ग्वालियर और बहादुरा के लड्डू
समय दिन-तारीख देखकर आगे नहीं बढ़ता। वह चलायमान है। 90 साल पहले ग्वालियर में जिस अटल्ला का अवतरण हुआ था वह शख्स आज भारतीय राजनीति का अजातशत्रु है। हर साल 25 दिसम्बर की तारीख आती है। दुनिया क्रिसमस का त्योहार तो राजनीतिज्ञ भारतीय राजनीति के अटल पुरोधा अटल बिहारी बाजपेयी का जन्मोत्सव मनाना नहीं भूलते। भारतीय राजनीति के क्षितिज पर अटल का अवतरण एक सुखद लम्हे की मानिंद है। स्वच्छ छवि, कविमना, पत्रकार, सरस्वती पुत्र अटल बिहारी वाजपेयी, एक व्यक्तिका नाम नहीं वरन उस राष्ट्रीय विचारधारा का नाम है, जिसने अपनी कार्यशैली से राजनेताओं को नैतिकता का न केवल पाठ पढ़ाया बल्कि उसे ताउम्र जिया भी।
अटल जी के जन्मदिन को लेकर बेशक भ्रांतियां हों पर सरकारी दस्तावेजों में अटल जी का जन्म 25 दिसम्बर, 1924 को ब्रह्ममुहूर्त में ग्वालियर में हुआ था। पुत्र होने की खुशी में जहां बाजपेयी परिवार में फूल की थाली बजाई जा रही थी वहीं पास के गिरजाघर में घंटियों और तोपों की आवाज के साथ प्रभु ईसा मसीह का जन्मोत्सव मन रहा था। अटल नाम उनके बाबा श्यामलाल बाजपेयी का दिया हुआ है। उनकी मां कृष्णादेवी प्यार-दुलार से उन्हें अटल्ला कहकर पुकारती थीं। अटल के पिता पंडित कृष्ण बिहारी बाजपेयी न केवल शिक्षक थे बल्कि उनकी हिन्दी, संस्कृत और अंग्रेजी भाषाओं में मजबूत पकड़ थी। विद्वान पंडित कृष्णबिहारी बाजपेयी का ग्वालियर राज्य के सम्मानित कवियों में भी शुमार था। कालान्तर में उनके द्वारा रचित ईश प्रार्थना मध्यप्रदेश के सभी विद्यालयों में कराई जाती थी। डॉ. शिवमंगल सिंह सुमन कविमना पंडित कृष्णबिहारी बाजपेयी के शिष्य थे। यह कहना अतिश्योक्तिन होगी कि अटल जी को कवि रूप विरासत में मिला है।
अटल जी की शिक्षा-दीक्षा ग्वालियर में ही हुई। 1939 में जब वे ग्वालियर के विक्टोरिया कॉलेज (अब एसएलबी) में अध्ययन कर रहे थे तभी से वह राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की शाखाओं में जाने लगे थे। वह अपने मित्र खानवलकर के साथ प्रत्येक रविवार को आर्यकुमार सभा के कार्यक्रमों में भाग लेते थे। यहीं उनकी मुलाकात शाखा के प्रचारक नारायण जी से हुई। अटल जी उनसे बहुत प्रभावित हुए और रोज शाखा जाने लगे। 1942 में लखनऊ शिविर में अटल जी ने अपनी कविता हिन्दू तन-मन, हिन्दू जीवन, जिस ओजस्वी और तेजस्वी शैली में पढ़ी थी उसकी अनुगूंज आज भी लोगों के जेहन में है। सच कहें तो अटल जी की वाणी ही उनकी पहचान है, यही वजह है कि उनका भाषण सुनने लोग दूर-दूर से आते थे। भाषण के बीच व्यंग्य-विनोद की फुलझड़ियां श्रोताओं के मन में कभी मीठी गुदगुदी तो कभी ठहाकों के साथ प्रफुल्लित कर देती हैं। जनश्रुतियों पर यकीन करें तो अटल जी ने अपना पहला भाषण कक्षा पांच में पढ़ाई के समय दिया था। उस दिन रट कर भाषण देने की अटकन ने ही अटल को अटल वक्ता बना दिया। उच्चकोटि की वक्तव्य शैली के चलते ही अटल जी वाद-विवाद प्रतियोगिताओं के सरताज बने।
मीठा खाए, मीठा बोले
