Sunday, 2 August 2015

बीस साल बाद फिर यूपीसीए के कब्जे में कानपुर का ग्रीन पार्क


यूपीसीए प्रत्येक वर्ष प्रदेश सरकार को एक करोड़ रुपये देगा
ग्रीन पार्क स्टेडियम में आईपीएल के मैच और डे नाइट  मैच होना सम्भव नहीं
कानपुर। बीस साल बाद उत्तर प्रदेश का एकमात्र अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम ग्रीन पार्क एक बार फिर उत्तर प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन की देखरेख में आ गया। इस बाबत ग्रीन पार्क के खेल अधिकारी ने यूपीसीए के निदेशक को ग्रीन पार्क की देखरेख की जिम्मेदारी आधिकारिक रूप से सौंपी।
यूपीसीए और उत्तर प्रदेश सरकार के बीच दो जून 2015 को एमओयू साइन हुआ था जिसके तहत उत्तर प्रदेश सरकार ने उत्तर प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन को एक करोड़ रुपये सालाना किराये की लीज पर तीस साल के लिये देने की बात कही थी। यूपीसीए के अधिकारी 1995 के बाद अब दूसरी बार एक बार फिर ग्रीन पार्क लीज पर मिलने पर काफी खुश हैं, क्योंकि उसका मानना है कि इससे भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड जो अंतरराष्ट्रीय वनडे और टेस्ट मैच देने के लिये यूपीसीए को हिचकता था वह बाधा दूर हो गयी है और अब ग्रीन पार्क को नियमित रूप से अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट मैच मिलते रहेंगे।
यूपीसीए के निदेशक प्रेमधर पाठक ने बताया कि ग्रीन पार्क के खेल अधिकारी ने यूपीसीए को ग्रीन पार्क की जिम्मेदारी सौंप दी है। उन्होंने कहा कि ग्रीन पार्क को यूपीसीए के हवाले करने से पहले ग्रीन पार्क के अधिकारियों को निर्माण कार्य शीघ्र पूरा कराने और पार्क में अनाधिकृत रूप से रह रहे कर्मचारियों से खाली कराने की सूची सौंपी थी जिसे उन्होंने मान लिया है अब यूपीसीए की पहली प्राथमिकता अक्टूबर 2015 में भारत और दक्षिण अफ्रीका के बीच एक दिवसीय मैच की तैयारियों को लेकर है।  गौरतलब है कि ग्रीन पार्क में अंतिम मैच भारत और वेस्टइंडीज के बीच 27 नवम्बर 2013 को एक दिवसीय क्रिकेट मैच हुआ था उसके बाद पिछले साल भी भारत और वेस्टइंडीज का एक अभ्यास मैच मिला था, लेकिन चूंकि वेस्टइंडीज का दौरा बीच में ही रद्द हो गया इस लिये यहां मैच नहीं हो पाया।
उत्तर प्रदेश सरकार और यूपीसीए के तहत करार के तहत यूपीसीए प्रत्येक वर्ष प्रदेश सरकार को एक करोड़ रुपये देगा और कोई भी अंतरराष्ट्रीय एक दिवसीय या टेस्ट मैच होने पर 15 लाख रुपये अलग से प्रति मैच देगी। स्टेडियम के ग्राउंड का रखरखाव यूपीसीए के जिम्मे होगा जबकि स्टेडियम की बिल्डिंग का निर्माण काम और रखरखाव का जिम्मा उत्तर प्रदेश सरकार का होगा।
ग्रीन पार्क स्टेडियम में आईपीएल के मैच और डे नाइट के मैच होना सम्भव नहीं है, क्योंकि स्टेडियम में जो फ्लड लाइट लगी हैं वह खराब हैं और उनसे इतनी रोशनी नहीं होती है कि उस रोशनी में डे नाइट मैच या आईपीएल करवाये जा सकें। अगर उत्तर प्रदेश सरकार ने लाइट की व्यवस्था ठीक कर दी और ग्रीन पार्क को डे नाइट मैच या आईपीएल मैच एलाट हुये तो उस दशा में यूपीसीए प्रति मैच 25 लाख रुपये प्रति मैच उत्तर प्रदेश सरकार को देगी।
