कन्या भ्रूण हत्याओं के लिए कुख्यात हरियाणा जैसे प्रदेश में लड़कियां निरंतर विभिन्न क्षेत्रों में अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन कर लोगों को अपनी भेदभाव वाली सोच बदलने के लिए विवश कर रही हैं। करनाल जिले के गांव बड़ौता की बेटियां अपनी बहादुरी से इस घिसी-पिटी सोच को ललकार रही हैं। बड़ौता की बेटियां कुश्ती जैसे लड़कों के लिए आरक्षित माने जाने वाले खेल में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उपलब्धियां हासिल करके देश का नाम रोशन कर चुकी हैं। कुछ लड़कियां राष्ट्रीय स्तर पर पदक जीत कर हरियाणा और अपने गांव को देश के नक्शे में चमका चुकी हैं। गांव की लड़कियों को अखाड़े व मैट पर जोर आजमाइश करते देख पूरे हरियाणा में लड़कियों की बराबरी और बहादुरी के बेहतर भविष्य की उम्मीद बंधती है।
एक समय था, जब कुश्ती को पुरुष प्रधान खेल कहा जाता था, लेकिन यहां धारा के विपरीत करनाल का गांव बड़ौता लड़कियों की कुश्ती का हब बनता जा रहा है। गांव में लड़कियों को पहलवानी करते देख लड़कों के हौसले भी पस्त हो जाते हैं। गांव की पहलवान सुजाता, सृष्टि व अन्नू खेलते हुए अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक पहुंच गई हैं। इन पहलवानों का सपना ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व करना और पदक जीतकर देश का नाम रोशन करना है। बेहद कम सुविधाओं में गांव की लड़कियां कोच पहलवान सुरेन्द्र व हरीश पूनिया के मार्गदर्शन में दिन में छह-छह घंटे पसीना बहाती हैं। मंजीत व रवि सहायक कोच हैं।
सुजाता ने विदेशों में भी जमाई धाक
जुलाई 2014 में स्लोवाकिया में विश्व कुश्ती चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीत चुकी सुजाता बहुत कम उम्र में कुश्ती से जुड़ी। खेलों में उसकी पहली बड़ी उपलब्धि प्ले फॉर इंडिया योजना के तहत स्पैट क्वालीफाई करके पूरे साल स्कॉलरशिप लेना था। इससे सुजाता का आत्मविश्वास भी बढ़ा और स्कॉलरशिप के रूप में आर्थिक मदद भी मिली। कन्याकुमारी में 2013 में आयोजित राष्ट्रीय 16वीं फ्री स्टाइल सब-जूनियर केडेट प्रतियोगिता में 38 किलोग्राम भार वर्ग में प्रथम स्थान प्राप्त किया। श्रीनगर में 2014 में 17वीं राष्ट्रीय गर्ल सब जूनियर चैंपियनशिप में वह पहले स्थान पर आई। स्लोवाकिया में विश्व कुश्ती चैंपियनशिप में सुजाता ने कजाकिस्तान और रूस के प्रतिद्वंद्वियों को कड़े मुकाबले में पटखनी दी। इसके बाद जापान की पहलवान से हारने पर उसे कांस्य पदक मिला। 11वीं कक्षा में पढ़ रही सुजाता ने बताया कि उनके पिता रणधीर और माता दर्शना का उन्हें पूरा सहयोग मिलता है। उनका भाई मंदीप तो उसे हर समय मदद करता है। उससे भी अधिक कोच का मार्गदर्शन है। उसने बताया कि लंबे समय तक खेल खेलते हुए पढ़ाई नहीं हो पाती है लेकिन इसके बावजूद उसने दसवीं कक्षा प्रथम श्रेणी में पास की।
तीन बहनें बनीं प्रेरणा
