Monday 10 August 2015

न्याय न मिला तो जान दे दूंगी: मीनाक्षी



मुख्यमंत्री और प्रमुख सचिव के निर्देश के बाद भी नहीं मिला आवास
अंतरराष्ट्रीय पॉवर लिफ्टर की दुखद दास्तान
श्रीप्रकाश शुक्ला
आगरा। गरीबी और असमय पति की मौत ने अंतरराष्ट्रीय पॉवर लिफ्टर मीनाक्षी की हिम्मत, हौसला और जज्बा तीनों को परास्त कर दिया है। गुरबत की मारी यह खिलाड़ी अपने जीवन से कुछ इस तरह परेशान है कि उसके मन में कई बार पुत्र और पुत्री के साथ आत्महत्या तक का विचार पैदा हो चुका है। ऐसा नहीं होना चाहिए, यदि हुआ तो खेलों से खिलाड़ियों का विश्वास हमेशा हमेशा के लिए उठ जायेगा।
देश में खिलाड़ियों पर सुविधाओं और इनामों की बारिश की तमाम घोषणाओं के बीच एक स्याह सच यह है कि एशियाई खेलों समेत कई अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में मुल्क का सिर ऊंचा करने वाली भारोत्तोलक मीनाक्षी रानी गौड़ और उसका परिवार भुखमरी की कगार पर है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और प्रमुख सचिव के निर्देश के बाद भी शासकीय तंत्र की अकर्मण्यता के चलते न ही उसे नौकरी मिली और न ही एक अदद मकान। 8 जुलाई, 1970 को सासनी (अलीगढ़) में नत्थूलाल-सोमवती गौड़ के घर जन्मी मीनाक्षी को वेटलिफ्टिंग का जुनून अपने पिता को पहलवानी करते देख पैदा हुआ। मीनाक्षी के पिता नत्थूलाल गौड़ ने 1955 में बदायूं में हुई कुश्ती प्रतियोगिता में दारा सिंह से दो-दो हाथ किये थे। नत्थूलाल भी चाहते थे कि उनकी बेटी खेलों में मुल्क का नाम रोशन करे।
सात बहनों और दो भाइयों में पांचवें नम्बर की मीनाक्षी रानी ने अपने माता-पिता के सपने को साकार करने के लिए न केवल अथक मेहनत की बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर एक स्वर्ण 18 चांदी के तमगे जीतकर उत्तर प्रदेश और अलीगढ़ का मान भी बढ़ाया। मीनाक्षी ने मुसीबतों से पार पाते हुए 1996 में दिल्ली में हुई एशियन वेटलिफ्टिंग प्रतियोगिता में कांसे का तमगा जीतकर यह साबित किया कि यदि उसे पर्याप्त प्रोत्साहन मिले तो वह ओलम्पिक में भी भारत का मान बढ़ा सकती है। मीनाक्षी का चयन 1998 में चीनी ताइपे में हुई वर्ल्ड चैम्पियनशिप के लिए भी हुआ लेकिन तंगहाली के चलते वह प्रतियोगिता में शिरकत नहीं कर सकी। गरीब की यह बेटी सिर्फ खिलाड़ी ही नहीं बल्कि प्रशिक्षक भी है। इसने एनआईएस कोर्स करने के साथ ही मूर्तिकला में भी दक्षता डिप्लोमा हासिल किया है।
गरीबी बुरी बला है। जब समय खराब हो तब इंसान ही नहीं गरीब की भगवान भी खूब परीक्षा लेता है। 1992-93 से वेटलिफ्टिंग को अपना करियर  बनाने का सपना देखने वाली मीनाक्षी की जून 2002 में अलीगढ़ निवासी दीपक कुमार से शादी हो गई। पति दीपक कुमार भी चाहता था कि मीनाक्षी वेटलिफ्टिंग में उस मुकाम को छुए जिस तक कोई भारतीय महिला वेटलिफ्टर आज तक नहीं पहुंची। मीनाक्षी आहिस्ते-आहिस्ते अपनी मंजिल की तरफ बढ़ ही रही थी कि 13 अगस्त, 2011 को उस पर वज्राघात हो गया। सड़क दुर्घटना में उस दिन मीनाक्षी ने न केवल अपनी मांग का सिन्दूर खोया बल्कि उसका और उसकी बेटी परी का पैर भी टूट गया। पति की मौत के सदमे से आहत-मर्माहत मीनाक्षी को मदद के आश्वासन तो खूब मिले लेकिन  मदद किसी ने नहीं की। 11 साल के प्रखर और सात साल की उत्कृषा (परी) के जीवन-यापन को लेकर आज अंतरराष्ट्रीय वेटलिफ्टर मीनाक्षी चाय बेचने को मजबूर है।
