ललित मोदी ने क्रिकेट सल्तनत को लेकर जो कुछ कहा, यदि वह सच्चाई के धरातल पर फलीभूत हुआ तो खेल मुरीदों को तीसरी बार भद्रजनों का खेल बंटते दिखेगा। आईपीएल के दागी ललित मोदी की क्रिकेट बंटवारे की धमकी को बंदरघुड़की मानना आईसीसी के लिए बड़ी भूल साबित हो सकती है। क्रिकेट इससे पूर्व भी बंट चुकी है। खिलाड़ी वहीं खेलेगा जहां उसे दौलत और शोहरत मिलेगी। ललित मोदी में क्रिकेट को दोफाड़ करने की सामर्थ्य है। मोदी अपनी उम्मीदों को न केवल पर लगाने का कौशल जानते हैं बल्कि वे इसके लिए कुछ भी गलत करने से भी संकोच नहीं करते। आईपीएल प्रकरण इसका जीवंत उदाहरण है।
ललित मोदी को लेकर राजनीतिज्ञ और आईसीसी लाख कुछ भी कहें, पर इस शख्स को सिरे से खारिज नहीं किया जा सकता। दुनिया के सबसे बड़े खेल ब्राण्ड के रूप में स्थापित हो चुके आईपीएल की अवधारणा मोदी की ही दिमागी उपज है। वह जब इस नई सोच के साथ एक बार फिर खम ठोक रहे हों तो आईसीसी का सांसत में पड़ना स्वाभाविक है। मोदी अपनी परिकल्पना को पर लगा सकते हैं क्योंकि उनके पास अकूत पैसा है और उन्हें पैसे का सदुपयोग करना भी आता है। मोदी के लिए हजारों करोड़ का फण्ड आसानी से जुटा लेना भी कोई मुश्किल काम नहीं होगा। अपने सपने को साकार करने की खातिर ही उन्होंने आस्ट्रेलिया के डेविड वार्नर और क्लार्क जैसे खिलाड़ियों को करोड़ों रुपये की पेशकश करना शुरू कर दिया है तो क्रिकेट जगत के कई और नामचीन खिलाड़ी भी मोदी के निरंतर सम्पर्क में हैं।
आईसीसी को दोफाड़ करने की हिम्मत पहली दफा 1970 के दशक में कैरी पैकर ने दिखाई थी। तब विवाद का कारण आॅस्ट्रेलियाई क्रिकेट बोर्ड का कैरी पैकर को प्रसारण अधिकार नहीं देना था। नाराज कैरी पैकर ने न केवल नामचीन क्रिकेटरों को पैसे के प्रलोभन से अपनी तरफ करने में सफलता हासिल की बल्कि आईसीसी को बता दिया कि क्रिकेटर किसी का मीत नहीं हो सकता। पैकर ने इयान चैपल, डेनिस लिली, टोनी ग्रेग और क्लाइव लायड जैसे उस दौर के ज्यादातर बड़े खिलाड़ियों को तोड़कर यही साबित किया था कि खिलाड़ियों के लिए खेल से कहीं अधिक पैसा मायने रखता है। कैरी पैकर की उस सूनामी में आॅस्ट्रेलिया की लगभग पूरी टीम ही साफ हो गई थी। हालत यह हो गई थी कि बिशन सिंह बेदी की कप्तानी में भारतीय टीम आॅस्ट्रेलिया दौरे पर गई तो वहां के बोर्ड को बिल्कुल ही नए खिलाड़ियों की टीम तैयार करनी पड़ी जिसका नेतृत्व 41 साल के उस बॉबी सिम्पसन को सौंपा गया जोकि 10 साल पहले अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट को अलविदा कह चुके थे।