 ग्रीन पार्क स्टेडियम पहली बार यूपीसीए को लीज पर नहीं मिला है बल्कि इससे पहले 1975 में ग्रीन पार्क को प्रदेश सरकार ने यूपीसीए को 20 साल के लिये लीज पर दिया था। 1995 में जब लीज खत्म हो गयी तो यूपीसीए ने बहुत कोशिश की एक बार फिर उसे स्टेडियम लीज पर मिल जाये लेकिन बात नहीं बनी अब 20 साल बाद जाकर एक बार फिर यूपीसीए को प्रदेश सरकार ने लीज पर दिया है।
अपना मुख्यालय बांद्रा कुर्ला में स्थानांतरित करना चाहता है बीसीसीआई
मुंबई। भारतीय क्रिकेट बोर्ड (बीसीसीआई) अपने मुख्यालय को दक्षिण मुंबई के वानखेडे स्टेडियम से मुंबई क्रिकेट संघ (एमसीए) के स्वामित्व वाले बांद्रा कुर्ला परिसर (बीकेसी) में स्थानांतरित करना  चाहता है। बीसीसीआई ने एमसीए से आग्रह किया है कि उसे अपना मुख्यालय संघ के बीकेसी मैदान पर स्थानांतरित करने के लिए पर्याप्त जगह दी जाए। एमसीए सूत्रों ने बताया, हम पहले ही अपने बीकेसी परिसर में क्लब हाउस की विपरीत दिशा में नये ढांचे के निर्माण की योजना बना रहे हैं और हम इसी परिसर में बीसीसीआई कार्यालय को स्थानांतरित करने का आग्रह पूरा करेंगे। सूत्र ने कहा, वे स्थानांतरण चाहते हैं, क्योंकि बीकेसी छत्रपति शिवाजी हवाई अड्डे के काफी करीब है। हमने छोटी मीडिया गैलरी और कुछ रिहायशी कमरे बनाने की योजना बनाई है। इस क्षेत्र में से ही बीसीसीआई को जगह दिए जाने की योजना है जिससे कि वे अपना कार्यालय स्थानांतरित कर सकें।
ओमान से विश्व कप खेलेंगे एमपी के मुनीस अंसारी
ट्वंटी-20 वर्ल्ड कप क्रिकेट टूर्नामेंट
टीम ओमानी, आधे हिन्दुस्तानी-आधे पाकिस्तानी
ग्वालियर। अगले साल भारत में होने वाले ट्वंटी-20 वर्ल्ड कप क्रिकेट टूर्नामेंट के लिए क्वालीफाई करने वाली ओमान की टीम में अधिकांश खिलाड़ी भारत और पाकिस्तानी मूल के हैं। भारतीय टीम से बेशक मध्यप्रदेश के किसी खिलाड़ी को खेलने का मौका ना मिले पर ओमान की टीम से सीहोर का मुनीस अंसारी जरूर खेलेगा। ओमान ने डब्लिन में नामीबिया को 6 गेंद शेष रहते पाँच विकेट से हराकर भारत की मेजबानी में होने वाले टूर्नामेंट के लिए क्वालीफाई किया। इसके साथ ही ओमान को अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आईसीसी) से टी-20 इंटरनेशनल खेलने का दर्जा मिल गया। इस टूर्नामेण्ट में खेल रही टीम में कम से कम पाँच खिलाड़ी भारतीय मूल के हैं इनमें से जतिंदर सिंह, अजय ललचेता, राजेश कुमार रणपुरा और मुनिस अंसारी नामीबिया के खिलाफ मुकाबले में खेले थे। इसके अलावा टीम में एक और खिलाड़ी वैभव वटेगांवकर भी भारतीय मूल के हैं।
ये हैं भारतीय खिलाड़ी
1. मुनीस अंसारी का जन्म एक अप्रैल, 1984 को मध्य प्रदेश के सीहोर में हुआ था। अंसारी छह टी-20 मैचों में 10 विकेट ले चुके हैं।
2. वैभव वटेगांवकर का जन्म 30 अगस्त, 1982 को मुंबई में हुआ और वह बाएं हाथ के बल्लेबाज हैं। वह 10 टी-20 मुकाबलों में 101 रन बना चुके हैं।
3. जतिंदर सिंह सिख समुदाय के हैं और दाएं हाथ के बल्लेबाज हैं। उन्होंने नामीबिया के खिलाफ 31 गेंदों पर 33 रनों की पारी खेली।
4. अजय ललचेता का जन्म 22 अक्टूबर, 1983 को गुजरात में हुआ था। नामीबिया के खिलाफ मुकाबले में उन्होंने दो विकेट लिए। वह ओमान के लिए अब तक 9 टी-20 मैचों में 8 विकेट चटका चुके हैं।
