दीपिका कुमारी, बांबेल्या देवी और लक्ष्मीबाई मांझी
रियो ओलंपिक में अपनी जगह पक्की कराने वाली भारतीय महिला तीरंदाजी टीम की स्टार खिलाड़ी दीपिका कुमारी का कहना है कि पुराने खिलाड़ियों पर अच्छे प्रदर्शन का भारी दबाव रहता है। पिछले दिनों दीपिका कुमारी, लक्ष्मीरानी मांझी और रिमिल बूरूली की तिकड़ी ने महिला रिकर्व टीम स्पर्धा के लिए रियो ओलंपिक का टिकट हासिल किया। यह उपलब्धि उन्होंने डेनमार्क में आयोजित विश्व तीरंदाजी चैम्पियनशिप में हासिल की। इस टीम ने फाइनल में रूस के साथ 5-4 से हारने के बाद रजत पदक हासिल किया।
विश्व चैम्पियनशिप में महिला टीम रिकर्व मुकाबलों में 10वीं वरीयता के साथ खेलने वाली भारतीय टीम के लिए यह कामयाबी बेहद विशेष है। इसके अलावा भारत के रजत चौहान ने कम्पाउण्ड स्पर्धा में रजत पदक जीता। किसी भी विश्व तीरंदाजी चैम्पियनशिप में भारत को मिलने वाली यह सबसे बड़ी कामयाबी है। दीपिका कुमारी का कहना है कि रियो ओलम्पिक का टिकट पाकर वह बेहद खुश हंै, लेकिन टेंशन अभी दूर नहीं हुई है, बल्कि शुरू हुई है। यह बात अलग है कि ओलम्पिक के लिए टीम ने क्वालीफाई किया है और एक बड़ी समस्या हल हुई है। ओलम्पिक का पदक जीतना हर खिलाड़ी का सपना होता है और वह भी उसे पूरा करने की पूरी कोशिश करेंगी। इससे पहले लंदन ओलम्पिक में भी उनसे बेहद उम्मीदें थीं, लेकिन वहां वह कुछ खास नहीं कर सकी थी, क्या उन्हें किसी मनोवैज्ञानिक की आवश्यकता है। इस पर उनका कहना था कि कुछ बातों को हम खुद ही नजरअंदाज कर सकते हैं। मनोवैज्ञानिक हर समस्या का समाधान नहीं कर सकता।
भारत जैसी जगह जहां ओलम्पिक में गिने-चुने पदक ही आते हैं, थोड़े से भी कामयाब खिलाड़ी से बेहद उम्मीदें की जाती हैं। इसे लेकर दीपिका ने कहा कि उम्मीदें ही तो दबाव बनाती हैं। नए खिलाड़ी को कोई नहीं जानता। वह बिंदास होकर खेलता है, किसी के हारने-जीतने से उस पर कोई असर नही पड़ता। बड़ा खिलाड़ी सोचता है कि अगर वह हारा तो क्या होगा, लेकिन वह अब ऐसा नहीं सोचती और बस तीरंदाजी पर अपना ध्यान लगाना चाहती हैं।
कभी टाटा आर्चरी एकेडमी से अपनी तीरंदाजी की शुरुआत करने वाली लक्ष्मीरानी मांझी भी रियो का टिकट पाकर बेहद खुश हैं। विश्व चैम्पियनशिप में रूसी चुनौती को लेकर उन्होंने कहा कि दरअसल रूसी खिलाड़ी की रैंकिंग दुनिया में तीसरी है जबकि वह 11वीं रैंकिंग पर हैं। वह इन सबसे ध्यान हटाकर खेली, अब उनका एकमात्र लक्ष्य रियो पर ध्यान केंद्रित करना है।
रिमिल का मानना है कि फाइनल से रूस से अधिक दबाव टीम पर शुरूआती दौर में जर्मनी की टीम से था। रूस के खिलाफ तो वह नर्वस थीं। दरअसल जर्मनी से जीतकर ओलम्पिक में जगह बनानी थी, जबकि रूस, कोरिया जैसी मजबूत टीम को हराकर फाइनल खेल रही थी इसलिए दबाव था। उन्हें खुशी है कि टीम ने फाइनल में दमदार खेल दिखाया और फैसला टाई में हुआ। रिमिल मानती है कि अंतराष्ट्रीय स्तर पर कामयाब होने के लिए दिमागी रूप से मजबूत होना पड़ेगा।