अटल जी स्वादिष्ट भोजन के प्रेमी हैं। मिठाई तो उनकी मानों कमजोरी रही है। वह ग्वालियर में जब भी रहे बहादुरा के लड्डू खाना कभी नहीं भूले। काशी से जब चेतना दैनिक का प्रकाशन हुआ तो अटल जी उसके संपादक नियुक्त किये गये। शाम को प्रेस से लौटते समय राम-भंडार नामक मिठाई की दुकान पड़ती थी। उस दुकान के मीठे परवल सभी को बहुत पसंद थे। अटल जी भी उसके दीवाने थे किन्तु उस समय इतने पैसे नहीं हुआ करते थे कि रोज खाया जाए। यही वजह है कि दुकान आने से पहले ही वह कहने लगते थे कि आंखें बन्द कर लो वरना ये परवल बड़ी पीड़ा देंगे।
लेखन में भी कोई जवाब नहीं
अटल जी का लेखन में भी कोई तोड़ नहीं है। वह लम्बे समय तक राष्ट्रधर्म, पांचजन्य और वीर अर्जुन आदि राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत पत्र-पत्रिकाओं से जुड़े रहे और उनका सम्पादन भी किया। ये निर्विवाद सत्य है कि अटल जी नैतिकता का पर्याय हैं। वह पहले कवि और साहित्कार उसके बाद राजनीतिज्ञ हैं। उनकी इंसानियत कवि मन की कायल है।
छोटे मन से कोई बड़ा नहीं होता,
टूटे मन से कोई खड़ा नहीं होता।
मन हार कर मैदान नहीं जीते जाते,
न मैदान जीतने से मन ही जीता जाता है।
अटल जी एक सच्चे इंसान और लोकप्रिय जननायक हैं। वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना से परिपूर्ण, सत्यम-शिवम-सुन्दरम के पक्षधर अटल जी का सक्रिय राजनीति में पदार्पण 1955 में हुआ। वे देशप्रेम की अलख जगाते हुए 1942 में जेल भी गए। अटल जी का सादा जीवन, उच्च विचार, सत्यनिष्ठा और नैतिकता ही वे खूबियां हैं जिनके विरोधी भी हमेशा कायल रहे हैं।
1994 में मिला सर्वश्रेष्ठ सांसद का सम्मान
अटल जी की साफ-सुथरी छवि और सबको साथ लेकर चलने की इच्छाशक्ति के चलते ही उन्हें 1994 में सर्वश्रेष्ठ सांसद एवं 1998 में सबसे ईमानदार व्यक्ति का सम्मान हासिल हुआ। 1992 में पद्मविभूषण जैसी बड़ी उपाधि से अलंकृत अटल जी को 1992 में ही हिन्दी गौरव के सम्मान से नवाजा गया। राजनीति के क्षेत्र में अटल जी ने कई नए आयाम स्थापित किए। वे देश के पहले विदेश मंत्री हैं जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ मे हिन्दी में भाषण देकर भारत को गौरवान्वित किया था। वह राष्ट्रीय भाषा हिन्दी के प्रबल पक्षधर हैं।
गूंजी हिन्दी विश्व में,
स्वप्न हुआ साकार।
राष्ट्र संघ के मंच से,
हिन्दी का जयकार।
हिन्दी का जयकार,
हिन्द हिन्दी में बोला।
देख स्वभाषा प्रेम,
विश्व अचरज से डोला।
पांच साल रहे जनसंघ के अध्यक्ष
अटल जी भारतीय जनसंघ की स्थापना करने वालों में से एक हैं और 1968 से 1973 तक उसके अध्यक्ष भी रहे। उन्होंने अपना जीवन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक के रूप में आजीवन अविवाहित रहने का संकल्प लेकर प्रारम्भ किया था और उस संकल्प को उन्होंने पूरी निष्ठा से निभाया।
1955 में लड़ा पहला चुनाव