किराये के मकान में रह रही अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी मीनाक्षी को उत्तर प्रदेश की अखिलेश यादव सरकार ने मदद का भरोसा दिया था लेकिन अकर्मण्य प्रशासन ने इस गरीब की आज तक सुध नहीं ली। नौकरी और एक अदद मकान इस दुखियारी का जीवन बदल सकता है लेकिन जब प्रशासन और समाज के पहरुआ ही कुम्भकर्णी नींद सो रहे हों तो भला उन्हें जगाये भी तो कौन? न्याय के लिए न केवल मीनाक्षी दर-दर की ठोकरें खा रही है बल्कि अक्टूबर, 2013 में वह विधान सभा के सम्मुख भूख-हड़ताल भी कर चुकी है। मीनाक्षी की भूख-हड़ताल से उत्तर प्रदेश सरकार बेशक न चेती हो पर इस दुखियारी को सुनील गावस्कर के रूप में एक भगवान जरूर मिल गया है।
मैं अपने भगवान से मिलना चाहती हूं
मीनाक्षी की ऊपर वाला बेशक पल-पल और पग-पग परीक्षा ले रहा हो लेकिन उसके जीवन का असली भगवान तो सुनील गावस्कर ही हैं। रोती-बिलखती मीनाक्षी कहती है कि मैं अपने भगवान से मिलना चाहती हूं। मैंने सुनील गावस्कर से मिलने की बहुत कोशिश की लेकिन मुलाकात नहीं हो सकी। गौरतलब है कि मीनाक्षी जब 2013 में लखनऊ में भूख-हड़ताल कर रही थी उस समय सरकार बेशक उसकी गरीबी पर नहीं पसीजी लेकिन पूर्व भारतीय क्रिकेट कप्तान और उद्घाटक बल्लेबाज सुनील गावस्कर का दिल जरूर द्रवित हो गया था। उन्होंने मीनाक्षी की मदद का न केवल संकल्प लिया बल्कि उसी समय से वह प्रतिमाह साढ़े सात हजार रुपये उसके खाते में डाल रहे हैं। इन्हीं साढ़े सात हजार रुपयों से मीनाक्षी और उसके दो बच्चों का भरण-पोषण हो रहा है। मीनाक्षी की गरीबी का आलम यह है कि उसके पास आज नौ हजार रुपये भी नहीं हैं कि वह अपने पूर्व मकान मालिक को शेष किराया भुगतान कर अपना सामान हासिल कर सके। काश कोई दानदाता मीनाक्षी की मदद को आगे आये ताकि वह अपना न सही अपने बेटे प्रखर और बेटी परी को उचित तालीम दिला सके।
गुरबत की मारी मीनाक्षी बेचारी
गुरबत की मारी अंतरराष्ट्रीय वेटलिफ्टर मीनाक्षी अब अपने लिये नहीं बल्कि अपने दो बच्चों की परवरिश को लेकर चिन्तित है। वह रुंधे गले से कहती है कि कई बार ऐसा लगता है कि दोनों बच्चों के साथ जान दे दूं। मैं चाहती हूं कि जो काम मैं नहीं कर सकी वे मेरे बच्चे साकार करें लेकिन मुझे कहीं से उम्मीद नहीं दिख रही। मुझे मोदी सरकार पर भरोसा है कि वह एक न एक दिन मुझ दुखियारी की मदद जरूर करेगी।
केन्द्र के परवाने से उम्मीदों को लगे पर
उत्तर प्रदेश सरकार ने मीनाक्षी की बेशक कोई मदद न की हो लेकिन केन्द्र की मोदी सरकार ने उसे आर्थिक सहायता देने का मन बना लिया है। केन्द्र सरकार के अवर सचिव एसपी सिंह तोमर ने मीनाक्षी को लिखे पत्र में कहा है कि आपने एक जनवरी, 2015 को आर्थिक सहायता का जो आवेदन दिया है, उसे स्वीकार कर लिया गया है। कृपया आप अपना आवेदन राष्ट्रीय कल्याण योजना के निर्धारित प्रपत्र में भरकर भेजें। मीनाक्षी ने आर्थिक सहायता के लिए केन्द्र सरकार से आये आवेदन फार्म को भरकर राष्ट्रीय कल्याण योजना  को भेज दिया है। अब देखना यह है कि इस दुखियारी को मदद कब और कैसे मिलती है।
मीनाक्षी की छोटी बहन भी खिलाड़ी
खिलाड़ी बाप की खिलाड़ी बेटी मीनाक्षी की छोटी बहन रुचि गौड़ भी वेटलिफ्टर है। रुचि वेटलिफ्टिंग ही नहीं बल्कि हैमरथ्रो में राष्ट्रीय स्तर पर स्वर्ण पदक जीत चुकी है। पुलिस में कार्यरत रुचि भी विभागीय उपेक्षा के चलते आज तक पदोन्नति से वंचित है।

अपनी पहली जीत के बाद आराम से मत बैठो क्योंकि यदि आप दूसरी बार विफल हुए तो लोग कहेंगे कि आपको पहली जीत किस्मत से मिली थी।

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