Thursday 18 June 2015

आडवाणी की चिन्ता

इन दिनों कमल दल का समय ठीक नहीं चल रहा है। उसकी मुश्किलें एक के बाद एक बढ़ती ही जा रही हैं। पार्टी अभी क्रिकेट की किरकिरी से सम्हली भी नहीं कि उसके वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने यह कहकर राजनीतिक गलियारे में सनसनी पैदा कर दी है कि मौजूदा दौर में लोकतंत्र को दबाने वाली ताकतें सक्रिय हो गयी हैंं जिसके कारण आपातकाल की वापसी की सम्भावना से इनकार नहीं किया जा सकता। हालांकि आडवाणी ने साफ कर दिया है कि उनका इशारा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तरफ नहीं है बावजूद इसके विपक्षी दलों ने आडवाणी के बयान को तूल देकर मोदी की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के शासनकाल के दौरान लागू किये गये आपातकाल में 19 महीने तक जेल में बंद रहने वाले आडवाणी ने कहा कि मैं नहीं सोचता कि 1975 -1977 से ऐसा कुछ किया गया हो जिससे यह आश्वासन मिले कि नागरिक अधिकारों को दोबारा निलम्बित नहीं किया जायेगा या उनका दमन नहीं किया जायेगा। हां, ऐसा आसानी से नहीं किया जा सकता लेकिन मैं यह नहीं कह सकता है कि ऐसा दोबारा नहीं हो सकता है। मैं यह नहीं कहता कि राजनीतिक नेतृत्व परिपक्व नहीं है लेकिन इसकी कमजोरी की वजह से हमें इस पर भरोसा नहीं है। 25 जून,1975 को लागू किये गये आपातकाल के 40 वर्ष पूरे होने के पहले आडवाणी ने अपने साक्षात्कार में जो कहा उसके निहितार्थ हैं। आडवाणी की भारतीय लोकतंत्र को लेकर जताई गई चिन्ता से दिल्ली सरकार को न केवल बल मिला है बल्कि भाजपा पर हमला बोलने का एक अवसर भी। केन्द्र और दिल्ली सरकार के बीच चल रही नूरा-कुश्ती का पटाक्षेप भी नहीं हुआ था कि कमल दल को विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और राजस्थान की  मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे की चालबाज-भगोड़े ललित मोदी की सन्निकटता के चलते असहज हालातों का सामना करना पड़ रहा है। मोदी की स्थिति भी सांप-छछूंदर सी हो गई है। उनकी लगातार चुप्पी पार्टी के लिए नुकसानदेह साबित हो रही है। भारतीय लोकतंत्र फिलवक्त जिस राह पर चल रहा है, उसे देखते हुए आडवाणी की चिन्ता जायज भी है। दिल्ली के मामले में मोदी सरकार ने यदि बड़े भाई का फर्ज निभाया होता तो शायद अरविन्द केजरीवाल को भाजपा पर तंज कसने का मौका नहीं मिलता। सिर्फ आम आदमी पार्टी ही नहीं कांग्रेस और दीगर दल भी प्रधानमंत्री मोदी की कार्यशैली से असहज महसूस कर रहे हैं। आडवाणी ने लोकतंत्र को लेकर जो चिन्ता जाहिर की है, उसे सिरे से खारिज नहीं किया जा सकता। राजनीतिक दलों को भाजपा पर तंज कसने की बजाय आडवाणी की चिन्ता और नसीहत पर गम्भीरता से मनन करने की जरूरत है। यह बात सही है कि मोदी सरकार सबका साथ, सबका विकास मामले में आशानुरूप प्रदर्शन नहीं कर पाई है, पर उसने कुछ अच्छे प्रयास जरूर किये हैं।

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