बजिन्द्र सिंह व सुदेश देवी की तीनों बेटियां कुश्ती में अपने मां-बाप ही नहीं बल्कि गांव का नाम रोशन कर रही हैं। गांव की दूसरी होनहार पहलवान सृष्टि है। मई, 2014 में थाईलैण्ड के चोनबूरी में एशियन चैंपियनशिप में सृष्टि ने कांस्य पदक प्राप्त किया। वह बैंकाक में भी अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता में कांस्य पदक जीत चुकी है। वह राष्ट्रीय स्तर पर 4 बार हरियाणा एवं अपने गांव का नाम रोशन कर चुकी है। सृष्टि ने बताया कि वह 12 साल की उम्र से ही कुश्ती के दांव-पेंच लगाना सीख रही है। 2013 में फरीदाबाद में आयोजित स्वामी विवेकानन्द हरियाणा राज्य ग्रामीण अंडर-16 प्रतियोगिता में कुश्ती स्पर्धा में पहले स्थान पर कब्जा किया। सोनीपत (हरियाणा) व औरंगाबाद (महाराष्ट्र) में आयोजित पांचवीं व छठी राष्ट्रीय ग्रामीण खेल स्पर्धा में उसने पहला स्थान लिया और स्वर्ण पदक जीते। श्रीनगर में जुलाई 2014 में 17वीं लड़कियों की सब जूनियर राष्ट्रीय खेल स्पर्धा में भी उसने स्वर्ण पदक प्राप्त किया है। वह खेलों में ही नहीं बल्कि पढ़ाई में भी अव्वल है। गांव के ही राजकीय स्कूल में 12वीं कक्षा में उसने 90 प्रतिशत अंक प्राप्त किए हैं।
सृष्टि की बड़ी बहन प्रियेता भी कुश्ती में दमखम आजमाती है। बीए प्रथम में पढ़ रही प्रियेता ने 2015 में रोहतक में आयोजित हरियाणा राज्य कुश्ती चैंपियनशिप में 46 कि.ग्रा. वर्ग में द्वितीय स्थान प्राप्त किया। हाल ही में झारखण्ड राज्य के रांची में आयोजित लड़कियों की 18वीं राष्ट्रीय कुश्ती स्पर्धा में तीसरा स्थान प्राप्त किया। वहीं 17वीं राष्ट्रीय कुश्ती स्पर्धा में द्वितीय स्थान पर रही। महाराष्ट्र के औरंगाबाद में 2014 में हुई राष्ट्रीय छठी स्वामी विवेकानन्द पायका स्पर्धा में उसने पहला स्थान अर्जित किया था। सृष्टि और प्रियता की नौवीं कक्षा में पढ़ने वाली छोटी बहन संजू भी अपने बड़ी बहनों के नक्शेकदम पर तेजी से आगे बढ़ रही है। हाल ही में हिसार में आयोजित राज्य स्तरीय कुश्ती प्रतियोगिता में उसने स्वर्ण पदक जीत कर गांव का नाम रोशन किया।
हम भी नहीं किसी से कम
गांव में ही अन्नू ने विपक्षियों को 2 बार धूल चटाकर राज्य व राष्ट्रीय स्तरीय कुश्ती स्पर्धा में स्वर्ण पदक हासिल किया है। कोच सुरेन्द्र पूनिया का दावा है कि 40 वर्ग किलोग्राम भार वर्ग में उसका मुकाबला देश में कोई नहीं कर सकता। औरंगाबाद में आयोजित प्रतियोगिता में भी उसने स्वर्ण पदक जीता था। आजकल अन्नू दिल्ली में होने वाली अंतर्राष्ट्रीय कुश्ती प्रतियोगिता की तैयारी के लिए लखनऊ में आयोजित कैम्प में पसीना बहा रही है। गांव की शिवानी भी लखनऊ कैंप में थी, लेकिन उसके हाथ में चोट लग जाने के कारण उसे वापस लौटना पड़ा। गांव में दसवीं कक्षा में पढ़ने वाली अजमेर और रईसा की बेटी शबनम ने रोहतक में राज्य स्तरीय स्पर्धा में तीसरा स्थान लिया है। शिवानी भी राज्य स्तरीय कुश्ती में अपना दमखम दिखा चुकी है।
कैसे बढ़ा काफिला