अटल जी ने सन 1955 में पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ा था परन्तु सफलता नहीं मिली। लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और 1957 में बलरामपुर (उत्तर प्रदेश) से जनसंघ के प्रत्याशी के रूप में विजयी होकर लोकसभा में पहुंचे। सन 1957 से 1977 तक जनता पार्टी की स्थापना तक वे बीस वर्ष तक लगातार जनसंघ के संसदीय दल के नेता रहे। मोरारजी देसाई की सरकार में 1977 से 1979 तक विदेश मंत्री रहे और विदेशों में भारत की छवि को निखारा। लोकतंत्र के सजग प्रहरी अटल बिहारी वाजपेयी ने 1997 में प्रधानमंत्री के रूप में देश की बागडोर संभाली। 19 अप्रैल, 1998 को पुन: प्रधानमंत्री पद की शपथ ली और उनके नेतृत्व में 13 दलों की गठबन्धन सरकार ने पांच वर्षों में देश के अन्दर प्रगति के नए आयाम छुए। वाजपेयी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार के पहले प्रधानमंत्री थे जिन्होंने गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री पद के पांच साल बिना किसी समस्या के पूरे किए। उन्होंने 24 दलों के गठबंधन से सरकार बनाई थी जिसमें 81 मंत्री थे।
कभी न विचलित होने वाला शख्स
परमाणु शक्ति सम्पन्न देशों की सम्भावित नाराजगी से विचलित हुए बिना उन्होंने अग्नि-दो परमाणु परीक्षण कर देश की सुरक्षा के लिये साहसी कदम भी उठाये। 1998 में राजस्थान के पोखरण में भारत का द्वितीय परमाणु परीक्षण किया जिसे अमेरिका की सीआईए को भनक तक नहीं लगने दी। अटल जी नेहरू युगीन संसदीय गरिमा के स्तम्भ हैं। जननायक अटल जी का उदार मन, आज की गलाकाट संस्कृति से बिल्कुल परे है। आत्मीयता की भावना से ओत-प्रोत, विज्ञान की भी जय-जयकार करने वाले, लोकतंत्र के सजग प्रहरी, राजनीति के मसीहा अटल जी को ईश्वर स्वस्थ दीर्घायु प्रदान करे।
समय दिन-तारीख देखकर आगे नहीं बढ़ता। वह चलायमान है। 90 साल पहले ग्वालियर में जिस अटल्ला का अवतरण हुआ था वह शख्स आज भारतीय राजनीति का अजातशत्रु है। हर साल 25 दिसम्बर की तारीख आती है। दुनिया क्रिसमस का त्योहार तो राजनीतिज्ञ भारतीय राजनीति के अटल पुरोधा अटल बिहारी बाजपेयी का जन्मोत्सव मनाना नहीं भूलते। भारतीय राजनीति के क्षितिज पर अटल का अवतरण एक सुखद लम्हे की मानिंद है। स्वच्छ छवि, कविमना, पत्रकार, सरस्वती पुत्र अटल बिहारी वाजपेयी, एक व्यक्तिका नाम नहीं वरन उस राष्ट्रीय विचारधारा का नाम है, जिसने अपनी कार्यशैली से राजनेताओं को नैतिकता का न केवल पाठ पढ़ाया बल्कि उसे ताउम्र जिया भी।
अटल जी के जन्मदिन को लेकर बेशक भ्रांतियां हों पर सरकारी दस्तावेजों में अटल जी का जन्म 25 दिसम्बर, 1924 को ब्रह्ममुहूर्त में ग्वालियर में हुआ था। पुत्र होने की खुशी में जहां बाजपेयी परिवार में फूल की थाली बजाई जा रही थी वहीं पास के गिरजाघर में घंटियों और तोपों की आवाज के साथ प्रभु ईसा मसीह का जन्मोत्सव मन रहा था। अटल नाम उनके बाबा श्यामलाल बाजपेयी का दिया हुआ है। उनकी मां कृष्णादेवी प्यार-दुलार से उन्हें अटल्ला कहकर पुकारती थीं। अटल के पिता पंडित कृष्ण बिहारी बाजपेयी न केवल शिक्षक थे बल्कि उनकी हिन्दी, संस्कृत और अंग्रेजी भाषाओं में मजबूत पकड़ थी। विद्वान पंडित कृष्णबिहारी बाजपेयी का ग्वालियर राज्य के सम्मानित कवियों में भी शुमार था। कालान्तर में उनके द्वारा रचित ईश प्रार्थना मध्यप्रदेश के सभी विद्यालयों में कराई जाती थी। डॉ. शिवमंगल सिंह सुमन कविमना पंडित कृष्णबिहारी बाजपेयी के शिष्य थे। यह कहना अतिश्योक्तिन होगी कि अटल जी को कवि रूप विरासत में मिला है।