रियो ओलंपिक में अपनी जगह पक्की कराने वाली भारतीय महिला तीरंदाजी टीम की स्टार खिलाड़ी दीपिका कुमारी का कहना है कि पुराने खिलाड़ियों पर अच्छे प्रदर्शन का भारी दबाव रहता है। पिछले दिनों दीपिका कुमारी, लक्ष्मीरानी मांझी और रिमिल बूरूली की तिकड़ी ने महिला रिकर्व टीम स्पर्धा के लिए रियो ओलंपिक का टिकट हासिल किया। यह उपलब्धि उन्होंने डेनमार्क में आयोजित विश्व तीरंदाजी चैम्पियनशिप में हासिल की। इस टीम ने फाइनल में रूस के साथ 5-4 से हारने के बाद रजत पदक हासिल किया।
विश्व चैम्पियनशिप में महिला टीम रिकर्व मुकाबलों में 10वीं वरीयता के साथ खेलने वाली भारतीय टीम के लिए यह कामयाबी बेहद विशेष है। इसके अलावा भारत के रजत चौहान ने कम्पाउण्ड स्पर्धा में रजत पदक जीता। किसी भी विश्व तीरंदाजी चैम्पियनशिप में भारत को मिलने वाली यह सबसे बड़ी कामयाबी है। दीपिका कुमारी का कहना है कि रियो ओलम्पिक का टिकट पाकर वह बेहद खुश हंै, लेकिन टेंशन अभी दूर नहीं हुई है, बल्कि शुरू हुई है। यह बात अलग है कि ओलम्पिक के लिए टीम ने क्वालीफाई किया है और एक बड़ी समस्या हल हुई है। ओलम्पिक का पदक जीतना हर खिलाड़ी का सपना होता है और वह भी उसे पूरा करने की पूरी कोशिश करेंगी। इससे पहले लंदन ओलम्पिक में भी उनसे बेहद उम्मीदें थीं, लेकिन वहां वह कुछ खास नहीं कर सकी थी, क्या उन्हें किसी मनोवैज्ञानिक की आवश्यकता है। इस पर उनका कहना था कि कुछ बातों को हम खुद ही नजरअंदाज कर सकते हैं। मनोवैज्ञानिक हर समस्या का समाधान नहीं कर सकता।
भारत जैसी जगह जहां ओलम्पिक में गिने-चुने पदक ही आते हैं, थोड़े से भी कामयाब खिलाड़ी से बेहद उम्मीदें की जाती हैं। इसे लेकर दीपिका ने कहा कि उम्मीदें ही तो दबाव बनाती हैं। नए खिलाड़ी को कोई नहीं जानता। वह बिंदास होकर खेलता है, किसी के हारने-जीतने से उस पर कोई असर नही पड़ता। बड़ा खिलाड़ी सोचता है कि अगर वह हारा तो क्या होगा, लेकिन वह अब ऐसा नहीं सोचती और बस तीरंदाजी पर अपना ध्यान लगाना चाहती हैं।
कभी टाटा आर्चरी एकेडमी से अपनी तीरंदाजी की शुरुआत करने वाली लक्ष्मीरानी मांझी भी रियो का टिकट पाकर बेहद खुश हैं। विश्व चैम्पियनशिप में रूसी चुनौती को लेकर उन्होंने कहा कि दरअसल रूसी खिलाड़ी की रैंकिंग दुनिया में तीसरी है जबकि वह 11वीं रैंकिंग पर हैं। वह इन सबसे ध्यान हटाकर खेली, अब उनका एकमात्र लक्ष्य रियो पर ध्यान केंद्रित करना है।
रिमिल का मानना है कि फाइनल से रूस से अधिक दबाव टीम पर शुरूआती दौर में जर्मनी की टीम से था। रूस के खिलाफ तो वह नर्वस थीं। दरअसल जर्मनी से जीतकर ओलम्पिक में जगह बनानी थी, जबकि रूस, कोरिया जैसी मजबूत टीम को हराकर फाइनल खेल रही थी इसलिए दबाव था। उन्हें खुशी है कि टीम ने फाइनल में दमदार खेल दिखाया और फैसला टाई में हुआ। रिमिल मानती है कि अंतराष्ट्रीय स्तर पर कामयाब होने के लिए दिमागी रूप से मजबूत होना पड़ेगा।
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