Wednesday, 19 November 2014

नेहरू की विरासत आज अधिक प्रासंगिक: राहुल

मोदी सरकार पर परोक्ष रूप से हमला करते हुए कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा कि देश में पंडित जवाहरलाल नेहरू की विरासत मिटाने की कोशिश की जा रही है, ऐसी कोशिशों को तुरंत रोकने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि अतीत की तुलना में यह आज अधिक महत्वपूर्ण हो गया है।
देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित नेहरू की 125वीं जयंती के मौके पर यहां आयोजित एक अंतर्राष्टÑीय सम्मेलन में राहुल ने कहा, ‘नेहरू एक प्राचीन विचार हैं, लेकिन वह जीवंत भारत का एक हिस्सा भी हैं। उनके विचार और उनकी राजनीति यहां आज ज्यादा मौजूद हैं।’ सम्मेलन में 20 देशों के प्रतिनिधियों और 29 राजनीतिक पार्टियों ने शिरकत की।
राहुल ने कहा, ‘यह महत्वपूर्ण है कि देश के लोग इस शांतिपूर्ण भारत को, नेहरू के भारत को, एक ऐसे भारत को बचाएं, जो धर्मनिरपेक्ष और सहिष्णु है।’ राहुल ने कहा,‘यह विरासत, जिसने किसी महिला या पुरुष की आवाज नहीं दबने दी और जिसके संरक्षण के लिए हम लगभग 70 सालों से संघर्ष कर रहे हैं, आज वह विरासत पहले से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण है।’ उन्होंने किसी का नाम न लेते हुए कहा, ‘कुछ लोग नेहरू की विरासत को देश से मिटाने की कोशिश कर रहे हैं।’ कांग्रेस उपाध्यक्ष ने कहा कि नेहरू विचार पुरुष थे न कि विचारक। उन्होंने कभी किसी पर अपने विचार नहीं थोपे। उन्होंने कहा, ‘भारत एक ऐसा देश है जहां लोकतांत्रिक सिद्धांत गहराई से पोषित हैं। नेहरू ने इन लोकतांत्रिक आदर्शों को विकसित और सुरक्षित किया है। इसीलिए आज भारत एक ऐसा देश है जहां आबादी का छठा हिस्सा शांतिपूर्ण माहौल में रहता है।’ उन्होंने कहा कि नेहरू का संघर्ष पूरी मानवजाति के लिए था। कांग्रेस उपाध्यक्ष ने कहा, ‘नेहरू भारत में रच-बस गए और भारत नेहरू में। नेहरू ने विपक्ष को हमेशा तरजीह दी और देश के निर्माण में भी उन्हें भागीदार बनाया।’ गांधी ने कहा, ‘ नेहरू ने उनके अधिकारों का भी बचाव किया जो उनसे सहमत नहीं रहते थे।’ उन्होंने कहा कि सच्चा लोकतंत्रीकरण केवल मताधिकार से नहीं होता बल्कि कमजोर का सशक्तीकरण भी जरूरी है। राहुल गांधी ने कहा, ‘लोकतंत्र आस्था का आचरण है। यह कोई भौतिक प्रक्रिया नहीं है जो हर पांच साल में घटती है। अपने पहले प्रधानमंत्री के कारण भारत अपने कानून के शासन के साथ उदार लोकतंत्र बना, स्वतंत्र न्यायपालिका मिली और प्रेस को भी आजादी मिली है। राहुल ने कहा कि भारत में लगभग तीस लाख स्थानीय प्रतिनिधि हैं जिनमें से आधी महिलाएं हैं। उन्होंने कहा कि नेहरू की तैयारियों ने भारत को अपनी नियति खुद तय करने की स्वतंत्रता दी। इसीलिए भारत को आज जहां खड़ा होना चाहिए था वहां खड़ा है। उन्होंने कहा कि यूरोप में लोकतांत्रिक व्यवस्था लाने के लिए दो विश्व युद्ध हुए पर भारत में अहिंसा से लोकतंत्र कायम हुआ।
नेहरूवादी सामंजस्य के सामने चुनौती: सोनिया
