Thursday, 18 June 2015

काली करतूतों की क्रिकेट

‘काजल की कोठरी में कितनोें सयानों जाये, एक लीक लागिहै पै लागिहै।’ जी हां भारत में क्रिकेट काजल की कोठरी ही है, इसके सम्पर्क में जो आयेगा, वह दागी कहलायेगा। क्रिकेट ने भारत को पहचान दी तो उसके मुरीदों ने भारतीय क्रिकेट कण्ट्रोल बोर्ड को दुनिया की सबसे समृद्ध खेल संस्था बनाने का विलक्षण कार्य किया। जहां पैसा होगा वहां रंजोगम तो होना ही है। भारत ने इण्डियन प्रीमियर लीग के बहाने जहां दुनिया भर में अपने मुरीद पैदा किये वहीं हर क्रिकेटर की इस मंच पर खेलने की ख्वाहिश इसे विशेष दर्जा प्रदान करती है। आईपीएल के आठ संस्करणों के संस्मरण बहुत अच्छे नहीं कहे जा सकते। इस आयोजन से जुड़ी तमाम तरह की विसंगतियों ने क्रिकेटप्रेमियों को खासा निराश किया है। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे सिंधिया की ललित मोदी से सन्निकटता को लेकर जो हायतौबा मची है उसे हम पारिवारिक दोस्ती या सामान्य शिष्टाचार कहें तो ज्यादा उचित होगा। सच्चाई तो यह है कि भारतीय क्रिकेट के महासागर में कमोबेश हर राजनीतिज्ञ ने किसी न किसी रूप में गोता जरूर लगाया है।
अनैतिक परम्पराओं, महत्वाकांक्षाओं, राजनीतिक जोड़-तोड़ और आनन-फानन में धन जुटाने की लालसा से क्रिकेट तो जरूर बदनाम हुई लेकिन राजनीतिज्ञों का इससे लगाव कम होने की बजाय लगातार बढ़ता ही जा रहा है। राजनीतिक गलियारों में इस बात की चर्चा है कि प्रधानमंत्री मोदी सुषमा स्वराज और वसुन्धरा राजे को लेकर आखिर चुप क्यों हैं? इसकी वजह भी मोदी का क्रिकेट से जुड़ाव ही है। प्रधानमंत्री बनने से पूर्व मोदी भी गुजरात क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष रहे हैं। अब यह दायित्व भाजपा के राष्टÑीय अध्यक्ष अमित शाह के पास है। आज जिस ललित मोदी को लेकर राजनीति हो रही है कालांतर में मुल्क के सैकड़ों राजनीतिज्ञ उनसे दोस्ती को अपना सौभाग्य समझते थे। मोदी ही हैं जिन्होंने इण्डियन प्रीमियर लीग के बहाने बीसीसीआई को धन्नासेठ बनाया। आज ललित मोदी की छवि एक चालबाज और भगोड़े के रूप में की जा रही है। एक उद्योगपति घराने से ताल्लुक रखने वाले इस शख्स ने यदि क्रिकेट को पैसे की मशीन बनाने में रुचि न ली होती तो सच मानिए आज भी हमारे क्रिकेटर दोयमदर्जे का जीवन बसर कर रहे होते। क्रिकेट में भ्रष्टाचार की जड़ें कितनी गहरी पैठ बना चुकी हैं, यह बात किसी से छिपी नहीं है। सिर्फ आयोजक ही नहीं भ्रष्टाचार के मोहपाश में अनगिनत खिलाड़ी और खेलनहार भी फंसे हुए हैं। सुषमा स्वराज और वसुन्धरा राजे को लेकर राजनीतिज्ञों की अलग-अलग राय इसी बात का  प्रमाण है कि क्रिकेट में और भी दागी हैं, जिन्हें अपने नाम उजागर होने का डर है। आज सुषमा स्वराज पर उन कसौटियों पर खरा उतरने की जवाबदेही है जिनके सहारे वह और उनकी पार्टी पिछली सरकार को निशाने पर रखती रही है। ललित मोदी की विदेशी मुद्रा कानून उल्लंघन मामले में प्रवर्तन निदेशालय को तलाश है, उनके नाम ब्लू कॉर्नर नोटिस जारी हो चुका है और वह लंदन में एक तरह से निर्वासित जीवन बिता रहे हैं। ऐसा व्यक्ति अगर मानवीय आधार पर कोई अपील करता है, तो सुषमा स्वराज जैसे वरिष्ठ एवं अनुभवी राजनेता से इतनी उम्मीद तो की ही जानी चाहिए कि उसकी कोई भी मदद करते समय वे सम्बन्धित पक्षों को इसकी जानकारी देतीं और उन्हें विश्वास में लेतीं। सवाल यह भी कि ललित मोदी को यदि अपनी कैंसर पीड़ित पत्नी के उपचार के लिए