Thursday, 20 August 2015

शिक्षा से खिलवाड़

देश की आवाम को मोदी सरकार से शिक्षा और सुरक्षा पर बड़ा एतबार था। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 15 माह के अपने शासनकाल में 25 देशों की यात्रा कर बेशक चर्चा में हों लेकिन शिक्षा और सुरक्षा के मामले में उनकी सरकार पूर्ववर्ती सरकारों के ही नक्शेकदम पर चलती दिख रही है। शिक्षा पर उच्चतम सलाहकार निकाय की बैठक में आज कक्षा आठ तक किसी भी छात्र को फेल नहीं करने विचार किया गया। मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी की अध्यक्षता में नवगठित शिक्षा सम्बन्धी केन्द्रीय सलाहकार बोर्ड (सीएबीई) की  पहली बैठक में महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी के स्कूलों में छात्राओं को सेनिटरी नेपकिन वितरित किये जाने का लगभग सभी राज्यों के शिक्षा मंत्रियों ने समर्थन किया। इस सुझाव पर अमल से छात्राओं के असमय पढ़ाई छोड़ने की दर में कमी लाई जा सकती है। यह बैठक नई शिक्षा नीति को अमलीजामा पहनाने के लिए आहूत की गई है। बैठक से पूर्व सीएबीई की उप समिति ने आठवीं कक्षा तक छात्र-छात्राओं को फेल नहीं करने की नीति को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने और पांचवीं कक्षा से आगे क्लास प्रमोशन की सलाह दी थी। इस नीति पर सभी राज्य एकमत नहीं हैं और होना भी नहीं चाहिए। शिक्षा मंदिरों को लेकर प्रधानमंत्री मोदी ने पिछले साल ही कहा था कि देश के सभी स्कूलों में शौचालय की सुविधा हो ताकि वह फक्र से कह सकें कि भारत में लड़कों और लड़कियों के लिए अलग-अलग शौचालय की सुविधा से रहित एक भी स्कूल नहीं है। मोदी सरकार की कथनी और करनी का स्याह सच यह है कि 4.19 लाख शौचालय बनाने के लक्ष्य के विपरीत अभी तक दो लाख शौचालय भी नहीं बने हैं। मानव संसाधन विकास मंत्री ने चार अगस्त को दावा किया था कि 3.64 लाख शौचालयों का निर्माण हो चुका है। सवाल शौचालय बनाने का नहीं इन शौचालयों की स्थिति का है। देखा जाये तो इन शौचालयों में कहीं पानी की सुविधा नहीं है तो हजारों शौचालयों की प्रतिदिन सफाई भी नहीं हो रही। शिक्षा अधिकार अधिनियम, 2009 में निजी स्कूलों को गरीब परिवार के बच्चों के लिए पच्चीस फीसदी स्थान आरक्षित रखने की हिदायत है, पर इस दिशा में कितनी ईमानदारी बरती गई, यह दिल्ली के स्कूलों में हुए प्रवेश फर्जीवाड़े से सहज अंदाजा लगाया जा सकता है। फर्जी दाखिले में जिन स्कूलों के नाम आए हैं वे सब इसमें अपना कोई हाथ होने से इनकार कर रहे हैं लेकिन क्या यह सम्भव है कि आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के कोटे में हुए दाखिले को सामान्य कोटे में स्कूल की मिलीभगत के बगैर कर दिया जाए? दरअसल, एक बुनियादी सवाल शिक्षा प्रणाली से जुड़ा है और समाज से भी, वह यह कि दोहरी या असमान शिक्षा प्रणाली जब तक चलन में रहेगी शिक्षा का सत्यानाश होता ही रहेगा।

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