कैरी पैकर ने न केवल क्रिकेट का हुलिया बदला बल्कि टेस्ट क्रिकेट की चमक भी छीन ली। आज हम क्रिकेट में जो तड़क-भड़क देख रहे हैं, पैसे के लिहाज से आकर्षक अनुबंध, रंगीन कपड़े, दूधिया प्रकाश, सफेद गेंद से दिन-रात के मुकाबले ये सब कैरी पैकर की ही देन हैं। कैरी पैकर के सर्कस में तब टेस्ट बिरादर के सभी मुल्कों के नामचीन खिलाड़ियों ने अपनी-अपनी राष्ट्रीय टीमों से तौबा कर तमाशा दिखाने का मन बनाया था। आईसीसी को भारतीय क्रिकेट बोर्ड से मदद की उम्मीद थी, वजह उसका कोई भी खिलाड़ी पैकर से नहीं जुड़ा था। पैकर ने हार नहीं मानीं और राह का रोड़ा बने भारतीय खिलाड़ियों को अपने शिविर में लाने को न केवल पासा फेंका बल्कि 1978 में क्रिकेट सीरीज खेलने पाकिस्तान गये खिलाड़ियों को अपने पाले में लाने के लिए अपने प्रतिनिधि लिंटन टेलर को पाकिस्तान भेजा और उसने भारतीयों के सामने दौलत की पोटली खोल दी। अकूत पैसा देख कप्तान बिशन सिंह बेदी और उनके नायब सुनील गावस्कर सहित टीम के दस खिलाड़ियों ने करार पर दस्तखत कर दिए। खिलाड़ियों के इस दुस्साहस का जवाब देने की बजाय भारतीय क्रिकेट कण्ट्रोल बोर्ड ने घुटने टेकना मुनासिब समझा। अन्य देशों के क्रिकेट बोर्ड पहले ही अपने खिलाड़ियों के आगे नतमस्तक हो चुके थे।
भारतीय खिलाड़ियों के रवैये से आईसीसी की न केवल सिट्टी-पिट्टी गुम हुई बल्कि उसकी सारी अकड़ भी ढीली हो गयी और उसने आंख मूंदकर पैकर के खेल में किए समस्त बदलावों को न केवल स्वीकारा बल्कि प्रसारण अधिकार भी इस मीडिया मुगल की शर्तों पर उसे फिर से सौंप दिये। कैरी पैकर की तमाशबीन क्रिकेट के मोहपाश में सिर्फ खिलाड़ी ही नहीं शारजाह में क्रिकेट के अलम्बरदार बुखातिर भी फंसे थे। दरअसल बुखातिर ने रेगिस्तान में क्रिकेट के आगाज का गुर कैरी पैकर के प्रतिनिधि लिंटन टेलर से ही सीखा था। आईसीसी की पहली पराजय के बाद टेस्ट क्रिकेट के अस्तित्व पर तमाशाई क्रिकेट हावी हो गई। जब तक क्रिकेट सफेद कपड़ों में खेली जाती रही तब तक तो लगा कि वाकई यह भद्रजनों का खेल है लेकिन जैसे ही इस खेल में तड़क-भड़क का समावेश हुआ खिलाड़ी और खेलनहारों का ईमान बिक गया।
आईसीसी को नाको चने चबवाने वाले कैरी पैकर ने अपने प्रयासों से साबित किया कि पैसे से कुछ भी किया जा सकता है। वनडे क्रिकेट में खिलाड़ियों की रंग-बिरंगी पोशाक और दिन-रात के मैच जैसे बदलाव पैकर की ही देन हैं। इसके चलते खेल में तेजी आई, खिलाड़ियों को ज्यादा पैसे मिलने लगे तो मैचों के प्रसारण अधिकार पाने और प्रायोजक बनने के लिए बड़ी-बड़ी बोलियां लगने लगीं। कैरी पैकर का जादू किसी पर असरकारी रहा हो या नहीं खिलाड़ियों के लिए यह जरूर फायदे का सौदा साबित हुआ। कैरी पैकर के नक्शेकदम पर चलते हुए एस्सेल ग्रुप के प्रमोटर सुभाष चन्द्रा ने 2007 में इण्डियन क्रिकेट लीग का ऐलान कर बीसीसीआई और आईसीसी को दूसरी बार सकते में डाला था। तब उनकी कहानी भी काफी हद तक कैरी पैकर जैसी ही थी। ललित मोदी यदि अपने मकसद में सफल हुए तो तय मानिये भारतीय क्रिकेट कण्ट्रोल बोर्ड जरूर कमजोर हो जायेगा। क्रिकेट बिरादर के अधिकांश सदस्य देशों का बीसीसीआई की सम्प्रभुता से आजिज होना ललित मोदी के लिए ही फायदे का सौदा है।
