आॅस्ट्रेलिया के युवा क्रिकेटर फिलिप ह्यूज की मौत ने एक बार फिर बहस छेड़ दी है कि खतरनाक बाउंसरों पर रोक लगायी जाये या नहीं। खेल के दौरान सीन एबोट का बाउंसर उनकी गर्दन पर लगा और वे मैदान में ही गिर कर बेहोश हो गये। इसमें दो राय नहीं कि ह्यूज का भविष्य उज्जवल था और वे माइकल क्लार्क के विकल्प के रूप में देखे जा रहे थे। लेकिन यह भी सच है कि इस युवा खिलाड़ी को उठती गेंद से परेशानी होती थी। इसी कारण ह्यूज को आॅस्ट्रेलियाई टीम में स्थायी जगह नहीं मिल पायी थी। उनकी मौत से दुनिया अवाक रह गयी, क्योंकि इसी खिलाड़ी ने टेस्ट क्रिकेट के इतिहास में सबसे कम उम्र में दोनों पारियों में शतक जमाया था। इसलिए असमय ऐसे खिलाड़ियों का जाना क्रिकेट जगत के लिए झटका है। ऐसी बात नहीं है कि एबोर्ट ने जान-बूझ कर ह्यूज को मारा था। क्रिकेट एक खेल है जहां थोड़ी से चूक जानलेवा हो सकती है। हां, चिंता की बात यह है कि हेलमेट पहनने के बावजूद उन्हें चोट कैसे लगी।
शायद हेलमेट के डिजाइन में अब बदलाव की जरूरत महसूस की जायेगी। क्रिकेट में अब पैसा है, रोमांच है, इसलिए खतरे भी बढ़े हैं। अब कोई भी टीम हार स्वीकारना नहीं चाहती। खिलाड़ी जीत के लिए जान की बाजी लगा देते हैं। मौजूदा गेंदबाजों में धैर्य की कमी भी दिखती है। आक्रामकता भी बढ़ी है। तेज गेंदबाज के पास तो बाउंसर के रूप में घातक हथियार है ही। ऐसी बात नहीं है कि ह्यूज की मौत पहली मौत है। क्रिकेट के मैदान में भारत के रमन लांबा (ढाका में क्षेत्ररक्षण करते वक्त) की मौत हुई थी। नॉटिंघमशायर के जार्ज समर्स (1970), पाकिस्तान के अब्दुल अजीज और लंकाशायर के इयान फोली की भी मौत चोट लगने से हुई थी। मैदान में घायल होनेवालों की संख्या तो सैकड़ों में है। दुनिया में एक से एक खतरनाक गेंदबाज पैदा हुए हैं। इंग्लैंड के लारवुड को दुनिया का सबसे खतरनाक तेज गेंदबाज माना गया। 1932-33 के एशेज में आॅस्ट्रेलिया के खिलाड़ियों पर अंकुश लगाने के लिए लारवुड ने बॉडीलाइन गेंदबाजी की थी। खिलाड़ियों के शरीर को निशाना बनाया था। बिल पोंसफोर्ड जब खेल कर लौटे थे, तो उनके शरीर पर 50 से ज्यादा चोट के निशान थे। लारवुड ने ओल्डफील्ड की अंगुली तोड़ दी थी। तीन अन्य खिलाड़ियों को गेंद से बेहोश कर दिया था। वुडफूल और पोंसफोर्ड का करियर ही खत्म कर दिया था। इतनी खतरनाक गेंदबाजी के बावजूद उन्होंने माफी नहीं मांगी और कहा था कि मैंने अपने कप्तान के कहने पर ऐसी गेंदबाजी की थी। ऐसा काम उस देश (इंग्लैंड) के गेंदबाज ने किया था, जिसे क्रिकेट का जनक कहा जाता है। हालांकि, लारवुड को उस एशेज के बाद टीम से निकाल दिया गया था। सिर्फ लारवुड ही नहीं, आॅस्ट्रेलिया और वेस्टइंडीज में भी कई ऐसे खतरनाक गेंदबाज हुए हैं, जिन्हें बल्लेबाजों को घायल करने में मजा आता था। इनमें लिली, थामसन, माइकल होल्डिंग, एंडी राबर्ट्स, जूलियन, गार्नर, बेन होल्डर प्रमुख हैं। इसके बावजूद खिलाड़ी अपनी रक्षा खुद करते थे। भारत भी इसका शिकार हुआ है। 