Monday 10 August 2015

संकटमोचक मुलायम

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने सेवा की राजनीति का रास्ता दिखाया था लेकिन मौजूदा राजनीतिज्ञ सत्ता की राजनीति के दलदल से उबरना ही नहीं चाहते। मानसून सत्र में आज जो हो रहा है उसे राष्ट्रीय शर्म के रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए। आखिर जनतांत्रिक व्यवस्था में जीने वाले प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य और अधिकार है कि वह अपने नेताओं से पूछे कि आखिर राष्ट्रहित कब उनकी प्राथमिकता होगा, दलीय स्वार्थ कब तक उन पर हावी रहेंगे और वे संसद को कब मंदिर समझेंगे? संसद  विचार-विमर्श का मंच है, जहां संवाद से विवाद मिटाये जा सकते हैं। इसलिए जरूरी है कि संसद में संवाद की स्थितियां निर्मित हों। विरोध-प्रदर्शन, स्थगन, बहिर्गमन आदि का अपना महत्व है, पर सर्वोपरि जनहित है। यह हित तब सधेगा जब संसद में काम होगा। भारतीय जनता पार्टी से हमेशा छत्तीस का आंकड़ा रखने वाले समाजवादी पार्टी सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव ने सोमवार को 21 जुलाई से लगातार बाधित मानसून सत्र के लिए कांग्रेस की हठधर्मिता पर नाखुशी जताकर न केवल मोदी सरकार के लिए संकटमोचक की भूमिका अदा की बल्कि सही राजधर्म का पालन किया है। सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव ने लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन के बुलावे पर कहा कि उनकी पार्टी सदन बाधित करने के पक्ष में कभी भी नहीं रही, हां जनता के सवालों का जवाब सदन में जरूर मिलना चाहिए। मुलायम की इस नसीहत का कांग्रेस पर क्या असर होगा यह तो समय बतायेगा लेकिन पिछले दिनों सदन में कांग्रेस के साथ खड़े समाजवादी पार्टी के सांसद अब कांग्रेस के बहिर्गमन का समर्थन नहीं करेंगे। गौरतलब है कि लोकसभा में समाजवादी पार्टी के पांच और राज्यसभा में 12 सांसद हैं। लोकसभा अध्यक्ष से मुलायम सिंह, उनके भतीजे धर्मेन्द्र यादव, आप के भगवंत मान, राजद के जयप्रकाश नारायण यादव तो मिले लेकिन कांग्रेस के सदस्यों ने ऐसा नहीं किया। हंगामे के दौरान मुलायम सिंह ने कहा कि हम नहीं चाहते कि यह स्थिति ज्यादा दिन चले। सपा सुप्रीमो की चिन्ता को जिस तरह से सोनिया गांधी ने खारिज किया उससे नहीं लगता कि संसद सुचारु रूप से चलेगी। देखा जाये तो कांग्रेस जिस मुद्दे को लेकर लगातार सदन बाधित किये हुए है, उसमें कहीं न कहीं वह भी कसूरवार है। सात अगस्त को सदन के बाहर कांग्रेस के विरोध प्रदर्शन के दौरान ही सुषमा स्वराज ने सदन में अपना पक्ष रखते हुए कहा था कि मैंने ललित मोदी को समर्थन किसी भी रूप में नहीं किया है। उनकी पत्नी 14 साल से कैंसर से पीड़ित हैं, उनकी मदद मैंने की है और अगर एक बीमार की मदद करना गुनाह है तो मैंने यह गुनाह किया है। ललित मोदी मामले में सुषमा स्वराज और वसुंधरा राजे के इस्तीफे की मांग पर अड़ी कांग्रेस कुछ नरम तो जरूर पड़ी है लेकिन उसने हमलावर रुख नहीं त्यागा है। कल तक भाजपा संसद का काम ठप करती थी, अब वही काम कांग्रेस कर रही है। तब भाजपा गलत थी, आज कांग्रेस गलत है, जो भी हो यह गलती ठीक होनी चाहिए। 

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