ललित मोदी को लेकर राजनीतिज्ञ और आईसीसी लाख कुछ भी कहें, पर इस शख्स को सिरे से खारिज नहीं किया जा सकता। दुनिया के सबसे बड़े खेल ब्राण्ड के रूप में स्थापित हो चुके आईपीएल की अवधारणा मोदी की ही दिमागी उपज है। वह जब इस नई सोच के साथ एक बार फिर खम ठोक रहे हों तो आईसीसी का सांसत में पड़ना स्वाभाविक है। मोदी अपनी परिकल्पना को पर लगा सकते हैं क्योंकि उनके पास अकूत पैसा है और उन्हें पैसे का सदुपयोग करना भी आता है। मोदी के लिए हजारों करोड़ का फण्ड आसानी से जुटा लेना भी कोई मुश्किल काम नहीं होगा। अपने सपने को साकार करने की खातिर ही उन्होंने आस्ट्रेलिया के डेविड वार्नर और क्लार्क जैसे खिलाड़ियों को करोड़ों रुपये की पेशकश करना शुरू कर दिया है तो क्रिकेट जगत के कई और नामचीन खिलाड़ी भी मोदी के निरंतर सम्पर्क में हैं।
आईसीसी को दोफाड़ करने की हिम्मत पहली दफा 1970 के दशक में कैरी पैकर ने दिखाई थी। तब विवाद का कारण आॅस्ट्रेलियाई क्रिकेट बोर्ड का कैरी पैकर को प्रसारण अधिकार नहीं देना था। नाराज कैरी पैकर ने न केवल नामचीन क्रिकेटरों को पैसे के प्रलोभन से अपनी तरफ करने में सफलता हासिल की बल्कि आईसीसी को बता दिया कि क्रिकेटर किसी का मीत नहीं हो सकता। पैकर ने इयान चैपल, डेनिस लिली, टोनी ग्रेग और क्लाइव लायड जैसे उस दौर के ज्यादातर बड़े खिलाड़ियों को तोड़कर यही साबित किया था कि खिलाड़ियों के लिए खेल से कहीं अधिक पैसा मायने रखता है। कैरी पैकर की उस सूनामी में आॅस्ट्रेलिया की लगभग पूरी टीम ही साफ हो गई थी। हालत यह हो गई थी कि बिशन सिंह बेदी की कप्तानी में भारतीय टीम आॅस्ट्रेलिया दौरे पर गई तो वहां के बोर्ड को बिल्कुल ही नए खिलाड़ियों की टीम तैयार करनी पड़ी जिसका नेतृत्व 41 साल के उस बॉबी सिम्पसन को सौंपा गया जोकि 10 साल पहले अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट को अलविदा कह चुके थे।
कैरी पैकर ने न केवल क्रिकेट का हुलिया बदला बल्कि टेस्ट क्रिकेट की चमक भी छीन ली। आज हम क्रिकेट में जो तड़क-भड़क देख रहे हैं, पैसे के लिहाज से आकर्षक अनुबंध, रंगीन कपड़े, दूधिया प्रकाश, सफेद गेंद से दिन-रात के मुकाबले ये सब कैरी पैकर की ही देन हैं। कैरी पैकर के सर्कस में तब टेस्ट बिरादर के सभी मुल्कों के नामचीन खिलाड़ियों ने अपनी-अपनी राष्ट्रीय टीमों से तौबा कर तमाशा दिखाने का मन बनाया था। आईसीसी को भारतीय क्रिकेट बोर्ड से मदद की उम्मीद थी, वजह