5. राजेश कुमार रणपुरा का जन्म 17 जुलाई, 1983 को गुजरात में हुआ था। रणपुरा ने ओमान की तरफ से खेलते हुए 14 मैचों में 13 विकेट लिए हैं।
ये हैं पाकिस्तानी
इसके अलावा नामीबिया के खिलाफ मैन आॅफ द मैच रहे जीशान सिद्दीकी का जन्म पाकिस्तान के कराची में हुआ है। इसके अलावा टीम में शामिल आमिर अली (कराची), अदनान इलियास (पाकिस्तान पंजाब), आमिर कलीम (सिंध), खावर अली, मोहम्मद नदीम और सुल्तान अहमद पाकिस्तानी मूल के हैं।
खेलों में कैसे आएं अच्छे दिन
कनिका दत्ता
जब भी कोई वैश्विक खेल स्पर्धा आयोजित होती है तो सवा अरब की आबादी के बावजूद खेलों में भारत के दयनीय प्रदर्शन को लेकर आत्मचिंतन का दौर शुरू होता है। तमाम पुनरावृत्तियों में यही बात उभरती है कि अपनी औपनिवेशिक विरासत के साथ क्रिकेट को छोड़कर खेलों में भारत का कोई खास दखल नहीं है, हमारे लोग खेलों के लिए शारीरिक रूप से दुरुस्त नहीं हैं, उनकी खुराक सही नहीं है और मानसिक दृढ़ता का भी अभाव है। हालांकि यह विचित्र ही है कि टिप्पणीकार भारत में सामाजिक-आर्थिक कमजोरी की अंतर्भूत कमजोरी में कोई कड़ी नहीं जोड़ पाते कि भारत में अधिकांश आबादी को अवसर ही नहीं मिल पाते हैं। वैश्विक खेल परिदृश्य पर हमारा खराब प्रदर्शन उन विषमताओं को प्रतिबिम्बित करता है, जिनसे भारत पीड़ित है। शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों की ही तरह भारत में खेल की सुविधाएं और अवसर भी एक सीमित वर्ग तक सिमटे हुए हैं। यह वर्ग है धनी और मध्यम वर्ग। वे अपने खास नियमों के साथ महंगे स्कूलों और क्लबों में गोल्फ, टेनिस और फुटबॉल खेलते हैं। गरीबों के स्कूलों में ये सुविधाएं नहीं होतीं।
अधिकांश लोग इन खेलों को वक्त बिताने के लिए खेलते हैं। जब सूचना प्रौद्योगिकी, निवेश बैंकिंग, डॉक्टर या वकालत कर जमकर पैसा बनाया जा सकता है तो कुछ ही लोग खेल को करियर विकल्प के रूप में देखते हैं, वह भी उस करियर में जिसमें 40 साल की उम्र तक सम्भावनाएं लगभग खत्म हो जाती हैं। हालांकि अभिनव बिंद्रा, लिएंडर पेस, महेश भूपति या विश्वनाथन आनंद जैसे कुछ सितारे वैश्विक खेल जगत में चमकने में कामयाब रहे हैं, जो सम्पन्न परिवारों से संबंध रखते हैं, जो अपने बेटों के सपनों को पूरा करने की कीमत अदा कर सकते हैं या वे संस्थान (सेना या रेलवे) जैसे इसकी कीमत चुकाते हैं, जिनसे वे जुड़े होते हैं। सामान्य तौर पर देशों को अपनी खेल प्रतिभाएं इन वर्गों से नहीं मिलतीं। छोटी एवं सिकुड़ती जनसंख्या के दायरे के साथ भी वैश्विक खेल परिदृश्य में वर्चस्व रखने वाले अमेरिका, आॅस्ट्रेलिया और यूरोप का एक पहलू यह भी है कि वहां अवसरों में सापेक्षिक गुणवत्ता नजर आती है। वैश्विक स्तर पर खेलों की दुनिया में परंपरागत रूप से गरीब और शहरी लोग समाज में ऊंचे स्तर और पहचान की आकांक्षा से जुड़े होते हैं। मिसाल के तौर पर फुटबॉल को ही लें, जो यूरोप और दक्षिण अमेरिका के अपने दोनों गढ़ों में गरीबों के खेल के तौर पर पहचाना जाता है, उसमें अधिकांश प्रतिभाएं कामकाजी वर्ग से आती हैं। इन देशों में असंतुलित