीवेंस कप और लंदन में खेली गई विम्बलडन प्रतियोगिता में शिरकत करने वाले मध्य प्रदेश के पहले खिलाड़ी होते। पाठकों को हम बता दें कि कालांतर में मध्य प्रदेश के एस.एस. दीक्षित का विम्बलडन डबल्स में भारतीय टीम में चयन हुआ लेकिन गुरबत में जी रहा यह खिलाड़ी अथक प्रयासों के बाद भी लंदन जाने के वास्ते 15 हजार रुपये नहीं जुटा सका। दीक्षित हर उस जगह मदद को गये जहां से उम्मीद थी लेकिन वह पैसे के अभाव में विम्बलडन में भारत का प्रतिनिधित्व करने से वंचित रह गये।
मूलत: उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले से ताल्लुक रखने वाला दीक्षित परिवार बहुत पहले राजस्थान के कोटा आकर बस गया। यहीं 1928 में शिवरतन प्रसाद दीक्षित के घर शिवप्रसाद का जन्म हुआ। घर की आर्थिक स्थिति ठीक न होने के चलते शिवप्रसाद अपने मामा के घर महेश्वर (मध्य प्रदेश) आ गये। उन्होंने यहां आकर न केवल तालीम ली बल्कि कुश्ती, बैडमिंटन सहित कई खेलों में दक्षता हासिल कर अपने उज्ज्वल भविष्य का संकेत भी दिया। श्री दीक्षित की काबिलियत को देखते हुए उन्हें गवर्नमेंट कॉलेज खरगोन में पीटीआई की नौकरी मिल गई। इसी पद पर रहते हुए 35 साल की उम्र में उन्होंने टेनिस खेलने का न केवल मन बनाया बल्कि अल्प समय में ही वह मध्य प्रदेश के नम्बर एक खिलाड़ी बन गये। श्री दीक्षित आठ साल प्रदेश के नम्बर एक खिलाड़ी रहे। वह सिर्फ मध्य प्रदेश ही नहीं देश के नम्बर वन खिलाड़ी भी रहे। श्री दीक्षित की मुल्क भर में एक आला खिलाड़ी की ख्याति के चलते उन्हें 1975 और 1976 में टेनिस की सबसे महत्वपूर्ण टेनिस प्रतियोगिता विम्बलडन में खेलने का अवसर भी मिला लेकिन गरीबी ने उनसे यह अवसर छीन लिया। प्रदेश की नई तरुणाई बेशक दीक्षित की काबिलियत से परिचित न हो लेकिन इस शख्स को अतीत के सभी खिलाड़ी जानते हैं। वर्ष 2000 में उनका निधन हो गया। उनके बेटे प्रमोद दीक्षित अपने पिता की यादों को जीवंत रखने की खातिर प्रदेश की राजधानी भोपाल में पिछले 15 साल से टेनिस प्रतियोगिता का आयोजन कर रहे हैं। श्री शिवप्रसाद दीक्षित बेशक हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनका लाजवाब खेल खेलप्रेमियों के जेहन में आज भी जिन्दा है। गरीबी ने जो खेल एस.एस. दीक्षित के साथ खेला, ऐसा किसी और खिलाड़ी के साथ न हो आओ इसकी दुआ करें।
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