केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार विकास की खातिर कुछ अधिक उतावलापन दिखा रही है। भारतीय रेलवे की स्थिति क्या है, यात्रियों को क्या-क्या परेशानियां उठानी पड़ रही हैं, इससे बेखबर रेल मंत्रालय गतिमान की गति को लेकर कुछ अधिक ही हाथ-पैर चला रहा है। मंगलवार को दिल्ली और आगरा के बीच छठवीं बार गतिमान की गति का परीक्षण किया गया। रेलवे ने दिल्ली और आगरा के बीच की दूरी को 90 मिनट में तय करने का लक्ष्य रखा है। मंगलवार को यह गाड़ी दिल्ली से आगरा एक घण्टा 54 मिनट में आई जबकि दिल्ली एक घण्टा 45 मिनट में पहुंची। भारतीय ट्रेनों के बारे में अक्सर यह जुमला सुना जाता है कि वे कभी टाइम पर नहीं आती-जातीं। इसकी वजह पर गौर करें तो पटरियों की खस्ताहालत प्रमुख कारण है। पिछले कुछ वर्षों में मेट्रो रेल कारपोरेशन ने भी कुछ अच्छे कार्य किये हैं, मसलन कोलकाता, दिल्ली, चेन्नई, मुम्बई आदि को मेट्रो ट्रेन की सौगात देने के बाद मुल्क के कई अन्य शहरों को इस सुविधा से नवाजने के प्रयासों को अच्छा कदम कहा जा सकता है। मेट्रो ट्रेन का आदर्श मॉडल बनकर उभरना देशवासियों के लिए शुभ संकेत है। इससे शहरों में नित लगते जाम के झाम से निजात के साथ ही लोगों को खर्च में भी रियायत मिलेगी। भारतीय रेलवे का समय के साथ कदमताल नेक कार्य है। आज जब दुनिया के कुछ देशों में ट्रेनों की रफ्तार हवाई जहाज से भी अधिक करने के प्रयास चल रहे हों, ऐसे समय भारतीय रेलवे का गतिमान ट्रेनों को तवज्जो देना गलत नहीं है, पर इसके लिए हमें सबसे पहले रेलवे ट्रैकों को दुरुस्त करना होगा। भारतीय रेलवे अब प्लास्टिक से डीजल बनाने की दिशा में भी कदम रखने जा रही है। यह डीजल यूरो मानक-4 श्रेणी का होगा। वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान केन्द्र ने यह तकनीक विकसित की है। यदि इसमें सफलता मिलती है तो यह कदम भारतीय रेलवे के लिए मील का पत्थर साबित होगा। इससे भारतीय ट्रेनों, यात्री सुविधाओं और माल वाहन सुविधाओं का विस्तार होगा। इस तकनीक के इस्तेमाल के साथ एक बड़ी सावधानी भी बरती गई है, जिससे दूरदर्शिता ज्ञात होती है। यह डीजल खुले बाजार में नहीं बेचा जाएगा। इससे भारतीय रेलवे को स्वावलम्बन में मदद मिलेगी। स्वदेशी तकनीक के विकास से जहां भारतीय श्रम कौशल को रोजगार मिलेगा वहीं हमारी आत्मनिर्भरता भी बढ़ेगी। भारतीय रेलवे के सम्पूर्ण कायाकल्प की जहां तक बात है, उसे विकसित देशों के बराबर रेलवे नेटवर्क खड़ा करने में अभी लम्बा वक्त लगेगा। इस बार सुरेश प्रभु का रेलवे बजट जहां जमीनी रहा वहीं किसी भी प्रदेश के लिए ट्रेनों की घोषणा का दिखावा न करना और भी अच्छी बात रही। गतिमान की गति पर चिन्ता करने की बजाय सबसे पहले रेलवे को अपनी खस्ता हालत सुधारने की तरफ ध्यान देना चाहिए। रेलवे की हालत सुधरेगी तो विकास खुद-ब-खुद होगा। ट्रेनों की गति बढ़ाने से पहले भारतीय रेलवे को अपने मुसाफिरों को सुविधा और भयमुक्त वातावरण मुहैया कराने की दिशा में ठोस प्रयास करने चाहिए।
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