Monday 22 December 2014

ऊर्दू का भिक्षापात्र खाली: मुनव्वर राना


इस नदी को देश की हर एक कहानी याद है,
इसको बचपन याद है, इसको जवानी याद है।
ये कहीं लिखती नहीं, ये मुंहजबानी याद है,
ऐ सियासत तेरी हर मेहरबानी याद है।
अब नदी को कौन बतलाए ये पाकिस्तान है.
ये नदी गुजरे जहां से समझो वो हिन्दुस्तान है।
मूल रूप से उत्तर प्रदेश के रायबरेली के रहने वाले हैं मुनव्वर राणा
साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता मुनव्वर राना की पुष्प सवेरा से बातचीत
देश के प्रख्यात शायर मुनव्वर राना ने अपनी शायरी के दम पर देश ही नहीं, पूरी दुनिया में अपनी चमक बिखेरी है। उनकी गजलें आम आदमी की रोजमर्रा की जिंदगी और जिंदगी की तल्ख सच्चाइयों से रूबरू कराती हैं। उनकी इसी खूबी को साहित्य अकादमी ने पहचाना है और उन्हें देश के बड़े इनाम का हकदार माना है।
मुनव्वर के हर शेर में फलसफा होता है। वह आसान लफ्जों में बहुत बड़ी बात कह देने का हुनर रखते हैं, यही वजह है कि क्या हिंदुस्तान और क्या पाकिस्तान, विश्व के हर हिस्से में उनकी शायरी के चाहने वाले मौजूद हैं। उनके चाहने वालों की ही दुआ है कि उन जैसे बेहतरीन इंसान और नामचीन शख्सियत के काव्य संकलन ‘शहदाब’ को साहित्य अकादमी पुरस्कार के लिए चुना गया है। राना हालांकि ऊर्दू को लेकर हो रही सियासत से काफी खिन्न हैं। उन्होंने कहा कि ऊर्दू का भिक्षापात्र खाली है और हमेशा खाली रहेगा। साहित्य अकादमी पुरस्कार के लिए चुने गए मुनव्वर राना ने खास बातचीत के दौरान अपने जीवन के कई अनछुए पहलुओं को उजागर किया। मूल रूप से उत्तर प्रदेश के रायबरेली के रहने वाले मुनव्वर राणा ने बातचीत की शुरुआत ही शायराना अंदाज में की।
काव्य संकलन ‘शहदाब’ के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा, ‘शहदाब में जो कुछ है वह मैंने कमोबेश उस वक्त लिखीं, जब एम्स (अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान) में भर्ती था। यह साल 2011-12 का वाकया है। घुटने का आॅपरेशन हुआ था। अस्पताल में बिस्तर पर पड़ा हुआ था। उसी समय मन में यह ख्याल आया कि जो कुछ मन में बिखरा हुआ है, क्यों न उसे समेटा जाए और उसी दौरान शहदाब पूरी हुई। यह कविताओं और गजलों का संकलन है।
राना ने कहा कि सच कहूं तो इस पुरस्कार के लिए चुने जाने की उम्मीद ही नहीं थी। पुरस्कार के लिए मैं कभी जिया ही नहीं। जब पुरस्कार की घोषणा हुई तो मैंने खुद से पूछा कि यह कैसे हो गया, तब मन में यह जवाब आया कि जिंदगी में हमने ‘अपने अंग्रेजों’ की जूतियां बहुत सीधी की हैं और यह उन ‘बड़ों’ की दुआओं का ही कमाल है। उन्होंने कहा कि साहित्य अकादमी पुरस्कार को वह अपने लिए इनाम नहीं समझते हैं। राना ने कहा, ‘बहुत-से युवा साहित्यकार, लेखक और शायर मुझे अपने कंधों पर उठाए रहते हैं, शायद इसीलिए मेरा कद कुछ ज्यादा ही मालूम होता है।’
उन्होंने कहा,‘हम नहीं चाहते कि शहर के चौराहों पर मुनव्वर राना का स्टेच्यू लगाया जाए। हम चाहते हैं कि आने वाले समय में लोग यह कहें कि मुनव्वर राणा का स्टेच्यू लगाया क्यों नहीं गया।’ देश में ऊर्दू की हालत पर मुनव्वर खासे चिंतित लगे। उन्होंने कहा कि ऊर्दू का भिक्षापात्र लेकर वोट मांगने वालों की वजह से ही इसका ऐसा हश्र हुआ है। ये लोग ऊर्दू के लिए वो नहीं करते जो उन्हें करना चाहिए। राना ने कहा, ‘ऊर्दू की हालत के लिए न तो मैं मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को दोषी मानता हूं और न ही पूर्व मुख्यमंत्री मायावती को। इसकी दशा के लिए मुसलमान वजीर दोषी हैं जो इसके लिए सरकार से कुछ नहीं मांगते। मेरी समझ से तो ऊर्दू का भिक्षापात्र खाली है और हमेशा रहेगा।’
अपनी शायरी में मां, भाई और बहन जैसे रिश्तों को अहमियत देने वाले मुनव्वर राना ने कहा कि जब तुलसीदास की महबूबा का नाम राम हो सकता है तो मुनव्वर की महबूबा का नाम ‘मां’ क्यों नहीं हो सकता। ‘महबूबा’ शब्द से उनका आशय आदर्श व्यक्तित्व से है। राना ने कहा, ‘पहले जो गजलें बनती थीं, उसमें औरत की बांह, आंख, कमर और उसके लटकों-झटकों पर बनती थीं, लेकिन आप सोचिए कि यदि एक मामूली औरत महबूबा हो सकती है तो मेरी मां क्यों नहीं हो सकती।’’
मुनव्वर ने कहा कि आज उनके साथ केवल उनकी मां की दुआ नहीं, बल्कि पूरे मुल्क और पूरे विश्व की लाखों माताओं का आशीर्वाद मिला है, जिसकी वजह से मुझे इतनी मोहब्बत मिलती है। उल्लेखनीय है कि उत्तर प्रदेश के रायबरेली में 26 नवंबर, 1951 में जन्मे मुनव्वर राना के वालिद बंटवारे के बाद पाकिस्तान नहीं गए। उनकी मां और उनके रिश्तेदार वहां चले गए, लेकिन उन्होंने हिन्दुस्तान को ही अपना मुल्क माना। बंटवारे के बाद राना अपने परिवार के साथ कलकत्ता चले गए और उनकी शुरुआती तालीम भी वहीं हुई। मुनव्वर करीब दो दर्जन अवार्ड से नवाजे जा चुके हैं। ‘मां’ को केंद्र में रखकर लिखी गई शायरी की उनकी किताब की अब तक करीब पांच लाख प्रतियां बिक चुकी हैं। मुनव्वर इसे ही अब तक का सबसे बड़ा सम्मान मानते हैं।
अपनी आने वाली किताबों के बारे में मुन्नवर राना ने बताया कि ‘तीन शहरों का चौथा आदमी’ जल्द ही बाजार में आएगी। यह किताब 912 पृष्ठों की है। इसके अलावा वह अपनी आत्मकथा भी लिख रहे हैं। बकौल राना,‘आत्मकथा तो जब आदमी मरता है तब पूरी होती है, मगर लगभग 100 पन्नों वाली मेरी आत्मकथा वर्ष 2015 के आखिर तक आ जाएगी।’

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