Wednesday 26 November 2014

नृत्य साम्राज्ञी सितारा देवी ने छोड़ दी दुनिया

मुंबई। तीन घंटे की एकल प्रस्तुति से कविगुरु रवींद्रनाथ टैगोर को प्रभावित करने वाली प्रख्यात कथक नृत्यांगना सितारा देवी का लम्बी बीमारी के बाद मुंबई के जसलोक अस्पताल में निधन हो गया। वह अपने पीछे शोक संतृप्त साथी कलाकारों और प्रशंसकों की एक आकाश गंगा छोड़ गई हैं। उनके परिजनों ने बताया, वह 94 वर्ष की थीं, और लम्बी बीमारी से जूझने के बाद उनका 25 नवम्बर 2014 को निधन हो गया।
कलाकारों और अभिनेताओं के अलावा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सांस्कृतिक प्रतीक सितारा देवी को श्रद्धांजलि अर्पित की और कथक में उनके सराहनीय योगदान को भी याद किया। सितारा देवी जसलोक अस्पताल में वेंटिलेटर पर थीं। उनकी हालत ज्यादा बिगड़ गई थी। इससे पहले वह कम्बाला हिल हॉस्पिटल एण्ड हर्ट इंस्टीट्यूट में भर्ती थीं। नृत्यांगना सितारा देवी के दामाद राजेश मिश्र ने बताया, ‘वह अपने पीछे एक बेटा और बेटी छोड़ गई हैं। उनका एक बेटा एक शो के लिए विदेश गया है, उसके वहां से आने के बाद उनका अंतिम संस्कार होगा।’ संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, पद्मश्री और कालिदास सम्मान जैसे पुरस्कारों से सम्मानित सितारा देवी का जन्म 1920 में कोलकाता के कथक नर्तक पंडित सुखदेव महाराज के परिवार में धनलक्ष्मी के रूप में हुआ था।
सितारा 11 वर्ष की थीं, तभी उनका परिवार मुंबई आकर बस गया था। यहां उन्होंने अपने तीन घंटे के एकल गायन से नोबेल पुरस्कार विजेता टैगोर को प्रभावित किया था। अगले छह दशकों में वह कथक नृत्य शैली की दिग्गज नृत्यांगना बन गर्इं। बॉलीवुड में कथक शैली को लाने का श्रेय सितारा देवी को ही दिया जाता है। प्रसिद्ध कथक नर्तक पंडित बिरजू महाराज ने कहा, ‘अपने भाई-बहनों और समकालीनों के बीच अपने नाम के जैसे ही वह एक सितारे की तरह चमकती थीं।’
सितारा देवी ने कथक अपने पिता अच्छन महाराज और अपने चाचा लच्छू और शंभू महाराज से सीखा था। 1932 के करीब उन्होंने एक फिल्म निर्माता और नृत्य निर्देशक निरंजना शर्मा ने उन्हें काम पर रखा। उन्होंने ‘ऊषा हरण’ (1940), ‘नगीना’ (1951), ‘रोटी’ और ‘वतन’ (1954), ‘अंजली’ (1957) और महाकाव्य ‘मदर इंडिया’ (1957) में उन्होंने नृत्य दृश्य किए। मदर इंडिया में उन्होंने एक होली  के गाने पर लड़के के परिधान पहनकर नृत्य किया था। हिंदी फिल्म दुनिया से दिग्गज लता मंगेशकर, अमिताभ बच्चन, मनोज कुमार, सरोज खान समेत कई अन्य लोगों ने नृत्यांगना सितारा देवी के योगदान को याद किया। सितारा देवी ने बीच में ही अपनी स्कूल की पढ़ाई छोड़ दी और ढेरों विषम परिस्थितियों के बाद भी उन्होंने अपने द्वारा चुनी गई विधा में उत्कृष्टता हासिल की। और कथक को लड़कियों के नाचने के प्रक्षेत्र से उसे वैश्विक परिदृश्य में लाने का श्रेय भी उन्हीं को जाता है। 16 साल की आयु में भारत के पहले नोबेल पुरस्कार विजेता टैगोर के सामने सितारा के प्रदर्शन ने उन्हें स्तब्ध कर दिया था, जिसके बाद उन्होंने सितारा देवी को ‘नृत्य साम्राज्ञी’ की उपाधि से नवाजा था। सितारा देवी वाराणसी के एक साधारण लेकिन बहुत ही प्रतिभावान ब्राह्मण परिवार की थीं। उनका परिवार पहले कोलकाता में रहता था, बाद में मुंबई जाकर बस गया।  सितारा देवी को पद्मश्री समेत कई सम्मान मिले। लेकिन उन्होंने पद्मभूषण स्वीकार करने से यह कहते हुए इनकार कर दिया था कि कथक में उन्होंने अपार योगदान दिया है, इसीलिए उन्हें भारतरत्न मिलना चाहिए। ऐसा हालांकि हो नहीं पाया और कथक नाट्य शैली का एक सितारा मंगलवार की सुबह धुंधला गया। 

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