Wednesday 17 June 2015

खानपान की चिन्ता

सांप निकलने के बाद लकीर पीटना हमारी आदत में शुमार हो चुका है। इन दिनों मैगी नूडल्स के खिलाफ हम जो रंज दिखा रहे हैं, वह भी कुछ ऐसा ही प्रयास है। यह सही है कि मैगी नूडल्स में तय मानकों से अधिक सीसा की मात्रा स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है, पर सवाल यह उठता है कि हम दैनंदिन जिस खानपान पर जीवन यापन कर रहे हैं, वह कितना शुद्ध है। मैगी नूडल्स के खिलाफ भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण ने जो तत्परता दिखाई है, ऐसी तत्परता भारत में बन रही खाद्य वस्तुओं की जांच में कब अमल में लाई जाएगी। डिब्बाबंद आहार से सेहत पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभाव को लेकर पहले भी कई अध्ययन आए और इनकी गुणवत्ता पर कड़ाई से नजर रखने की जरूरत रेखांकित की गई, पर तब इस मामले में कोई संजीदगी नहीं दिखाई दी थी। आज घर-घर की रसोई पर उस बाजार का कब्जा हो चुका है, जहां मिलावटखोरी दस्तूर बन गई है। आज शायद ही ऐसा कोई परम्परागत भोजन हो, जिसे पैकेटों में बंद करके बेचने की तरकीब न निकाल ली गई हो। डिब्बाबंद खाद्य पदार्थों का कारोबार निरंतर फैल रहा है। नामी देशी-विदेशी कम्पनियां सेहत और स्वाद के दावे के साथ लोगों के खानपान की आदतों को बदलने और बिक्री बढ़ाने की नई-नई कोशिशें अमल में ला रही हैं। अपने उत्पाद की बिक्री और विश्वसनीयता को बढ़ाने की खातिर विज्ञापनों में फिल्म, खेल आदि क्षेत्रों की नामचीन हस्तियों का सहारा लिया जा रहा है। नामी-गिरामी कम्पनियों के उत्पादों पर पहली बार उंगली नहीं उठी है। कम्पनियों के प्रचार और बिक्री-तंत्र को लेकर पहले भी संदेह जताए गए, पर इनके प्रभाव को ध्यान में रखने की भूल के चलते कभी जांच पर आंच नहीं आई। नामचीन कम्पनियों की आड़ में बहुत सारे नकली उत्पाद आज बाजार में अपनी पैठ बना चुके हैं। ये उत्पाद छोटी-मोटी दुकानों सहित ढाबे और रेस्तरां आदि में खूब खप रहे हैं। इतना ही नहीं दूरदराज के इलाकों में नामी कम्पनियों के उत्पाद से मिलते-जुलते नामों वाले नकली उत्पाद भी इस्तेमाल में लाये जा रहे हैं। यह सब खाद्य पदार्थों में मिलावट का ही एक रूप है। कहने को इन पर नजर रखने के लिए हर शहर में खाद्य निरीक्षक तैनात हैं, पर वे इसे रोक नहीं पा रहे। जब भी कोई तीज-त्योहार आता है, उसके पहले यह खाद्य निरीक्षक सजगता का ढोंग कर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेते हैं। अफसोस की बात है कि गुणवत्ता-जांच के यह प्रयास कुछेक उत्पादों तक ही सीमित होते हैं। सच्चाई तो यह है कि हमारे उपभोक्ता के पास खानपान सामग्री की गुणवत्ता परखने का कोई आसान और प्रमाणिक जरिया भी तो नहीं है। बेहतर होगा हमारा भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण सांप निकलने के बाद लकीर पीटने की आदत से बाज आये।

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