चिरैयों का मरना, लड़कों का खिलवाड़, कमोबेश यही स्थिति इन दिनों मुल्क की राजनीति में देखी जा रही है। जलप्रलय के चलते मंगलवार की रात मध्य प्रदेश में हुई दो ट्रेन दुर्घटनाओं में लगभग तीन दर्जन लोगों की मौत तथा सैकड़ों मुसाफिरों के घायल होने की वेदना से बेखबर दिल्ली, बिहार और उत्तर प्रदेश में बुधवार को जिस तरह की सियासत हुई, उससे राजनीतिज्ञ पुलकित हो सकते हैं लेकिन आम जनता के बीच इसके गलत संकेत पहुंचे हैं। कांग्रेस अपनी खोई सल्तनत व प्रतिष्ठा के गम से उबरने की जहां हास्यास्पद कोशिशें कर रही है वहीं जनता दल यूनाइटेड और समाजवादी पार्टी द्वारा अपने-अपने सूबों में कमल दल को पैर जमाने से रोकने के लिए बेसिर-पैर के प्रयोग किये जा रहे हैं। कांग्रेस अपने सांसदों के निलम्बन के बहाने लोकतंत्र का उपहास उड़ा रही है तो भारतीय जनता पार्टी पूर्ण बहुमत के मद में चूर-चूर है। जैसे-जैसे बिहार चुनाव नजदीक आते जा रहे हैं, कुछ गम्भीर और चिंतित करने वाली खबरें कई इलाकों से आ रही हैं। भारतीय जनता पार्टी-राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता और उनके अनुषंगी संगठन उग्र साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण की अपनी प्रिय चाल चलने में लगे हैं तो बड़े पैमाने पर धन-बल का इस्तेमाल भी किया जा रहा है। अगर बिहार के सभी हिस्सों से आने वाली ये सूचनाएं सही हैं, तो पवित्र और निष्पक्ष चुनाव के लिए चुनाव आयोग को अभी से कमर कस लेनी चाहिए। बुधवार को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के डीएनए सम्बन्धी कमेंट को जिस तरह बिहारी अस्मिता का मुद्दा बनाने की कोशिश की, उसे भी आज के संदर्भ में सही नहीं कहा जा सकता। 26 जुलाई को प्रधानमंत्री ने जो कुछ कहा था उसको लेकर नीतीश कुमार को उम्मीद थी कि इस बयान को राज्य के लोग बिहार की अस्मिता पर हमले के रूप में लेंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ और यह मुद्दा आया गया हो गया। नौ अगस्त को प्रधानमंत्री मोदी की गया में होने वाली सभा से पहले नीतीश का गड़े मुर्दे उखाड़ना राजनीतिक शुचिता का क्षरण ही कहा जाएगा। नीतीश कुमार की कर्मठ-ईमानदार-विजनरी की छवि तो है लेकिन लोगों को संदेह है कि लालू प्रसाद के रहते अब नीतीश कुमार पहले वाले नीतीश कुमार नहीं रह पाएंगे। वैसे सत्ता में आने के बाद से ही नीतीश कुमार क्षेत्रीय अस्मिता को उभार कर बिहारी गौरव के प्रतीक बन जाने का प्रयास करते रहे हैं। इसके लिए उन्होंने नालंदा विश्वविद्यालय की पुनर्स्थापना, बिहार स्थापना दिवस और बिहार गीत जैसे प्रतीकों का इस्तेमाल करने की शुरुआत भी की। यही नहीं, बाल ठाकरे की तर्ज पर बिहार में नीतीश कुमार ने जय भारत के साथ जय बिहार का नारा भी लगाना शुरू किया। बिहार से इतर उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने सरकार के विकासोन्मुख कार्यक्रमों का जनता के बीच बखान करने की खातिर प्रदेश भर में साइकिल रैलियां निकालीं। अफसोस की ही बात है कि जिस विकास का दम्भ सपा सरकार भर रही है, जमीनी स्तर पर वह कहीं भी दिखाई नहीं दे रहा। हमारे राजनीतिज्ञ आखिर कब तक लोकतंत्र का मजाक उड़ाते रहेंगे।
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