उसका कोई भी खिलाड़ी पैकर से नहीं जुड़ा था। पैकर ने हार नहीं मानीं और राह का रोड़ा बने भारतीय खिलाड़ियों को अपने शिविर में लाने को न केवल पासा फेंका बल्कि 1978 में क्रिकेट सीरीज खेलने पाकिस्तान गये खिलाड़ियों को अपने पाले में लाने के लिए अपने प्रतिनिधि लिंटन टेलर को पाकिस्तान भेजा और उसने भारतीयों के सामने दौलत की पोटली खोल दी। अकूत पैसा देख कप्तान बिशन सिंह बेदी और उनके नायब सुनील गावस्कर सहित टीम के दस खिलाड़ियों ने करार पर दस्तखत कर दिए। खिलाड़ियों के इस दुस्साहस का जवाब देने की बजाय भारतीय क्रिकेट कण्ट्रोल बोर्ड ने घुटने टेकना मुनासिब समझा। अन्य देशों के क्रिकेट बोर्ड पहले ही अपने खिलाड़ियों के आगे नतमस्तक हो चुके थे।
भारतीय खिलाड़ियों के रवैये से आईसीसी की न केवल सिट्टी-पिट्टी गुम हुई बल्कि उसकी सारी अकड़ भी ढीली हो गयी और उसने आंख मूंदकर पैकर के खेल में किए समस्त बदलावों को न केवल स्वीकारा बल्कि प्रसारण अधिकार भी इस मीडिया मुगल की शर्तों पर उसे फिर से सौंप दिये। कैरी पैकर की तमाशबीन क्रिकेट के मोहपाश में सिर्फ खिलाड़ी ही नहीं शारजाह में क्रिकेट के अलम्बरदार बुखातिर भी फंसे थे। दरअसल बुखातिर ने रेगिस्तान में क्रिकेट के आगाज का गुर कैरी पैकर के प्रतिनिधि लिंटन टेलर से ही सीखा था। आईसीसी की पहली पराजय के बाद टेस्ट क्रिकेट के अस्तित्व पर तमाशाई क्रिकेट हावी हो गई। जब तक क्रिकेट सफेद कपड़ों में खेली जाती रही तब तक तो लगा कि वाकई यह भद्रजनों का खेल है लेकिन जैसे ही इस खेल में तड़क-भड़क का समावेश हुआ खिलाड़ी और खेलनहारों का ईमान बिक गया।
आईसीसी को नाको चने चबवाने वाले कैरी पैकर ने अपने प्रयासों से साबित किया कि पैसे से कुछ भी किया जा सकता है। वनडे क्रिकेट में खिलाड़ियों की रंग-बिरंगी पोशाक और दिन-रात के मैच जैसे बदलाव पैकर की ही देन हैं। इसके चलते खेल में तेजी आई, खिलाड़ियों को ज्यादा पैसे मिलने लगे तो मैचों के प्रसारण अधिकार पाने और प्रायोजक बनने के लिए बड़ी-बड़ी बोलियां लगने लगीं। कैरी पैकर का जादू किसी पर असरकारी रहा हो या नहीं खिलाड़ियों के लिए यह जरूर फायदे का सौदा साबित हुआ। कैरी पैकर के नक्शेकदम पर चलते हुए एस्सेल ग्रुप के प्रमोटर सुभाष चन्द्रा ने 2007 में इण्डियन क्रिकेट लीग का ऐलान कर बीसीसीआई और आईसीसी को दूसरी बार सकते में डाला था। तब उनकी कहानी भी काफी हद तक कैरी पैकर जैसी ही थी। ललित मोदी यदि अपने मकसद में सफल हुए तो तय मानिये भारतीय क्रिकेट कण्ट्रोल बोर्ड जरूर कमजोर हो जायेगा। क्रिकेट बिरादर के अधिकांश सदस्य देशों का बीसीसीआई की सम्प्रभुता से आजिज होना ललित मोदी के लिए ही फायदे का सौदा है।
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