Monday, 10 August 2015

मध्यप्रदेश में हॉकी का भविष्य सुखद: कौशिक

मध्यप्रदेश की हॉकी एकेडमियों में विश्वस्तरीय सुविधाएं
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और खेलमंत्री यशोधरा राजे सिंधिया का सराहनीय प्रयास
ग्वालियर। मध्यप्रदेश में महिला हॉकी का भविष्य सुखद है। यहां की हॉकी एकेडमियों में विश्वस्तरीय सुविधायें मिलना काबिलेगौर बात है। मैं महिला हॉकी की बेहतरी के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और खेलमंत्री यशोधरा राजे सिंधिया को साधुवाद देता हूं। इनके प्रयासों से महिला हॉकी को जो प्लेटफार्म मिला है उससे दूसरे राज्य भी नसीहत लेंगे। यह कहना है भारतीय महिला हॉकी के पूर्व प्रशिक्षक महाराज किशन कौशिक का।
श्री कौशिक ने विशेष बातचीत में बताया कि भारत में प्रतिभाओं की कमी नहीं है यहां संसाधनों की दरकार है। महिला हॉकी की सम्भावनाओं की पड़ताल के लिए उत्तर प्रदेश के मेरठ और रामपुर जाने पर मैंने देखा कि लड़कियां हॉकी खेलना चाहती हैं, उनमें टैलेंट भी है लेकिन जब तक मैदान नहीं होंगे खेल परवान नहीं चढ़ सकते। कौशिक ने कहा कि एक समय था जब उत्तर प्रदेश महिला हॉकी के क्षेत्र में बड़ी ताकत हुआ करता था लेकिन आज कमजोर अधोसंरचना और सुविधायें न होने के चलते हॉकी की प्रतिभायें दूसरे राज्यों की तरफ पलायन कर रही हैं। श्री कौशिक ने बताया कि मध्यप्रदेश सरकार ने हॉकी के उत्थान की दिशा में वाकई प्रशंसनीय कार्य किये हैं। भोपाल की पुरुष और ग्वालियर की महिला हॉकी एकेडमी को देखने के बाद मैं विश्वास के साथ कह सकता हूं कि मध्य प्रदेश में हॉकी का भविष्य उज्ज्वल है। यहां की विश्वस्तरीय सुविधाओं को दूसरे राज्यों को नसीहत के रूप में लेना चाहिए।
श्री कौशिक ने कहा कि एक दिन में सब कुछ नहीं बदला जा सकता है लेकिन यदि ग्रासरूट से प्रयास हों तो भारतीय बेटियां भी अच्छे परिणाम दे सकती हैं। कौशिक ने कहा कि एक दिन था जब मध्यप्रदेश के पास हॉकी की लड़कियां ही नहीं थीं लेकिन आज प्रदेश की प्रतिभाओं से ही एकेडमियां निहाल हैं। क्या आप मध्यप्रदेश की एकेडमियों से जुड़ने की ख्वाहिश रखते हैं? इस प्रश्न के जवाब में श्री कौशिक ने कहा कि वह हॉकी के लिए ही जन्मे हैं। मुझे काम करने का शौक है, यदि मौका मिलता है तो मैं किसी भी दायित्व को सम्हालने के लिए तैयार हूं।