गांव बड़ौता में कुश्ती का काफिला आगे बढ़ने की कहानी सामाजिक-आर्थिक समस्याओं से जुड़ी हुई है। पहलवान लड़कियों के कोच पहलवान सुरेन्द्र पूनिया और हरीश पूनिया के मन में टीस थी कि सुविधाओं और प्रशिक्षण के अभाव में वे आगे नहीं बढ़ सके। राष्ट्रीय स्तर पर खेल चुके सुरेन्द्र पूनिया और हरीश पूनिया ने ठान लिया कि वे अपने गांव में पहलवानों की नर्सरी तैयार करेंगे। उन्हें लड़कों से अधिक लड़कियों में संभावनाएं ज्यादा दिखीं। उन्होंने बताया कि हालांकि लड़कियों के लिए माहौल अधिक अनुकूल नहीं है, लेकिन इसके बावजूद लड़कियां अपने लक्ष्य के लिए जीजान झोंक देती हैं। उन्होंने बताया कि पहलवानों के आगे बढ़ने से ही उन्हें संतुष्टि मिलती है और यही उनका लक्ष्य है।
कोच के प्रयासों से मिली कुछ सुविधा
कोच हरीश व सुरेन्द्र का कहना है कि लड़कियां गांव के राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय में बनाए गए अखाड़े में अभ्यास करती थीं, लेकिन राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उन्हें मैट पर खेलना होता था, जिससे उन्हें काफी परेशानी होती थी। पंचायत के सहयोग से स्कूल में अभ्यास के लिए हॉल बनवाया गया। उसके बाद खेल विभाग ने मैट का सहयोग किया।
सरकार दे खिलाड़ियों को आर्थिक सहायता
कोच सुरेन्द्र, हरीश व मंजीत ने बताया कि कुश्ती करने वाली लड़कियों के परिवारों की आर्थिक हालत कोई ज्यादा अच्छी नहीं है। कुछ लड़कियां तो अपने परिवार के साथ मजदूरी करती हैं। गेहूं व धान की कटाई करने के साथ ही लड़कियां हाड़तोड़ अभ्यास करती हैं। सुबह और शाम तीन-तीन घंटे कड़ा अभ्यास करते हुए उन्हें अतिरिक्त पोषाहार की जरूरत है। बाहर खेलने के लिए जाते हुए भी उन्हें आर्थिक मदद की जरूरत होती है। उन्होंने कहा कि सरकार को इन लड़कियों की आर्थिक मदद करनी चाहिए।
आॅस्ट्रेलिया से भिजवाये एक क्विंटल बादाम
पहलवान बेटियों के पोषाहार की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए आस्ट्रेलिया में रह रहे जितेन्द्र पाल ने एक क्विंटल बादाम भेजे हैं। जितेन्द्र खुद भी पहलवान रहे हैं। उन्होंने कुश्ती में करनाल केसरी का खिताब जीता है। वे जानते हैं कि पहलवानों के लिए बादाम कितना जरूरी है। कोच हरीश ने बताया कि बादाम खिलाड़ी में पानी की कमी को पूरा करता है। प्यास नहीं लगने देता।
एक समय था, जब कुश्ती को पुरुष प्रधान खेल कहा जाता था, लेकिन यहां धारा के विपरीत करनाल का गांव बड़ौता लड़कियों की कुश्ती का हब बनता जा रहा है। गांव में लड़कियों को पहलवानी करते देख लड़कों के हौसले भी पस्त हो जाते हैं। गांव की पहलवान सुजाता, सृष्टि व अन्नू खेलते हुए अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक पहुंच गई हैं। इन पहलवानों का सपना ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व करना और पदक जीतकर देश का नाम रोशन करना है। बेहद कम सुविधाओं में गांव की लड़कियां कोच पहलवान सुरेन्द्र व हरीश पूनिया के मार्गदर्शन में दिन में छह-छह घंटे पसीना बहाती हैं। मंजीत व रवि सहायक कोच हैं।
सुजाता ने विदेशों में भी जमाई धाक