1976 में वेस्टइंडीज की टीम जब आॅस्ट्रेलिया गयी थी, तो वहां लिली और थामसन ने तबाही मचायी थी। स्टेडियम में लिली को दर्शक यह कह कर उकसाते थे-‘लिली, किल! किल! किल!’ यह सुन कर लिली और आक्रामक होते थे। वेस्टइंडीज के कालीचरण को मार कर घायल कर दिया था।
खतरनाक गेंदबाजी का खमियाजा भारतीय टीम को तब भुगतना पड़ा, जब 1976 में वह वेस्टइंडीज गयी थी। इस सीरीज में 403 रन बना भारत ने टेस्ट जीता था। उन दिनों वेस्टइंडीज के पास होल्डिंग, होल्डर, एंडी राबर्ट्स, गार्नर जैसे तूफानी गेंदबाज थे। प्रैक्टिस मैच में गावस्कर को नौंवे नंबर पर बैटिंग करनी पड़ी थी। गेंद इतनी खतरनाक फें की जा रही थी कि गावस्कर ने बल्ला फेंक कर पारी घोषित कर दी थी। टेस्ट में तो स्थिति और खराब हो गयी थी। भारत के पांच खिलाड़ी घायल हो चुके थे। विश्वनाथ की अंगुली टूट गयी थी। गायकवाड़ के कान पर गेंद लगी थी। ब्रजेश पटेल का होंठ फट गया था। चंद्रशेखर और बेदी भी घायल हो गये थे। पांच विकेट गिरने के बाद बाकी खिलाड़ी मैदान में उतरने लायक नहीं थे। यानी मैदान में बाउंसर, बीमर फेंकने की परंपरा रही है, लेकिन बेहतरीन खिलाड़ी इससे उबरने के रास्ते भी तलाशते रहे हैं। अब तो हेलमेट पहने बगैर कोई उतरता नहीं है। 1970 के पहले हेलमेट प्रचलन में नहीं था, फिर भी बल्लेबाज तेज गेंदबाजों का सामना करते थे। क्रिकेट है तो बाउंसर रहेगा ही। बेहतर है कि खिलाड़ी स्वयं को सुरक्षित रखने के लिए तकनीकी तौर पर कोई उपाय खोजें, ताकि किसी खिलाड़ी की मौत न हो। घायल होना खेल का हिस्सा है। लेकिन खिलाड़ी कम से कम चोटिल हों, इसका ख्याल होना चाहिए। एक मौत से क्रिकेट का खेल खत्म नहीं हो जाता. हां, सतर्कता बढ़ा देनी चाहिए।
अनुज कुमार सिन्हा
शायद हेलमेट के डिजाइन में अब बदलाव की जरूरत महसूस की जायेगी। क्रिकेट में अब पैसा है, रोमांच है, इसलिए खतरे भी बढ़े हैं। अब कोई भी टीम हार स्वीकारना नहीं चाहती। खिलाड़ी जीत के लिए जान की बाजी लगा देते हैं। मौजूदा गेंदबाजों में धैर्य की कमी भी दिखती है। आक्रामकता भी बढ़ी है। तेज गेंदबाज के पास तो बाउंसर के रूप में घातक हथियार है ही। ऐसी बात नहीं है कि ह्यूज की मौत पहली मौत है। क्रिकेट के मैदान में भारत के रमन लांबा (ढाका में क्षेत्ररक्षण करते वक्त) की मौत हुई थी। नॉटिंघमशायर के जार्ज समर्स (1970), पाकिस्तान के अब्दुल अजीज और लंकाशायर के इयान फोली की भी मौत चोट लगने से हुई थी। मैदान में घायल होनेवालों की संख्या तो सैकड़ों में है। दुनिया में एक से एक खतरनाक गेंदबाज पैदा हुए हैं। इंग्लैंड के लारवुड को दुनिया का सबसे खतरनाक तेज गेंदबाज माना गया। 