खुराक के बावजूद ये युवा खदानों, जहाजों, फैक्टरियों, इमारत निर्माण जैसे श्रमसाध्य कार्यों में लगकर खुद को शारीरिक तौर पर जबरदस्त रूप से दुरुस्त रखते हैं। अक्सर वे चॉल जैसी बस्तियों में रहते हैं, फुटबॉल उन्हें उनका जीवन स्तर सुधारने की प्रेरणा देती है, पेले से लेकर जिदान जैसे कई महान खिलाड़ियों की जीवनियों से यह पुष्ट भी हो जाता है। अपनी किताब सॉकरोनॉमिक्स में सिमॉन कूपर और स्टीफन जिमेंस्की ने इंग्लैण्ड टीम की गुणवत्ता में कमी की एक वजह यह भी बताई है कि देश लगातार धनी होता गया, जहां कामकाजी वर्ग सिकुड़ता गया। ब्राजील के पराभव में भी यह तर्क दिया जा सकता है। अभ्यास का मौका और अपनी प्रतिभा को निखारने के लिए पार्कों से लेकर ऐसे स्थानों में तलाशा जाता है, जो सार्वजनिक इस्तेमाल वाली खुली जगह होती हैं। जो लोग अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा लेते हैं, उनके लिए शीर्ष लीग लाल कालीन बिछा देती हैं, मगर सार्वजनिक खेल के मैदान और खेल की सुविधाओं तक पहुंच ही वह पहला कदम है, जिसके तहत एक-डेढ़ सदी पहले निजी फुटबॉल उद्योग पल्लवित-पुष्पित होना शुरू हुआ।
फुटबॉल अकादमियां जैसे कुछ हालिया संस्थानों पर स्कूलों के जरिये प्रतिभाशाली युवाओं को निखारने के लिए खर्च किया जा रहा है, जो सार्वजनिक निजी भागीदारी की अनोखी जुगलबंदी से निकली हैं। अमेरिकी खेलों में अफ्रीकी-अमेरिकियों की बहुलता भी एक और मिसाल है। परंपरागत नजरिया है कि खेल अफ्रीकी-अमेरिकियों के खून में है मगर ऐसा भी नहीं है। यूरोपीय फुटबॉल में उनके समकक्षों की तरह गरीब कॉकेशियन और हिस्पैनिक भी अमूमन भारी श्रम वाला काम करते हैं, जिससे उनका दमखम तो बढ़ता ही है, साथ ही मांसपेशियां भी उतनी मजबूत हो जाती हैं, जितनी खेल के शीर्ष स्तर पर जरूरत होती है। खेल उनके लिए एक सम्भावित पेशा इसलिए होता है क्योंकि उनके लिए परंपरागत ऊंचे दर्जे की नौकरियों के द्वार बंद होते हैं, आज भी कुछ ही यूरोपीय निवेश बैंक, निगम या कानूनी फर्म ऊंचे पदों पर अफ्रीकी लोगों को रखना पसंद करती हैं। मगर खेलों में कामयाबी के आधार पर उन्हें टेनिस कोर्ट, बेसबॉल के बेटिंग केज और दूसरी सार्वजनिक जगहों पर अभ्यास का मौका मिल जाता है। भारत में भी अगर आप नजरें दौड़ाएंगे तो आपको मजबूत और सेहतमंद युवाओं की फौज मिल जाएगी, जिनमें भरपूर माद्दा होता है। वे फैक्टरियों, किसी नई बन रही इमारत के निर्माण की जगह, सड़क निर्माण, ठेलों पर घरों का भारी सामान ढोते हुए या फिर हाथ रिक्शा खींचते हुए मिलेंगे। उन्हें संतुलित खुराक और प्रशिक्षण दिया जाए तो कौन जानता है कितने नायाब नगीने हमारे गरीब शहरियों में छिपे हुए हैं। मगर खेलों तक उनकी पहुंच न के बराबर ही है, जहां सार्वजनिक जमीन के तमाम अन्य उपयोग हैं। एक पेशेवर खेल उद्योग को विकसित करना तो भूल जाइए, सभी के लिए समान अवसर का पहला अहम कदम ही गायब है। वास्तव में खेलों को लेकर इंगलिश प्रीमियर लीग की तर्ज जैसे ढांचे को अपनाकर हम गलत दिशा में जा रहे हैं। हमें समय रहते इस तरफ न जाने का निर्णय करना होगा।            

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