जुलाई 2014 में स्लोवाकिया में विश्व कुश्ती चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीत चुकी सुजाता बहुत कम उम्र में कुश्ती से जुड़ी। खेलों में उसकी पहली बड़ी उपलब्धि प्ले फॉर इंडिया योजना के तहत स्पैट क्वालीफाई करके पूरे साल स्कॉलरशिप लेना था। इससे सुजाता का आत्मविश्वास भी बढ़ा और स्कॉलरशिप के रूप में आर्थिक मदद भी मिली। कन्याकुमारी में 2013 में आयोजित राष्ट्रीय 16वीं फ्री स्टाइल सब-जूनियर केडेट प्रतियोगिता में 38 किलोग्राम भार वर्ग में प्रथम स्थान प्राप्त किया। श्रीनगर में 2014 में 17वीं राष्ट्रीय गर्ल सब जूनियर चैंपियनशिप में वह पहले स्थान पर आई। स्लोवाकिया में विश्व कुश्ती चैंपियनशिप में सुजाता ने कजाकिस्तान और रूस के प्रतिद्वंद्वियों को कड़े मुकाबले में पटखनी दी। इसके बाद जापान की पहलवान से हारने पर उसे कांस्य पदक मिला। 11वीं कक्षा में पढ़ रही सुजाता ने बताया कि उनके पिता रणधीर और माता दर्शना का उन्हें पूरा सहयोग मिलता है। उनका भाई मंदीप तो उसे हर समय मदद करता है। उससे भी अधिक कोच का मार्गदर्शन है। उसने बताया कि लंबे समय तक खेल खेलते हुए पढ़ाई नहीं हो पाती है लेकिन इसके बावजूद उसने दसवीं कक्षा प्रथम श्रेणी में पास की।
तीन बहनें बनीं प्रेरणा
बजिन्द्र सिंह व सुदेश देवी की तीनों बेटियां कुश्ती में अपने मां-बाप ही नहीं बल्कि गांव का नाम रोशन कर रही हैं। गांव की दूसरी होनहार पहलवान सृष्टि है। मई, 2014 में थाईलैण्ड के चोनबूरी में एशियन चैंपियनशिप में सृष्टि ने कांस्य पदक प्राप्त किया। वह बैंकाक में भी अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता में कांस्य पदक जीत चुकी है। वह राष्ट्रीय स्तर पर 4 बार हरियाणा एवं अपने गांव का नाम रोशन कर चुकी है। सृष्टि ने बताया कि वह 12 साल की उम्र से ही कुश्ती के दांव-पेंच लगाना सीख रही है। 2013 में फरीदाबाद में आयोजित स्वामी विवेकानन्द हरियाणा राज्य ग्रामीण अंडर-16 प्रतियोगिता में कुश्ती स्पर्धा में पहले स्थान पर कब्जा किया। सोनीपत (हरियाणा) व औरंगाबाद (महाराष्ट्र) में आयोजित पांचवीं व छठी राष्ट्रीय ग्रामीण खेल स्पर्धा में उसने पहला स्थान लिया और स्वर्ण पदक जीते। श्रीनगर में जुलाई 2014 में 17वीं लड़कियों की सब जूनियर राष्ट्रीय खेल स्पर्धा में भी उसने स्वर्ण पदक प्राप्त किया है। वह खेलों में ही नहीं बल्कि पढ़ाई में भी अव्वल है। गांव के ही राजकीय स्कूल में 12वीं कक्षा में उसने 90 प्रतिशत अंक प्राप्त किए हैं।
सृष्टि की बड़ी बहन प्रियेता भी कुश्ती में दमखम आजमाती है। बीए प्रथम में पढ़ रही प्रियेता ने 2015 में रोहतक में आयोजित हरियाणा राज्य कुश्ती चैंपियनशिप में 46 कि.ग्रा. वर्ग में द्वितीय स्थान प्राप्त किया। हाल ही में झारखण्ड राज्य के रांची में आयोजित लड़कियों की 18वीं राष्ट्रीय कुश्ती स्पर्धा में तीसरा स्थान प्राप्त किया। वहीं 17वीं राष्ट्रीय कुश्ती स्पर्धा में द्वितीय स्थान पर रही। महाराष्ट्र के औरंगाबाद में 2014 में हुई राष्ट्रीय छठी स्वामी विवेकानन्द पायका स्पर्धा में उसने पहला स्थान अर्जित किया था। सृष्टि और प्रियता की नौवीं कक्षा में पढ़ने वाली छोटी बहन संजू भी अपने बड़ी बहनों के नक्शेकदम पर तेजी से आगे बढ़ रही है। हाल ही में हिसार में आयोजित राज्य स्तरीय कुश्ती प्रतियोगिता में उसने स्वर्ण पदक जीत कर गांव का नाम रोशन किया।
हम भी नहीं किसी से कम