1932-33 के एशेज में आॅस्ट्रेलिया के खिलाड़ियों पर अंकुश लगाने के लिए लारवुड ने बॉडीलाइन गेंदबाजी की थी। खिलाड़ियों के शरीर को निशाना बनाया था। बिल पोंसफोर्ड जब खेल कर लौटे थे, तो उनके शरीर पर 50 से ज्यादा चोट के निशान थे। लारवुड ने ओल्डफील्ड की अंगुली तोड़ दी थी। तीन अन्य खिलाड़ियों को गेंद से बेहोश कर दिया था। वुडफूल और पोंसफोर्ड का करियर ही खत्म कर दिया था। इतनी खतरनाक गेंदबाजी के बावजूद उन्होंने माफी नहीं मांगी और कहा था कि मैंने अपने कप्तान के कहने पर ऐसी गेंदबाजी की थी। ऐसा काम उस देश (इंग्लैंड) के गेंदबाज ने किया था, जिसे क्रिकेट का जनक कहा जाता है। हालांकि, लारवुड को उस एशेज के बाद टीम से निकाल दिया गया था। सिर्फ लारवुड ही नहीं, आॅस्ट्रेलिया और वेस्टइंडीज में भी कई ऐसे खतरनाक गेंदबाज हुए हैं, जिन्हें बल्लेबाजों को घायल करने में मजा आता था। इनमें लिली, थामसन, माइकल होल्डिंग, एंडी राबर्ट्स, जूलियन, गार्नर, बेन होल्डर प्रमुख हैं। इसके बावजूद खिलाड़ी अपनी रक्षा खुद करते थे। भारत भी इसका शिकार हुआ है। 1976 में वेस्टइंडीज की टीम जब आॅस्ट्रेलिया गयी थी, तो वहां लिली और थामसन ने तबाही मचायी थी। स्टेडियम में लिली को दर्शक यह कह कर उकसाते थे-‘लिली, किल! किल! किल!’ यह सुन कर लिली और आक्रामक होते थे। वेस्टइंडीज के कालीचरण को मार कर घायल कर दिया था।
खतरनाक गेंदबाजी का खमियाजा भारतीय टीम को तब भुगतना पड़ा, जब 1976 में वह वेस्टइंडीज गयी थी। इस सीरीज में 403 रन बना भारत ने टेस्ट जीता था। उन दिनों वेस्टइंडीज के पास होल्डिंग, होल्डर, एंडी राबर्ट्स, गार्नर जैसे तूफानी गेंदबाज थे। प्रैक्टिस मैच में गावस्कर को नौंवे नंबर पर बैटिंग करनी पड़ी थी। गेंद इतनी खतरनाक फें की जा रही थी कि गावस्कर ने बल्ला फेंक कर पारी घोषित कर दी थी। टेस्ट में तो स्थिति और खराब हो गयी थी। भारत के पांच खिलाड़ी घायल हो चुके थे। विश्वनाथ की अंगुली टूट गयी थी। गायकवाड़ के कान पर गेंद लगी थी। ब्रजेश पटेल का होंठ फट गया था। चंद्रशेखर और बेदी भी घायल हो गये थे। पांच विकेट गिरने के बाद बाकी खिलाड़ी मैदान में उतरने लायक नहीं थे। यानी मैदान में बाउंसर, बीमर फेंकने की परंपरा रही है, लेकिन बेहतरीन खिलाड़ी इससे उबरने के रास्ते भी तलाशते रहे हैं। अब तो हेलमेट पहने बगैर कोई उतरता नहीं है। 1970 के पहले हेलमेट प्रचलन में नहीं था, फिर भी बल्लेबाज तेज गेंदबाजों का सामना करते थे। क्रिकेट है तो बाउंसर रहेगा ही। बेहतर है कि खिलाड़ी स्वयं को सुरक्षित रखने के लिए तकनीकी तौर पर कोई उपाय खोजें, ताकि किसी खिलाड़ी की मौत न हो। घायल होना खेल का हिस्सा है। लेकिन खिलाड़ी कम से कम चोटिल हों, इसका ख्याल होना चाहिए। एक मौत से क्रिकेट का खेल खत्म नहीं हो जाता. हां, सतर्कता बढ़ा देनी चाहिए।
अनुज कुमार सिन्हा
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