Monday 15 June 2015

शिक्षा का सच

इन दिनों देश भर में आम आदमी पार्टी के विधायक जितेन्द्र तोमर और विशेष रवि की फर्जी डिग्री का मामला ज्वलंत मुद्दा बना हुआ है। विरोधी दल आप पर न केवल तंज कस रहे हैं बल्कि चाहते हैं कि इन्हें पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया जाये। देखा जाये तो आप के विधायक ही नहीं दूसरे दलों के नेताओं पर भी ऐसे आरोप हैं। राजनीतिक दल तात्कालिक लाभ के लिए ऐसे मुद्दों को हवा तो देते हैं लेकिन स्वार्थ सिद्ध होते ही उन्हें आसानी से दबा दिया जाता है। राजनीतिक लाभ-हानि के इस खेल में यह चिन्ता किसी को नहीं है कि आखिर हमने कैसी सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक व्यवस्था कायम की है कि हुनर और कौशल से ज्यादा डिग्रियों को महत्व दिया जाता है। अपने नौजवानों, नौनिहालों के भविष्य के साथ हम कैसा खिलवाड़ कर रहे हैं कि वे आज ज्ञानप्राप्ति से ज्यादा अंकप्राप्ति के प्रयासों को तरजीह देते हैं। अंकप्राप्ति के इन प्रयासों का ही नतीजा है कि हर वर्ष शैक्षणिक घोटाले हो रहे हैं। घोटालों की इस प्रवृत्ति को फिल्म मुन्ना भाई एमबीबीएस में बखूबी उजागर किया गया है लेकिन फिल्म का कोई सकारात्मक असर समाज पर पड़ता नहीं दिख रहा। अफसोस की बात है कि विद्यालयीन, महाविद्यालयीन परीक्षाओं में नकल करने की नित नई तरकीबें ढूंढ़ी जा रही हैं, जबकि जरूरत शिक्षा के स्तर में सुधार की होनी चाहिए। इस संदर्भ में केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के आॅल इण्डिया प्री मेडिकल टेस्ट की परीक्षा के नतीजे पर रोक का फैसला लगाते हुए सर्वोच्च न्यायालय की सीबीएसई को यह टिप्पणी महत्वपूर्ण है कि आपका पूरा सिस्टम फेल है तो परीक्षा सिस्टम भी पूरी तरह पुराना हो चुका है। अब सूचना प्रौद्योगिकी के जमाने में आपको परीक्षा के नए तरीके अपनाने होंगे। न्यायालय ने बोर्ड के वकील से कहा, अगर एक भी गलत शख्स को प्रवेश मिल जाता है तो क्या हम दिन-रात मेहनत करने वाले अपने होनहार छात्रों का बलिदान नहीं दे रहे हैं? सर्वोच्च न्यायालय की चिन्ता को सिरे से खारिज नहीं किया जा सकता। अभी कुछ दिनों पहले की ही बात है जब दिल्ली विश्वविद्यालय के स्कूल आॅफ ओपन लर्निंग में कई पेपर लीक हुए थे। मध्यप्रदेश का व्यापम घोटाला तो अनेक रहस्यमयी परतों में दबा ही है, जिसमें संदिग्ध सम्बन्धितों के प्राण निकल रहे हैं पर सच सामने नहीं आ रहा। विद्यालयों से लेकर व्यावसायिक परीक्षाओं तक ऐसे घोटाले इस बात का सूचक हैं कि हमारी शिक्षा व्यवस्था और उससे जुड़ी रोजगार व्यवस्था में नकल की जड़ें काफी गहरी पैठ बना चुकी हैं। आज की पीढ़ी जिस शैक्षणिक व्यवस्था को देख रही है, वह एक अंधेरे कुएं की तरह है, जिसमें जिज्ञासा, शोध, नैतिकता, मेहनत, ईमानदारी जैसे शब्दों के गुम होने का खतरा बरकरार है। जब तक हम व्यवस्था सुधार की पहल नहीं करते तब तक शिक्षा में फर्जीवाड़ा चलता ही रहेगा।

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