Wednesday 5 November 2014

कितने सच्चे सचिन

भारत रत्न सचिन तेंदुलकर बिन्दास क्रिकेटर ही नहीं अपने 25 साल के खेल जीवन में बेहद सौम्य-शालीन और भद्र इंसान भी माने गये। सचिन क्रिकेट का ऐसा युग जिए जहां धनलोलुपता ने पराकाष्ठा को छुआ। सचिन भी इसका अपवाद नहीं रहे। एक कामयाब क्रिकेटर होते हुए भी उनका शानदार कप्तान नहीं होना उनके मुरीदों को हमेशा अखरता रहा। यह जानते हुए भी कि मुल्क का प्रतिनिधित्व और नेतृत्व अलग-अलग दायित्व हैं। प्रतिनिधित्व स्वयं का प्रयास तो नेतृत्व दूसरों के सकारात्मक सहयोग का सुफल होता है। सचिन ने अपनी आत्मकथा प्लेइंग इट माई वे में जो कुछ लिखा है उसमें संदेह की गुंजाइश कम है क्योंकि उनका स्वभाव विवादित कभी नहीं रहा। सचिन ने अपनी आत्मकथा में गुरु ग्रेग चैपल को रिंग मास्टर की संज्ञा से नवाजा है तो तेंदुलकर को उनके कप्तानी दौर में टीम के ही कुछ साथी खिलाड़ी मुशर्रफ कहा करते थे। सच कहें तो यही लोग सचिन की सफल कप्तानी राह का रोड़ा भी रहे।
सचिन तेंदुलकर निहायत शरीफ और विनम्र इंसान हैं। उनकी यही विनम्रता नेतृत्व क्षमता पर ग्रहण बन गई। सचिन ने अपनी आत्मकथा में शायद ही साथियों के असहयोग का जिक्र किया हो, पर सच यही है कि उन्हें उस समय टीम इण्डिया की कप्तानी दी गई जब पलटन में कई नकचढ़े खिलाड़ी थे तो टीम खेमेबाजी में बंटी हुई थी। उस वक्त टीम की गेंदबाजी एक क्षेत्र विशेष के गेंदबाजों के आगोश में थी। चतुर-सयाने ये खिलाड़ी न केवल अपरोक्ष रूप से सचिन की बुराई करते थे बल्कि मैदान में मनमानी इनकी फितरत थी। खेल के अनगिनत रिकॉर्ड, यश-समृद्धि और देश का सबसे बड़ा सम्मान भारत रत्न सचिन को खैरात में नहीं मिला। इंसान हो या भगवान किसी को भी मुकम्मल जहान नहीं मिलता। सचिन ने अपनी आत्मकथा में पूर्व प्रशिक्षक ग्रेग चैपल की नीयत पर जो सवाल खड़े किए हैं, वे भारतीय खेलों के कई सवालों के जवाब भी हैं। जो शख्स 25 साल के अपने क्रिकेट जीवन में हमेशा विवादों से दूर रहा हो उसने जो कुछ कहा, उसे झूठ नहीं माना जा सकता। आज अधिकांश भारतीय खेल विदेशी प्रशिक्षकों के हाथों की कठपुतली हैं। मुल्क का अरबों रुपया इन पर निसार हो रहा है। विदेशी प्रशिक्षकों का भारतीय खेलों की सेहत सुधारने की बजाय खिलाड़ियों के बीच वैमनस्यता पैदा करना निन्दनीय और अक्षम्य अपराध है। सचिन ने अपनी आत्मकथा प्लेइंग इट माई वे में चैपल को रिंग मास्टर कहा है, जोकि खिलाड़ियों पर अपने विचार थोपता था। सचिन का यह खुलासा विदेशी प्रशिक्षकों के वायदे-इरादों और उनकी नीति-नीयत व सोच को ही उजागर करता है। प्रशिक्षक का काम टीम को एकजुट कर खिलाड़ियों का खेल-कौशल निखारना होता है। यदि यही गुरु घण्टाल गुटबाजी को हवा दें तो खेलों का बंटाढार होना तय है। सचिन ने चैपल को लेकर जो कुछ लिखा है वह अतिरंजना नहीं हो सकती। सचिन हमेशा विवादों से दूर रहे, उन्होंने अपनी अदम्य क्षमता से क्रिकेट में सब कुछ हासिल किया, ऐसे में नहीं लगता कि उन्होंने सुर्खियां बटोरने के लिए चैपल पर उंगली उठाई हो। सचिन