अटल जी की शिक्षा-दीक्षा ग्वालियर में ही हुई। 1939 में जब वे ग्वालियर के विक्टोरिया कॉलेज (अब एसएलबी) में अध्ययन कर रहे थे तभी से वह राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की शाखाओं में जाने लगे थे। वह अपने मित्र खानवलकर के साथ प्रत्येक रविवार को आर्यकुमार सभा के कार्यक्रमों में भाग लेते थे। यहीं उनकी मुलाकात शाखा के प्रचारक नारायण जी से हुई। अटल जी उनसे बहुत प्रभावित हुए और रोज शाखा जाने लगे। 1942 में लखनऊ शिविर में अटल जी ने अपनी कविता हिन्दू तन-मन, हिन्दू जीवन, जिस ओजस्वी और तेजस्वी शैली में पढ़ी थी उसकी अनुगूंज आज भी लोगों के जेहन में है। सच कहें तो अटल जी की वाणी ही उनकी पहचान है, यही वजह है कि उनका भाषण सुनने लोग दूर-दूर से आते थे। भाषण के बीच व्यंग्य-विनोद की फुलझड़ियां श्रोताओं के मन में कभी मीठी गुदगुदी तो कभी ठहाकों के साथ प्रफुल्लित कर देती हैं। जनश्रुतियों पर यकीन करें तो अटल जी ने अपना पहला भाषण कक्षा पांच में पढ़ाई के समय दिया था। उस दिन रट कर भाषण देने की अटकन ने ही अटल को अटल वक्ता बना दिया। उच्चकोटि की वक्तव्य शैली के चलते ही अटल जी वाद-विवाद प्रतियोगिताओं के सरताज बने।
मीठा खाए, मीठा बोले
अटल जी स्वादिष्ट भोजन के प्रेमी हैं। मिठाई तो उनकी मानों कमजोरी रही है। वह ग्वालियर में जब भी रहे बहादुरा के लड्डू खाना कभी नहीं भूले। काशी से जब चेतना दैनिक का प्रकाशन हुआ तो अटल जी उसके संपादक नियुक्त किये गये। शाम को प्रेस से लौटते समय राम-भंडार नामक मिठाई की दुकान पड़ती थी। उस दुकान के मीठे परवल सभी को बहुत पसंद थे। अटल जी भी उसके दीवाने थे किन्तु उस समय इतने पैसे नहीं हुआ करते थे कि रोज खाया जाए। यही वजह है कि दुकान आने से पहले ही वह कहने लगते थे कि आंखें बन्द कर लो वरना ये परवल बड़ी पीड़ा देंगे।
लेखन में भी कोई जवाब नहीं
अटल जी का लेखन में भी कोई तोड़ नहीं है। वह लम्बे समय तक राष्ट्रधर्म, पांचजन्य और वीर अर्जुन आदि राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत पत्र-पत्रिकाओं से जुड़े रहे और उनका सम्पादन भी किया। ये निर्विवाद सत्य है कि अटल जी नैतिकता का पर्याय हैं। वह पहले कवि और साहित्कार उसके बाद राजनीतिज्ञ हैं। उनकी इंसानियत कवि मन की कायल है।
छोटे मन से कोई बड़ा नहीं होता,
टूटे मन से कोई खड़ा नहीं होता।
मन हार कर मैदान नहीं जीते जाते,
न मैदान जीतने से मन ही जीता जाता है।
अटल जी एक सच्चे इंसान और लोकप्रिय जननायक हैं। वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना से परिपूर्ण, सत्यम-शिवम-सुन्दरम के पक्षधर अटल जी का सक्रिय राजनीति में पदार्पण 1955 में हुआ। वे देशप्रेम की अलख जगाते हुए 1942 में जेल भी गए। अटल जी का सादा जीवन, उच्च विचार, सत्यनिष्ठा और नैतिकता ही वे खूबियां हैं जिनके विरोधी भी हमेशा कायल रहे हैं।
1994 में मिला सर्वश्रेष्ठ सांसद का सम्मान
