Tuesday, 25 August 2015

एडोल्फ हिटलर ने ध्यान सिंह नहीं रूप सिंह की प्रशंसा की थी

कांग्रेस ने दी देश को खेल दिवस की सौगात
29 अगस्त, 1995 से किया जा रहा ध्यान सिंह को याद
आगरा। कांग्रेस ने बेशक भारत रत्न देने में कालजयी हॉकी खिलाड़ी ध्यान सिंह की अपेक्षा सचिन तेंदुलकर को


प्रमुखता दी हो लेकिन हॉकी के जादूगर के सम्मान में उसने कभी कोई कोताही नहीं बरती। ध्यान सिंह के जन्मदिन को राष्ट्रीय खेल दिवस घोषित किये जाने की घोषणा दिसम्बर 1994 में कांग्रेस के तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने की थी। 29 अगस्त, 1995 से देश में ध्यान सिंह के जन्मदिन को खेल दिवस के रूप में मनाया जा रहा है। इसी दिन मुल्क के जांबाज खिलाड़ियों, प्रशिक्षकों और खेलों में योगदान देने वाली शख्सियतों को सम्मानित किया जाता है।
हॉकी के महान योद्धा ध्यान सिंह को अमरत्व प्रदान करने का सराहनीय प्रयास देश के किसी खिलाड़ी ने नहीं बल्कि झांसी के पूर्व सांसद और श्रीबैद्यनाथ आयुर्वेद समूह के संचालक पण्डित विश्वनाथ शर्मा ने किया था। श्री शर्मा ने 24 अगस्त, 1994 को लोकसभा में सरकार से ध्यान सिंह के जन्मदिन 29 अगस्त को राष्ट्रीय खेल दिवस घोषित करने का प्रश्न उठाया था। तब तत्कालीन खेल मंत्री मुकुल वासनिक ने प्रस्ताव का न केवल समर्थन किया था बल्कि भरोसा भी दिया था कि कांग्रेस यह पुनीत कार्य अवश्य करेगी। पण्डित विश्वनाथ शर्मा के प्रयास रंग लाये और दिसम्बर 1994 में तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने 29 अगस्त को राष्ट्रीय खेल दिवस की न केवल घोषणा की बल्कि 29 अगस्त, 1995 को छह देशों की चैम्पियंस ट्राफी हॉकी प्रतियोगिता का आयोजन कराकर हॉकी के जादूगर के जन्मदिन को अविस्मरणीय बना दिया।
 यह सम्मान भारत रत्न से किसी भी मामले में कमतर नहीं कहा जा सकता। पहले ही खेल दिवस पर पण्डित विश्वनाथ शर्मा ने प्रधानमंत्री राव को ध्यान सिंह का विशाल चित्र भेंट कर दद्दा की धर्मपत्नी जानकी देवी के जीवन-यापन के लिए एक पेट्रोल पम्प की मांग भी की थी, जिसे स्वीकार करते हुए बाद में आवंटित कर दिया गया। भारत सरकार द्वारा जिस दिन से खिलाड़ियों को भारत रत्न देने की मंशा जताई गई उसी दिन से ध्यान सिंह को भारत रत्न दिये जाने की मांग की जा रही है। इस मांग के लिए दद्दा के पुत्र अशोक कुमार लगातार मुखर हैं, यह जानते हुए भी कि उनके चाचा कैप्टन रूप सिंह, जिनका हिटलर भी मुरीद था, को आज तक किसी सम्मान से नहीं नवाजा गया।
रूप सिंह तुम सा हॉकी योद्धा नहीं देखा: एडोल्फ हिटलर
एक लम्हा है, जो ठहर गया है। एक कोख के दो ध्रुव-तारों में एक के लिए भारत रत्न के लिए लड़ाई लड़ी जा रही, आंदोलन चलाये जा रहे हैं लेकिन दूसरे के सम्मान पर खेलप्रेमी गंूगे हैं। बात उस कैप्टन रूप सिंह की है, जिसे तानाशाही के प्रतिमान एडोल्फ हिटलर ने 15 अगस्त, 1936 को सिर आंखों पर बिठाया था। वह बर्लिन की शाम थी। हिटलर हॉकी के जादूगर ध्यान सिंह को सोने का तमगा पहना रहा था तो उसकी जुबां पर सिर्फ और सिर्फ रूप सिंह का नाम था। वह कह रहा था, रूप सिंह तुम विलक्षण हो, तुम सा सम्पूर्ण हॉकी योद्धा नहीं देखा। उस दिन ओलम्पिक के खिताबी मुकाबले में भारत ने जर्मनी का 8-1 से मानमर्दन किया था। उस मुकाबले में रूप सिंह ने चार और ध्यान सिंह ने तीन गोल किये थे। 1936 के ओलम्पिक में यद्यपि ध्यान सिंह और रूप सिंह ने 11-11 गोल किये थे लेकिन सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी का सम्मान रूप सिंह को ही मिला था। 1932 के ओलम्पिक में भी यह दोनों भाई जमकर खेले और भारत को स्वर्ण मुकुट पहनाया, पर उस ओलम्पिक में भी 14 गोल करने के कारण रूप सिंह ही सर्वश्रेष्ठ रहे। लॉस एंजिल्स में खेले गये उस ओलम्पिक में भारत ने अमेरिका के खिलाफ 24-1 की जो धमाकेदार ऐतिहासिक जीत दर्ज की थी उसमें रूप सिंह ने 12 और ध्यान सिंह ने सात गोल किये थे। भारतीय खेलप्रेमी और ध्यान सिंह का परिवार हॉकी मसीहा रूप सिंह को  बेशक भूल चुका हो पर जर्मनी हॉकी के हीरो को जन्म जन्मांतर तक याद रखने को संकल्पबद्ध है। 1972 में जर्मनी के म्यूनिख शहर में कैप्टन रूप सिंह मार्ग स्थापित किया जाना यही साबित करता है कि भारत ने हॉकी में कई ऐसे रत्न दिये हैं, जिन्हें भुला दिया गया है। ध्यान सिंह के अनुज रूप सिंह भी उन्हीं में से एक हैं।

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