का ढाई दशक का क्रिकेट करियर, उसके अनेकों उतार-चढ़ाव, विज्ञापनों से लेकर भारतीय सेना का हिस्सा बनना, अपना रेस्तरां चलाना, राज्यसभा सांसद के रूप में राजनीति की बिसात पर चलने की कोशिश, अनेक अंतरराष्ट्रीय सम्मानों के साथ-साथ भारत का सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न प्राप्त करना विलक्षण इंसान के बूते की ही बात है। क्रिकेट में बेशुमार उपलब्धियां हासिल करने के बाद सचिन का अपनी आत्मकथा के जरिये लेखन क्षेत्र में कदम रखना भी स्वागतयोग्य है। अब तक सचिन ने जितने कार्य किए, वे विवादहीन रहे पर लेखन के क्षेत्र में आते ही उनके साथ एक विवाद जुड़ गया। अपनी आत्मकथा में सचिन ने लिखा कि 2007 के विश्व कप के पहले ग्रेग चैपल का राहुल द्रविड़ से मोहभंग होना और यह कहना कि हम लोग साथ मिलकर भारतीय क्रिकेट पर वर्षों राज कर सकते हैं, मुझे अच्छा नहीं लगा।
सचिन ने ग्रेग चैपल को ऐसा रिंग मास्टर बताया जो अपने विचार खिलाड़िय़ों पर थोपता था और खिलाड़ी क्या सोचते हैं, इसकी उसे जरा भी परवाह नहीं होती थी। जाहिर है ऐसी बात पर विवाद उठना ही था। अगर अपनी किताब में कोई किसी पर आरोप लगाएगा, तो सामने वाला भी चुप नहीं बैठेगा। अब चैपल ने सचिन के इन दावों को बेबुनियाद करार दिया है। उन्होंने कहा कि मैं वाकयुद्ध नहीं करना चाहता, लेकिन इतना साफ कहना चाहूंगा कि भारतीय प्रशिक्षक के रूप में मैंने कभी राहुल द्रविड़ के स्थान पर सचिन को लाने के बारे में नहीं सोचा था इसीलिए मुझे किताब में किए गए दावों को पढ़कर बहुत हैरानी हुई। सचिन और ग्रेग चैपल के इस अनावश्यक, असामयिक विवाद से क्रिकेट को कुछ लाभ हुआ हो या नहीं पर किताब को बैठे-बिठाए चर्चा जरूर मिल गई, जो निश्चित रूप से प्रकाशक को फायदा पहुंचाएगी। सचिन तेंदुलकर की आत्मकथा बाजार में आती, तो उनके मुरीद उसे हाथोंहाथ जरूर लेते, पर इस विवाद के बाद इस पुस्तक को अब अधिकाधिक लोग पढ़ना चाहेंगे। विगत कुछ वर्षों में सेवानिवृत्त अधिकारियों और राजनेताओं की आत्मकथात्मक किताबें काफी चर्चित, विवादास्पद रहीं, जिनके निहित मकसद देर-सबेर सामने भी आए। अब सवाल यह उठता है कि सचिन तेंदुलकर को आत्मकथा लिखकर विवाद में पड़ने की आवश्यकता क्यों और कैसे पड़ी? सचिन के जीवन के बारे में लोग निश्चित तौर पर अधिक से अधिक जानना चाहते हैं। सचिन जब तक खेले उन्हें क्रिकेट का भगवान माना गया। नयी पीढ़ी उन्हें अपना प्रेरणास्रोत मानती है, पर संन्यास के बाद सचिन का यह खुलासा उनके प्रशंसकों को भी असहज कर रहा है। सचिन का लिखा यदि सच है तो फिर भारत में विदेशी खेल प्रशिक्षकों की नीति-नीयत पर विचार करना होगा। अभी कुछ दिन पहले हॉकी प्रशिक्षक टैरी वाल्श ने भी भारतीय खेल प्राधिकरण पर उंगली उठाकर विवाद को हवा दी थी। भारतीय खेलों की गंगोत्री भ्रष्टाचार के लिए बदनाम है, बेहतर होगा मोदी सरकार भारतीय प्रशिक्षकों को ऐसा गुरु-ज्ञान दिलाए कि हमें विदेशी प्रशिक्षकों की जरूरत ही न पड़े। 

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