Thursday 6 August 2015

पाखण्डी पाकिस्तान

पाकिस्तान अमन पसंद नहीं है। वह भारत में होती आतंकी गतिविधियों   को लाख झुठलाये लेकिन उसकी बात पर भरोसा नहीं किया जा सकता। पाकिस्तान की सर्वोच्च जांच एजेंसी एफआईए के पूर्व प्रमुख तारिक खोशा का डॉन अखबार में छपा आलेख पाकिस्तान के सोये धर्मज्ञान को जगाने के लिए काफी है। तारिक का मुंबई हमले को पाक प्रायोजित बताना पाकिस्तानी हुकूमत को बेशक नागवार गुजरे पर सच्चाई यह है कि भारत में अब तक हुई अधिकांश आतंकी वारदातों में परोक्ष-अपरोक्ष रूप में उसका हाथ रहा है। बुधवार को भारत में पाकिस्तानी आतंकवादी का पकड़ा जाना और उसकी स्वीकार्यता यही साबित करती है कि पाकिस्तान न केवल दोगला है बल्कि वह पाखण्डी भी है। पाकिस्तान में सरकार, सेना, आईएसआई और मजहबी कठमुल्लों के पारस्परिक शक्ति क्षेत्र के बीच फर्क कर पाना बड़ा मुश्किल काम है। नावेद का पाकिस्तानी होना और भारत में आतंकवाद की उसकी कोशिशों की स्वीकार्यता ने नवाज शरीफ की कथनी और करनी को ही उजागर किया है। मुंबई हमले में दहशदगर्दों ने जिन लोगों की जान ली थी, उनमें अन्य मुल्कों के नागरिक भी शामिल थे। यही कारण था कि उस वक्त दुनिया भर में पाकिस्तान के विरुद्ध जनमत बना और अंतरराष्ट्रीय मीडिया में पाकिस्तान को आतंकवादियों का अभयारण्य करार दिया गया था। अपने को आतंकवाद के विरुद्ध वैश्विक लड़ाई में अमेरिका का संगी-साथी बताकर करोड़ों डॉलर पाने वाले पाकिस्तान ने उस वक्त अंतरराष्ट्रीय आलोचना से बचने के लिए ही अपनी संघीय जांच एजेंसी के मुखिया तारिक खोशा को हमले की असलियत बताने का जिम्मा सौंपा था। यदि तारिक पद पर रहते हुए उसी समय जांच के सारे निष्कर्ष बताते, तब शायद मुंबई हमले का मास्टर माइंड जकी उर रहमान लखवी पाक में पकड़े जाने के बावजूद वहां की अदालत से जमानत पर रिहा होकर बेखौफ नहीं घूम रहा होता। तारिक ने अपने आलेख में जो खुलासे किये हैं वे एक तरह से मुंबई हमले को लेकर भारत के उन दावों की ही पुष्टि करते हैं, जिन्हें पाक सरकार अब तक झुठलाने की नापाक कोशिश करती रही है। मुंबई हमले के दहशतगर्दों में से एक अजमल कसाब पैदाइशी आधार पर पाकिस्तानी था और जांच साबित करती है कि उसने प्रतिबंधित आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा की सदस्यता ली थी। दरअसल, पाकिस्तानी सियासत का एक बड़ा हिस्सा उन्हें ही राष्ट्रभक्त मानता है जोकि भारत या अफगानिस्तान के खिलाफ हथियार उठाये, कश्मीर को आजाद कराने या अफगानिस्तान में इस्लामी शासन लागू करने के लिए जंग छेड़े। पाकिस्तान जब तक आतंकवाद को अच्छी और बुरी श्रेणी में बांट कर देखने की मनोग्रंथि से नहीं उबरता, तब तक वहां की जनता इसकी कीमत चुकाने के लिए अभिशप्त रहेगी। 

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