अटल जी की साफ-सुथरी छवि और सबको साथ लेकर चलने की इच्छाशक्ति के चलते ही उन्हें 1994 में सर्वश्रेष्ठ सांसद एवं 1998 में सबसे ईमानदार व्यक्ति का सम्मान हासिल हुआ। 1992 में पद्मविभूषण जैसी बड़ी उपाधि से अलंकृत अटल जी को 1992 में ही हिन्दी गौरव के सम्मान से नवाजा गया। राजनीति के क्षेत्र में अटल जी ने कई नए आयाम स्थापित किए। वे देश के पहले विदेश मंत्री हैं जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ मे हिन्दी में भाषण देकर भारत को गौरवान्वित किया था। वह राष्ट्रीय भाषा हिन्दी के प्रबल पक्षधर हैं।
गूंजी हिन्दी विश्व में,
स्वप्न हुआ साकार।
राष्ट्र संघ के मंच से,
हिन्दी का जयकार।
हिन्दी का जयकार,
हिन्द हिन्दी में बोला।
देख स्वभाषा प्रेम,
विश्व अचरज से डोला।
पांच साल रहे जनसंघ के अध्यक्ष
अटल जी भारतीय जनसंघ की स्थापना करने वालों में से एक हैं और 1968 से 1973 तक उसके अध्यक्ष भी रहे। उन्होंने अपना जीवन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक के रूप में आजीवन अविवाहित रहने का संकल्प लेकर प्रारम्भ किया था और उस संकल्प को उन्होंने पूरी निष्ठा से निभाया।
1955 में लड़ा पहला चुनाव
अटल जी ने सन 1955 में पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ा था परन्तु सफलता नहीं मिली। लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और 1957 में बलरामपुर (उत्तर प्रदेश) से जनसंघ के प्रत्याशी के रूप में विजयी होकर लोकसभा में पहुंचे। सन 1957 से 1977 तक जनता पार्टी की स्थापना तक वे बीस वर्ष तक लगातार जनसंघ के संसदीय दल के नेता रहे। मोरारजी देसाई की सरकार में 1977 से 1979 तक विदेश मंत्री रहे और विदेशों में भारत की छवि को निखारा। लोकतंत्र के सजग प्रहरी अटल बिहारी वाजपेयी ने 1997 में प्रधानमंत्री के रूप में देश की बागडोर संभाली। 19 अप्रैल, 1998 को पुन: प्रधानमंत्री पद की शपथ ली और उनके नेतृत्व में 13 दलों की गठबन्धन सरकार ने पांच वर्षों में देश के अन्दर प्रगति के नए आयाम छुए। वाजपेयी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार के पहले प्रधानमंत्री थे जिन्होंने गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री पद के पांच साल बिना किसी समस्या के पूरे किए। उन्होंने 24 दलों के गठबंधन से सरकार बनाई थी जिसमें 81 मंत्री थे।
कभी न विचलित होने वाला शख्स
परमाणु शक्ति सम्पन्न देशों की सम्भावित नाराजगी से विचलित हुए बिना उन्होंने अग्नि-दो परमाणु परीक्षण कर देश की सुरक्षा के लिये साहसी कदम भी उठाये। 1998 में राजस्थान के पोखरण में भारत का द्वितीय परमाणु परीक्षण किया जिसे अमेरिका की सीआईए को भनक तक नहीं लगने दी। अटल जी नेहरू युगीन संसदीय गरिमा के स्तम्भ हैं। जननायक अटल जी का उदार मन, आज की गलाकाट संस्कृति से बिल्कुल परे है। आत्मीयता की भावना से ओत-प्रोत, विज्ञान की भी जय-जयकार करने वाले, लोकतंत्र के सजग प्रहरी, राजनीति के मसीहा अटल जी को ईश्वर स्वस्थ दीर्घायु प्रदान करे।
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