Monday, 3 August 2015

अनुशासन का डण्डा

जिस मानसून सत्र में आम जनमानस की दु:ख-तकलीफों पर चर्चा होनी चाहिए वह लगातार हठधर्मी का शिकार है। सत्र का एक पखवाड़ा बिना किसी कामकाज के हो-हल्ले की भेंट चढ़ चुका है। उम्मीद थी कि सोमवार को हमारे जनप्रतिनिधि जनता जनार्दन के सरोकारों का ख्याल रखते हुए लम्बित विधेयकों पर चर्चा करेंगे, पर ऐसा होने की बजाय पंगा और बढ़ता दिख रहा है। मानसून सत्र केसुचारु संचालन में लगातार बाधा डाल रहे 25 कांग्रेस सांसदों पर सोमवार को लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने अनुशासन का डण्डा चलाते हुए पांच दिन के लिए निलम्बित कर दिया है। इससे पहले, पिछले सप्ताह भी लोकसभा अध्यक्ष ने कांग्रेस के एक सदस्य अधीर रंजन चौधरी को एक दिन के लिए सदन की कार्यवाही से निलम्बित किया था। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने इसे लोकतंत्र व कांग्रेस के लिए काला दिन बताया तो लोकसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने इसे दोहरा मानदण्ड बताते हुए तोहमत लगाई कि सत्तापक्ष सदन चलाने का ही इच्छुक नहीं है। उधर, आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस का समर्थन करते हुए अगले पांच दिन तक सदन का बहिष्कार करने का निर्णय लिया। तृणमूल कांग्रेस के सुदीप बंदोपाध्याय और माकपा के पी. करुणाकरन ने कहा कि जब भाजपा विपक्ष में थी तब वह भी यही करती थी। भाजपा ने वर्ष 2010 में पूरा एक सत्र नहीं चलने दिया था। देखा जाये तो जिस दिन से मानसून सत्र प्रारम्भ हुआ है उसी दिन से कांग्रेस सांसद दोनों सदनों में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज, राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के ललित मोदी प्रकरण और मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के व्यापम घोटाले में इस्तीफे की मांग कर रहे हैं। सोमवार को लोकसभा अध्यक्ष महाजन ने कांग्रेस सांसदों से कई बार सदन के सुचारु संचालन के लिए मदद मांगी लेकिन वह पोस्टर दिखाते हुए नारेबाजी करते रहे। अंतत: लोकसभा अध्यक्ष को निलम्बन का अप्रिय निर्णय लेना पड़ा। कांग्रेस की हठधर्मिता के चलते मानसून सत्र के पहले कामकाजी दिन से ही सदन की कार्यवाही नहीं चल सकी है। संसद विधायी कार्यों, देश के सामने आसन्न चुनौतियों और अहम मुद्दों पर बहस के लिए होती है। संसद का न चलना दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति ही कही जाएगी। सरकार की निगाह में इस गतिरोध के लिए पूरी तरह विपक्ष जिम्मेदार है, पर क्या यह सही नहीं है कि यूपीए सरकार के दूसरे कार्यकाल में विपक्ष में रहते हुए भाजपा का भी यही रवैया था। तब वह संसद की कार्यवाही में बाधा डालने को यह कहकर सही ठहराती थी कि यह घोटालों की तरफ देश का ध्यान आकर्षित करने का तरीका है। मगर अब वही रणनीति कांग्रेस और दूसरे विपक्षी दलों ने अख्यितार की है तो भाजपा की पेशानियों में बल पड़ रहा है। जो भी हो पिछली लोकसभा के रिकॉर्ड का हवाला देकर गतिरोध को सही नहीं ठहराया जा सकता। संसद चलने में ही आम आवाम और मुल्क का भला है। 

No comments:

Post a Comment