Friday 19 June 2015

वसुन्धरा पर रहम!

पूर्व आईपीएल प्रमुख ललित मोदी प्रकरण बेशक हनुमान की पूंछ की मानिन्द लगातार बढ़ रहा हो पर भारतीय जनता पार्टी ने शुक्रवार को राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे सिंधिया पर रहम दिखाकर न केवल उनकी कुर्सी के खतरे को टाल दिया बल्कि कांग्रेस की हसरतों पर भी पानी फेर दिया है। भाजपा ने विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को पहले ही क्लीन चिट दे रखी है। ललित मोदी को लेकर हमलावर कांग्रेस को भी पता है कि क्रिकेट के काले खेल में कमल दल ही नहीं बल्कि कई कांग्रेसियों के भी व्यावसायिक हित जुड़े हुए हैं। ललित मोदी प्रकरण में सबसे पहले सुषमा स्वराज का नाम आया। बहस उठी कि धनशोधन और फेमा उल्लंघन के आरोपी को मानवीय आधार पर मदद दी जा सकती है या नहीं? बहस ने तूल पकड़ा ही था कि बात ललित मोदी और सुषमा स्वराज के वकील पति के बीसियों साल पुराने रिश्ते तक पहुंच गई। बहस परवान चढ़ती, तभी वसुन्धरा राजे और उनके बेटे का नाम भी लपेटे में आ गया। ललित मोदी का क्रिकेट से व्यावसायिक-प्रशासनिक याराना राजस्थान क्रिकेट बोर्ड के जरिये ही परवान चढ़ा था। वसुन्धरा के बारे में कहा जा रहा है कि उन्होंने भी आव्रजन मामले में ललित मोदी की मदद की और उनके बेटे की कम्पनी में ललित मोदी ने करोड़ों रुपये लगाये। विपक्ष हमलावर हो रहा था, तभी कुछ नाम और आ जुड़े। ललित मोदी ने खुद कहा कि आव्रजन मामले में उन्हें राकांपा नेता शरद पवार, प्रफुल्ल पटेल और कांग्रेस के राजीव शुक्ला से भी मदद मिली है। पवार और शुक्ला भी भारतीय क्रिकेट बोर्ड के प्रशासक रह चुके हैं। बचाव के तर्क सबके पास हैं। सुषमा के पास मानवीय आधार का कवच है तो वसुन्धरा के पास जानकारी न होने की ढाल। पवार कह रहे हैं कि वे लंदन गये ही थे मोदी को यह बताने कि भारत आकर अदालत का सामना करो, जबकि राजीव शुक्ला कह रहे हैं कि तीन साल से उनका मोदी से सम्पर्क ही नहीं है। आरोप और बचाव की इस लुका-छिपी में बस एक बात नहीं पूछी जा रही कि धन की गंगोत्री जहां से फूटती है, वहां बाघ और बकरी अपना स्वभावगत बैर भूलकर आखिर एक साथ पानी क्यों पीते हैं? भारतीय क्रिकेट कण्ट्रोल बोर्ड की जहां तक बात है, उसका दुनिया की सबसे धनी खेल संस्थाओं में शुमार है और ललित मोदी प्रकरण ने साबित किया है कि बात धन की ऐसी सदानीरा नदी की हो तो नेता,अभिनेता, व्यापारी, नौकरशाह सब अपनी स्वभावगत दूरी को परे कर पारस्परिक लाभ की ऐसी पारिवारिकता विकसित कर लेते हैं, जिसे भेद पाना सवा अरब लोगों के लोकतंत्र के लिए अकसर बहुत मुश्किल होता है। राजनीति में नैतिकता का जिस कदर क्षरण हो रहा है, उसे देखते हुए जो उम्मीद थी वही हुआ। सुषमा और वसुन्धरा न केवल बच गर्इं बल्कि ललित मोदी को भी एक न एक दिन दूध का धुला साबित कर दिया जाये तो अचरज नहीं होना चाहिए।

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