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कहा कि नेहरूवादी सामंजस्य के सामने आज चुनौती खड़ी है, जबकि देश इसी मजबूत बुनियाद पर खड़ा है। सोनिया ने कहा कि सिर्फ लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता और समग्रता के सिद्धांतों का पालन करने की ही आवश्यकता नहीं है, बल्कि उन्हें मजबूत करने की कठिन लड़ाई भी लड़ने की जरूरत है।
गांधी ने कहा, ‘आज के भारत में नेहरूवादी सामंजस्य के सामने चुनौती खड़ी है। यह वह दृढ़ बुनियाद है, जिस पर देख खड़ा हुआ था।’ सोनिया ने कहा कि दो दिवसीय सम्मेलन ने अंतरराष्टÑीय रुचि पैदा की है और सामान्य सत्र में स्वीकृत घोषणा पत्र नेहरू के मूल्यों के प्रति वचनबद्धता जाहिर करता है। इसके पहले पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अपने संबोधन में कहा कि नेहरू के स्वतंत्रता सेनानी, एक महान संवेदना और मजबूत प्रतिबद्धताओं के नेता थे।  उन्होंने कहा कि नेहरू ने समाजवाद को सिर्फ आर्थिक सिद्धांतों के रूप में नहीं देखा, बल्कि एक जीवन के तरीके रूप में देखा, जो व्यक्ति की आदतों और प्रवृत्ति में एक प्रभावी बदलाव लाता है। सिंह ने कहा,‘भारत के प्रथम प्रधानमंत्री के रूप में नेहरू ने सामाजिक न्याय के साथ विकास को बढ़ावा देने के लिए डिजान की गई एक व्यावहारिक कार्ययोजना तैयार की। मिश्रित अर्थव्यवस्था, जनता का सहअस्तित्व और निजी क्षेत्र नेहरू की विचार प्रक्रियाओं के एक महत्वपूर्ण अवयव थे। नेहरू के लिए समाजवाद मुख्यरूप से समता और समानता के लिए एक जुनून था।’ मनमोहन ने कहा कि नेहरू ने अपनी प्रतिभा के जरिए समाजवाद को वैश्विक संदर्भ में भारत के लिए प्रासंगिक बनाया। मनमोहन सिंह ने कहा कि नेहरू का वैश्विक दृष्टिकोण दुनिया के हर कोने में आज भी प्रासंगिक है। पूर्व प्रधानमंत्री ने कहा, ‘जहां संघर्ष और हिंसा मनुष्य के अंदर पैठ बनाती, वहा नेहरू शांति और सद्भाव की बात करते और उन्होंने एक लोकतांत्रिक व बहुपक्षीय वैश्विक व्यवस्था को बढ़ावा देने का प्रयास किया, जहां एकतरफा के बदले सामंजस्य निर्माण निर्दिष्ट सिद्धांत हो।’ मनमोहन ने कहा कि नेहरू ने भारतीयों को सिखाया कि अंतरराष्टÑीय मामलों में बगैर किसी भय या पक्षपात के स्वतंत्र होकर निर्णय लें। उन्होंने कहा, ‘नेहरू जी ने हमें एक व्यवहार्य सामंजस्य निर्माण का मूल्य भी सिखाया। यह अन्य दृष्टिकोण के लिए सहिष्णुता हासिल करने की क्षमता है।’ सिंह ने कहा कि गुटनिरपेक्ष आंदोलन (नाम) के सिद्धांत उभरते और विकासशील देशों को अंतर निर्भर वैश्विक अर्थव्यवस्था व राजनीति के समान प्रबंधन के लिए सहयोग में मददगार हो सकते हैं। उन्होंने कहा, ‘वास्तव में नाम के प्रमुख सिद्धांत अभी भी प्रासंगिक हैं और 21वीं सदी में विश्व राजनीति में एक अधिक सक्रिय भूमिका निभाने में भारत की मदद कर सकते हैं।’ मनमोहन ने कहा, ‘नेहरू के लिहाज से भारत का विचार अनेकता में एकता का विचार है।’ उन्होंने कहा, ‘बहुलतावाद का विचार, यानी जहां सभ्यताओं का संघर्ष न हो, सभ्यताओं के एक संगम की दिशा में काम करने की संभावना की जड़ में निहित है। इस विचार की सार्वभौमिक प्रासंगिता है। संघर्ष और नफरत से घिरी दुनिया में ये विचार सूर्य की एक किरण की तरह है, जो हममें आशा का संचार करते हैं और आम मानवता में हमारे विश्वास को तरोताजा करते हैं।’

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