गांव में ही अन्नू ने विपक्षियों को 2 बार धूल चटाकर राज्य व राष्ट्रीय स्तरीय कुश्ती स्पर्धा में स्वर्ण पदक हासिल किया है। कोच सुरेन्द्र पूनिया का दावा है कि 40 वर्ग किलोग्राम भार वर्ग में उसका मुकाबला देश में कोई नहीं कर सकता। औरंगाबाद में आयोजित प्रतियोगिता में भी उसने स्वर्ण पदक जीता था। आजकल अन्नू दिल्ली में होने वाली अंतर्राष्ट्रीय कुश्ती प्रतियोगिता की तैयारी के लिए लखनऊ में आयोजित कैम्प में पसीना बहा रही है। गांव की शिवानी भी लखनऊ कैंप में थी, लेकिन उसके हाथ में चोट लग जाने के कारण उसे वापस लौटना पड़ा। गांव में दसवीं कक्षा में पढ़ने वाली अजमेर और रईसा की बेटी शबनम ने रोहतक में राज्य स्तरीय स्पर्धा में तीसरा स्थान लिया है। शिवानी भी राज्य स्तरीय कुश्ती में अपना दमखम दिखा चुकी है।
कैसे बढ़ा काफिला
गांव बड़ौता में कुश्ती का काफिला आगे बढ़ने की कहानी सामाजिक-आर्थिक समस्याओं से जुड़ी हुई है। पहलवान लड़कियों के कोच पहलवान सुरेन्द्र पूनिया और हरीश पूनिया के मन में टीस थी कि सुविधाओं और प्रशिक्षण के अभाव में वे आगे नहीं बढ़ सके। राष्ट्रीय स्तर पर खेल चुके सुरेन्द्र पूनिया और हरीश पूनिया ने ठान लिया कि वे अपने गांव में पहलवानों की नर्सरी तैयार करेंगे। उन्हें लड़कों से अधिक लड़कियों में संभावनाएं ज्यादा दिखीं। उन्होंने बताया कि हालांकि लड़कियों के लिए माहौल अधिक अनुकूल नहीं है, लेकिन इसके बावजूद लड़कियां अपने लक्ष्य के लिए जीजान झोंक देती हैं। उन्होंने बताया कि पहलवानों के आगे बढ़ने से ही उन्हें संतुष्टि मिलती है और यही उनका लक्ष्य है।
कोच के प्रयासों से मिली कुछ सुविधा
कोच हरीश व सुरेन्द्र का कहना है कि लड़कियां गांव के राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय में बनाए गए अखाड़े में अभ्यास करती थीं, लेकिन राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उन्हें मैट पर खेलना होता था, जिससे उन्हें काफी परेशानी होती थी। पंचायत के सहयोग से स्कूल में अभ्यास के लिए हॉल बनवाया गया। उसके बाद खेल विभाग ने मैट का सहयोग किया।
सरकार दे खिलाड़ियों को आर्थिक सहायता
कोच सुरेन्द्र, हरीश व मंजीत ने बताया कि कुश्ती करने वाली लड़कियों के परिवारों की आर्थिक हालत कोई ज्यादा अच्छी नहीं है। कुछ लड़कियां तो अपने परिवार के साथ मजदूरी करती हैं। गेहूं व धान की कटाई करने के साथ ही लड़कियां हाड़तोड़ अभ्यास करती हैं। सुबह और शाम तीन-तीन घंटे कड़ा अभ्यास करते हुए उन्हें अतिरिक्त पोषाहार की जरूरत है। बाहर खेलने के लिए जाते हुए भी उन्हें आर्थिक मदद की जरूरत होती है। उन्होंने कहा कि सरकार को इन लड़कियों की आर्थिक मदद करनी चाहिए।
आॅस्ट्रेलिया से भिजवाये एक क्विंटल बादाम
पहलवान बेटियों के पोषाहार की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए आस्ट्रेलिया में रह रहे जितेन्द्र पाल ने एक क्विंटल बादाम भेजे हैं। जितेन्द्र खुद भी पहलवान रहे हैं। उन्होंने कुश्ती में करनाल केसरी का खिताब जीता है। वे जानते हैं कि पहलवानों के लिए बादाम कितना जरूरी है। कोच हरीश ने बताया कि बादाम खिलाड़ी में पानी की कमी को पूरा करता है। प्यास नहीं लगने देता।
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