भय गति सांप छछूंदर जैसी। जी हां, पाकिस्तान के साथ राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार स्तर पर 23-24 अगस्त को होने वाली बातचीत को लेकर मोदी सरकार दुविधा में है। सरकार की समझ में ही नहीं आ रहा कि इस मामले को वह कैसे सुलझाये। पाकिस्तान से सम्बन्धों को लेकर मोदी सरकार की भ्रम और अनिर्णय की स्थिति का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उसने गुरुवार को तीन हुर्रियत नेताओं को उनके घरों में ही नजरबंद कर लिया लेकिन कुछ ही घंटों में उनकी नजरबंदी खत्म कर दी गई। कश्मीर और भारत सरकार के न चाहने के बावजूद सरताज अलगाववादी नेताओं से मिलने को बेताब हैं। पिछले साल भी पाकिस्तानी राजनयिकों के दिल्ली में हुर्रियत नेताओं से मिलने के चलते भारत-पाकिस्तान के बीच बातचीत नहीं हो पाई थी। मोदी सरकार को बातचीत के मौके को अकारथ नहीं करना चाहिए, भले ही पाकिस्तानी राजनयिक हुर्रियत नेताओं से क्यों न मिलें। पाकिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार सरताज अजीज यदि हुर्रियत नेताओं से मिलते भी हैं तो आखिर उसमें हर्ज क्या है? सैयद अली गिलानी, मीरवाइज उमर फारुक और यासिन मलिक भारतीय नागरिक हैं, यदि इन्होंने अपराध किए हैं तो फिर इन्हें जेल में क्यों नहीं डाला जाता? इन पर कानूनी शिकंजा क्यों नहीं कसा जाता? दरअसल, ये तीनों भारतीय कश्मीरी हैं, यदि मोदी सरकार पाकिस्तानी राजनयिकों से इन्हें नहीं मिलने देती तो यह उसकी कश्मीर को लेकर कमजोरी ही कही जायेगी। सच्चाई तो यह है कि भारत प्रशासित कश्मीर में अंदरूनी समस्या की बजाय सबसे बड़ी समस्या नियंत्रण रेखा के पार से आने वाले चरमपंथी हैं। मोदी सरकार की असली समस्या तीन अलगाववादी नहीं बल्कि वह यह दिखाना चाहती है कि कश्मीर में कोई विवाद ही नहीं है,जबकि हमारा पड़ोसी कश्मीर राग अलाप कर भारत में चरमपंथ को ही बढ़ावा देना चाहता है। टके भर का सवाल यह है कि क्या आज के संदर्भ में भारत-पाकिस्तान के बीच वाकई कश्मीर कोई मुद्दा नहीं है? मौजूदा हालातों को देखते हुए मोदी सरकार को जज्बातों में बहने की बजाय कूटनीति से काम लेना चाहिए। अलगाववादी किसी से भी मिलें उससे भारत की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। भारत का मुख्य मुद्दा चूंकि चरमपंथ है लिहाजा उसे पाकिस्तान से सिर्फ इसी बारे में बात करनी चाहिए। हम चरमपंथ का जवाब चरमपंथ से नहीं दे सकते क्योंकि हमारे यहां चरमपंथ के ठौर-ठिकाने नहीं हैं। भारत के लिए बेहतर यही होगा कि वह पड़ोसी पाकिस्तान से खुलकर बात करे। कश्मीर मामले में भी हमें बात करने से नहीं डरना चाहिए। भारत और पाकिस्तान चूंकि दोनों ही मुल्क परमाणु हथियारों से लैश हैं लिहाजा समस्या का समाधान युद्ध की बजाय बातचीत से ही सम्भव होगा।
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