कैसे बचेगी हॉकी की विरासत
बार-बार कोच न बदलें
एक समय था जब हॉकी का विदेशी कोच नहीं होता था फिर भी भारत सिरमौर था। यूं तो एक कोच बेहतर नेतृत्व की पहचान होता है। कोच टीम को अपने मार्गदर्शन से मजबूत एवं सुशासित करता है। बार-बार कोच बदले जाने से टीम हतोत्साहित होती है, खिलाड़ियों के हौसले पस्त होते हैं। तेजी से बदल रही हॉकी स्पर्धाओं के लिए जरूरी है कि खिलाड़ी कड़ी मेहनत करें और खिलाड़ियों को भी हर सुविधा दी जाये। खिलाड़ी एक कोच की रणनीति को समझकर खेलता है। बार-बार कोच बदलने पर वह असमंजस में पड़ जाता है, खेल प्रभावित होता है।
कोच बदलना दिवालियेपन का सबूत
भारतीय हॉकी टीम के कोच को बदलना हॉकी इंडिया के अधिकारियों के दिमाग के दिवालियेपन का सबूत है। अब जबकि ओलंपिक नजदीक है, इसका खिलाड़ियों की तैयारी पर विपरीत असर पड़ेगा। ऐसे समय में तो खिलाड़ी को हर सुविधा देनी चाहिए ताकि वह अपना पूरा ध्यान खेल पर लगा सके। इसमें किसी प्रकार का राजनीतिक हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए। चुनाव निष्पक्ष और योग्य खिलाड़ी का ही होना चाहिए। खिलाड़ियों का भविष्य सुरक्षित होना चाहिए ताकि उसका ध्यान खेल में ही लगा रहे।
भारतीय कोच अधिक कारगर होगा
हॉकी कोच को बदल देने से टीम मजबूत हो जायेगी, ऐसा संभव नहीं। जरूरी है टीम के खिलाड़ी तथा पूर्व खिलाड़ियों की मांग पर कोच भारत का होना चाहिए। इससे आपसी तालमेल रहेगा और भाषा संबंधी समस्या नहीं रहेगी। प्रशिक्षण के तौर पर विदेशी टीमों से मुकाबले हों ताकि अपनी कमजोरियों को पहचाना जा सके। खिलाड़ियों को सभी सम्मान मिले, जिसके कि वे हकदार हैं। हर खिलाड़ी अपने भविष्य के लिए चिंतित रहता है। ऐसी परेशानियों से बचने के लिए उन्हें सेवानिवृत्ति के बाद पेंशन आदि सुविधा दी जायें ताकि खेल पर नकारात्मक प्रभाव न पड़े।
प्रशिक्षक को पर्याप्त मौका मिले
आज विदेशी खेल क्रिकेट का जादू सिर चढ़कर बोल रहा है। जो गौरव हॉकी को मिलना चाहिए, उससे वह कोसों दूर है। बार-बार कोच की नियुक्ति और बर्खास्तगी से राष्ट्रीय टीम के प्रदर्शन पर असर पड़ेगा जबकि ओलंपिक के लिए सिर्फ एक साल का समय शेष है। अगर जल्दी-जल्दी कोच बदलेंगे तो यह संकेत जाएगा कि हमारे सिस्टम में कुछ खराबी है। विदेशी कोच को पर्याप्त मौका देना चाहिए। टूर्नामेंट के दौरान प्रशासन का कोई दखल नहीं होना चाहिए।
सरकार बिल लाये
कोई न कोई कारण बताकर औसतन एक वर्ष के भीतर भारतीय हॉकी टीम के एक कोच की छुट्टी कर दी जाती है। कभी भारत में हॉकी खिलाड़ी ही असली स्पोर्ट्स स्टार थे। हॉकी हमारा राष्ट्रीय खेल है। बदहाली के बावजूद कलात्मक हॉकी का गढ़ भारत है। इसी कारण दुनिया के नामी कोच बेझिझक हमारे यहां खिंचे चले आते हैं। यदि किसी अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट में भारत की टीम हारती है तो खिलाड़ियों और कोच के साथ-साथ संबंधित खेल संघ के पदाधिकारियों के खिलाफ भी कार्रवाई हो। सरकार स्पोर्ट्स डेवलपमेंट बिल फिर से लेकर आए तो खेल और खिलाड़ियों का कुछ न कुछ कल्याण तो जरूर होगा।
खिलाड़ियों की भी सुनें
पिछले कुछ साल में हॉकी इंडिया ने भारी तनख्वाह पर विदेशी कोचों की नियुक्तियां की हैं पर इनको कोई न कोई कारण बताकर समय से पहले ही हटा दिया गया। इसका भारत की राष्ट्रीय टीम के प्रदर्शन पर भी प्रभाव पड़ेगा। खिलाड़ियों ने स्वदेशी कोच की मांग की थी। अब जबकि ओलंपिक में कम समय बचा है तो ऐसे में खिलाड़ियों की सुविधाओं का ध्यान रखना जरूरी है ताकि उनका पूरा ध्यान खेल पर केन्द्रित रहे। कोच और टीम में भाषा एक अहम भूमिका अदा करती है, जो खेल का जरूरी हिस्सा है।
हॉकी के साथ राजनीति न हो
बार-बार कोच बदलने से टीम के प्रदर्शन पर विपरीत असर पड़ेगा खासकर जबकि रियो ओलंपिक महज एक साल दूर है। यदि हम भारतीय कोच की सेवायें नहीं लेते हैं और विदेशी कोच को बुलाते हैं तो उसका सम्मान करके उसे उचित मौका दिया जाना चाहिये क्योंकि उसकी अपनी साख भी इससे जुड़ी होती है। हॉकी के साथ राजनीति नहीं होनी चाहिए। कोचों को बदलने से खिलाड़ियों को दिक्कत आती है। टीम की रणनीति भी कोच के साथ बदल जाती है और टीम बनाने में समय लगता है। ऐसे में टीम के खिलाड़ी खेल-रणनीति के तहत असमंजस में उलझ जाते हैं।

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