इंग्लैण्ड से पुर्तगाल जाना ही था, तो उन्होंने मानवीय आधार पर इसकी अनुमति देश-विदेश की किसी अदालत से मांगने की बजाय सीधे विदेश मंत्री से ही क्यों मांगी? दरअसल, सुषमा के पति, सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील स्वराज कौशल की ललित मोदी से 20 साल पुरानी दोस्ती है और वे ललित मोदी को पिछले कई सालों से कानूनी सलाह दे रहे हैं। इतना ही नहीं, सुषमा स्वराज की वकील बेटी बांसुरी कौशल भी पिछले सात साल में कई बार अदालत में ललित मोदी की पैरवी कर चुकी हैं। ललित मोदी और वसुन्धरा राजे की नजदीकियों की जहां तक बात है वसुंधरा राजे की मां राजमाता विजया राजे सिंधिया और ललित मोदी के पिता कृष्ण कुमार मोदी दोस्त थे। इसलिए अगली पीढ़ी में दोस्ती होना अचरज की बात नहीं थी। मुख्यमंत्री वसुंधरा न केवल तेज-तर्रार हैं बल्कि उनकी राजस्थान में तूती बोलती है। ललित मोदी ने इसी का लाभ उठाते हुए राजस्थान को अपना आशियाना बनाने की कोशिश की। वह न केवल राजस्थान क्रिकेट के अध्यक्ष बने बल्कि उन्होंने 2005-06 में जयपुर के प्रतिष्ठित और बेहद महंगे रामबाग पैलेस होटल को ही एक तरह से अपना घर बना लिया। समय बदला, रुतबा बढ़ा और ललित मोदी ने इण्डियन प्रीमियर लीग प्रतियोगिता के प्रयास तेज कर दिए। वर्ष 2008 में आईपीएल का आगाज हुआ और तब तक वसुन्धरा राजे की सरकार राजस्थान में रही। एक समय ऐसा भी आया जब ललित मोदी और राजे के बीच दूरियां बढ़ती दिखीं। राजस्थान में 2013 के विधान सभा चुनाव से पूर्व ललित मोदी ने भाजपा टिकट वितरण प्रणाली पर न केवल सवाल उठाए बल्कि वसुन्धरा का नाम लिए ही अरुण जेटली और सांसद भूपेन यादव जैसों से सम्हल कर रहने को कहा। दिसम्बर 2013 में वसुन्धरा के पुन: राजस्थान की सल्तनत सम्हालते ही मोदी के सुर बदल गये और उन्होंने कुछ ट्वीटों के जरिए वसुन्धरा की तो तारीफ की पर उनके इर्द-गिर्द रहने वालों की निष्ठा पर लगातार सवाल उठाए। ललित मोदी को लेकर हायतौबा मचाने वाली कांग्रेस को पता है कि क्रिकेट की काली कोठरी में कब-कब और कौन-कौन गया है। आज सुषमा और वसुन्धरा को लेकर जो नौटंकी हो रही है, उसकी मुख्य वजह कमल दल में फूट डालना और प्रधानमंत्री मोदी को असहज करना है। ललित मोदी के भ्रष्टाचार को लेकर सफेदपोश वाकई संजीदा होते तो इसका पटाक्षेप कब का हो गया होता। भारतीय क्रिकेट कण्ट्रोल बोर्ड ने मोदी की जांच के लिए चिरायु अमीन के नेतृत्व में ज्योतिरादित्य सिंधिया और अरुण जेटली की तीन सदस्यीय कमेटी बनायी थी, मगर उसका क्या हुआ? आज जिस ललित मोदी को लेकर कांग्रेस हल्ला बोल रही है, उससे पूछना चाहिए कि 2012 के बाद उसके नेता कहां सोये थे। 2012 में ललित मोदी का पता करने के वास्ते एक औपचारिक परवाना ब्रिटिश फॉरेन आॅफिस भेजा गया था। यह नौटंकी नहीं तो क्या है कि एक तरफ ब्रिटेन और भारत की हुकूमतें कागजों में ललित मोदी की खोज में जुटी थीं तो दूसरी तरफ इलेक्ट्रॉनिक मीडिया लगातार ललित मोदी के साक्षात्कार दिखा रहा था। सवाल यह भी कि भारत-ब्रिटेन के बीच 1993 में प्रत्यर्पण संधि किसलिए की गयी थी? यह सच है कि ललित मोदी मामले में संप्रग सरकार ने अपने दायित्वों का ईमानदारी से निर्वहन नहीं किया लेकिन कालाधन वापस लाने का बेसुरा राग अलापने वाली भ्रष्टाचार मुक्त मोदी सरकार आखिर क्यों नहीं चाहती कि ललित मोदी को भारत लाया जाये?
(लेखक पुष्प सवेरा के समाचार संपादक हैं)

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